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(१२) रातीमा जेम काव्यने रास कहे छे तेवी रीते अपभ्रंश तथा प्राकृत भाषामां रासो हता. यशो देवोपाध्यायका संवत् १७४ मां रचेला नवतर भाष्यविवरणमां माणिक्यप्रस्तारिका प्रतिबद्ध रासक नाम आवे छे. ( अनयोश्च विशेषविधिMकुटसप्तमीसन्धिबन्धमाणिक्यप्रस्तारिकाप्रतिबद्धरासकाभ्यामवसेयः )
___पाटणना भंडारमा संदेशरासक नामनोविरहिणीसंदेशविषयक प्राकृत-अपभ्रंशमां, अंतरंग रास तथा नेमि रास अपभ्रंशमां छे.
मुनिवर वरदत्तना बनावेला वज्रस्व मि चरित्रनी बे संधिओ छे. प्रथम संधिमा १२ अने बीनीमा ९ कडयां छे. कुल ग्रंथान ३०० छे. आ चरित्रना त्रण ताडपत्रो पाट गमां थे, तेम एक खंभातमा पण छे. प्रथम कड्यूँ नाचे प्रमाणे छे:
अहो जण निमुणज उ कन्नु धरिजउ बइरसाभिनुनिवरचरिउ ।। १ ॥ साहउं सुमणाहरु भवियह सुंदरु नि जिणवयणु समुद्धरिउ ॥ तुंबवननामि पुरवरु पहाणु अत्येत्थु भराहि वरगुणनिहाणु। निणभवणिहि सुंदरु किउ पवित्तु देउलविहारमंडिउ पवित्तु ॥ २ ॥ नंदनवणसरिसरवरहिं रम्म पालाहं नर तित्थु जिणंदधम्मु । तहिं नयरि अत्यि धणु नाउ सेठ्ठि जो हत्थु न उड्डइ कसु विहे ॥ ३ ॥ तः धणगिरि नामि पहाणु पुत्तु पुरमंडणु अस्यि सुगुणहिँ जुत्तु । २...वयवंसुप्भवउ सुद्धभावउ निम्मलगुणमंदिरु समय उ ॥ ४ ॥ उसंतमोहमे क्वाभिलासि आहलासु न बंधइ गेहवासि । जा कावि वरिजइ तासु वाल नवजोव्वणवरनयणविसाल ॥ ५ ॥ पडिसेहइ सो मुनि जेम नारि नियजोयणु म अयत्थ हारि । पवज लेसु निम्विन्नकामु मइ सफलु करोषणु मणुयजम्मु ॥ ६ ॥ अन्नइ पभाणिजइ सुंदरीए नियतायजणणिग्खामायणीए । हउ अवसवरित्तणि करिसु एहु महु मणइछु एहु बरु वरेहु ॥ ७॥ ( धत्ता ) एहु जइ न वरेसइ नवि परणेसइ तो मइ माइ मरेवउ । एहु नयणसुसुंदर रूवपुरंदरु अक्स नाहु करवउ ॥ ८ ॥ अंत. मुनिवरवरदत्तिं गणहरभात्त वइरसामिगणहरचरिउ । साहिज उ भावि मुंचहु पावि नि तिहुयणु नियगुणभरिउ ।।
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