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समरिसुं समरस झीलती हंसासणि सरसत्ति ॥ १॥ मानसि सरि जां निम्मलइ करइ कतूहल हंसु तां सरसात रागइ रहइ जोगी जाणइ डंसु ॥ २ ॥ वाणी पाणि सामिणी मन सरसती संभारी
दीस दुयणदुयगमी भीडे भुयण दुयारि ॥ 3 ॥
हिव वस्तु नाभि मंडल २ मूलि जे कंदु तिणि सुत्ति जगाविय । मूलपवणुं जुत्तिहिं निरुंधिय ।
तउ चल्लिय पवणचाल अवहमग्गि ससिपाणलुद्धिय । पेखी देवी सरिस मई दिठ्ठी दसम दुयारि ।
कासि कवित सोहामणुं तेह सरसति आधारि ॥ ४ ॥ जयशेखर सूरि एक प्रख्यात ग्रंथकार हता अने तेमनो रचेलो आ प्रबंध मनोहर होय तेमां नवाइ नथी. प्रबंधनी त्रण प्रतो पाटणमां छे. परंतु जे प्रतीकमांथी उपरनुं उतारवामां आवेलुं छे ते वधारे जुनो होइ मूळ भाषा सारी जळवायेली छे.
विद्याविलास रास - पीपलगच्छना वीरप्रम सूरिना शिष्य हीराणंद सूरिए आ विद्याविलास नरेंद्रनो पवाडो सं. १४८६ मां रचेलो छे.
पहिलउं प्रणमिय पढमजिणेसर सित्तुंजय अवतार |
हाणाउरि श्रीशांतिजिणेसर उज्नाले नेमिकुमार ॥ १ ॥ जीराजाले श्री पासजिणेसर साचउरि वर्धमान |
॥ ३ ॥
कासमीरपुर सरसती सामिणि दिउ मझ नितू वरदान ॥ २ ॥ पीपलगाच्छहि गिरुआ गणहर सिरिवरिप्पह सूरि । नामिइ लीइ जास तणइ सवि पापपणास दूरि ताणापय पण माय बोलिसुं विद्याविलासह चरिय । भ हीराणंद भविया निसुणइ हीयडइ हरख धरीय ॥ विद्याविलास नारेंदपवाडउ हियडाभीतरि जाणी । अंतराय विणु करउ तुम्ह भाव घरउ आणि आरासुमा वस्तु द्रुपद, दुहा, चोपइ, देशाख, वसंत, धन्याश्री, आंचली, वगेरे छंदो तथा रागो वापरेला छे प्रतीक बहु जूनो नथी.
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