________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(३) चतुर्विध भावना कुलक ११ कडवां. उजनु कुगड्डु जिणपहि लग्गिउ मोकखकएमु विवेकिहिं नग्गिउ ।। ( ४ ) मल्लिचरित्र ५१ गाथा; मत्ताछंदमां चंद्रकंठी साांनी विज्ञप्तिथी रचेलं छे.
एगुणर्व सममल्लि जैणह चरियं इय जयठिउ । चंदकंठिसुप.वित्तिणीए विन्नत्ति विरइउ ।। चउविहसंघह देउ लच्छि सग्गअपवग्गह । निरुवसग्गअणीवमग्गवग्गसिरिजिणपह लग्गह ॥ मत्ताछंदविणिम्मियगंथमानु पन्नास ।
चरिउ गुणंतसुणतह वि भावियण पुजइ आस ।।
( ४ ) जीवानुशास्ति संधि १८ गाथा इय विविहपयारिहिं विहिअणुसारिहिं भाविहि जिणाहुमणुपरहु ।
(६) नेमिनाथरास ११ कडवां
जिणपहि लग्गिउ भावइ लीजइ निणवरआण सो वंदीन ।
नं जिणआणा निरुपमु तित्थू एउ गणहारहिं कहिउ परमस्थू ।। ११ ।। . (७) युगादिजिन चरित-कुलक २७ गाथा
इय भवभावविभावणग्गि कम्मिंधणु जा लिउ केवलनाणी जाइ मोकिख संनमु पालिउ । रिसहचरिउ संथवणु रासिप्पोरोह जो देइ
सो सिरिनिणपहलग्गउ सग्गु अपवग्गु वि लेइ ॥ २७ ॥ (८) भव्यचरित्र ४४ गाथा. . . . . .
जिणपहुमेहिउ सरणु न कोइ सुगुरु भणइ सयलु वि जीवलाइ । (९) भवियकुडंव चरित्र ३६ गाथा. छंद चतुष्पदी. द्रविडी भाषामां गवाय छे.
घउवइबंधेण इमं मवियकुडं बस्स संतियं चरियं । सेत्तुनतित्थगएणं सिरिनिणपहसूरिणा रइयं ॥ ३६ ॥
For Private And Personal Use Only