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षट्कारकना कानू नाम तथा रच्या संवत् आपेला नथी. प्रतीक अंचल गच्छना सूरि जयकीर्तिए सं. १४८५ मां लखेलो छे.
अथ षट्कारकमभिलिख्यते। यथा छ. कारक सातमु संबंध कर्ता कर्म करण संप्रदान अपादान संबंध अधिकरण। जे करइ स कर्ता जं कीजइ तं कर्म जीणइ करी क्रिया कीजइ तं करण जेह देवातणइ इच्छा. जेह रुचइ कांइ जे धरीइ कांइ तं कारक संप्रदान मेहतु अपाय विश्लेषु हुइ जेहतु भय हुइ जेहतु आदान ग्रहण हुइ तं कारक अपादामु नेहक नेह माझि जेह पासि जेह तणउ जेहतणी जेहसरइ कहिइ इयादि संबंध । गामि पाद्रि खलइ क्षेत्रि वनि पर्वति माहि बाहिरइ इत्यादौ आधारः
अंत संवत् १४८५ वर्षे फाल्गुन वदि ७ दिनि आंचलि पक्षे लिखित श्री जइकीर्तिसूरः ।।
कारकविचार प्रतीक संवत् १९४३ मां लखेलो छे षट्कारकने आ बन्ने एकज लागे छे.
अथ षट्कारकमाभिलिख्यते । यथा छ कारक सातमु संबंधु कर्ता जं कीनइ तं कर्म जीणइ करइ क्रिया की नइ त करणु जेह देवातणी इज्छा जेह रुचइ कांइ जेह धर रह कांइ त कारक संप्रदानु जेहर्नु अपाविश्लेषइ नेहर्नु आदानु ग्रहण हुइ तं कारक अपादान जेहमाझि जेहपामि जेहतणउ जेहतणी जेहरही जेहकहिं इत्यादि संबंध । गामि पाद्रि क्षेत्रि वनि पर्वति मांहि बाहिरइ इत्यादि आधार.
दामोदररचित उक्तिव्यक्ति (५० आर्या) ताडपत्र उपर छे. टीकाकारे उक्तिव्यक्तिनो अपभ्रंश भाषाओथी आच्छादित संस्कृत भाषानुं प्रकटीकरण एवो अर्थ करेलो छे.
१६ मा शतकमां रचायेला रासो ५० थी वधारे हशे. त्यारपछीना रासो तो घणाक छे. देपाल- जावडचरित्र, गुणविनयनो कर्मचंद्रवंशावलीप्रबंध, कनक कुशलनो विजयदेवमूरिरास (१६६४ ), काशीना राजा जयचंद्रनो रास, गुणविजयनो कोचरव्यवहारिरास, खरतरज्ञानराज गणिना शिष्य लब्धोदय गणिए उदयपुरना कटारिआ गोत्रना मंत्रि भागचंद्रना अनुरोधी संवत् १७०७ मां राणा जगत्सिंहना समयमां रचेलो पद्मिनीचरित्र रास, पंचदंडप्रबंध ( १५५३ ), उदयभाणवाचककृत विक्रमरास. ज शेखरना शिष्य जयप्तोमकृत अंबडकथा गद्य (प्र. १५७१ ) विनयसमुद्रतुं
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