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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - विनयचंद्र संवत् १२८५ ना अरसामा विद्यमान हता. मलधारिनरचंद्रना शिष्य नन्द्रय वस्तुपालना आग्रहयी अलंकारमहादधि नामनो स्वोपज्ञ टीकावाळो ग्रंथ रचेलो छे हेमाचार्यना शिष्य रामचंद्रे २०० श्लोकनो नाट्यदर्पण नामनो चार विवेकमां नाट्यशास्त्रनो ग्रंथ रचेलो छे पाचचंद्र सूनु आजडनी सरस्वतकिंठाभरण उअर पदकप्रकाश नामनी अगत्यनी टीका छे. पण दुर्भाग्ये ताडपत्रनो प्रतीक अपूर्ण तथा त्रूटक छे. अपभ्रंश संबंधी टीक कारे सूत्रोना उदाहरण सहित सारं स्पष्टीकरण करेलु दे. काव्यप्रकाश उपर काव्यप्र. काश संकेत उर्फ काव्यादर्श नामनी भारद्वाज गोत्रना भट्टदेवकसूनु सामेश्वरनी टीक ना ५-६-७-८-९ (अपूर्ण) अध्यायो ताडपत्रउपर छे. प्रतीहारेदुराजना उद्भटालंकारसारसंग्रह, तोमर वंशना काश्मीरी सहदेवनी वामनीयालंकारवृत्ति, अमरचंद्रनी काव्यकल्पलता उपर विवेक नामनी टोका, भावदेवनो अलंकारसार, मलवाना महामात्य व.ग्भटन पुत्र देवेश्वरनी कविकलालता नामनी कविशिक्षा वगेरे नाणवा लायक ग्रंथो छे. काव्योमा धर्मपाल वंश विभूषण अने विक्रमशील संभ। पालवंशना युवरान हारावर्षनी आझाथी अभिनन्द कविए रचेला अभिनन्द काव्य ( रामचरित ) ना ताडपत्र तथा कागळ उपर प्रतीको छे. छेल्ला ४ सगों ( ३७-४० ) कायस्थ भीमनी कृति छे. वालभ कायस्थ सोठ्ठलनी उदयसुंदरी नामनी चंपू कथा गनरातना संस्कृत साहित्यमां एक अगत्यनो ग्रंथ छे. बाणना नेगी कृति रचवानी उत्कट आकांक्षावाळा आ कविए हई चरिबनी माफक आठ उच्छ्व समां आ काव्य रचेलुं छे. प्रथम उच्च समां कविए पोतानी जातिनी उत्यत्तिनुं तथा स्ववंशनुं वर्णन करेलु छे. कनकायन नामना प्रधाने अधिकार रोपित स्वजातिओथी व्यभिच र देखाडवाथी वलभीना राजा शिलादित्यने प्रधान बदलवानी चिंता थइ. र त्रे लक्ष्मीए स्वप्नामां दर्शन आप्युं, अने शिलादित्यने पोताना भाइ कलादित्यने अमात्य पदे नियुक्त करवाने आदेश कों. तेणीए का के तारो काष्ठ भ्राता कलादित्य शिवना कायस्थ नामना गणनो अवतार छे. ज्यारे देवताओए समुद्रमथन कर्यु त्यारे प्रथन तो हुँ तेमना दृष्टिपथ आवी, परंतु मंदरना परिभ्रमी उत्पन्न थथेला आवर्तना सन्निवेशथी एकदम तरतन अति गंभीर पाणीमा डुबी गइ. इंद्रादि सर्व देवो ते वावते विषण्ण थइने बृहस्पतिने पुरावा लाग्या. बृहस्पतिए की) के श्रीकण्ठनी पासे कायस्थ नामनो अति प्रसिद्ध गण रहे छे. अष्टमूर्ति भगवान्नी जलमयी मूर्तिने अधिष्ठित समुद्रना आसन्न सहच. रत्वपणाथी कायने विषे रहेलोते कायस्थ एम कहेवाय छे. जलधिनो प्रेमपात्र होवाथी तेनाथी समुद्रमाथी लक्ष्मी लावी शकाशे. For Private And Personal Use Only
SR No.020547
Book TitlePatanna Bhandaro Ane Khas Karine Tema Rahelu Apbhramsa tatha Prachin Gujarati Sahity
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChimanlal Dahyalal Dalal
PublisherMaherbanji Dadachanji Beheram
Publication Year1915
Total Pages45
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size4 MB
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