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दशार्णभद्ररास- - हीराणंदसूरिकृत दर्शाणभद्ररास बहुज टुंको छे पिप्पलगच्छना हीराणंद सूरिनो विद्याविलास पवाडो सं. १४८६ मां रचायेलो छे.
वीरजिणेप्सर पय नमीए समरीय समरीय सरसति देवि कि दशनभद्रगुण गाइसि ए हियडल्लइ
हियडलइ हरष धरेवि कि रनिणसर पय नमीए ॥ १ ॥ त्रुटक पय नमीय वीरह दशनभद्रह चरिय रचिसुं सोहापणूं
जंबुदीवहि भरहखंडहि दशनपुरु रळियामणू दशनभद्र तिहां राज पालइ इंदना गालि जाणे ए
दशनगिरिवनि वीर पुहुता समवसरण वाणीए ॥२॥ अंत इणिपिरि जिणवर गुण थुणए नासए कसमल पूरि कि ।
बोलइ बोलइ हीराणंद सूरि कि इणिपरि जिणवर वांदतां ए ।
नेमिनाथफाग----धनदेव गणिनो आ संस्कृत प्राकृत तथा गुजराती एम त्रण भाषामय सुरंगाभिधान नेमिफाग संवत् १६०२ मां रचायेलो लागे छे.
नत्वानंतगुणात्मकं सुरंनत संसारनिस्तारकम् विश्वानंदविधायकं जिनपतिं श्रीआदिदेवं प्रभुम् । स्तुत्वा श्री सुतदेवतां जननतां निःशेषनाडयापहाम् श्रीनेमेस्तुलं करोमि सफा सुरंगा भिधम् । प्राकृत काव्य । देवी देवि नवी कवीश्वरतणी वाणी अमसिारणी विद्या सायरतारणी मल घणी हंसासणी सामिणी । चंदा दीपत जीपति सरसात मइ वीनवी वीनती बोलु नेमिकुमार कोलनी रति फागइं करी रंजती । सरसति मुझ मति देवीअ देवीअ तुं जाग साररे । नीलकमलदलसामल जिनवर वरणवू नेमिकुमाररे ॥ ३ ॥ कामित फलदातार सामी नेमिकुमार हारमनोहरु ए मुगति रमणिवरुए फाग-ज्ञान उपy जाणीय राणीय राइमइ रंगी
अंत
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