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( १३ )
अंतरंगसंधि धर्मप्रभाचार्यना शिष्य पंडित रत्न प्रभनी अंतरंग संधिना नव अ धिकारो (९ कडवा ) मां भव्य अने अभव्यना संवाद रूपे तथा मोहसेना तथा जिनसेनाना युद्ध रुपे अंतरंग रिपुना विजयनुं वर्णन छे. आनी एक ताडपत्र तथा बोजी कागळनी प्रत बे प्रतो छे.
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चउरंगसंधिना पांच कडवामां चार शरणनुं वर्णन े, धनपाल पंडितनी पंचमी कहा ( भवित्तकहा ) २२ संधिओमां छे. आदिनुं एक कडवु उदाहरण तरीके नीचे आपलं छे.
जिणसासणि सातु णिधुयपाव कलंकमलु । सम्मत्तविले निणह सुयपंचामीहि फलु ॥ पणवि पिणु जिणु तइलाय बंधू दुत्तरतरभवणिव्वूढखंधू । भव्वयणपंकयपयंगु कयकरणमोह तिमिरोहभंगु || नीमभरियमुवणंतरालु उक्कयदुक्कम्मतरुमूलजालु ॥
साउ अराउ अको अलोहु भणावलेउ । परमेसरु परमगुणप्पहाणु संपत्तु परमनिव्वुइनिहाणु अरहंतु अणंतु महंतु सिउ संकंतु सुहुमु अणाइवंतु ।
परमप्पड पंडिउ महत्थु पवर महासिरिपरमिट्टि परमकारण कयत्थु ॥
६त्ता । सो हिय धरेवि पवरमहासिंरिकुलह रहो ।
वित्थार मिले!इ कित्तणु भविसणराहिवहो ||
अंत. इय भविसत्तकहाए पयडियधम्मत्थक ममोक्खाए
बुहघणपालकयाए इत्यादि
आ कथामां कार्तिक शुक्ल पंचमी ( ज्ञानपंचमी ) ना फल वर्णनरूप भविष्यदत्त राजानी कथा छे.
हेमाचा ना गुरु देवचंदनुं सुलसाख्यान १७ कडवामां छे. एह संधि पुरसध्यवसथ्य देवचंदसूरीहिं समध्यिय । इय बहुगुणभूसिउ जिणसुपसंसिउ सुलसचरिउम्मवियहं निसुणत पढ़तह भत्तिए सत्तणं दइ मोक्खु मोक्खथ्ययहं ॥ खरतर जिनदत्ताचार्यना उपदेश रसायणनी ८० गाथाओ छे.
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