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( २० )
स्वामि चरित्र (२६९० ग्रंथाग्र ) तथा तेना उपर टिप्पन ( ११९० ग्रंथाग्र )
नोंघेलां छे.
समयाभावे अहितो ग्रंथांना नाम मात्र थोडाक उतारा साथे आपला छे. परंतु आगळ अर समयानुकूलनाए तेमां वपरायेला छंदो तथा व्याकरणना प्रयोगो विषे लखवानुं बनी शके.
जूनी गुजराती भाषाना संपूर्ण अभ्यास माटे पाटणना भंडारो जे जूना अने विश्वसनीय साधनो पूरा पाडे छे तेवां हिंदुस्ताननी बीजी कोइ भाषामां भाग्येन मळी शकशे अहींयाना जूना प्रतोकोथी विक्रमना अगीयारमा शतकथी गूजराती भाषानो इतिहास यथार्थ रीते लखी शकाशे. भंडारोमांनुं गूजराती साहित्य बहुज विशाळ छे. परंतु ते समग्रनुं अहीं विवेचन करतां बहुत विस्तार थाय एवो होवाथी फक्त १३ थी १५ मा शतक सुधीना ग्रंथो तथा केटलाक बीजा अति अगत्यना ग्रंथो तपासीशुं.
जंबुस्वामिरास- --आ रास महेंद्र सूरिना शिष्य धर्म संवत् १२६६ मां रचेलो छे. गूजराती भाषामा अत्यार सूत्री मळी आवेला रामोमां आ सौंथी जूनो छे. प्रतीक कागळ उपर होवाथी जोके असलनी भाषा संपूर्ण रीते सचवायली लागती aण प्रयोगो असल रूपमा जळवायेला छे.
नथी, तोपण
आदि
जिण चउविस पय नमेवि गुरु चलण नमेवि । जंबुस्वामहंत चरिय भविउ निसुणेवि ।। करि सानिध सरसत्तिदेवि जीय रयंक हाणउ जंबुस्वामहिं गुणगहण संखेवि वखाणउ ॥ १ ॥ जंबूदीव मरहखित्ति तिहिं नयर पहाणउ | राजगृह नामेण नयर पहुचि वखाणउ ॥ राज करइ सेणीय नरिंद नरवरहं जु सारो । तासु तण पुत्त बुद्धिमंत मंति अभय कुमारो ॥ २ ॥
अन्न देणंतरं वद्धमाण विहरंत पहूतउ ।
सेणीउ चालीउ, बंदणइ बहुभत्ति तुरंतु ॥
मार्गि वरंतु महाराज केसउ पेखेइ | भोग: रत्तउपसन्नचंद बहुतवण तवे ॥ ३ ॥
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