Book Title: Majernamu
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सीमंधरस्वामी वीनंति रु. कागळ हुंडी पेठ परपेठ मेझर नामुं. ले. मुनि ज्ञानसुंदर. प्रकाशक, श्री रत्न प्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला, मुः फलोधी, जि, जोधपुर, मारवाड. For Personal & Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - भूमिका. .. शासनप्रेमी अने वीरपुत्रो! आजे हुं हार्दिक रहस्य आपनी . सन्मुख जाहेर करूं छं जे महाशयो ! सूर, वीर, धीर थई - विचारशो, लगभग घणा समयथी आपणा पोताना घरमों हानि थवा मांडी. घरनां चोरज चोरी करवा लाग्या. घरफाटे घर जाय, एवं नाटक 'थवा लाग्यु. तेनी साथेन बरोबर सावधान पुरुषो पण कटिबद्ध थई पोकार करता आल्या छे. खूब जोर शोरथी आपणा समाजना सुधारको चेताव्या करे छे परंतु घरनां चोरो घरमांन गोंधाई रह्या छे एटले सर्वाशे निर्भय बनी शकातुं नथी. तो पण घणे भागे दीवो हाथमां लईने उभा रेवाथी घरनां चोर जोर चाली, शके नहि एटला माटेज आ साथे कागळ, हुंडी, पेठे। परपेठ अने मेजरनामुं लखी दीवा जेवं अनवाणुं करवाथी घरमां लुट थती अटके छे अने श्री सीमंधर स्वामी भगवान्ने आपणी खबर आपीने मनन शांत करुं छु. आपणा घरमां मुनिम-गुमास्ताओए परस्पर सजगडा करी अनेक उपद्रव करी नांख्या छे, शासनने चारणीनी पेठे चाली नांख्युं छे, मूळ मार्गने घणी तरेहथी हानि करी नवा नवा रीवाजो दाखल करी खरी बाबतमां गुंचवाडा उमा करी दीधा छे. सत्यने भेळशेळ करी सामान्य प्रजामां कोलाहल मवावी दीधो छे, घणा समज जीवोथी पण खुलासा न नीकळी For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शके एवी प्रवृत्तिओ अने. परंपरा उभी करी छे; आ बधी भांजगड सर्वाशे सुधारवी कठीन थई पडी छे, बणा भव्य जीवो आवा गोटाळाथी कंटाळी गया छे अने हवे शुं करवू केम तरी पार थशें एवा धर्म संकटमां मुझाया करे छे. मारी पण एवी स्थिति थई छे. अने तेथीज आ विनीत पक्ष स्वीकारी विनती रुपे मारा विचारो सीमं.. धर प्रभुनी सन्मुख उभा रही हाथ जोडी अत्यंत नम्रमावे जाहेर रीते जणावी दीधा छे. सेमां कोईनी साथे अभाव अप्रीतिनुं कारण नथी. मे भला पुरुषो हशे ते सर्वे मारे माननीय छे अने जे भलाईथी वेगळा हशे ते सर्वनी साथे समभावे उपेक्षा राखं छु. आ ग्रंथ साद्यंत वांची विचारी अपक्षपात दृष्टिथी दरेक भला पुरुषोए निर्णय करी लेवा प्रार्थना के. . . -लेखक. पुष्पांजली. . . हे प्रभो दीनोद्धारक ! मारी शी दशा थई. त्हारी पासे जन्म्यो नहि. तेम चोथा आरामां त्हारो मार्ग मल्यो नहि. अरेरे ! हे स्वामिनाथ ! आवा पांचमा आरामां भयंकर कलिकाळा मारो जन्म तेमां कुगुरु समागम त्यांथी भागी ल्हारा शुद्ध शासनमा दाखल थयो. अने आगमशैली तपासी जोई तो जुदी जदी समाचारी अने गच्छागच्छ मतामत जोई, हे स्वामीनाथ ! क्या त्हारो लोकोत्तर मार्ग अने क्या आ लौकिक प्रवाह-गाडरीओ प्रवाह ! हे करुणासागर ! क्या त्हारी वीतराग वाणी अने क्यां आ पर For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) दरनी वाणी ? हे भला भगवान् ! क्या पुन्यानुबंधीनी जैन शैली अने क्या आजे अनंतानुबंधीनी प्रवृत्तिओं ? हे कृपानाथ ! दीनबन्धो ! हुं खरेखर खेद पाम्यो मने बीजो कोई उपाय न सूझयो. हे जगतारक ! में म्हारा आत्माने . समजाववा माटे आपना पवित्र चरणकमळमां कागळ, हुंडी, पेठ, परपेठ अने मेझरनामाथी प्रार्थना करी छे. हे सर्वज्ञ भगवान् ! आप आप सर्व जाणो छो-देखो छो, तो पण हुं एक अर्जदार तरीके अरजी करी म्हारा. आंखना आंसुओ रेडी पुष्पांजलि आफ्नां चरणकमळमां शरणे रही म्हारं परम कल्याण करवा चाहुं छं. हे अनाथनां नाथ ! दीनबन्धो ! भक्तवत्सल भगवान् ! म्हारी अरजी स्वीकारी मने पवित्र करो-निर्भय करो! शुद्ध श्रद्धा आपो ! सम्यकदृष्टि, सम्यक् ज्ञान-दर्शन-चारित्र आपो. हे श्री सीमंधर भगवान् ! अधमोद्धारक ! जगत्तारक ! परम द्यालो ! हवे कृपा करो. मुजने तारो. पार उतारो. अरजी स्वीकारो. जयदेव ! जयनाथ ! जय वीतराग ! जय ! जय ! जय श्री सीमन्धर भगवान् ! जयविहरमान् भगवान् जय ! जय ! . . . खमेव सरणदेव ! त्वमेव सरणं मम. त्वमेघ सरणं नाथ ! त्वमेव सरणं प्रभो ! . . -लेखक. . For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मारा विचारो अधमोद्धारक श्री सीमंधर स्वामीने आ वीनतीरुपे कागळ~~ . हुंडी-पेठ-परपेठ अने मेजरनामुं बनावीने में मारा हृदयनां विचारो रजु कर्या. अने तेमां (२०३) ठेकाणे आगम पाठनां प्रमाण दाखल करी मारी दलीलो मजबूत करी मे शासनसेवा बजावी छे, सत्य अने असत्य ए बे मेळशेळ न थई जाय, ए खास ख्यालमा राखी आ प्रवृत्ति करी छे. आ एक बाबत भूलवा जेवी नथी के, भस्मग्रहनी मीठी असरथी शासनमां बे हजार वर्ष पर्यंत घणी हानि थई छे. अने ते हानिमाथी घणा भाग्यशाली जैनाचार्यों बची गया छे. छतां पण केटलाक एवा पण शिथिलाचारी चैत्यवासी भाचार्यो थया छे के जे शासनमां कांटा खीला समान थया छे. जेनी प्रवृत्तिओ जैन समाजने घणी खटके छे ते दूर करता पण पार आवतो नथी. पेली काळी बीलाडीनी वार्ता अने " हारितंताम्र भाजनम् " जेम घणी बीलाडीओ पेढी छे अने सत्य शोध मुशकील थयुं छे. आ प्रकरणमा मात्र मुखनी वातो थी पण सिद्धातनां पाठथी सत्य समजाववा कोशीश करी छे. आराधक थोडा अने विराधक जीवो घणा होय छे तेथी घणानी देखादेखीमां बिचारा भोळा माद्रिक प्राणी घणी वखत फसाई जाय छे. अने खोळने गोळ सरखा मानी पाछळथी जरुर पस्ताय छे. अने केटलाक पासस्थाओ एम समझावे छे के आ ढुंढियामांथी अवेला छे तेने For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) उत्सर्ग, अपवाद, परंपरा, गुरुगम क्यांथी होय एम छपनमां पाना सुधीनी कुयुक्तियो संभळावी दे छे. परिणाम शुं आवे छे ते हवे फरीथी केवानुं नथी. घणा कोलाहल करनारने जगत हवे बराबर पीछाणी शके छे. हमेशां सत्यज बहार तरी आवे छे अने लोको बराबर मानी शके छे. लोको खाली वातोने अने कोरा पंडितोने मानवानां नथी. ए तो हवे चारित्रने मान आपे छे.. कदाच एकाद प्रसंगमां भूलथाप खाई जशे, परंतु बीजी वार ठगाशे नहि. अमारी पक्की श्रद्धा छे के शासननो पुनरुद्धार मुनि महाराजो थीज थवानो छे. अने तेवा मुनिराजो भारतभूमि उपर विचरे छे. रत्न अने काचना टुकडा साथेज पड्या होय तो जोनारने सादी नजरे सरखा देखाय. पण झीणी नज़रे जेवाथी खरी वस्तुओ मळी शंके छे-ओळखी शकाय छे. बाह्याडंबरना भमकाथी काचना कडा झवेरीओ सन्मुख हमेशां नापास थाय छे. रंग, ढंग, चाल, चलगत, चाळा, चेष्टा, टापटीप, वडे ढोंगी, धर्मधुर्त जरुर दोन पडी जाय छे. अने साचा संत पुरुषो खरी कसोटी उपर दीपी नकळे छे. · एक बात समजवा जेवी छे ते आछे के, आगमोमां जे बाबतनुं नामनीशान न होय अने पछीनां ग्रंथोंमां आग्रह- कदाग्रह रुपे तथा गच्छ व्यवहार रुपे घर घालीने बेठा होय तेवा दाखलाओ मळी शके छे. तीन थूई, चार थई, पांच कल्याणिक, छ कल्याणिकचोमासामां अधिक मास. बे पर्युराणा - लोकिक टीपणा मुजब अर्कै मानवं ने अर्धन मानवं करेमीमंते त्रणवार, एकवार, पेला के पछी For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) श्रावकोने मुहपति चरवलो, जुदा जुदा गच्छोनी जोगविधि-उपधान विधि तथा प्रतिष्टा विधि, अंजनशलाका, देवद्रव्य-सातक्षेत्र द्रव्य, सुपना पारणा, गोठी, पूजारी, देवकी दुकानो, तीर्थोनी पेढी, मुहुपति बांधवी तथा वखाण वखते काने चडाववी इत्यादि अनेक प्रवृत्तिओ दाखल थई छे के जे मव्य जीवोने खास विचारवा जेवी छे. मोक्षनी लुटालुट, अने दुकानदारी वधती जाय छे. साधुओ एक बीजाने जुठा मानवा लाग्या. एक बीजाना बापदादाने गालो भांडवा लाग्या "शंकिए निस्संकति निस्संकिए संकेति" ज्यां शंका जेवू देखाय त्यां निःशंकपणे करवा लाग्या. ज्यां निःशंक छे त्यां अनेक शंकाओ काढवा लाग्या. परिणामे आ बाबतोनो छेवटनो सरवाळो गुंचाई गएला सूतरना कोकडा पेठे, काढवो उंदरने खोदवो डुगरव्यर्थ पाणी वलोवा जेवं निष्फळ देखाय छे. श्रीमान् उपाध्यायनी यशोविजयजी महाराज तथा पं. सत्यविजयनी गणीए घणो प्रयत्न कर्यो छे, अने तेथी परिणाम घणुं सारं आन्यु छतां पण पाछळथी मेळसेळ पेसती गई. आ प्रसंगे एक सूचना करवानी छे के-एक क्रियाउद्धारक मुनि मंडल स्थपाय, जैन महा सभा स्थपाय, जैन विश्वविद्यालय स्थपाय, जैन सुलेह कमीटी सभा स्थपाय, जैन जाति मदद फंड कायम थाय तो केवू सारं. शासनदेवता सद्बुद्धि आपो. आ तमाम प्रकरणो आदिथी अंत सूधी वांची विचारी मनन करो. कई पण विरुद्ध विवेचन थयु होय तो मिच्छामि दुक्कडं आपी . क्षमा चाहुं छु: लेखक. For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) प्रार्थना आ विनंति लखवामां मारो हेतु ए नथी के हालमां भरत. क्षेत्रमा कोइ साधु नथी. तेमन कोइने हलका पाडवानी कोशिष नथी. मारी मान्यता छे के शासननो आधार मुनिमंडळी उपर छे, तथा समाजनी लाभ हानिनी जोखमदारी पण मुनिमंडळी उपर रहेली छे. चालु समयमां भारत भामिमां अनेक मुनिमतंगजो विचरे छे. .तेओना पवित्र उपदेश द्वारा समयानुसार अनेक सुधारा थया छे, थाय छे अने थता रहेशे. श्री वीर शासन एकवीश हजार वर्ष पर्यन्तः अविच्छिन्न स्वरूपे चालशे ते महा मुनिमंडलना प्रनापेज. . सखेद लखवू पडे छे के रत्न बहु कीमती छतां पण काचना टुकडाओ साथे मेळसेळ थवाथी झवेरी शिवाय कोइ कीमत करी शकता नथी. बाकी साधारण जनसमुह तो बधाने काचनो देखाष दे छे. एटला माटेन काच अने रत्नो जुदा पाडवानी जरुर छे. कडं के के-"गणिल्ठति पादाने, काचः शिरसि धार्यते क्रयविक्रय वेलायां, काचः काचो मणिर्मणिः । मतलब के रत्न पगे रोळाता होय अने काच माथे बांध्यो होय परंतु परीक्षक पासे काच ते काचज बनवाना अने रत्न ते रत्न वस्तुज छे--एक अमूल्य चीज छे. बन्ने ज्यांसुधी अलग अलग बतावामां न आके त्यांसुधी भद्रिक माणसोनी रत्न तरफ आदरभावना-सत्कारबुद्धि For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न थाय. केटलाएक बनावटी रत्नो पण लोकोमा जोवामां आवे छे. उपरथी सारी टापटीप करी मखमलना चळकदार कपडामां लपेटी लोकोने रत्नना नंग बताववामां आवे छे. जे खरी रीते साचा रत्ननी मश्करी करवा जेवं थाय छे--साचानी प्रतीत उठाडवा जेवू बने छे. रत्न अने काच बन्ने साथेज रह्या होय तो समाजनुं भलं करी शके नहि, जैन समाजमां परीक्षको. गण्या गांठ्यान होय छे. काचना ककडाओ दृष्टिरागी अने लालचु लोकोने जेम तेम समजावी पैसा एकठा करावे. कदाच एकाद दावपेचमा आवी जाय; परंतु तेरलाख जैन जीवोनु कल्याण करावी न शके. समाजमां अंतःकरणनी धर्म लागणी-धर्म तत्वज्ञान विषय कषायथी निवृत्ति-जिनाज्ञा आराधक ए तो घणा दूरज समजवा. ज्यारे जिनाज्ञा तरफ दृष्टि करशुं तो भले मोटा मोटा नामधारक व्याख्यानमां-उपदेशमां कथनी कथता होय; परंतु पोताना ज मंडळमां सुखसंयम यात्रामां शुभ प्रवृत्ति न होय; तो पछी समाजनी सुधारणा कयांथी करी शकाय ! पोथीमांना रांगणा जेवू धर्मोपदेशो जन रंजनाय । बीजाने कहे खोटो संसार, पोते चाटे वारंवार. आवा काचना टुकडाओथी समाजने घणु सहन करवू पडे छे, अने तेवाओथी चेतीने चालवू हितकर छे. लेखक. For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) सुधारानो मार्ग. अने संघ सभा श्री संघने तीर्थकर भगवान् पण नमस्कार करे छे. संघ पच्चीसमो तीर्थकर गणाय छे. आवो महत्वनो संघ समाजनी अधोगति थती केम जोइ शके छ ? घोर निद्रामाथी जागृत थइ ज्यारे विद्वान् मुनिमंडळ अने श्रावकवर्ग एक महत्ववाळी संघ महासभा स्थापन करशे. तेमां आगम अनुसार देश कालादि उचित नियमों बांधशे । साधुसमाज सुधारवामां साधुओने वस्त्रपास्त्र पुस्तकादिमा पोतापणुं न राखवा, वधाराना होय ते संघसभाने सोपी देवा. दीक्षा लेनार श्रावक अगर श्राविकाने प्रथम संघसभामां दाखल करवा. परीक्षा पछीन समानी मंजुरी लइ दीक्षा आपवी. पुस्तक छापका बाबत संघसभामां दाखल करवु अने सभा मंजुरी आपे तो छपाववां. नवीन बाबत आपणा विहार बहार पडे ते पण संघ सभानी मंजुरी लेवी. देवद्रव्यादि धर्मधन ते अमुक एकना कवनामां न राख, संघसभा ज्यां योग्य लागे त्यां वापरवा रजा आपी शके. जैन जाति मदद फंड सुधर्म सभा. मुनि महासभा. जैनग्रंथ सोसाइटी इत्यादि कोई जैन जाति उद्धारक संस्था स्थापे. . ___ आ हुं मारा विचार जणावं छु तेवी रीते बीजाओए पण पोताना विचार जणाववा. विचारनी आपले थवाथी कार्यपद्धतिनी कुंची मनी आवे. गुपचुप बेसी न रहेता शासन सेवा माटे पुरतो प्रयत्न करवानी जरूर छे. ले. ज्ञानसुंदर. For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेजरनामानी अनुक्रमणिका संख्या. विषय. . - गाथा. दोहा गाथा. ५ ७ १ श्री सीमंधर स्वामीने विनती रुप कागळ २ श्री सीमंधर स्वामीने विनती रुप हुंडी ३ श्री सीमंधर स्वामीने विनती रूप पैठ . ४ श्री सीमंधर स्वामीने विनती रुप परपैठ ५ श्री सीमंधर स्वामीने विनती रुप मेझर ढाळ १ ली सीमंधर स्वामीनी स्तुति ढाळ २ जी सुविहीत-अधिकार ढाळ ३ जी चैत्यवासी-अधिकार ढाळ ४ थी आचार्योपाध्याय-अधिकार ढाळ ५ मी गणी-अधिकार ढाळ ६ ठी योगोद्वहन-अधिकार । ढाळ ७ मी उपधान-अधिकार ढाळ ८ मी दीक्षा-अधिकार ढाळ ९ मी आहारग्रहण-अधिकार ढाळ १० मी रात्रिभोजन-अधिकार डाळ ११ मी वस्त्र पात्र-अधिकार rrn on २ ३५ For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ढाळ १२ मी सावय निर्वद्य-अधिकार २ ढाळ १३ मी विहार-अधिकार. १ ढाळ १४ मी ज्ञानाभ्यास-अधिकार ढाळ १५ मी व्याख्यान-अधिकार २ ढाळ १६ मी तपस्या-अधिकार २ ढाळ १७ मी स्त्रीसंग निषेध-अधिकार ढाळ १८ मी एकल विहारी-अधिकार १ ढाळ १९ मी गच्छभेद-अधिकार ढाळ २० मी निमित्त-अधिकार . २ ढाळ २१ मी तार टपाल-अधिकार ढाळ २२ मी प्रतिक्रमण- अधिकार ढाळ २३ मी तीर्थयात्रा अधिकार ढाळ २४ मी मंदिर उपाश्रय-अधिकार ढाळ २५ मी ढुंढक-अधिकार . . २. ढाळ २६ मी तेरापन्थी-अधिकार २ ढाळ २७ मी उत्सर्गोपवाद-अधिकार ढाळ २८ मी पासत्था-अधिकार ढाळ २९ मी श्रावक-अधिकार .. ७ ढाळ ३० मी आराधक विराधक-अधिकार २ ढाळ ३१ मी पूर्णता-अधिकार २ २५ For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ विनतिरुप कागळ, हुंडी, पैठ, परपैठ अने मेझरनामानी अंदर आगमोना प्रमाण नीचे प्रमाणे छे. ढाळ. गाथा. संख्या. आगमना नाम. .१ श्री उववाइजी सूत्र २ श्री महानिशीथ सूत्र ३ श्री बृहत्कल्प सूत्र ४ श्री व्यवहार सूत्र ५ श्री आवश्यक सूत्र ६. श्री दशाश्रुत स्कंध सूत्र ७ श्री व्यवहार सूत्र, ८ श्री निशीथ सूत्र ९ श्री व्यवहार सत्र २० श्री निशीथ सूत्र ११ श्री स्थानांग सूत्र १२ श्री व्यवहार सूत्र १३ श्री सूयगडांग सूत्र १४ श्री महानिशीथ ... , १५. • श्री अंगचुलिया १६ श्री उत्तराध्ययन , , ..१७ श्री.भगवती ccccc x 0 oc . OMMom ६ १ For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) १८ श्री पन्नवणा १९ श्री नंदि २० श्री व्यवहार २१ श्री भगवती २२ श्री अणुत्तरोववाइ २३ श्री अणुत्तरोववाइ २४ श्री व्यवहार श्री भगवती २६ श्री समवायांग २७ श्री अन्तगडदशांग २८ श्री बृहत्कल्प श्री व्यवहार ३० श्री व्यवहार ३१ श्री महानिशीथ ३२ श्री सूयगडाङ्ग ३३ श्री दशवैकालिक ३४ श्री महानिशीथ ३५ श्री स्थानांग ३६ श्री बृहत्कल्प ३७ श्री उत्तराध्ययन ३८ श्री स्थानांग ३९ श्री दशवकालिक ४० श्री ज्ञाता ४१ श्री कर्मग्रंथ or aur roorwww ur rr १ १ १ १vvvvvvv डा . " For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .९ on Pro902" .. (१५) ४२ श्री दशवैकालिक , ४३ श्री भगवती ४४ श्री भगवती ४५ श्री समवायांग श्री पिंडनियुक्ति ४७ श्री सूयगडाङ्ग ४८ श्री निशीथ ४९ श्री स्थानाङ्ग ५० श्री स्थानाङ्ग ५१ श्री दशवैकालिक . , ५२ श्री उत्तराध्ययन ५३ श्री दशवैकालिक ५४ श्री कल्प श्री उत्तराध्ययन . " ५६ श्री आचारांग . , ५७ श्री भगवती ५८ श्री आवश्यक ५९ श्री दशवैकालिक ६० श्री दशवैकालिक ६१ श्री निशीथ ६२ श्री दशवकालिक ६३ . श्री बृहत्कल्प .. ६४ श्री निशीथ , ६५ श्री दशवैकालिक , , . . मीथ RNMn. m * ? १०५ For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ श्री निशीथ ६७ श्री दशवैकालिक ६८ श्री आवश्यक ६९ श्री कल्प ७० श्री गच्छाचार पयन्ना ७१ श्री आचारांग ७२ श्री निशीथ ७३ श्री बृहत्कल्प ७४ श्री उत्तराध्ययन ७५ श्री दशवैकालिक- ( १६ ) ८७ श्री आचारांग ८८ श्री महानिशीथ ८९ श्री आचारांग ! 4 " " " " " 19 " " "" ७६ श्री निशीथ . ७७ श्री पन्नवणा ७८ श्री निशीथ ७९ श्री प्रश्नव्याकरण - 99 ८० श्री. निशीथ ८१ श्री आचारांग ८२ श्री अनुयोगद्वार ८३ श्री निशीथ ८४ श्री ओघनियुक्ति ८५ श्री आचारांग ८६ श्री निशीथ "" "" ܙܕ " "" 29 " ܕ "9 729 " " " 35 " 79 १० १० १० ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ ११ १२ १२ १२ For Personal & Private Use Only ४ १० १० १२ १३ १७ २४ २८ ३३ ३३ ३ १० Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९३ श्रा ९० श्री निशीथ ९१ श्री सूयगडाङ्ग . ...१२ : १२ ९२ श्री भगवती श्री उत्तराध्ययन ९४ श्री आचारांग , १२ . २८ ९५ श्री दशवकालिक ., . . १२ . ३० श्री आचारांगा ९७ श्री आचारांग ९८ श्री बृहत्कल्प ९९ श्री उत्तराध्ययन , १०० श्री आचारांग , , १३ १० १०१ श्री दशवैकालिक , १०२ श्री समवायांग १०३ श्री निशीथ १०४ श्री ज्ञाता , १०५ श्री स्थानाङ्ग १४ १०६ श्री निशीथ १०७ श्री बृहत्कल्प १०८ श्री निशीथ , १४५. १०९ श्री बृहत्कल्प ११. श्री व्यवहार .. . १४ .८. १११ • श्री व्यवहार . १४ १४ ११२ श्री आवश्यक __, १५, १५ ११३ श्री प्रश्रध्याकरण , १५ : २. For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ श्री निशीथ ११५ श्री आचारांग ११६ श्री महानिशीथ ११७ श्री बृहत्कल्प ११८ श्री आचारांग १९९ श्री दशाश्रुतस्कंध १२० श्री निर्यावलीका १२१ श्री ज्ञाता १२२ श्री समवायांग १२३ श्री दशवैकालिक १२४ श्री निशीथ १२५ श्री रायपसेणी १२६ श्री दशवैकालिक १२७ श्री सूयगडांग १२८ श्री बृहत्कल्प १२९ श्री निशीथ १३० श्री निशीथ १३१ श्री बृहत्कल्प १३२ श्री स्थानाङ्ग १३३ श्री उत्तराध्ययन १३४ श्री स्थानाङ्ग १३५ श्री उत्तराध्ययन १३६ श्री भगवती १३७ श्री उत्तराध्ययन ( १८ ) "9 " "" " " " " , "" 34 " "" " "" " " " ܕܙ >9 "9 " "" ܕܙ ܕܕ 27 १५ १५ १५ १५ १५ १५ १५ १५ १६ १७ १७ १७ १७ १७ १८ १८ १८ १८ १८ १८ १८ १८ १९ १९ For Personal & Private Use Only १३ १५ २३ २४ २५. २५. ११. १. 6. N ७ ८ १४ १ १ ५. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - २० ... ६ * * * * * * * * * * * * ___२२ १३८ श्री निशीथ , १३९ श्री भगवती , १४० श्री दशवैकालिक १४१ श्री निशीथ १४२ श्री अनुयोगद्वार १४३ श्री भगवती १४४ श्री उपासकदशांग १४५ श्री ज्ञाता १४६ श्री भगवती १४७ श्री आवश्यक १४८ श्री नंदी १४९ श्री समवायांग १५० श्री महानिशीथ १५१ श्री आचारांग १५२ श्री भगवती , १५३ श्री आचारांग १५४. श्री उत्तराध्ययन , १५५ श्री अनुयोगद्वार १५६ श्री महानिशीथ ., १५७ श्री उत्तराध्ययन ., १५८ श्री ज्ञाता . , १५९ . श्री भगवती . , १६० श्री अंतगडदशांग , १६१ श्री स्थानाङ्ग " - २२ * * २३ ____ २३ .. . २३ २३ . २३ . २३ , २२ २३ . २७ For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) . २४ . २ - २५८ : २९... ९ م م م م م م २५ २५ : م م م २५ २६ م س معه १६२ श्री जीवाभिगम १६३ श्री जंबुद्वीप पनति , १६४ श्री राय पसेणी . . १६५ श्री ज्ञाता . " १६६ श्री भगवती , १६७ श्री नंदी १६८ श्री समवायांग १६९ श्री निशीथ , १७० श्री दशवैकालिक , १७१ श्री दशाश्रुतस्कंध , १७२ श्री भगवती १७३ श्री ज्ञाता १७४ श्री उत्तराध्ययन १७५ श्री सुयगडांग १७६ श्री भगवती . १७७ श्री कल्प १७८ श्री भगवती १७९ श्री स्थानाङ्ग १८. श्री सुयगडाङ्ग १८१ श्री प्रश्न व्याकरण , १८२ श्री भगवती १८३ श्री उपासक दशाङ्ग ,, १८४ श्री उववाइ - १८५ श्री रायपसेणी , २६ १० २६ १३ For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , , १९२ २८ , , १९३ १८६ श्री भगवती १८७ श्री दशवकालिक १८८ श्री बृहत्कल्प १८९ श्री प्रश्न व्याकरण १९० श्री महानिशीथ . १९१ श्री निशीथ श्री महानिशीथ श्री महानिशीथ १९४ श्री भगवती १९५ श्री भगवती १९६ श्री भगवती १९७ श्री उपासक दशाङ्ग १९८ श्री स्थानाङ्ग १९९ श्री भगवती श्री भगवती २०१ श्री नंदी २०२ श्री स्थानाङ्ग २०३ श्री व्यवहार Arryx» » » ur Too :: For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) त्रण निर्नामा लेखोनो उत्तर. नवा जमानानी नवी रोसनीमां घणी समानो प्रकासमां आवी उन्नतिना शिखर पर पहोंची गई छे अने केटलीक समानो उन्नतिनो प्रयत्न करी रही छे । ज्यारे जैन समाजनु दुर्भाग्य कहो के दीर्घ काळनो प्रमाद कहो, के जेने उन्नतिनुं स्वप्न पण आवतुं नथी. अरे उन्नति तो दूर रही पण केटलाक समाजना आगेवानो अने धर्मगुरुओ, नाम धरावता (जेना उपर समानना मोटो आधार छ ) पडदा पाछळ रही प्रपंचजाल मांडी बेठा छे. जाणे क्लेशनो तो कंट्राटज लीधो होय. ___ कोई पण व्यक्ति समाजनी उन्नतिनो सवाल समाजना आगळ मुके अने अवनति नुं कारण बतावी खोटी रुढियोने काढवानो दावो करे, तो झघडा मंडलनी प्रपंच पार्टी एकदम हुमलो करी नास्तिक के निंदक पापी कहीने तेने तुरतन तोडी पाडवानो प्रयत्न करे, अगर एटलाथी न पते तो पांच पच्चीस अन्ध श्रधालुओने आगेवान बनावी संघबाहर मुकवानी धमकी आपवामां पण कचास राखता नथी, शु! एवान संघने तीर्थकर नमस्कार करता हशे ! नहीं नहीं आवा अन्यायकारक अने सुख शिलियाने तो शास्त्रकारे हाडकाना ढगलाज कह्या छे. यथा- . सुहसीलाओ सकुंद चारिणो, वेरीणो सिपहस्स; आणा भटाउ वहु जणाओ, मामणह संघोति ॥ For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) एको साहू एक्कावी साहुणी, सन्वय सट्टीय । आणा जुत्तो संघो, सेसो पुण अहि संघाओ ॥ याद राखशो के आजना सुधरेला लोको आवी खोटी धमकीयो थी कदी पण डरवाना नथी, माटे दश बोलनी साथे एने पण उंडा ओरडामां मुको. ___ म्हारे निर्भय थईने कहे जोइये के " बाबा वाक्यं प्रमाणम् " नो जमानो हवे अस्ता चले चल्यो गयो छे. आपणी नजर आगळ देशभक्तो देशनी उन्नति माटे केदके काला पाणी थी लगार पण डरता नथी अने देशनी उन्नति माटे कमर कसी तैयार थया छे, त्यारे आ वीर पुत्रो अने पच्चीसमां तीर्थकर नेवो संघ आ समाननी अधोगति केम जोई रह्यो छे ? हालमा केटलाक शासन प्रेमीओए. समानने माटे केटलाक प्रश्नो जाहेरमा मुक्या छे, परन्तु झघडाचारीओना साम्राज्यमा माते महत्वना प्रश्नाने स्थान मल तो दूर रह्यं परन्तु केवा भयंकर रूपमा ते प्रश्नोने उतारी संघमां क्लेशना कांटा पाथरी दीधा छ, आवी स्थिती जोई कटिबद्ध थयेला शासन हितेषियो मुंझाई जाय तेमां नवाई जेवं शं ? कारण के आ दुराचारीओनी प्रवृत्ति आनथी ज नथी परन्तु अनादि कालथी चाली आवे छे, जुवो महानिशीथ सूत्र अ० ५ मामां श्री धर्मश्री नामना तीर्थकर ना वारे हुन्डाव सर्पिणीना प्रभावं थी चैत्यवासी शिथिलाचारी या दुराचारीओनुं खूब जोर चालतुं हतुं अने तेन वखते सुविहित शासन For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) प्रमाविक श्रीकमलप्रभाचार्य ते चैत्यवासीओना टांटीया तोडवाने तैयार न हता, परन्तु ज्यां दुराचारीओनुं साम्राज्य होय त्यां सत्य वक्ता उपर पण आक्षेप करका दुराचारीओ कसर राखता नथी. ते सर्व उक्त शास्त्रथी जोई लेवु । हालमां पण आ वीर शासनमां अन्दरखाने हुन्डावसर्पिणीना जोरथी चैत्यवासी लोको पोताना स्वार्थ माटे शासन डोलाववामां काई कचास राखता नथी, तमन पूर्वाचार्यो वखतो वखत तेओना दुराचार दूर करता हता. जुवो "संघपट्टकादि ग्रन्थ, पूर्वाचार्यों चैत्यवासीओनो चैत्यवास. छोडाव्यो हतो, परन्तु तेओनी इन्द्रीयपोसक प्रवृत्ति अने सुख शीलिया पणुं तो. घणा काळ सुधी एमर्नु एम चाल्युं आव्यु । एटला माटेन महात्मा पुरुषो वखतो वखत पोकार करता ज आव्या छ, जुवो संघपट्टक, सन्देह दोहावलि, अध्यात्मकल्पद्रुम अने. हमणा थोडा काळमां थयेला महात्माओना वाक्य श्री आनन्द घननी महाराज कहे छेगच्छना भेद बहु नयण निहाळता; तत्वनी वात करता न लाजे, उदरभरणादि निज काज करता थका, मोह नडीया कळी. काळ राजे॥ मत मत भेदे रे जो जई पूछीये. सहुथापे अहमेव * महात्मा देवचन्द्रनी द्रव्य क्रिया रुची जीवडारे, भाव धर्म रुची हीण; उपदेशक पण तेहवा शुंकरे जीव नवीनोरे. ॥ चंद्रा०॥ महामहोपाध्याय श्रीमान् यशोविजयजी For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) अर्थनी दिये देशना, ओलवे धर्मना ग्रन्थ रे; परम पुरुषना प्रगट चोर थी, किम वहे धर्मनो पंथ रे. कुगुरुनी वासना पासमां, हिरण परे जे पड्या लोक रे*** ज्ञान दर्शन चरण गुण विना, जे करावे कुलाचार रे; लूटे तेने जन देखता, किहां करे लोक पोकार रे... जे नवी भव तर्या निर्गुणी, तारसे कीण परे तेहरे दोकडे कुगुरु ते दाखवे, शुं थयु ए जग शूल रे ++ix विषय रसमां गृही माचीया, नाचीया, कुगुरु मदपूर रे ॥ धूम धामे पमा धम चळी, ज्ञान मारग रखो दूर रे॥ कलहकारी कदाग्रह भर्या, थापता आपणा बोल रे जिन वचन अन्यथा दाखवे, आज तो वाजते ढोलरे ॥ अरे आ उपाध्यायनी एटलाथीन शान्त न थया हता, पण तेओनी पोकार अत्रे कोईए न सांभळी त्यारे तेओश्रीने साढा त्रण सो गाथानी हुन्डी श्री सीमंधर स्वामी उपर लखवी पडी हती, तथा सवासो गाथा-स्तवन लखवूपडयु हतुं अने एक स्वाध्याय तो बापाजीए एवी लखी हती के ते वाचतां रुवाटा उभा थई जाय, ते शं महात्मा कोईनी निन्दा करता हता एम कही सकाय ? नहीं नहीं शासननी पडती दशा तेओश्रीथी जोवाई नहीं. अने तेओने ज्यारे घणाज कांटा लम्या हशे, त्यारेज एवा उद्गारो निकळ्या होय एम जणाय छे, अने आ उद्गारोथी दुराचारीओनो दुराचार दूर करी शासनने लागतुं कलंक अटकावानोन तेमनो हेतु होवो जोईए। अरे महेरबान! For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) मने उदारता थी कहवा दो के परमात्मा वीरप्रभु पण दुराचारीओना पक्का शत्रून हता, आ वात तेओ श्रीना सिद्धान्तथी झलकी आवे छे. जुवो सुयगडांग आदि सूत्र. . ... सज्जनो ! दुराचार- खंडन करवं आ कोईनी निन्दा नथी, . 'पण सदाचारनुं मंडनन छे, दुराचारनुं खंडन अने सदाचारनुं मंडन : आज काल थतुं नथी, पण आ प्रवृत्ति पूर्व महाऋषि ओीज चाली आवे छे, एटले नवीन नथी. .भात्मबंधुओ ! आपणे अत्यार सुधी एम मानता हता के-खरा हो के खोटा पण आपणा गुरुदेव छे तेओना दुराचार जाहेरमा मुकवाथी आपणीज हांसी थशे. आ आपणा विचारो मोटा भूल भरेला हता अने आवा खोटा विचारोथी आपणे आज सुधी केटला मोटा नुकसानमां उतरी पड्या छीये. - आने लोको घरमां गाममा समाजमां के देशमां कचरोके सडो होय ते बाहर फेंकी देवा सीखी गया छे अने एज तेओनो खरो उन्नतिनो मार्ग छे, त्यारे नैनोए एवी गंभीर भूल करी अग्निने रुमां शामाटे संघरी राख्यो हशे ? केटलाक अज्ञान लोको पासत्थाओना लपेटामां आवेलां अने रुतीनां गुलामो बनी एम कहे छे के आपणां गुरु देवोना दोषो गमे तेटलो नसानकारी होय तो पण प्रकाशमां नन लाववा जोईये, 'अने जो ते दोषों प्रगट करशो तो शासननो उच्छेद थशे, धर्मनो ध्वंस पसे, भने तेथी गुरुना अभावे धर्मोपदेश कोई संभला For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) क्शे नहि, ते शिवाय विचारी भोली बेनो उपधानादि क्रिया कोनी पासे करशे ! एटले भाई चुपचाप बेसी रहो ! महानुभावो ! आवा दुराचारी गुरुओथी नथी रहेतुं शासन के नथी रहेतो धर्म, अने आवा झघडाचारीओ के पोते रागद्वेषना कीचडमां खुचेलाना उपदेशथी समाजनो सुधारो थवानो नथी अगर खुल्ला दिलथी कहो तो जैन समाजने क्लेश, कदाग्रह, धर्मभेद, अने पुरुषार्थहीन बनाववामां अग्रेसर कारण होय तो आ दुषित गुरुओज छे. बन्धुओ ! आजे पोप, पादरी, मठधारी, महान्त के भट्टारकोने दूर मुकवाथीज लोको उन्नति एवो शब्द काने सांभलवा सीख्या छे. ___ कदाच आपणे आपणा गुरुओना छतां दोषोने रत्ननी पेठे तीजोरीमां मुकीये, पण ज्यारे अन्य समाजना लोको प्रसिद्ध पेपरोमां " एक जैनाचार्यनो अत्याचार" एवा लेखो लखे तेने हजारो नहि पण लाखो विद्वानो वांचे त्यारे शुं जैनोने सरमावा जेवू नथी ? एक नहीं पण एवा गामो गाम हजारो दाखला तैयार छे, ज्यारे जैन पत्र अने जैन धर्म प्रकासक जेवा महत्ववाला पेपरो वखतो वखत पोकार कर्या करे छे के-आज काल साधुओने परिग्रहना पोटला वधी पड्या छ, भने ग्रहस्थीओने त्यां मुकवानो प्रचार 'घणो वधी पड्यो छे इत्यादि, त्यार पछी एवा सडेला थांभलाओने • मकानना आधारभूत कहेवा ? नहिन कहेवा, माटे एवा थांभला ओने अज्ञान के दृष्टि रागथी निर्ग्रन्थ कहेवा ते महा मोहन कारण For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छे, जरा वीचार करजो के जैन मुनिओना नामथी जैनोमां नहीं पण अन्य समाजना लोकोमा पण मोटी छाप पडती हती, तेने बदले आज जैनोमां पण जम जेवा लागे छे ते शुं खेदनी वात नथी, एटलुंजनही, पण केटलाक लोको तो आ कलहप्रीय झघडा चारियोना नाम सांभलवामां पण मोटु पाप माने छे.. ___ अत्रे अमे एम कहेवा नथी मांगता के बधा साधु दोषित अने झघडा प्रिय छे, अथवा बधा साधु सरखा छ, अमे एटलुं कहीये छीए के पासत्याओनो पक्ष करवाथी सदाचारीओनुं महत्व ओछु थाय छे, वळी पासत्था अने सदाचारिओ साथे रहेवाथी भोला लोको एकन सरखाज मानीने खरा मार्गथी दूर थता जाय छे, एटला माटे. पासत्थाओने जुदा पाडवा जोईये, तेथी सदाचारीयो पर लोकनी श्रद्धा मजबूत रहे, एटला माटेन पूर्वाचार्यों वखतो वखत क्रियोद्धार करता आन्या छे. आ समय पण क्रियोद्धार करी पासत्थाओने तेनाथी जुदा पाडवानी घणी जरुरत छे. ने अमारी पण एवीन भावना हती, पण आ धोर अंधकारमा म्हारो पोकार सुणे कोण, तेमन बीजी तरफ आ शासननी पडती दशा जोवाई नहि त्यारे न छुटके पूर्वाचार्यो ने पगले चालवानो स्वीकार करी श्री सीमंधर स्वामीने विनंति रुपे कागळ, हुन्डी, पेठ, परपेठ अने मेजरनामुं, लखी में म्हारा दाजता दिलने शान्त कयै छ । ते मेझरनामामां सदाचारीओ समयानुसार संयम तपमा खप करनारा आज भारत भूमिपर विचरे छे, तेओने वारंवार नमस्कार करेल छे, अने जे वर्तमानमां निंदनीक वातावरणनी धमा For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९) ल्लमां चाली रह्या छे अने जे दुराचारीयो दुनीयामां शासननी हीलना करावे छे, तेन आ मेझर नामामां दुनीयाने दर्शन कराव्युं छे. तेमज घणां दाखला तो शासननी हीलना न थाय एटला माटे पडदा पाछल राखी तेनी सूचना मात्रन लखी छे, मेझरनामामां साधुओना जे कल्प क्रिया आचार अने व्यवहार माटे जे कांई लत्यु छे ते म्हारा मोंढानी वातो नथी, परन्तु (२०३) आगमोना सबल प्रमाण आप्या छे, मुख्य वीर वाणी (आगम) नेन आगल राखी छे. अत्रे अमे ए मेजरनामा माटे विशेष विवेचन न करतां अमारा वाचक वर्गनी विचार श्रेणीपर मुकवानु उचित धार्यु छे, माटे वाचको आ मेजरनामाने अपक्षपात दृष्टिथी वांचसो तो आपना हृदय कमलमां सत्य सर्य उदय थया बिना रहशे नहीं. केटलाक मुनि महाराजाओ पण चालती धमालने पन्थे प्रयाण करता आ मेजरना, वांची एटलुं तो जाणीं गया छे के अमे घर शा माटे छोडयुं छे, अने हालमां अमे कई कर्तव्यनी कोरणीमां कोतराई गया छीए. अरेरे! क्षण भंगुर सुखोने माटे आ चिंतामणि रुप चारित्र हारी जाय छे. तेओना मेजरनामा माटे केवा अभीप्रायो आव्या छे तेना माटे तो एक स्वतंत्र चोपडीज थई जाय. केटलाक विद्वान ग्रहस्थो पण मेजरनामुं वांचीने समजी गया छे के भगवान वीर प्रभुनो मार्ग जुदो छे, अने आजनी धमालना धक्का वाळी प्रवृत्ति जुदान रूपमां छे, तेमां केटलाक धर्मधूर्त धर्मना नामे जगतने धूती खावानी दुकानदारीओ मांडी बेठा छे, हवे दुनिया बराबर चेती For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) गई छे. तेवा अनाचारिओ थी हजार हाथ दूरज रहे, कल्याणकारी माने छे, तेमज जे महान पुरुषों पोतानुं जीवन समाज हितार्थ अर्पण करेछे ते सदाचारीओने माटे विद्वानोनी श्रद्धा मजबूत थती जाय छे... . ___ आ वात स्वभाविक छे के चोरोने चांदणुं गमतुं नथी, तेमन दुराचारिओने सदाचारनुं व्याख्यान केवी रीते गमे ? ज्यारे एमज छ त्यारे मेजरनामुं तो दुराचारीओने माटे एक मोटो कुहाडोज छे, तो पछी बिचारा पासत्थाओ कलकलता कालजाथी पोक पाडे तेमां नवाई शी अने पासत्थाओना पक्षकार खोटा २ लेख लखी कोलाहल मचावीने पासत्था ओना उतरता आंसुने लुछे अथवा दाजता हृदयने शान्त पाडे तो भले. ___ हुं छाती ठोकीने कहीश के ज्यांसुधी अमारा मेजरनामामां आवेला ( २०३ ) आगमोना प्रमाण ते असत्य करी न बतावे त्यां सुधी कोईपण विद्वान् मेझरनामाने असत्य न मानी शके ! ___पाठको ! जरा ध्यान राखशो के वस्तु गमे तेवी होय पण पोतानी मर्यादामां होय त्यांसुधीज सारी कहेवाय छे, तेमन लेखक पण गमे तेवा होय तो पण पोतानी मर्यादामां रहीनेज लेख लखे त्यारेज दुनिया तेनी कीमत आंकी शके छे, अत्रे अमे एटलुज कहीशु के. मेजरनामुं अने तेनां प्रतिपक्षाओना लेखोने वांचवाथी आपने खरे खरु लखाण जणाई आवशे के कयुं लखाण मयार्दावाळु छे. मेजरनामामां मुख्य ३१ विषय चर्चवामां आव्याछे, तेमां प्रथम आगमोना प्रमाणथी वस्तुओर्नु अस्तित्व पणुं बताव्युं छे, त्यार बाद, For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चालती घमालथी थतुं शासनने नुकशान ने तेना कारण दर्शाव्याछे, तेनी साथेज अमे पण वारंवार ख्याल राखता आव्या छीए के अमारा लेखथी पासत्थाओने पुष्टि न मले, तेमज छती क्रियानुं निषेध पण न थाय, एटलुंज नहीं पण उत्सर्ग, अपवाद, अने समयानुसारना दाखला पण साथेना साथेज आपता आव्या छोये आटलं, छतां आ मेजरनामुं पासत्थाओने वज्रपात जेवुं शा माटे थई पडयुं हशे ते अमे समझी शक्ता नथी. " Ons मेझरनामाना प्रतिपक्षमां पडदा पाछल रही त्रण निर्नामा लेख बाहर पड्या छे ( १ ) जैनपत्रना अंकमा "मेझरनामा नामंजूर" ( २ ) श्री श्रेयस्कर मंडल तरफथी हेन्डबील (३) एक ३२ पृष्टनी चोपडी तेना योजक केशवलाल डी. शाह अमदाबाद थी निकल्युं छे आ त्रणे लेखना लेखक गृहस्थ होय के कोई भेषधारी होय ते तपासवानी अमारे जरुरत नथी, परन्तु ते लेखना अन्दर जे गीत गाया छे तेज जोवाना छे. आत्र लेखोमां वधारे महत्ववालो बीषय तो आ छे के तमे मेझरनामुं लखवा बाहर पड्या छो परन्तु तमे ढूंढीयामां केना शिष्य हता ! संवेगी मां क्यारे आव्या ? दीक्षा कोनी पासे लीधी : तमारु नाम ज्ञान सुन्दर कोणे आप्युं ? इत्यादि. लेखक लखेछे के आ प्रश्नो नो पहेला उत्तर आपो अने पछीज बीजाना उपर लेख लखनो, अर्थात् पछी मेझरनामुं लखजो. अहो ! आ केवुं आश्चर्य ? विद्वानो विचार करी शके छे के For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) आ पुछेला प्रश्नोंने अने मेझरनामाने शुं संबंध छ ? अगर एमज होय तो धारा सभामां एक आवो कायदो पसार कराववो जोईये के अमुक हूढीयामाथी आवेलो होय, अमुक दिवसे आव्यो होय, अमुकनी पासे दीक्षा लीधी होय, अमुक व्यक्ती ए नाम आप्यु होय, अमुक रंगमां होय, केटलो लांबो पहोलो होय, साधु होय के गृहस्थ होय अने अमुकनी रजा होय तोन सत्य वात लखी शके. याद राखशो के ज्यां सुधी आवो कायदो जैनोमां प्रसार न थाय त्यां सुधी आ स्वतंत्र विचार वाला विद्वानो सत्य बात दुनीयानी सन्मुख जाहेर करवामां कदी पण पाछा हटशेज नहि... महाशयो ! ध्यानमा राखसो हवे एवो जमानो नथी के एक बीजाना विचारोने कोई दबावी शके अथवा आडा अवला प्रश्नो करीने एक बीजा ने हलको पाडी शके. ज्यारे अमारी उपर मोटा २ आचार्यो, पन्यासो अने साधुभोनां कागल मोटा मोटा विशेषणो वाला थोकबन्ध आव्या, ते वखते उक्त प्रश्नो केम नथी पूछ्या,तेमज हुं ज्यारे साथमा रहेतो हतो त्यारे पण आप्रश्नो पुछवामां नथी आव्या, त्यारे आ ढोल जेटली पोल खोलवा वालुं मेझरनामुं वांचीनेन आ प्रश्नो पुछवामां आव्या छ ? तेनो अर्थ विद्वानो पोतानी मेलेन समझी सकशे, परन्तु एटलुं तो याद राखसो के हुं तमारा चोपडामां साधु तरीके नाम मंडावा आq त्यारेज तमारे तेवा प्रश्नो करवाना हक छे. ज्यारे हुं एक शासन सेवक तरीके ओलखाववा धारूं छु.. For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) ___ महीना सुधी पेपरों द्वारा चर्चा चलावी छे, तथा आज सुधी ७५००० चोपडीयो देशोदेशमा शासन सेवा बजावी रही छे. तथा म्हारी दीक्षा अने म्हारुं नाम कई व्यक्तीथी छानुं छे के तमने प्रश्न करवो पड्यो ! __ दरेक लेखकने भूलवू न जोईये के आज गमे तेवा विचारो पब्लीकमां कोई पण व्यक्ती मुकी शके छे पछी सत्यासत्यनो निर्णय करवो विद्वानोनी विचारश्रेणी परन छे, तो पछी एवा नबलाईना प्रश्नो करी पोते हांसीना पात्र शा माटे बनो छो! हवे बीना मंडलना हन्डबिल तर्फ जोई शं! तो जे मंडलनो नाम श्रेयस्कर राखवामां आव्यु तेमां केटली योग्यता छे अने तेना साथेन मंडलनु हैन्डबिल जोवामां आवे तो ते मंडलनी केटली कीमत मुंकाय ते अमे कही सक्ता नथी. ' मंडले जे प्रश्नो कर्या छे तेमां पण तेज गीत गाया छे के ढूंदीया मांथी आवेल छे अने कोना पासे दीक्षा लीधी इत्यादि तेना उत्तरमा अमे उपर लखी आव्या छीये अने विस्तारथी जोवु होय तो मेझरनामानी ढाल ३० मी जुवो. .... .... हुं पूछ बूं के आ हॅन्डबिल पहेला मेझरनामुं बाहर पडी गयुं हतुं अने हॅन्डविलंना तमाम प्रश्नोना उत्तर सविस्तारथी तेमां आवेला होता छतां आ कागलीया शा माटे काला करवामां आव्या हशे? For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) पाठको ! आ मंडलनो जन्म तो हमणांज झघडा पार्टीथी थयेल छे. दुराचारीओनो दुराचार अटकावत्रा माटे पूर्व महाऋषीओ सॅकडो ग्रंथ रची गया छे, अने आजे पण चोतरफथी एक अवाजे स्वीकारवामां आवे छे के समाजनी उन्नति माटे प्रथम दुराचारने दूर करो ! त्यारे आ नामधारीओने तथा श्रेयस्कर मंडलने शा माटे खटके छे ते अमे कही सक्ता नथी ! पण एटलं तो सहजमां समजी सकाय छे ? के आ मंडलने घणाभागे दुराचारीओनीज पोलिसी होवी जोईये, परन्तु याद राखसो हवे दुनीया आंधली नथी के दुराचारीओनो पक्ष करीने समाजने अहित करे. हवे केशवलाले मेजरनामानुं खंडन केवी रीते कर्तुं छे ते अमारा पाठकोने सारी रीते बतावीये छीये. मेझरनामानी त्रीनी ढालमा चैत्यवासीयोनो संक्षेप उल्लेख कर्यो छे, तेमां चैत्यवासी द्रव्य राखता पाहड रचना कराववा रात्रिए रोसनी नाच नाख्यो हतो इत्यादि हता, गादी तकीया साल दुसाला वापरता, तप छट्ट अट्टमादि क्रिया करावी पैसा लेता, कूदादि धामधूम करी शासनने घणो डोली [ देखो संघ पट्टकादि ग्रंथ ] ते खंडन करता लखे छे के ते साधु उक्त कार्य न करता हता अर्थात् शुद्ध चारित्र पात्र हता. आ माया युक्त लेखने म्हारे केशवलालनी कपट क्रिया कहेवीके पासत्थाओनी प्रपंच जाल कवी ? कारण अमे चैत्यवासीओने माटे जे लखाण लख्यं छे ते पूर्वाचार्योंना ग्रन्थ अने इतिहासना आधारथीज लख्युं छे, $ For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५) माटे तेमां सत्य शं छे ते पाठको पोतानी मेलेन जोई लेशे, पण एटलुं तो म्हारे पण कहq जोईये के आ वात जैनोमां प्रसिद्ध छे के चैत्यवासी थया हता, अने तेओनी घणी खरी प्रवृत्तिओ आज सुधी शासनने नुकसान कारक थई रही छे. आ वात माटे प्राचीन शास्त्र सिद्ध छे, तो पछी आजना विद्वानो केवी रीते मानी शकसे के साधुओ लगार मात्र पण शिथिलाचारी ( चैत्यवासी) न होता थया, अगर एमज होय तो पछी सेंकडों आचार्यों सेंकडो ग्रन्थोमां लखी गया छे के चैत्यवासीओ आ शासनमां कांटा खीला जेवा थया छे. त्यारे शुं पूर्वाचार्यों खोटु लखी गया हशे? के ते ग्रन्थो जूठा ज हसे ? परन्तु चैत्यवासीओनी हीमायत करवावाला आले पण केटलाक देशोमां ते प्रवृत्तिने पुनर्जन्म आपे छे, ते काई छानी बात नथी. आगल चालतां हालना साधुओना गुण लख्या छे तेमां पण भगवाननी आज्ञा पालक लगार मात्र दोष सेवता नथी इत्यादि विशेषणो थी भूषित कयों छे. अगर तमे एमज कहशो के अमे उत्तम मुनियोना गुण लख्या छे, तो अमारे कहे जोईये के भाई अमे क्यां ना पाडीये छीये ? जुवो मेझरनामानी बीजी ढाल-यथा- ... अहो तपसी अहो संयमी, अहो ज्ञानी हो अहो ध्यानी तेह. अहो खंती अहो मुत्ती, अहो त्यागी हो वैरागीजेह ॥१०॥५॥ मेरु जिम अडोल छे, सायर जो जिम होय गंभीर. दिनमणी जेवा दीपता, निरमल हो गंगानो नीर ॥ सु०६॥ For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) अप्रतिबंध वायु परे. निरालंबण हो जाणे आकाश. अप्रमत्त भारंडपरे, केई करे हो कर्मोनो नासः ॥ ० ॥ ७ ॥ बादि रिपुने दमे, पीवे हो मुनि उपशम रस ॥ शत्रु मित्रने सम गणे व्याप्यो हो भूमंडल जस. । सु० ॥८ ॥ याद राखशो धनवाननुं नाम लेवाथी धनवान नथी बनता, • परन्तु पुरुषार्थ करवाथीज धनवान बने छे. आगळ चालतां लखे छे के बधा साधु एक सरखा नथीxx सौमां पंचाणु टका जिनाज्ञा ना पालक छे इत्यादि. बान्धवो ! अमे क्यारे कहीये छे के बधा साधु सरखा थाय छे, तेमज बधा साधु दोषित छे. जुवो मेजर नामा ढाल ३१ मी. साधु नही सहु सारखा, श्रावक नहीं सम तुल्य. सामान्य विशेष क्रिया करे, पामी धर्म अमूल्य ॥ १॥ तीर्थ उद्धारक केई मुनि, केई हो करे आगमोद्धार ॥ शासन प्रेमी केई मुनि, केई हो करे क्रिया उद्धार ॥ सु० २ ॥ श्रद्धालु श्रावक घणा, शासन उपर हो जेने पूरो प्रेम ॥ देव गुरुभक्ती करे, रुडा पाले हो कीधा व्रतने नेम ॥ सु० ३ ॥ हवे जरा चस्मा उतारीने जुवो के तमे केबी वातनु खंडन करवा तैयार थया छो ? केवल पापी २ करवाथीज खंडन थई जाय छे ! -माई खंडन करवा तो बाहर पड्या छो परन्तु खंडन ने मंडन कोने For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) कहे छे, तेनो अभ्यास तमारे कोई खंडानाचार्यनी कदमपोशी करीने मेलववो जोईये. आगल चालतां लेखक केटलाक दाखला लखी पासत्थाओनी जाज्वल्यमान अग्निमांघी होमवा जेवुं क छे. ते आछे - चोथा आरामां नंदीषेण नामना मुनि चारित्र थी चुकी ग्रहवास कर्यो - मज आर्द कुमार मुनि चारित्र मुकी ग्रहवास कर्यो तेमज - कुंडरीक मुनि संयम मूकी ग्रहवास कर्यो इत्यादि आ जोगीयो चोथा आरामां थया छे. पाठको ! आ दृष्टान्तो आजनी रांडी रांड पासे बेसी क्रिया: करावनार पासत्थाओ संयमना साधक छे के बाधक छे ! ज्यारे चोथा आराना आवा मुनि थयाना दाखलाओ आगल मूकी आगला कालना केटलाक साधुओने थयेलो संनीपातनो रोगने दूध साकर जेवो बनाव शा माटे बनावो छो ? शुं आ चौवीसीमां तमने एवाज दाखला मल्या छे ? ज्यां धन्ना मुनि, मेतारज मुनि, खंधक मुनि, जेवा आत्म अटल शक्तिवालाओ दाखला केम नथी जोता ? आगलं चालतां गजसुकुमाल मुनि अग्निने संघट्टे मोक्ष गया इत्यादि लखे छे पण आ दृष्टान्तथी आजना साधुओने अग्निनो आरंभ करवानो के उपाश्रयमां दीवा राखवानो उपदेश करो छे तेम नथी, परन्तु ते महापुरुषो मरणांत कष्टमां पण अडोल रह्या छे तेम समजवानुं छे. आगल चालतां साधु दोषित आहार लेवे ते श्रावकने तारखा माटे, अने श्रावक साधुने दोषित आहार देवे ते अल्प पाप अने बहु For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८) निर्जरा इत्यादि अरे भाई एमज होय तो पछी शास्त्रमा दोषित आहार देनार अने लेनार बन्नेने चोर कहेवार्ने कारण ! जुवो मेजर नामानी ढाल ९ मी. सविस्तार. आगळ चालता-लखे छे के हालना मुनिओने ममत्व भाव नथी तेमज वस्त्र पात्रादि वधारे राखता नथी इत्यादि. आ बात लखवाथी पती जाय एम नथी, परन्तु दुनियांने करी बतावे तोज दुनिया मानी सके छे. मठधारीयोना नामथी लोको पोकार करी रह्या छे, अने पात्राओ तथा कामलीओनी संख्या बंध जोडोनी पेटीयो भरेली कदाच भोला भाला ग्रहस्थीयोथी छानी हसे, परन्तु केवलीओ थी छानी नथी. ज्यारे एक बीजा पर हुमला कर छे के नोटिसो चैलेंजो करी हजारो पर पाणी फेरे छे. एने शं कहवं ममत्व के कदाग्रह ? ___ आगढ़ लखे छे के साधुओ ब्राह्मण पासे भणता नथी, तेमन साध्वीयो व्याख्यान वांचती नथी इत्यादि, आ बात क्या सुधी सत्य छे. कर कंकणने आरसीनी जरुरत नथी. आ वातने आपणो समाज सारी रीते जाणे छे. तेमज ज्ञानना हजारो रुपिया पर दरवर्षे हाथ फरे छे, अने शासन नी विनय भक्ती नो लोप थतो जाय छे. तेनी साथेज साधुओ - स्वच्छंद बनीने शासनने के निंदावे छे, ते पण दुनियाथी छानुं नथी. आगळ योग अने उपधानने तमे निषेधो छो इत्यादि अमे योग उपधानने निषेधता नथी, जुवो ढाल छठी अने सातमी. । परन्तु तमे बावाने नामे बलाय मठमां घालो छो ते \ उचित छ ? For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३९ ) भगवती सूत्र श० ४५ मां मूल पाठमा ६७ दिननी वांचना ते पण जुदा जुदा शतक अने जुदा जुदा दिवसोनुं विवेचन करेलुं छे. ते तो असत्य थई जाय, अने पाछलथी कल्पीत छ मास सत्य थई जाय, आवात कया विद्वानो मानसें ! हुं हुं हुं के छ मास कया २ शतकना छे अने केटला शतक केटला २ दिवसमां वचाय ? शुं पोप पंन्यासो एनो उत्तर आपी शकसे ? उपधान माटे जो तमे कहता हसो के विना उपधान नवकार मंत्र भणवाथी अनन्त संसारी थाय छे. तो हुं तमने पुछुछु के उपधान करीने नमकार मंत्र भणवावाला केटला छे ! सोमां नही पण हम एक को कदाच मलसे, कारण ज्यारे जैनोनो चार वर्षनो छोकरोके छोकरी थाय छे त्यारे तेओना गुरु अने गुरुणीओ विचारा निरापराधी छोकराओने विना उपधान नवकार मणावी अनंत संसारी शामाटे बनावे छे! शं ते छोकराओनी तेओंना हृदयमां दया नथी ! एज नहीं पण केटलाक उपधान करावनार आचार्योंने, अने पंन्यासोने पुछवामां आवे के तमे उपधान तो करावो छो, परन्तु तमेज नवकारना उपधान कोनी पासे कर्या छे. तो पछी पंन्यासोनी ढोलनी पोलमा जुवो अनन्त संसारीना ढगलाना ढगलाज नीकली पडे ! आगल अंजन सलाका, प्रतिष्टा, उपधान, रात्रि रोसनी करावी, श्रावकोए देरासरमां नाचकूद, दांडीया रमवा स्त्रियोए गरबागावा, गाडाने गाडा माटी मंगावी पहाड रचाववा, संघ साथे साधु साध्वीओ रात्रि दिवसमां साथेज चालवं, अने गाडा अने उंट साथे राखवा, For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) तपतेलादि कराली पैसा लेवा, उजमणाना माल लेवा, साधुओना उपाश्रयमा अठाई महोत्सव कराववा, रात्रे दीवा राखवा, आचार्योनी मूर्तिओ जिन चैत्योमा स्थापवी, अने पोत पोताना जुदा २ उपाश्रयमा पेटी पटारा अने पोतानो सिक्का इत्यादि राखq ते आगमवादी पंच महाव्रतधारी मुनि मतंगजोनी क्रिया नथी, परन्तु निगमवादी,चैत्यवासी, शिथिलाचारी, सुखशिलीयाओनीन क्रिया छे. एने माटे अमे अत्रे वधारे विवेचन नथी करता, कारण अमोए थोडा दिवसोमांज एक प्रपंच नामुं लखवानुं धार्य छे, अने जे मेझरनामानी अन्दर केटलीक वातो मूलथी लखीज नथी, तेमन केटलीक सूचना मात्र लखी छे, तेओनी सारी टीका, टीपणी, नाम, गाम, साल, सम्मत सविस्तार लखवामा आवसे, तेथी आपनी जिज्ञासा पुरी थशे. माटे अमे अमारा पाठकोने थोडा दिवसना माटे धैर्य राखवानुं निवेदन करीये छीए, बनतां सुधी कार्य शीघ्र करवामां आवसे. . अमे त्रणे निर्नामा लेखोना लेखकोने सचोट सूचना करीये छीए के हवे पडदा पाछळ रहेवानो जमानो नथी, मेदानमा आवो. अने सत्यासत्यनो निर्णय करी स्व अने परतुं कल्याण करो. इत्यलम्. लेखक, ज्ञानसुन्दर. For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MATHUAnimNDE - श्रीवीतरागाय नमः। HINDISTRUMIAR : CLIA श्री रत्नप्रभसूरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः । श्री सीमंधर परमात्माने वीनती रुपे कागल, हुंडी, पैठ, परपैठ - अने मेझर नामो. प्रथम कागल ( संक्षेप मुद्दासर वातो) सुणो चंदाजी, ए देशी। सुणो करुणानिधि, कागळ आ लखी भेजें तेने वांचो; जे प्रेम धरी, भरतक्षेत्रनी वातो, हृदये जाचो-ए देशी.. For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महा विदेह क्षेत्र अति भारी छे, पुष्कळावती विजया सारी छे पुंडरीगिणी नगरी थारी छे, धणी अमारो केवल धारी छे. सुणो० १ भरतनी वंदना लेजोजी, कागळ पर चित्त देजोजी; सुर भक्तिमा मत रीझोनी, उपकार गरीब पर कीजोजी. सुणो• २ चउ संघ गुणनी खाणो छे, पण भरतनी वातो जाणो छे; शं लखं नहीं परिमाणो छे, थोडामां घणुं ए पीछाणो छो. सुणो० ३ दुकान आपनी चाले छे, चोरे चारे दिशि महाले छे; दिन दिन घाटो घाले छे, पण हजु काम कांइ थाळे छे, सुणो० ४ पोलीस माल उठावे छे, वळी चोर चोर करी धावे छे वार्ड क्षेत्रने खावे छे, ए न्याय भरतमां पावे छे. सुणो० ५ मुनिमें गुमास्ता तेवा छे, ते पण चोरो जेवा छ छोडी दुकाननी सेवा छे, ते खाय माल नित्य मेवा छे. सुणो० ६ घरमा पुरो तोटो छे, माणे खरचो अति मोटो छे पुरुषार्थतणी पण खोटो छे, तेथी पुण्य अहींथी छेटो छे. सुणो० ७ श्वेतांवर दिगंबरना, झघडा गच्छ मतांतरना; स्थानकवासी ढुंढकना, वळी भीखम तेरा पंथीना. सुणो० ८ १ शासन. २ कुदर्शनी, कुलिंगी, पासत्था, मायाचारी. ३ आचायादि उपदेशक अनेक क्लेश झघडा फेलाववाना उपदेश करे छे. . ४ क्षेत्र ते शासन अने वाड ते समाजना आगेवानो पदवीधर पुरुषो आचार्य उपाध्याय पन्यास विगेरे. ५ साधुसमाज, श्रावक वर्ग. ६ रोज रोज जैनोनी संख्या घटे छे. For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोई मठधारी बनी रह्या, कोइ लोभी लालचिया थया; कोई मान पुजामां फसी गया, कोई शासनने निंदावी रह्या सुणो०९ हवे मेहर नजर अमपर कीने, भरतनी कांइ खबर लीजे; देवा योग्य शिखामण दीजे, तो ज्ञान कहे कारज सीझे. सुणो० १. (हे नाथ कागळनो उत्तर केम नथी आप्यो) हवे हुंडी लखु छु ते तुर्त सिकारो. भक्ति हृदयमा धारजोरे-ए देशी. कागळ कां न वांचीयो रे, माचीओ घोर अंधार; हुंडी सिकारो नाथनी रे, न करो देर लगार हो जिननी. कागळ ० १ स्वस्तिश्री पुष्कलावतीरे, महाविदेह क्षेत्र मोझार; पुंडरीगिणी नगरी भलीरे, जहां वस्या मुज भरतार (रक्षक) हो का०२ वंदना वांचजो साहेबारे, हुंडी लखं हजुर; नाथ नहीं हमणां मरतमा रे, मचीयो कलियुग क्रूर. हो० ३ सीलकमांहे नाणुं नथी रे, लक्ष कोडाधिप नाम: वादी आवे बारणे रे, नहीं चाले वातोथी काम. हो० ४ . संयमथी शिथिल हुआ रे, नहीं रह्यं आतम लक्ष; सम्यग् ज्ञान दूरे धर्यु रे, लै बेठा पोतानो पक्ष. हो० ५ . मातम लक्ष; For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) निर्मायक टोळू थयु रे, संघमां मंडि खेंचाताण; पेढी जमावे आपनी रे, न राखे कोइनी काण (दुःख) हो०६ जैनमय पृथ्वी हती रे, हता केई करोड; आज हिस्सो न हजारमो रे, भविष्यमें शुं निछोड (दशा!) हो०७. बात मर्मनी आ कही रे, हुंडीमां अधिक न होय; जाणो छो मुन साहेबा रे, आपथी छानुं न कोय. हो. ८ हुंडी पहोंचे तुर्तनी रे, नहीं मुदत (विलंब ) नुं मान; . चलणी नाणुं दो ज्ञानने रे, भरतनी चाले दुकान. हो० ९ __ अथ पेठ. हुंडीनो उत्तर न आववाथी पेठ लखाय छे. (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम माहरो रे-ए देशी.) कागळ तो में लख्यो रे, हंडी माहरी रे केम न सीकरी नाथ, कारण पामी रे लखु पेठने रे, जलदी सिकारो तात. काग० १ श्रीसीमंधर साहेब माहरो रे, धणी ते बिराजे आज; धणी बेठां कदीए न बीगडे रे, भरतनी जैन समाज. काग० २ दुकानो मांडे साहेब जुदी जुदी रे, न करे धणीज संभाळ; मुनिम गुमास्ता मळ्या चोरटारे, केम रहे साहुकारी माल. काग० ३ केटलुं लखं साहेब चोरीओ रे, धाडां पड्यां रे दुकान; रत्नाधिक तो हवे रह्यां नहीं रे, काचे माचे मस्तान. काग० ४ For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) मोटी मोटी पदवी धरावता रे, लडे झघडे मस्तान; मुंडे मुंडे रे करे प्ररुपणा, फेल्यु बहु अज्ञान. काग० ५ एक स्थापे बीजो उत्थापतो रे, न धरे जन विश्वास; श्रद्धा उतरे रे तुन शासन थकी रे, शाहु मुके निशास. का० ६ चेला चेली करे चोरी तणा रे, न गणे जातने कुळ पुस्तक संचे लोभीडा भंडारमा रे, इम बगडयुं जगशूल. का• ७ कल्पने क्रिया मुकी खुंटीए रे, करे सावध व्यापार; आरंभ आदेशे ते आडंबरी रे, न आणे शंका लगार. का. ८ तरसे घणा रे श्रावक गुरु विना रे, क्यां जइ पाडे बांग; (पोकार) मोढुं बांधे जो हुवे नगडु (पडो) रे, पण पडी कुवामां मांग, का० ९ काचुं काम न पडघु पेहीतणुं रे, तोय आवे नाणुं अथाग; दुकानो चाले मोटा ठाठथी रे, आ सुधारानो माग (मार्ग) का०१० लेवं देवं मारे कशं नथी रे; नहीं खुशामद- काम; देख्युं तेवू लख्युं पेंठमां रे, आगळ मरजी तुम स्वाम (स्वामी ) का० ११ नाणुं जमा थयु लोकमां रे, हरकोई सिकारे शेठ; अधिकाई गणशे ज्ञान ताहरी रे, न नाणे सिकारो पेठ. का० १२ For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) परपेठ. ( पेठनो उत्तर न आववाथी परपेठ लखाय छे. ) ( दान कहे जग हुं वडो, मुज सरखो न कोय ललना - ए देशी. ) कागळ हुंडी पेठने, केम न सीकारी नाथ ललना; हवे परपेठ सीकारजो, जो तमे जगना' तात ललनाकागळ हुंडी पेंठमां, अहीं आना हाल विचार; शेष लखं परपेंठमां, भरतना सहु समाचार. पहेली आडत बांधत; करवो जोइए विचार; हवे अधवचमां भरतने, किम छोडो निरधार. भला माणस संसारमा, करे न विश्वासघात; तुं साहेब त्रिभुवन धणी, मली कीधी आ वात. एवा कपटी अमे नहीं, नाणां राखी लखीए पेठ; समाचार दुकानना, तेहनी लखं परपेंठ. साध्य रोगनी औषधि, होवे जीव विशुद्ध; रोग मोटो असाध्यनो, दवाथी न थाये शुद्ध. एक कनक अने कामिनी, वश कर्यो सौ संसार; प्रवेश कर्यो शासन विषे, सुणीये ते समाचार. अर्थ (द्रव्य ) नी दीये देशना, लेवे ज्ञानने नाम; ऊंजमणा उपधानमां, काढयुं पेदाशनुं काम. महिला परिचय अति घणो, भविष्यमां वधशे रोग; वळी सुनो पन्यासजी, झूठा मांडया जोग. For Personal & Private Use Only ल० ल० का O ल० ल० का ० ३ ० का० ल० ल० का ० ४ ल० ल० का ० १. ल० ल० का ० ल० ल० का० २. ल० का ० ● ल० का ० ८ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७ ) पहाड रचना करावतां, लूटे जीवोना प्राण; आरंभथी शंके नहीं, उंची घरी तुज आण. कदी तमारा मनने विषे, एवो हशे विश्वास; साधु श्रावक तणो एक जाणो ढंग; कांण रही नहीं कोईनी, नहीं रह्यो शासन रंग. रोग वैरी अग्नि तणो, वळे शीतळ आचार; वध्याथी व्याधी करे, जल्दी करो उपचार. दुःख नही आणा मुकतां, केम आवे बीजाने देख; बगला भक्त भेगा हुआ, केटला लखं हुं लेख. परपेंठ सिकारो नाथजी, मत करो देर लगार; ज्ञान कहे बगड्या पछी, दुष्कर शुद्धाचार. ल० श्रावकवाड शासन तणी, वारण करशे तास. ( तेनी ) ल० का ० ११ सुणो श्रावकनी वारता, देवद्रव्य पोते खायः गच्छ तणा झघडा करे, केटलं लख्युं हवे जाय. बांध्या ते दृष्टि रागमां, न करे हृदये विचार; ध्वजा पताका सारीखा, फरी जाय वायु लार. ल० का ० १२ ( पछवाडे ) ल० का ० १३ ल० ल० का ० १४ ३० ल० का ० १५ ल० ल० का ० १६. ल० ल० का ० १७ ल० ल० का ० १० For Personal & Private Use Only ० ० Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) मेझर नामुं. दोहरा. श्री सीमंधर साहेबा, महावेदेह क्षेत्र मोझार; प्रातः उठी वंदन करूं, दिनमां वार हजार. आनंद घन देवचंद्रजी, यशोविजय उवझाय; (उपाध्याय) . हुंडी कागळ बहु लख्या, पेठ परपेठ पठाय. ( मोकली) २ उत्तर पाछो नहीं मळ्यो, ते पहोंच्या तुज स्थान; कागळ हुंडी वाचीआ, पेठ परपेठ सुणी कान. ते न सिकारी नाथजी, शुं कारण छे तेह; के नाणुं जमे नथी, के नहीं पहोंची जेह. हुंडी पेठ खोवाई गयी, परपेठ सीकारी न नाथ; ते कारण मेंझर लखु, जलदी सीकारो तात. जिन स्तुति. (ढाळ १ ली.) वीर सुणो मारी विनती ए-देशी. सुणो सीमंधर विनती, मेझर नामुं हो लखी मेलं आज. जलदी सिकारो नाथजी, जेम सुधरे हो सब जैन समाज. सुणो सीमंधर. ... ... १ For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वस्ति श्री पुष्कलावती, पुंडरीगिणी हो नगरी शुभ स्थान; सर्व उपमाने योग्य छो केवळदी हो जो रे केवळज्ञान. सु० २ आठ प्रतिहार ज शोभता अतिशय हो मोटा चोत्रीश; (३४) इंद्रादिक नित्य पूजता जीत्या हो जे रागने रीस. तत्र श्री सीमंधर प्रभु, करुणासागर हो मोटा कृपाळ; अधम उद्धारण साहिबो, जगबंधव हो जग दीनदयाळ... सु. ४ भरतक्षेत्रना संघनी, वंदना होजो हो एक हजारने आठ; तुम कृपा अत्र कुशळ छे, दर्शनथी हो होसे अधिको ठाठ. सु. ५ कागळ हुंडी पैठने, परपेठ हो लखी मेली अनेक; तेनो उत्तर मळ्यो नहीं, केम कीधी हो ! प्रभु ढील विशेष. सु०६ ते कारण लखवू पडयु, मेझर नामुं हो मने आ वार; आगळ रीत नहीं लोकमां, देनो हो प्रभु एने सीकार. ढाळ १ लीनो तात्पर्य-वीतराग प्रभुने हमेशां वीनती करवी अने वन्दना करवी. • दुहा. अनंत कल्याणी संघ छे, संघथी वडो न कोय; समोसरण बिराजतां, नमस्कार करे तोय. हुँ पण संघने नमी करी, कहुं मननी वात; तोपण कोइ न सांभळे, तुं जाणे जगतात. ओछो कोठो तुच्छ मति, नहीं समावे नाथ; कहुं भरतनी वारता, सांभळ कृपाळु नाथ. For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) सुविहित अधिकार. २ ( ढाळ २ जी ) उपरनी देशी चालु. केवळ कमळा जिन लहे, गणधर हो थापे तीर्थरूप; चारे प्रकारे संघनो, तुं तो हो ! त्रीभुवननो भूप. भरतक्षेत्रनी वारता, समय समय हो जाणो जगनाथ; तो पण मारा मन तणी, अर्ज करूं हो जोडी बन्ने हाथ. सु० मुज मन ममरो वसी रह्यो, तुम चरणे हो मुज चित्त लोभाय; विषम वाट पर्वत घणा, आ भवमां हो ! नहीं मुझथी अवाय सु० ३ वीर शासन अति उजळु, जाणुं हो ! पूनमनेो चंद्र; साधु सुधारे आतमा, गुण गावे हो ! सुरलोके इंद्र. अहो तपसी अहो संयमी, अहो ज्ञानी हो ! अहो ध्यानी तेह; अहो क्षांति अहो मुत्ती, अहो त्यागी हो ! वैरागी जेह. सु० मेरु जेम अडोल छे, सागर हो जेम होय गंभीर; दिनमणी जेवा दीपता, निर्मळ हो ! गंगानुं नीर. अप्रतिबंध वायु परे, निरालंबन हो ! जाणो आकाश; अप्रमत्त भारंड परे, कोई करे हो कर्मनो नाश. क्रोधादि रिपुने दमे, पीके हो ! मुनि उपशम रस; शत्रु मित्रने सम गणे, व्याप्यो हो ! भूमंडळमां जश. सु० ४ - ५ For Personal & Private Use Only सु० सु० सु०८ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) इत्यादिक बहु गुणभर्या, माख्या हो प्रथम उपांग; लब्धि अनेके उपजी, कोई भण्याहो ! पूर्वने अंग. सु० ९. एवा मुनिजीने नित्य प्रति, पूजे हो ! सुर इंद्र नरेंद्र हुं पण माथु नमावीने, नमुं नमुं हो ! प्रमु तेह मुनींद्र. सु० १०. वीर पाट पर शोमता, पंचम गणधर हो ! श्रीसुधर्म स्वामः । पंचम आराना अंतमां, दुपस्सह सूरि हो ! लेशे तेनु नाम सु० ११ परंपरा श्री पासनी, बीजो गच्छ हो उपकेश (कमला) कहाय; पोरवाळ श्रीमाळ ने, ओशवाळ हो कोई जैन बनाय. सु० १२ सुविहित आचार्य पाटमां, चाल्या आल्या हो ! रत्नोनी खाण; उपलदे राजासंप्रति, चंद्रगुप्त हो ! पाळी ! जिनवर चराण. सु० १३ निन्हव नवा नवा नीकळी, वादळ नेम हो ! गया विरलाय; भरतक्षेत्रनी वारता, लखता हो जीवडो गभराय. सु. १४ दक्षिण भरत हुंडा सर्पिणी, पंचम आरो हो ! कृष्णपक्षी जोया असंयति पूजा पांचमो, कारण मळ्यु हो कमती नहीं कोय. सु. १५ उदय उदय पूजा नहीं; भस्मग्रह हो ! बेठो वीरनीः राश ( राशि). प्रभाव पड्यो तेहनो, पेहले कीधो हो ! ते प्रेमनो नाश. सु० ११ मान दूत कळिकाळनो, छडी रोपी हो ! शासनमां आय; आराधे देवी देवता दिन दिन हो ! शिथिलता थाय. सु. १७.. छंसें नव वर्षों पछी, मोटो पड्यो हो ! शासनमां भेद; दिगंबर एकांतने, पक्ष ताणो हो ! करे भेदमां भेद. सु. १८ बोलो केइ उत्थापीआ, केइ हो ! नव दीधा स्थाप; तेनी रामायण छे घणी, केटली लखं हो ! तुम जाणो आप. १९ For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) छसो चोराशी वर्षे हुआ, गंध हस्ति हो प्रथम टीकाकार धीमे धीमे हवे साधुनो, शिथिल पड्यो हो ! तप तेज आचार सु०२० काळ दुकाळ पड्या घणा, भारतमां हो ! मचीओ हाहाकार; केई मुनि अणसण करी पहोंच्या हो ! परलोक मोझार. २१ ढाल २ जी नो तात्पर्य जे मुनियोना गुण बखाण्या छे, तेमां प्रवृत्ति करवी यथायोग्य प्रयत्न करवो अने प्रतिदिन अनुमोदन करवं. चैत्यवासी अधिकार. दुहा. दुष्ट काळ अति आकरो, न मिले फासु आहार; निर्बळ मन मुनि राजनी, लोपे मर्यादा कार. केई गया पर खंडमां राखवा संयमसार; जे पाछळ मुनिवर रह्या, सुणो तेना समाचार. ( ढाल ३ जी) देशी पूर्ववत् पासत्था पाछळ रह्या, जेणे कीधो हो ! जिन चैत्य (देश) मां वास; आठसो ब्यासी वर्षे, शासन हुओ हो ! जाणे भस्मी रास. (राशि) For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) तप संयम दूरे धर्यो, दूरे धर्यो हो ! साधुनो आचार; वाडा बांध्या आपणा, तृष्णा हो लागी अपरंपार सु. २. द्रव्यलिंगी द्रव्य राखवा, मांडी हो देवद्रव्य दुकान; तेहीज द्रव्यने वापरे, अंधा अंध हो मच्यो अज्ञान. वास कर्यों मुनि चैत्यमां, गृहस्थे हो छोडी सार संभाळ; द्रव्य करे मुनि एकटु, देवनामे हो, बीछावी जाळ. ' धर्मशाळाने उपाशरा नवां चैत्य हो बांध्या अनेक; मालिकी राखी आपनी पोते हो करे जेनी देवरेख. सु. ५ कल्पित क्रिया बनावीने, सावध हो करे उपदेश; अंजन शलाका प्रतिष्ठा विषे, संयम हो न राख्यो लेश. सु. ६ काव्य बनाव्या पूजा तणा, सावध हो न आणे शंक (शंका;) माया ममतामां पड्या, हाथी हो जाणे पड्यो पंक. सु. ७ मृदंग ताल बजावता, कई खावा हो नित्य सारा माल; गादी तकीआ बीछाववा, ओढवा हो शाल दुशाल.. सु० ८ रोशनी करावे रातमां, मंदिरमा हो नचावे लोक; निरंकुश दया विना, धर्म नामे हो भोगवे भोग. पहाड तणी रचना करे, गाने हो आवे ने जाय; धाम धूम करे घणी, शासन हो दीधो लोपाय. संघ साथे करे जातरा, साध्वीयो हो साथे चाले नार; धर्म नामे अधर्मर्ने, पासत्था हो मांडयो प्रचार. सु. ११ तप तेलादि करावीने, उजमाणे हो, लेवे रोकड दाम; गौतम पडधो पुरावतो, शं लखू हो जाणो आतमराम. सु० १२ For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) उपधानना नामथी, नवी नवी हो क्रिया दीधी स्थाप; रुपीआ लेवे रोकडा, शासनने हो लगाड्यो पाप. सु. १३ साधुना ऊपाशरे, स्थापे हो वीतरागी देव; . अठाई ओच्छव करावतां, नाटकीया हो पाडी खोटी टेव. सु. १४ इत्यादि संक्षेपथी, विस्तारे हो तुं जाणे नाथ; . सो वर्ष सुधी चालीयो, मोटो हो चैत्यवासीनो साथ. सु. १५ देवगुप्त देवर्द्धि गणी, केई मुनि हो करी शासन सार; हरिभद्रसूरि हुआ, केई मुनि हो कर्यो क्रियाउद्धार. सु० १६ अज्ञान तिमिर हठावीने, तप संयमे हो थया उजमाल; पुस्तकारूढ आगम कर्या, जेणे जाण्यो हो काई पडतो काळ.सु. १७ स्वल्प काळ क्रिया रही, चैत्यवासीनो हो वध्यो परिवार; तेरसो वर्षो गया, प्रभु पछी, चोरासी गच्छना हो सुणीये समाचार. गच्छ नाम जुदा पड्या, माहोमाहे हो घणो धर्म स्नेह; पण कळियुगी जागतां तेहना हो समाचार छ एह. सु० १९ समाचारी जुदी जुदी, जुदा जुदा हो सहुना ए नाण; मंदिर उपाशरा जुदा जुदा, जुदाजुदा हो श्रावक पीछाण. सु०१० ग्रंथ रचना जदी जदी पाकी बांधी हो पोतानी पाळ; केंई निंदक कदाग्रही, मांडी बेठा हो ममतानी जाळ. सु० २१ सिद्धसूरि वल्लभसूरि, जगच्चंद्र हो वली हेमसूरींद्र पासत्थानो मद चूरता, भूमंडळ हो वीचरे मुनींद्र. सु. २२ For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) कुमारपाळ प्रतिबोधीने, जैन धर्म हो कीधो उद्योत; देश अढारे दया पले रे, हीरसूरि हो अकबर प्रतिबोध. सु० २३ गच्छतणा झघडा घणा, पक्षा पक्षी हो मांडी दुकान लीगंधारी शिथिल थया, पासत्था हो माच्या मस्तान. सु० २४ विक्रम पंदरसे आठमां, लुंपक, लोके हो कीधुं तोफान; .. पंदरसे एकत्रीसमां, चाली हो लुपक दुकान. .... सु. २५ प्रतिमा उत्थापी पापीए, आगम हो मान्या एकत्रीस; बुक जेम बालक्रिया करे, दया दया हो पाडे मुख चीस. सु. २६ एक बाजु यति शिथिल थया, बीजी तरफ हो लुपकनो जोर; सत्यविजय सत्य राखवा, लुंपकना हो कील्ला दीधा तोड सु० २७ वीर परंपरा सत्यनी, सत्यविजयथी हो ! संवेगी नाम; . लुंपकथी ढुंढक थया, आगळ लखु हो ! बन्नेनां काम.. सु. २८ सवंत सत्तर आठमां, लवनी हो.! लुपकनो साध ( साधु ); मोढुं बांधीने नीकल्या, लिंग पलटी हो ! कीधो उन्माद. सु. २९ सत्य मार्ग थोडो चालीयो वध्यो हो ! पासत्था प्रचार; प्रवृत्ति लखें बन्ने तणी, थोडामां हो ! घणा समाचार. सु. ३० टाळ ३ जी नो तात्पर्य जे चैत्यवासीयोनी प्रवृत्ति लखी छे तेमां काई आश्चर्य न पामवं. जीव बधा कर्माधीन छे. परंतु खास लक्षमा राखq के ते प्रवृत्ति अमारामां न आवी जाय अगर कांई होय तो काढी मुकवानो तुरत प्रयत्न करवो. For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) आचार्य अधिकार दुहा भूषण जिन शासन तणा, पद्वीधर गुणखाण; स्थंभ कह्या जिन धर्मना, स्व पर मतना जाण. सारण वारण चोयणा, प्रतिचोयण करे तेह; संघ चलावे आणमां, ते सूरि गुण गेह. ( ढाळ ४ थी. ) देशी उपरनी चालु. आचार्य उपाध्यायजी, प्रवर्तक हो स्थिविर गणी जाण; गणावच्छेदक गणधरु, सात पदवी हो कही रत्ननी खाण. सु० १ सात रत्न चक्रवर्तीना, करे हो चतुरदिशि अंत; गुण गीरवा पदवीधरा, जेणे तार्या हो ते जीव अनंत. जै पदवी तारक हती, हमणानां हो सुणीये समाचार; गुणहीण गर्वे चढ्या, पढ्या हो ममत्व मझार. स्वमतने जाणे नहीं, केम होये हो परमतना जाण; जाणे थोडुं ताणे घणुं, खाली हो मांडी खेंचा ताण. भाष्य देखो व्यवहारनो, विस्तारे हो खोलीने नेण ( आंख ); अगीतार्थने सेवतां, खोट आवशे हो श्री वीरना वेण (वचन) सु० ९ सु० 8 For Personal & Private Use Only सु० २ संक्र Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) नहीं योग नहीं योग्यता, बनी बेठा हो आचार ज पाट; सरि छत्रीश गुणे क्या रह्या, क्यां रही हो गणीसंपदा आठ. सु. १ पाटीदार पटेलीया, कोई हो छीपा माळी जाट, अंगहीना केइ मांजरा, नहीं शोभे हो श्रीवीरने पाट. ऊंचो धर्यो आचारने, क्रिया हो गणे कष्ट समान; आचारज थया अमरिया, नहीं किया हो नहीं रघु ज्ञान. सु. ८ मोटी उपाधि धरावतां, खीताचो हो राखे दो चार; क्या कोरी क्या चीतरी ( शीला ), बंने डूबे हो भवनळ मोझार. परस्पर छापां छपावता, स्वश्लाघा हो परनिंदक तेह; पैसा खरचे वाणीया, दृष्टिरागी हो नहीं धर्मस्नेह. सु. १० निशीथ आचारंग भण्या विना, अथवा हो भणीने जाये भूल पदवी देवी कल्पे नहीं, जुओ हो व्यवहारनो मूल. सु. ११ हाथी तणा बोजा लेइ, नांखे हो खर उपर मूल; . पदवी देवे अयोग्यने, नहीं जुए हो जातिने कुळ. सु. १२ पदवी देवी अयोग्यने, नहीं हो छोडावे संव; दंड तणा भागी होवे, जुवो हो व्यवहारनो रंग. . सु. १३ . पोताना शिष्य माने नहीं, शं करशे हो शासन- काम; . आचारज घर घर तणा, रह्यो हो निक्षेपो नाम.. ज्ञानयोग उपधानना, नाम लेइ हो ! भेलु करे पाप; लावो लावो करता फरे, भन कलदार ! हो ! बेटा जपे जाप. ..... सु. १६ For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) मर्या पछी पुस्तक नीकळे, चेला हो ! वहेंचीने खाय; (लेवे ) . नहीं तो खाये वाणीया, अथवा हो ! कोरटमां जाय. . .सु. ११ चरण स्थपावे तेहना, मूर्ति हो धरे मंदिर बीच. (वचा) छबीओ चीतरावे बहुमूली स्वश्लाघा हो.! करे ते नीच. सु० १७ तप संयम आतम बळे, केई कीधा हो ! जेणे जैन अनेक; तेहनी खावे रोटीओ, लडावे हो ! मांहो मांही एक.. सु. १८ अभिमानी झघडा करे, शुं आशा हो ! नवा करे जैन! . . मम लजीआ कह्या नाथनी ! जुओ हो ! आगमना वेण. सु० १९ उत्तम तो ऊंचा छोडे, नीचाने हो ! लेवे आपणी पास; कडवी दवाई गुण करे, शासनप्रेमी हो ! करे अरजी खास. सु० २० लज्जा राखो पदवी तणी, शांतवृति हो ! आपसमा प्रेम शासननी सेवा करो, पामो हो ! जलदी शिव जेम. सु. २१ ढाळ ४ थी नो तात्पर्य-ज्यां सुधी आचार्यना गुणनी योग्यता न होय त्यां सुधी आचार्य पद्वि नहिन आपवी अने लेवावाळाने पण पुरो विचार करवो अगर पदवीने योग्यता होय तो पदवी आपवी तथा लेवी अने संघने शान्त मार्ग प्रवृताववो. For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९) गणी अधिकार + दोहा. गुण गीरवा मणी करे, गच्छतणा सुभ काम; जिनागममां दीसे नहीं, पन्यासोना नाम.... कहेवाय संवेगी नामना, नहीं संवेगनो रंग;" - पदवी तणा झगड़ा करे, लई लई गृहस्थी संग, (ढाल ५ मी.) देशी उपर प्रमाणे. . समिति गुप्ति जाणे नहीं, सावद्य निर्वद्य हो ! नहि होये मान; दोष जाणे नहीं आहारना, नहीं हो ! भाषानुं ज्ञान. मुं० १. हृष्ट पुष्ट साधु बन्या, माल खाइ हो ! बनीया मस्तान; जूठा योग वहन करे, कळियुगी अहो ! मांडयुं तोफान सु० २ नवतत्त्व नहीं आवडे, नहीं हो ! दशवकालिक ज्ञान; योग बहे भगवती तणा, भरत माहे हो ! मचीउं अज्ञान. सु. ३ सूत्र क्रमसर वांचना, उत्कम हो ! कह्यो दंड निशीथ; पाप उदय पन्यासन, तोडी हो ! निनशासन रीत. मु० ४ वाडा बांध्या पन्यासजी, बीजा हो ! नहीं करावे योग; माया जाल बेठा मांडीने, शासने हो ! लगाव्या रोग सु०५ For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) आगमवाचना उंची धरी, पासत्था हो ! क्रिया दीधी स्थाप; . पुस्तक धर्या भंडारमां, कोण वांचे हो ! पन्यासनो बाप.सु.. भेद करे गच्छ मांहे ते, संघमां हो ! करे खेंचाताण; दुकान जमावे आपनी, पदवी पाम्या हो ! नहीं पाम्यो ज्ञान सु. ७. पुण्योदय साधु थया, आधाकर्मी हो ! ख़ाई करे पुण्य नाश; पाप पुरां उदय आवीयां, साधु होवे हो ! पछी पन्यास सु० ८. शुं लखं मारा साहेबा, देखादेखी हा ! लागे चेपी रोग; एक बीजाथी आगल पडे, नहीं देखे हो ! कोई योग्यायोग सु० ९ अंदरनुं रहस्य हवे सुणो, थइ पन्यास हो ! मांडे उपधान; मालपाणी नाणुं मळे, महिला मळी हो ! करे सन्मान सु० १० गणाङ्ग ठाणे आठमे, मत्र हो ! व्यवहारनो खोल; कहेता गुण गणी तणा, केम चाले हो ! जे पोलमपोल सु० ११ जो संघ निर्णय नहीं करे, थासे हो श्री वीरना चोर; मारी फर्नमें बजावी छ, जुठो हो ! मत करजो सोर सु० १२ ढाल ५ मी जेवी रीते आचार्य पद्वि ले छे तेवीन रीते गणी पदवी समजवी. योग वहन अधिकार. दुहा. सूत्र वांचे तप करे, योगवहन तस नाम; ___ आगममाहे देखीलो, भाखे श्रीमुख श्याम ( जिनेश्वरदेव ) १. For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ । कल्पित छे विधि योगनी, भोला पडीया भर्म; ... "धर्म" आज्ञा वीतरागनी, आज्ञा बहार अधर्म. २ ( ढाल ६ वी ) देशी पूर्व प्रमाणे. महानिशीय अंगचूलिया उत्तराध्ययने हो ! दीसे योगनां नाम; . सत्यमार्ग गोपी करी, चैत्यवासीए हो ! कर्यु दामनुं काम सु. १ भगवतीनी वांचना सठसठ (६७) दिन हो मूल पाठमां जोय, हमणां योग छमासना, आगम आणा हो ! विराधक होय. सु. २ पनवणा पाछळ बनी, पहेलां हो ! नहीं होवे योग; देवढीगणी नंदी रची, त्यांसुधी हो ! नहीं हतो आ रोग सु. ३ आगममां तो इम का, एटला दिन हो! उद्देशनो काळ; ते विघि ऊंची धरी पासत्था ह्ये ! मांडी मननी जाळ सु. ४ गणधर सूचित विधि एक जे, माहे हो ! कोण आणे शंक; [शंका ] गच्छगच्छनी जुदी जुदी कल्पित हो! नवि होवे निशंक सु. ६ भगवती योग कर्या विना, नहीं देवे हो ! गणी पद आज; आगम विरूद्ध प्ररूपणा, आधाकर्मी हो ! खावे पदवी कान सु०६ निक्षीय आचारांग मण्या होवे, सूत्र हो ! व्यवहारनी वात; . जातिकुलने योगता देवी कल्पे हो ! जेने पदवी सात. सु. ७ बहल मुनि तीसक मुनि, छ मासे हो ! मणीया अंग अग्यार पांचमा नवमा अंगमा नवमासे हो ! धन्नो अणगार. सु. ८ For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९) जूठा योग वहन करे, आधाकर्मी हो ! खावे पदवी काना अगीतार्थ अभिमानीआ; पदवी लेतां हो ! आवे नहीं लान. सु. ९ भगवती पहेला शतकमां आधाकर्मी हो ! साघु खावे जाण; रूले अनंत संसारमा केम काढे हो ! बीजाने ताण सु० १.. जोगतणा आहारनी, लखता हो ! चाले नहीं हाथ हा ! हा! भरतमां शु थयुं, मळीयो हो ! स्वारथीयो साथ. सु. ११ राम सनेही साधुना, भोजन बने हो ! घरघरमा तेम; कमती नहीं योग वहनमां, वनडो ( वर ) बेठो हो ! वंदोले नेम. सु. १२ वारा बांधी आवे श्राविका, काले हो ! शु आवशे तप ! पाप उदय पन्यासनां, अमुक साधुने हो ! अमुक थाशे खप. तैयारी करी आवे तेडवा, लाभ देनो हो ! मारा स्वामीनाथ; आधाकर्मीथी शंके नहीं ! देवे लेवे हो ! डुबे बन्ने साथ सु० १४ पचक्खाण करे आंबीलतणा, दहीतणा हो ! करंबा खाई जाय; मीठु मरचुं हींगने जीरूं, दशवीस हो ! भोजन बनवाय. सु. १५ नीवी तो जाणे नामनी, कलाकंद हो ! खीरने दूधपाक; तल्युं गळ्यु खपे घणु, बदाम चिरंजी हो मेवोने द्राख. सु. ११ चिक्खाण करे विगय तणा, विगय खावे हो ! लागे मोठं पापः । महा मोहनीय कर्म बांधतो समवायोगे हो ! भाख्यो श्री आप. For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) काली आदि दश राणीओ, अंतगडा हो ! आंबिल अधिकार; ... लेपादि विगय वरनीयां, केवळ पामी हो ! गई मुक्ति मोझार. छठ तप आंबिल पारणे, नवमे अंगे हो ! धन्नो अणगार; ... लूखो आहार बे द्रव्यनो, समाचारीमा हो ! चाल्यो अधि... .. ____ कार. सु० १९ साधवीओ आवे एकली, लेवे हो ! योगवहन नाम; काल विकाल गणे नहीं, कोण जाणे हो! पन्यासोना काम सु० २० साधुना स्थानमा साधवी, वरजी हो ! बृहत्कल्प मोझार; आलाप संलाप करवो नहीं, नागणपरे हो ! बतावी नार. सु. २१ संघ चतुर्विध मांहने, सुणता हो ! आवे व्याख्यान; . प्रवर्तिनी पासे रहे, लेवे देवे हो ! आपसमा ज्ञान.. सु० २१ नानी दीक्षा दिन सातनी, मध्यम हो ! राखे मास चार; उत्कृष्टी छ मासनी, जुओ हो ! सूत्र व्यवहार. सु. २३ पिंडेषण अध्ययन भणवाता, हमणां हो ! छजीवणीया सार; . ते पण लुप्त करवा भणी, ज्ञानहीना हो केवळ क्रियाचार मु० २४ नानी दीक्षामां साधु रहे, वर्ष बे वर्ष हो रहे वर्ष चार; आज्ञा नहीं वीतरागनी, पुन्य नास हो! थावे आज्ञा बहार सु० २९ योग करावे नहीं अन्यने, करावतां हो ! पहेलां करे कोल ( शरत); एटलां पुस्तक आदि तणा, रखावे हो ! पहेली रोकड मोल सु० २६ For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) केटलं लखं मारा बापजी ! लीला हो ! जेनी अपरं पार; बुद्धि सुधारो नाथजी, मारी अरनी हो ! वारंवार सु. २७ ___ ढाल ५ ठी-जिनागमोनी वाचना आपवी सिद्धान्तो नुं रहस्य शिष्य मंडळीने समजाववं, परन्तु जे योगने आधाकर्मादि आत्माने अहितकारक खोटी प्रवृत्तियो छे तेने तिलांजली आपवी. उपधान-अधिकार. . . - दोहरा. गुरु तीर्थ पासे करे, उपधान तप सार; . जैन विधि अनुसारथी, ते पामे भवपार . १ - धर्म अमूल्य. जिनेंद्रनो वेचाय दुकाने मोल ( मूल्य ) - धर्म नाम धाडां खुले, पन्यासोनी पोल. (ढाल ७ मी) - पूर्वनी देशी. आंबील प्रमुख तप करे, श्रावक हो भणे गुरुनी पास; श्राविका गुरुणी कने, हमणां हो ! जुवो पन्यास. १ उपधान करावतां पेहलां, पेसा हो ! लेवे ज्ञानने नाम; पेढी जमावी ब्राह्मण परे, कोई काढी हो ! पेदासनों काम. सु० २ । सधवा विधवा मळे घणी, भाग्ये भाई हो ! मळे दस बार; क्रिया करावे पन्यासजी, महिला साथे हो ! भांडे प्रचार. सु. ०१ For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५) नारीना परिचय थकी, यतिये हो ! कीधो घरवास प्रत्यक्ष देखी केम करे, त्यागी हो ! महिला सहवास सु० ४ आरंम करावे नवा नवा, भोजन कारण हो ! देवे आदेश ! - माल उडावी करे मोझने, गांडो मल्यो हो ! गुर्जरनो देश सु० ५. भोजन जमे वाणीया, ओघो लेई हो ! जावे पन्यास; अमुक सारुं न केम कयु ( त्यारे बोले ) शं खपे हो ! अने श्रावकना दास. सु०६ नाम लेवे नीवी तणो, आहार तणुं हो ! जाणो जगमाण; बदाम तणो हलवो बने, घारी हो कलाकंद पीछाण सु० ७ लाडु पेंडा बरफी बने, दूधपाक हो ! नहीं रहे दूर; दैथरां ने पुडला बने, जुदां जुदां शाक हो ! हांडा भरपूर सु० ८. तृपणी भरे भरे पातरां, साधुनी हो ! उडावे माल; धर्म नामे धूर्त जागीया, पन्यासे हो ! बिछावी जाल. सु० ९. केई गृहस्थी जैनना, नहीं मळे हो ! खावाने धान्य; उपधान नामे मुनिराजजी, माल उडावे हो ! मली मस्तान सु. १० अमुक बाईए दश दीया, तुं तो हो ! मोटा घरनी बेन ! सो के बसो आपशो, धीरे धीरे हो ! बोले मधुरां वेण. सु० ११ . रांडीरांडो ठगवा भणी, भला जाग्या हो ! धोळ दिने चोर; ज्ञान नामे भेळू करे, पापोदय हो ! पडे चोरोमां मोर सु० १२ तृष्णा अंबर [ आकाश ] जेवडी, करावे हो ! माळा लीलाम ! वादे वधारे वाणीया, मेळा करे हो ! लोभीडा दाम... सु. १३ For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) सिद्ध साधक रहे वाणीया, धर्मादीया हो ! मळे दलाल; कलियुगीया भेगा थया, केम रहे हो ! साहुनो माल. सु. १४ ओछा जीवित कारणे, संयम खोवे हो ! अज्ञानी बाळ; जरा तो डरो परमवय की, माथा उपर हो ! भमे छे काळ. सु १५ पणिक भडकशे वांचीने, पन्यास हो ! करशे कोई क्रोध; भलामण करूं तेहने, पक्ष छोडी हो ! करो साची शोध सु० १६ साचामां समकीत वसे, मायाथी हो ! आवे मिथ्यात; केवां चित्र हुं चीतरुं, तुं जाणे हो ! मारा त्रिभुक्न तात. सु० १७. ___ ढाळ ७ मी--गीतार्थाचार्य मुनिमहाराज श्रावकवर्गने योग्यता पूर्वक जैन धर्मना खास तत्व ज्ञान नित्य धर्म क्रियानुं ज्ञान आपवू अने बळतो तप कराववो किन्तु जो धामधूम फोगट आडम्बरमां द्रव्य खरचाववा के खावा पीवा तथा पेसाना लोमे के स्त्रीयो साये जे प्रचारनी प्रवृत्ति छे ते योग्य नथी माटे तेने दूर करवी. दीक्षा अधिकार. ज्ञान गर्मित वैराग्यथी, दीक्षा लेवे जो कोय; ... दीपावे जैन धर्मने, तर ते तारण होय. १. For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) (ढाल ८ मी) देशी पूर्व प्रमाणे. ठाणांग बृहत् कल्पमा, दीक्षा देवे हो जोइने योग्य; एवी आज्ञा वीतरागनी, प्रवचने हो ! वरने अयोग्य. सु. १ अधिकागुण होय आपथी, अथवा हो ! होवे सम तुल्य उत्तराध्ययन पांत्रीसमां, जोवे हो ! मुनि जातिने कुल. सु० २ आज्ञा नहीं मावापनी, नहीं हो ! निजमां वैराग्य; जेवा तेवाने मुंडतां, पुस्तक वस्त्र हो, लेइ जाय भाग. सु. ३ .. एकनी पासेथी नीकल्यो, पुस्तक वेची हो ! करे रोकड दाम; अत्याचार सेवे तेहथी, वस्त्र पात्र हो ! करी दे लीलाम. सु. ४ .. बीजा पासे ते जइ, दीक्षा हो ! लेतो बीनीवार; ... गुरुजी निर्णय करे नहीं, चेलानो हो ! लाग्यो लोम अपार. सु० ५. त्रीनीवार त्रीजा कने, एम ठगे हो ! नहीं पूछे कोय ! .. मातापितानां पोषण करे, पुस्तक वस्त्र हो ! दाम रोकड जोय. सु०६ बनी चुक्या केई दाखला, तो पण हो ! नहीं छोडे बलाय ! शासन निंदावा जनमीया, तेथी हो ! शुद्ध श्रद्धा जाय. सु० ७ आज्ञा विना दीक्षा दीये, त्रीजा व्रतमा हो ! जलांजली होय ! प्रायश्चित आवे आठमुं, ठाणांग हो ! ठाणे त्रीने जोय. सु० ८ मूल्य तणा चेला करे, देवरावे हो ! ते रोकड दाम; माल खाय मस्तानीआ, अनाचार हो ! सेवे ठामो ठाम. सु० ९ वरघोडा काढे विकाल (परोढीया)मां, जैन नामे हो ! करे चोरीनां काम; For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) - छानामाना दीक्षा दीये, फोकट हो ! खरचावे दाम. सु० १ मातापिता आवी करी, वेष खुंची हो ! घर लइ जाय; प्रतीति रही नहीं जैननी, लोभीडा हो ! मारग निंदाय सु० ११ संयम लई समझया नहीं, समिति गुप्ति हो ! साधुनो आचार; संयममां रमीया नहीं, व्याकरणनो हो ! मांडे प्रचार. सु० १२ पहेलां तो मुके मोकळा, भणो भणो हो ! गणे दोष; कल्प क्रिया उंची घरे, आज्ञा बिना हो ! नहीं संतोष. सु० १३ व्याकरण भणे गृहवासमां, दीक्षा ले हो ! भणे जैन सिद्धांत; हाडे हाडे वैराभ्यथी, तरे तारे हो ! करे भवनो अंत. सु० १४ ज्ञाता विगेरे सूत्रमां, दीक्षा ले हो ! सीखे साधु आचार; अंगादिक पाछे भणे, पेहेलां रंगीये हो ! पाळे शुद्धाचार. सु० १५ एक चक्र चाले नहीं, क्रिया साथै हो ! होवे सम्यग् ज्ञान; प्रथम क्रिया व्यवहारमां, निश्चयमां हो ! होये ज्ञान प्रधान. सु० १६ कांतो दुःखी दरिद्रीओ, पेट भरवा हो ! लेवे संयम भार; कांतो पूजाववानी लालचे, मोहगर्मी हो ! देखादेखी प्रचार. सु० १७ गुरु पण तेवा मळ्या, वधारवा हो ! पोतानो परिवार; जीवतां भूत बनावी दे, भगावी हो ! लेइ जावे लार सु० १८२ दीक्षाना केस कोरट चढे, जुओ हो ! जैनोनी रीत; गादी बेठाजुओ वीरनी, केम रहे हो ! सूरिनी प्रतीत. सु० १९ -गृहस्थीपणे एक घर तणो, मुशकेले हो । चलावे कारभार; साधु थया घर हजारना, लांबां लेखां हो ! नहीं आवे पार. सु० २० For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेम जेम पोप गुरु वधे, तेम तेम हो ! नबळी पडे समाज; गणी गाडरीयो शुं करे ? सिंह हो ! करे एकलो राज. सु० २१ । वकील बेरीस्टर महेनत करी, मुश्केलथी हो ! परीक्षा पास; अधिकार मळे कोरट तणो, दीर्घ दृष्टि हो ! विचारो खास. सु० २२ राना गादीपर बेसतो, केटली हो ! जोइए गुंनास ? .. पूजनीक बने राजा तणा, जोइए हो ! केटलो प्रकाश ! सु० २३ पंदर ( १५) प्रकृति क्षय हुए, अथवा हो! होवे उपशांत; चडते वैराग दीक्षा लीए, करे हो ! मन इंद्रियं दांत (दमन )सु०२४ एकांत पक्ष नहीं खेंचवो, रहे हो शुद्ध लोक व्यवहार; ते जैन धर्म दीपावशे, तरे तारे हो ! जाये मोक्ष मोझार. सु० २५ मोटा घरनी स्त्री हुए, दीक्षा लेवे हो! साधवी पास, पांच दश हजारना, जमे करावे हो! नामे ज्ञानने खास. सु० २६ दीक्षा लेइ पछी साधवी, मालिकी हो ! राखे पोते आप; .. लेणुं देवू करावती, केम छुटे हो ! जो पाप संताप. सु० २७. साधु करतां साधवी तणी, लीला हो ! प्रभु अपरंपार; उद्धार करो आ भरतनो, थारी पलटणना हो ! आ छे समाचार. सु० २८ ढाळ ८ मी-अयोग्यने दीक्षा न आपवी अने योग्यने पण दीक्षा लेवाबाळानी पाछळ सगा संबन्धीनी आज्ञा होय तोन आपवी. For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) आहार अधिकार. समिति गुप्ति चित्त धरे, ले निर्दोषित आहार ते गुरुतारे जगतने, बंदु वारंवार. १ फासु निर्वद्य जे मळे, तेथी करे संतोष नहीं मळतां तप आचरे, पण नहीं सेवे दोष. २ (ढाल ९ मी.) ... : देशी पूर्व प्रमाणे. . . . आहार पाणी लेवे सूझतो, श्रावक हो ! देवे दातार; बन्ने जाय मोक्षमा, दशवकालिक हो ! पांचमे अधिकार. सु. १ छट्टे उद्देशे शतक आठमां, नसु हो ! देवे मुनिने आहार; एकांत होवे निजेरा, भगवती हो! नहीं पाप लगार. सु. २ फासुक आहारज भोगवे, भावे भावना हो ! धन्य तप करे तेह; आप तरे पर तारता, मोक्ष जावे हो ! जिन माखे एह. सु. ३ . आधाकर्मी आहार भोगवे, आयु छोडी हो ! बांधे कर्म सात; रुले अनंत संसारमा पंचम अंगे हो ! भाखा आ वात. . सु. ४ वंछी नहीं छ कायने, वळी भागी हो ! ते जिनवर आण ! समवायांगे सबळो कह्यो पिंडनियुक्ति हो ! गुणदोष पीछाण. For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) 'पूतीकर्म जो भोगवे, सुयगडांगे हो ! सेवे वे पक्ष; द्रव्य साधु भाव गृहस्थी, नहीं हो ! जेने आतम लक्ष. कृतगडे कल्पे नहीं, भूले लाग्यो हो ! साधुने काज; अणजाणे आवे तो परठवुं, नहीं खावे हो ! मोटा मुनिराज, सु० ७ सामे लाव्यो भोगवे, तेच्या जाये हो ! जेम चारण भाट; मुनि मत्तंगज वेगळा, नहीं लागे हो ! सोनाने काट. भक्तिवान श्रावक होवे, नहीं जाणे हो ! मुनिनो आचार; दोषसहित देतो बांधे, अल्प आयु हो ! ठाणांग मोझार त्रीने स्थाने एम कह्यो, पथ्यकारी हो! देवे फासक आहार; शुभ दीर्घ आयु बांधतो, पंदर भवे हो ! पामे भवपार. सु० १० दोषित आहार देतां थकां आठ जणा हो ! भेळा बांधे पाप; सहाय देवे शीतल करे, कोण काढ़े हो ! ए पापनुं माप सु० ११ ध्यान ध्यावे रातना, अमुक घेरे हो ! मळे अमुकं माल; सु० ९ • पडिलेहणा पूरी कोण करे ! लै तृपणी हो ! थावे उजमाल. सु०१२ श्लोक गणे गौतम तणो, वांछित हो ! भरी लावुं माल ! शुद्धाशुद्ध कोण गणे? कोण गणे हो ! जे काळ विकाळ. सु० १३ गृहस्थी सुता होय खाटले, धमकविजय हो ! देवे धर्मलाभ; काढे गौतम पात, पूर्ण पात्र हो ! तृष्णा जाणो नाम सु० ९४ दशवैकालिक छडे कह्यो, एक वखत हो ! भोजननुं मान उत्तराध्ययनं छत्रीसमां, सुणो हो ! समाचारीनुं ज्ञान. पहेले पहारे स्वाध्याय करे, बीजे पहोरे हो ! विचारे ध्यान; सु० १५ For Personal & Private Use Only सु. ६ सु० Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रीने पहोरे भीक्षा करे, चोथे पहोरे हो ! भलो स्वाध्याय ज्ञान..... पहेले पहोरे चा धनी, बीने पहोरे हो ! उडावे माल; बीजो पहोर निंद्रा तणो, चोथे पहोरे हो! वळी चोखाने दाल. सु. १० दशवैकालिक पांचमेरे, मुनि नाणे हो! क्षेत्रने काळ; काले काले समाचारे, कल्पमा हो ! भिक्षा एकज काळ. (वखत)सु०१८ दूध दहीं घृत वापरे, तप करतां हो ! जो धुणे शीष; उत्तराध्ययन सत्तरमां, पाप श्रमण हो ! कह्या जगदीश सु० १२ मोठं कारण मुनिने होवे रे, संयम जाये हो! के जावे प्राण; दोष सहित देतां थकारे, अल्प पाप हो ! बहु निर्जरा जाण. सु०२० हृष्ट पुष्ट साधु होवे रे, सिंह जेम हो ! वांचे व्याख्यान, विहार करे दश कोसनो, दोषित हो ! केम खाये जाण. सु० २१ दोषित आहार लेता थकां, आणा भांगी हो ! जे छे मुनिराज; दातार भेगो डुबशेरे, जेणे दीधी हो ! चोरने सान.(सहाय)सु० २२ विना मण्या जावे गोचरी रे, मण्या हो ! विराजे पाट; शुद्धाशुद्ध जाणे नहीं, आयु साथे हो ! बांधे कर्म आठ. सु० २३ अतिशयवंत जावे गोचरी, आचारांगे हो ! नव बोलनो जाण; उत्साह वधे ग्रहस्थी तणो, आठ कर्म हो ! तोडे चतुर सुनाण.सु०२४ शेठाणीओ बेसी रहे, काम करावे हो ! दासीओने पास; . एवी दशा साध्वी तणी रे, शुं लखु हो ! जाणो स्वामी खास.सु०२५ For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) इंद्रिय स्वादने छोडवा, घर छोडी हो ! लीधो संयम भार; स्वाद करे जुदा जुदा, भगवती हो ! कह्यो दोष अपार. सु. २६ जीमने स्वाद कारणे, मोटी राखे हो ! पातरांनी जोड; जुदा जुदा गृहस्थो परे, पुद्गलानंदी हो ! नहीं सके छोड. सु. २७ पलंग बीछाना छोडीया, छोडी हो ! सुख शय्या नार; . .. मोटा ओशीका बीछाववा, वरज्या हो ! आवश्यक मोझार. सु० २८ विशेष योगना आहारनी, आगळ लखी हो ! आ मेझर माया. आश्चर्य पामे नहीं केवळी, रही हो ! नहीं कमती काय. सु० २९ पाणी जेसी वाणी रहे, अन्न जेवु हो ! नित्य रहे मना निभाववा संयम यातरा, फासु भोजन हो ! पोषण को तन.सु ० ३ ० सुकोमलपणुं छोडी दो, दशवकालिक हो ! श्री वीरनुं ज्ञान; .. मोक्ष किल्लो कायम करो, उठो जागो हो ! थानो सावधान.सु. ३१ ने श्रद्धा घर छोडतां, राखो हो ! जीवनपर्यंत; यथाशक्ति खप करो, तेथी हो ! थाय संसारनो अंत. सु० ३२ 'ढाळ ९ मी-श्रावकवर्गने जोइये के मुनिने दोषिताहार न आपवो अने मुनिने पण परिसह सहन करवा परन्तु दोषित आहार नहीं लेवो. निदोषित आहार लेवो ते पण छ कारणमांथी कोई कारण होय तो. For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) रात्रि भोजन अधिकार. अशन आदि संचे नहीं, अनाणे रहे कोय; तल मात्र नहीं भोगवे, परठे स्थंडील जोय. ढाल १० मी... (देशी पहेलानी.) रात्रिभोजन वरजीयो, भांगे चार हो ! निशीथ मोझार; दशवैकालिक देखीलो, बृहत्कल्प हो! नही साधु आचार. सु. १ धातु खाखने औषधि, चुरण हो ! मुख साफ कराय; गोळीओनी गणतरी नहीं, पारसल हो ! केई वी. पी. मां आय.सु०२ ग्रीष्मरुतु गुलाबना, सीसा हो ! लावी दे बे चार; तेल रहे मर्दन कारणे, मर्दनी या हो ! नित्य रहे तैयार. सु. ३ पहेला पहोरमां वहोरीउं, औषध पाणी हो ! अथवा कोइ आहार; चोथे पहोरे कलपे नहीं, रात्रि भोजन हो ! कह्यो भ्रष्टाचार. सु० ४ राते दवाइ राखतां, भ्रष्ट कह्या हो ! छठे अध्ययन; दंड को निशीथमा अनाचारी हो ! त्रीजे अध्ययन. सु. ५ बीजी जगे मळे नहीं, मोटुं कारण हो ! मुनिवरने होय; अणाहारी वस्तु रातनी, अपवादे हो ! राखे अवसर जोय. सु. ६ अनिष्ट वस्तु अलखामणी, खाता हो ! अरुची थाय; आगम अक्षर देखीलो, ते वस्तु हो ! अगाहारी कहेवाय. सु० ७ For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बांध्या मळे हो पोटला, गांधीए हो! जाणे मांडी दुकान शुं लखं मारा साहेबा, निर नायक हो ! मच्या मस्तान. सु. ८ मायाचारी केई हुए, नहीं राखे हो ! जे पोते पास; . . गृहस्थी पासे रखावता, मायाथी हो ! पामे समकीत नाश. सु. ९ ढाळ १० मी-मुनिने रात्रि वाशी कशी पण वस्तु न राखवी जोइए. जावाआवबाना थोडाक प्रमादने लीधे औषधादि वस्तु राखी मोटा नुकशानमा उतरवू योग्य नथी. वस्त्र पात्र अधिकार. -- - .. . दुहा.... नग्न मुद्रा ने रहे, जिन कल्पी मुनिराय; . स्वल्प अल्प मूल्यना, स्थिविर कल्पी कहेवाय. १ जीर्ण गच्छाचारमा, मानोपेत सफेत ( श्वेत ) दशवैकालिक एम कह्यो, लज्जा राखण हेत. २ ढाल ११ मी.. .. (देशी पूर्वनी) दूषण टाळे आहारना, तेवा हो ! वस्त्रना जाण; आचारांगे कह्या पांचमे, विस्तारे हो ! निशीथ पीछाण. सु. १ बृहत् कल्प दीक्षा समे, पूर्ण हो ! वस्त्र ले तीन; For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शीत परिसह सहन करे, संजममा हो ! मुनि रहे लीन. सु० २. बहु मूल्य वस्त्र कांबळी, पोटला हो ! बांधी मुके भंडार;.... जोडीओ राखे पात्रातणी, परिग्रहधारी हो! दशवकालिक मोझार.सु. ३ भयो कपाटने पेटीओ, पडिलेहण हो ! कोण करे देख; पछी मळशे के नहीं मळे, मूर्छा घणी हो ! पत्रवणानो लेख सु. ४ गृहस्थीने परिग्रह तणी, होवे हो ! स्वल्प मर्याद; वस्त्र पात्र पुस्तक घणा, लावो लावो हो ! करी रह्या मुनिराज सु० ५ नाम लेवे पुस्तक तणो, ज्ञान नामे हो भरे मंडार; पुठीयां चंदरवा पाटी ठवणी, तृष्णा हो ! लागी अपरंपार सु. ६ सो हजारथी धावे नहीं धावे नहीं, हो ! पांच पचीस एक बे चार लाखना पुस्तक हो ! भरीया भंडार सु० ७ आवेन रस्ते चालतां, यतियो हो ! थया फजीत; सत्यविजय बधुं छोडीयुं, तो पण हो ! हवे आ चाली रीत, सु० ८ पोते आप वांचे नहीं, नहीं देवे हो ! वांचणकाज; कर्म जोगे चोरी होवे, रोवे बेठा हो ! जुवो काळने दाझ. सु. ९ अधिकी उपाधि राखतां, प्रायश्चित हो ! निशीथ मोझार; चौद उपकरण भाखीया, सूत्र हो ! प्रश्नव्याकरण सार. सु. १० अधिकी उपाधि राखतां, मजुरो हो ! जोइए बे चार; पारसल ने वी. पी. तणा क्यां लगी हो ! लखु समाचार. सु. ११ हुकम करे गृहस्थी उपरे, एने हो ! देजो जीमाय ( जमाडी ); आटलो रुपिया दो रोकडा दंड चोमासी हो! कह्यो निशीथ माय.सु०१२ होता . For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७) कपडा धोवे रंगे नहीं, आचारांगे हो ! पांचमे अध्ययन टीकाकार जिन कल्पीने, स्थिविरकल्पी हो ! कारणमां लीन. सु. १३ जीव उत्पत्ति कारणे, अथवा हो ? असूची जाण; फासुक पाणीथी धोवतां, अपवादे हो ! रहे जिन आण. सु. १४ । कारणथी पीळां को, कारण मटयु हो ! केम राखे एह ? . शेठ बिलाडी संबंधथी, गाडरीयां हो ! करे में में तेह. सु० १५ साबु लेवो कल्पे नहीं, नहीं कल्पे हो ! सोडा साजीखारे; शासनथी श्रद्धा ऊतरे, दुर्लभबोधी हो ! अनंत संसार. सु. ११ जीव अनंता निगोदमां, कुण राखे हो ! तेनी दरकार; आगळ साधु टाळता, संघट्टे हो ! नहीं लेता आहार. सु. १७ घसी घसी साबु दीये, काई जाणे हो ! जानमां जाये साथ, विषय वासना उपजे घटा मट्ठा हो ! अनुयोगमा वात. सु. १८ उपदेश देवे गृहस्थी बनी, घृत जेम हो ! वापरनो नीर! पोते धोबी घाट मांडता, केम पामे हो ! भवजल तीर, गृहस्थ- मोटे घर होये, तो साबु हो ! लावे सेर पांच ! .. मोटा साधु चोमासुं करे ! साबु हो ! लावे मण पांच. सु. १० राखे राखोडी मायने, निलण फुलण हो ! उपजे निगोद; गृहस्थीथी आगळ वध्या, पाटे बेठा हो ! करे प्रमोद. कदाचित कारण पडे, अपवादे हो ! सेवे सानीखार; संचय करी नित्य वापरे, जावे हो ! जन्मारो हार. सु. २२ ढुंढक वापरे मातरं, संवेगी हो ! पड्या साबु लार (पछवाडे ) ... आपसमां निंदा करे ! केनो केवो हो ! शुद्धाचार. . For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहार करे मुनिराजनी, साथे हो! घणां पातरां लोट; आन्या वीरना पोठीया, नहीं उंचके हो ! गृहस्थीने देवे पोठ. सु.२४ दिगंबरथी चर्चा करे, जीर्ण वस्त्र हो ! ते नग्न समान ! स्वल्प वस्त्र राखशं, ते बधुं हो ! पोथीनुं ज्ञान. सु. २५ मीणा कपडां मलमल तणां, रंग्या हो ! केसरीये रंग; ओढे तरुणी साधवी, जेनां दीसे हो ! उघाडां अंग. ___.सु. २६ मलाघरनी नारी होवे, राखे हो ! लोक्कोनी लाज मोक्ष कारण माथु मुंडीयु, सुख शीलीयां हो ! बगाडे कान. सु. २७ ओघनियुक्तिमा कडं, वस्त्र पात्रनु हो पूरुं प्रमाण; संघ परीक्षा जो लेवे, भला मुंडा हो ! करे पीछाण. सु. २८ सोमां पांच टका नहीं, मळे हो ! जिनाज्ञा धार; आडंबरी भेळा भल्या, आणाखंडे हो ! केम पामे पार. सु. २९ भाणा पाळवी दूर रही, थोडा हो ! जाणे आगम वात; उत्सूत्र बोले अज्ञानथी, तेथी हो ! लागे मिथ्यात्व.. सु. ३० जेवी वात छे वस्त्रनी तेवी हो ! पातरानी जाण; केटलुं लखू बापजी ! नहीं छार्नु हो ! तमने केवळ ज्ञान. सु. ३१ परमाणुं देवाडे पात्रां तणुं, मूल्य हो ! करावे आप; दंडा उतरावे तरपणी, ज्ञानीये हो ! कह्यो वन पाप. सु. ३२ जीरण वस्त्र पातरां नाखी हो ! नवां लेवे मोल; वज्र क्रिया पहेला अंगमा दंड कह्यो हो! निशीथ देखो बोल.सु.३३ एक जोडीने वापरे बीजी हो ! राखे भंडार; तीमी जोडी देवे रंगवा, पेला पेली हो ! कोण करे विचार. सु. ३४ For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९) हवे हो हाथ थाकी गयो, नहीं हो ! कोई लीलानो पार; मुनि मंडळ उद्धारजो, खोटो खरो हो ! तमारो परिवार. सु, ३५ ___ ढाल ११ मी-मुनिने वस्त्र तथा पात्र दोषित न लेवा अने निर्दोषित पण प्रमाणोपेत राखवा अने राखे ते उपर पण ममत्वभाव न राखवो अने संचय पण न करवो, केवल संयमयात्रा निभावका माटेज राखवा. . सावध निर्वद्य अधिकार दोहरा. सावध योग तजी करी, लीधो संयमभार; जाव जीव नहीं आचरे, वीर वचन अणगार. . . सावध भाषा बोले नहीं, नेहथी लागे पाप; अदेश उपदेश जाण्या विना, करवो नहिं आलाप. २ ढाळ १२ मी निर्वधक्रिया आचरे, करे हो ! निर्वद्य उपदेश; मुनि गणमांहे शोभता, नहीं लागे हो ! जेने पापनो लेश सु. १ गृहस्थ योग सावध कह्या, नही कल्पे हो ! आवो जाओ उठ; अहीं बेसो अमुको करो, सावध बोल्यो हो ! सत्यने कह्यो जुठ. For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) चीठी तार देई करी, बोलावे हो ! गृहस्थ राखे संग; पांचक्रिया आगम कही, होवे हो ! संयमनों भंग .. सु. ३ बंदोबस्त पगारनो, खाणुं पीए॒ हो ! करे मुनि सार; रोकडीयो रहे वाणीयो, देखादेखी हो ! बध्यो प्रचार सु. १ रचना करावे पहाडनी, उभा हो ! रहे पोते आप; . अमुको लंबो पहोळो करो अज्ञानी हो ! रहे सेवे बहु पाप. सु०५ बंधावे उपासरा करावे हो ! जीर्णोद्धार गृहस्थ जेम उभा रहे, परभवनो हो ! नहीं डर लगार सु. १ पौषधशाळा उपासरा, निशंक हो ! दीये आदेश; अहीं चोकी आलिउं करो! अहीं वांचशे हो! व्याख्यान हमेश.सु०७ अमुकी बारी मेडो करो, भंडारीयु हो ! करो पुस्तक काज; ओछा जीवन कारणे, आज्ञा मुकी हो ! नहीं आवे लाज सु. ८ अणु मात्र पृथ्वीकायमां, जळबिंदु ए हो ! कह्या जीव असख्य; त्रस थावर हणावतां, लज्जा छोडी हो ! हुवा निःशंक सु. ९ लीपे साधु कारणे; छवावे हो ! छापरां केइ छाण; आचारांगमा वरजीया, दंड कह्यो हो ! निशीथ पिछाण. सु० १० मारा गच्छनो उपासरो, नहीं उतरे हो ! बीजो एनी मांह; घर छोडी मठ बांधीया, सूयगडांगे हो ! कह्या गृहस्थ तेह. सु. ११ उपर लगावे पाटीउं, जेमा हो ! पोतानुं नाम; एक देखी बीजो करे, एम बगडयुं हो ! इण भरतनुं काम सु० १२ For Personal & Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१ ) स्वाध्याय ध्यान धर्यु खुंटीए, उभा भणावे हो ! पूजाना पाठ; सावध निर्विध नहीं गणे, आणा लोपी हो ! करी मनना ठाठ. चैत्यवासी पेहलां कोइ, नहीं भणाइ हो ! कोई पूजा साध; आगम पाठ दीसे नहीं, पासत्था ए हो ! मुकी मर्याद, सु० १३ साधु गावे रागथी, जेम जेम वागे हो ! मृदंग ताल; द्रव्य स्तव जेणे सेवीयो, द्रव्यलींगी हो ! भावे कह्या बाल सु० १५ सु० १४ अमुको करो अमुको करो, लावो मुको हो ! वळी बोले एम चैत्यवासी बनी रह्या, स्वाहा ! हो ! साधु बोले केम. सु० १६ मुख आगळ राखी मुहपत्ति, यत्ना पूर्वक हो ! बोले अणगार; उधाडे मोढे बोलतां, सावद्य लागे हो ! भगवती मोझार. सु० १ मोढुं बांधी ढुंढके, कुलिंगी हो ! जाणे आयाढक; कमरमा राखे पीलीया, उधाडे मोढे हो ! बोले निशंक सु० १८ प्रतिष्ठा अविधि करे, अंजन शलाका हो ! करे आरंभ घोर; कल्पित ग्रंथ बनावीने, साहु थोडा हो ! मळ्या बहु चोर सु० १९ छबींओ चीतरात्रे आपनी, फोटा पडावे हो ! देवे आदेश; लूटे प्राण छकायना, गांडा गृहस्थी हो ! नहीं समजे लेश. सु० २० आगळ कागळ मोकले, अमुक दिने हो ! अमुक घडीवार; अमुक रस्ते आवशुं, भेगो करजो हो ! वरघोडो तैयार सु० २.१ कदाचित प्रमादथी, कारण पामी हो ! नहीं आवे लोक; For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) गाम बहार थै नीकळे ( अथवा ) बहार उतरे हो ! करे घणो शोक. सु० २२ गच्छ श्रावक बोलावीने, कोप करी हो ! बोले ऋषिराय; गच्छर्नु सारूं लागे नहीं, मडदां जेम हो ! नहीं आवे मुनिराय. सु० २३ शासननी उन्नति हुए, उलटो हो ! देवे उपदेश; क्रोध करे दंडे रमे (लडे), वर घोडामा हो! धुळ पडे विशेष सु०२४ देशकाळ देखे नही, आडंबर हो ! करे देखादेख; गुणहीना गर्वे चडे, मोटा मोटा हो ! लखावे लेख. सु० २५ चरित्र छपावे आपणां, जेमा हो ! नहीं (लखे ) अवगुण एक; सोमो टको साचो होवे, पोलमां पोल हो ! छपे अनेक. सु० २६ कदाचित आ भारतमां, आडंबरी हो ! धुतीने खाय; आपथी वात छानी नहीं, परमाधामी हो ! देशे समजाय. (जावी)सु. २७ उत्तराध्ययन पांत्रीशमां, नहीं वांछे हो पूजा सत्कारः । आदेश देवे कइ विधि, आचारांग हो ! नहीं साधु आचार. सु०२८ दीवो रखावे उपाशरे, लेवे हो गृहस्थीनुं नाम, उज्जेइमां फरता फरे, मायाचारी हो ! तुं जाणे स्वाम. सु० २९ घडीयाळ राखे टाइमनी, चावी देवे हो ! ते पोते आप: परिग्रहने आरंभ करे, नहीं डरे हो ! कोण गणे पाप. सु. ३० चप्पु राखे बहु मुला, सूई कातर हो ! केइ ओजार; कर्म विटंबणा शुं लखं, नोटो गिन्नीए हो ! सेवे अत्याचार. सु० ३१ For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३ ) जेवा साधु तेवी साधवी, वदे हो ! वळी विश्वास दोय; शामाटे घर छोडीउँ, आश्चर्य होवे हो ! ते बधुं जोय. सु० ३२ साधु समाजनी आ दशा, साध्वी ओनी हो शुं लखं नाथ; गुप्त गोटाळा छे घणा, बहुलो हो ! अज्ञानी साथ. सु० ३३ खोटी आचरणा देखीने, केइ जीव हो ! दुर्लभ बोधि थाय; तेनुं कारण साधु साधवी, तेथी हो ! समकित लोपाय. सु० ३४ श्रावक M साधु उपरे श्रद्धा, भक्ति हो रहे तो धर्म स्नेह; हालनी 'आचरणा' देखीने, केवी श्रद्धा हो ! तुं जाणे तेह. सु०३९ वात छानी नहीं आपथी, मारुं लखवं हो ! गांडानुं गीत; उद्धार करो मारा बापजी, बनी रहे हो पुराणी प्रीत. सु० ३६ ढाळ १२ मी - मुनि हमेशां निर्वद्य भाषा बोले अने उपदेश तथा प्रवृत्ति पण निर्वद्य राखे, सावद्य बोलवाथी के उपदेश आपवाथी वीतरागनी आज्ञानो भंग थाय छे माटे आज्ञानो ख्याल हमेशां राखवो तथा पोताना नवदीक्षितोने पण तेवाज आचरणमां प्रेरणा करवी. विहार अधिकार. दुहा. प्रतिबंध मुनिने नहीं, करे नव कल्पी विहार; विचरे देशो देशमां, तरे ते तारण हार १ For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) ढाळ १३ मी. देशी पूर्वनी. शीत उष्ण एक मातनो, चौमासे, हो ! रहे मास चार; आचारांग बीना क्षेत्रमां, बमणुं तमणुं हो ! रहे काळ बहार. सु० १ भोळा ग्रहस्थ समजे नहीं, अधिकी विनती हो ! करे करजोड; बने आज्ञा बहार ते, रहे राखे हो ! जिन आज्ञा तोड. सु० २ आचारांगा वरजीयुं, बृहत् कल्प हो ! नहीं कल्पे एम; दोष कह्यो निशीथमा, जबरदस्ती हो ! कल्प उलंघे केम. सु. ३. नाव बेसी नदी उतरे, नहीं रहे हो ! मुनि एकज ठाम; अधिक रहे ममता वधे, मारो हो ! उपाश्रय गाम. सु० ४ ।। मारा श्रावक मारी श्राविका, मारूं हो ! पाठशाळे नाम; मारो गच्छ क्रिया करो, एम बगडयु हो ! साधु काम. मु० ५ . पीयरमां नारी रहे, जमाइ हो ! करे सासरे वास; एक स्थाने साधु रहे, होवे हो ! बहु मान नाश. सु. ६ भारंडपक्षी उपमा, विचरे हो मुनि देश विदेश; पळे चारित्र निर्मळ, श्रावकने हो ! नवो मळे उपदेश. सु. ७ अंगोपांग हीणां थतां अथवा हो ! रोग होवे तन; स्थिविर भूमि पामीया, एक स्थाने हो ! करे स्थिरमन. सु. ८ कारण ल्हावो उपधानने, अठाईओच्छवे हो ! पूनामा रंग. योग करवू शिष्यने, बीजे स्थाने हो! नहीं पंडित संग. सु. ९ For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५ ) धर्म आज्ञा वीतरागनी, आज्ञा लोपी हो करे गणी धर्म; आचारांग पहेला अंगमां, नहीं जाण्यो हो ! तेणे धर्मनो मर्म. सु०१० मोटी ममता वाघता, स्त्रीओ साथे हो ! करे अधिक स्नेहः संचय परिचय राखे घणो, संयम खोवे हो ! नहीं तेमां संदेह. रस वृद्धि सुखशीलीआ, मठवासी हो ! केम छोडे स्थान; रंडापो मोटा घरतणो शुंलखं हो ! जाणो भगवान ज्ञान भंडार नामथी, माहे राखे हो! पात्रांनी जोड: गृहस्थीथी आगळ चडे, ममता लागी हो ! नहीं शके छोड. सु० १३ भ्रष्ट कह्या आचारथी दशवैकालिक हो ! छठे अध्ययन; समवायांग सळो को दंड ते तो हो न देखे निशीथने नयन. सु० १४ सु. ११ चोमासानी विनति, तुर्त हो ! बोले स्वामी एम; आगेवान कहो कोण छे, बंदोबस्त हो ! खरचनो केम. अमुक गामना श्रावको, कही गया हो ! बे चार हजार; कांक अधिकुं तमे करो, पीली पलटणना हो ! आवा समाचार. सु० १६ बे चार; सु० १२ पदवी देवा पन्यासनी, कराववा हो साधुने योग; लहीया पंडित चार छे, वे ऋण हो ! मजुरीया लोक. कोईक पुस्तक मंगाववा लखाववा हो ! ईष्टम पीष्टम आशरो, खरच हो ! थशे आठ दश हजार. सु० १८ सूत्र For Personal & Private Use Only सु० १९ सु० १७ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) चोमासु करावे भावथी, बीजीवार हो ! नहीं लेवे नाम: श्रद्धा उतारे शासन थकी, थोडा मळे हो! चौमासाना गाम. सु० १९ चोमासानी पेदाशने, गृहस्थी पासे हो ! राखे ज्ञानने नाम अथवा राखे बेंकमां, व्याने हो ! फरे कई दाम .. सु. १. महिला मंडण करे वाणीआ, बेंको हो ! देवालुं दे फुका आर्त ध्यान मटे नहीं, छानो रोवे हो ! पाडे घणी पोक. सु० २१ छ मास शोक जाये नहीं, आयु बांधे हो ! जे तेणे काळ सीधा जाये नारकी, परमा धामी हो ! करे सार संभाळ सु० २२ यति परिग्रह धारी थया, त्यागी जाणे हो ! संवेगीनो साथ, लाय लागी जळमायने कोण जोवे हो ! मारा कृपानाथ. सु० २३ सो पचासने पोणोसो, मळे जीहां हो ! चाहने दूध, देशो देश विचरे तहीं, केम रहे हो ! तेनो संयम शुद्ध. सु० २४ गामडामां करे विनती, उपकार होशे हो विराजो नाथ; जवू पालीताणे जातरा भाई अहीं हो ! आवे अमारे शुं हाथ. सु० २९ गायन मंडळी बोलावरों ओच्छव करशु हो ! जागीशुं रात; खानपान करशुं जोईतुं दूध चाह हो ! मळशे प्रमात सु० २६ केइ गाम एवां पडयां नहीं देख्या हो ! जीवनमा साध; . .. आशातना होवे देरांतणी, केम करे हो ! साधु प्रमाद सु० २७ नरकना दुःख सांभळी, केवां हो ! कंपे रोम प्रदेश; एक देश आदर नहीं, कमर बांधी हो ! विचरे देश विदेश सु० २८ For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) समाचार तो छ घणा, लखतां हो ! प्रभु थाके हाथ;.. जीह्वा थाके बोलता, थोडं लख्यु हो घणुं जाणो नाथ.: सु. २९ ___ ढाळ १३ मी-मुनिने अप्रतिबन्ध देशो देशमा विहार करी भव्यात्माओनो उद्धार करवो परंतु एक देशमा के वारंवार एक नगरमां जावू अने ममत्व भाव वधारवो ते चारित्रने गत तुल्य थई पडे छे माटे द्रव्ये अने भावे लघुभूत विहार करवो... ज्ञानाभ्यास अधिकार. दुहा, वीतराग गुरु जगतना, जगत लगे तस पाय; आचारज: उपाध्यायनी, जेवा होय मुनिराय. जैन सिवाय गुरु जगतना, मिथ्या पाखंड प्रवीण अति प्रसंग करतां थकां, समकित होय मलीन. .. ढाळ १४ मी. . .. देशी पूर्वनी. विनय मूल धर्म कह्यो, ज्ञाता हो ! पांचमे अध्ययन; गुरुगमथी भणतां लहे, आगमनु हो ! में सम्यग् ज्ञान... सु. १ स्थानांग ठाणे पांचमे, पांच ठाणे हो! वांचे सिद्धांत; आणा आराधे ते मुनि, अनुक्रमे हो! करे भवनो अंत. सु० २ For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) योग्यने न दे वाचना, अयोग्यने हो ! देवे सूत्र ज्ञान गुरुजी भागी होवे दंडना, जुओ हो ! निशीथ दे ध्यान.. सु. ३ साध्वीओ भणे ब्राह्मण कने, क्यां रही हो ! जैनशासन रीत; बृहत्कल्प चिलमीली कहीं, अन्यतीर्थि हो केवी प्रतीत. सु. ४ गणी उपाध्याय पन्यासनी, बेठा हो ! कचेरी मांड; ... अन्यतीर्थी पासे भणे, निशीथ हो ! कह्यो चौमासी दंड. सु. ५ पोते प्रमादी थै रह्या, केम करे हो ! शिष्यनी सार; शिष्य अविनीत बनी गया, ब्राह्मण पासे हो ! नहीं विनय विचार. सु. ६ ब्राह्मण पासे भणतां थकां, लघुता हो ! शासननी थाय; द्रव्य खरचाये ज्ञानरों, गुरुभक्ति हो ! दीधी उठाय. एकथी बीजा गच्छमां, ज्ञान कारण हो ! जावे मुनिराय; बृहत्कल्प व्यवहारमा, अन्य तीर्थी हो ! गुरु नहीं कराय. सु० ८ देशकाळ देखीने, अपवादे हो ! करेलु काम; ते हमेशां करवू नहीं, पंडित राखी हो ! व्यर्थ करे नाम. सु. ९ गुरुगमथी भणतां थकां, जाणे हो! आगमनो रहस्य; गुण घणां लखु केटला, शासन शोमा हो ! वधे विशेष. सु. १० एक साधु भण्यो होये, भणावे हो ! ते पांच पचीस; फ्चीस भणावे पांचशो, पांचसो हो ! होवे जग ईश. सु. ११ पण पुरुषार्थ कोण करे, पैसा देवा हो ! श्रावक मजबूत; पटेलाई पड्या करे, एम बगड्यां हा ! साधुना सूत. सु. १२ For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४९.) जैन शैली जाणे नहीं, नहीं जाणे हो! द्रव्यक्षेत्र काळ; बीजाने केम तारशे, पोते हो ! बनी बेठा बाल. सु० १३ क्रिया करे योगनी, पदवी हो ! मळी जाये राजा .. पछी आगम कोण भणे, अज्ञाने हो ! एम रही समाज.. सु० १४. मोटा मोटा पन्यासजी, वह्या हो ! भगवती योग; अर्थ नहीं जाणे आवश्यके, थावे हो ! केम. पदवी योग्य. सु० १५ पाना लीधा हाथमा, करावे हो ! मोटा उपधान आगे सुणजो नाथनी, लखु हो ! साधुनां व्याख्यान. सु० १६ ढाळ. १४ मी-मुनिए आपणा शिष्यने विनय भक्तिमा प्रवृत्ति कराववी जैनागमनो सारी पेठे ज्ञानाभ्यास कराववो परन्तु पोते प्रमादी थई अन्यतीर्थी पासे भणावी स्वच्छंदी नहि बनाववो. व्याख्यान अधिकार. . दुहा. गीतार्थ जे मुनिवरा, आगममा प्रवीण स्वाध्यायमां नित्य रमे, जिम जळ मांहे मीन. परषदा आवे पासमां, देवे मधुर उपदेशः घर घरमां फरवू नहीं, जैन सिद्धांतनु रहस्य. .. २ For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) ( ढाल १५ मी.) देशी पूर्वनी. नय निक्षेप प्रमाणथी, स्याद्वाद हो ! जाणे सप्त भंग; उत्सर्ग अपवादने ओळखे, चित्ते हो ! वैराग्यनो रंग. सु० १ वचन अपेक्षा ज्ञाता हुए, दश बोल हो ! सोळ बोलनो जाण; . उप्तातिकी बुद्धि होये, पाटे बेसी हो ! वांचे व्याख्यान. सु. २ गुरुकुळ वासो सेवे नहीं, नहीं लीधुं हो ! गुरुगमथी ज्ञान; एकान्त विद्या ब्राह्मणी, वध्यो हो ! बहुलो अज्ञान. सु. ३ किया प्रतिक्रमणुं शुद्ध नहीं, नहीं हो ! नव तत्वनो जाण; स्याद्वाद नहीं ओळखे, एवा गुरु हो ! केम वांचे व्याख्यान. सु. ४ चे चार चरित्रने, कल्प वांचे हो ! ब्राह्मणनी पास; गुरुनी परवा कोण करे, सुंठ गांठीये हो ! बने गांधी खास. सु. ५ निशीथ आचारांग मण्या विना, नहीं कल्पे हो ! वीचरे आगेवान; हमणां पदवीधरनी वारता, जाणे हो ! महारो भगवान. सु. १ मोटा मोटा पदवीधरा, तेनो हो ! सुणीए व्याख्यान उपदेश उजमणा तणा, अमुको अमुको हो ! साधुने दान. सु० ७ 'पुस्तक लखावो साधुना; उपकरण हो ! देनो अनेक; ज्ञानमंडारमा आपो रुपिया, लावो लावो हो ! करे विशेष. सु० ८ तप अठाइ पारणे, गुरु तेडी हो ! केइ देवे दान 'फळ बतावे पर्वत जेवो, तृष्णा हो ! लागी जुओ अज्ञान. सु. ९ For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्राह्मण वांचे पुराणने, सर्व छोडो हो ! दो अमने दान; . सीधा जावू वैकुंठमां, एम बगडयु हो ! साधुनुं मान. सु० १० मुनि तेड्या जावे नहीं, नहीं कल्पे हो! कीधो मुनिने कान; . मूल्य देइ न लखावq, एम भाख्यु हो ! श्रीजिनराज. सु. ११ . आचारांग वांचे नहीं, दशवकालिक हो ! वांचे केम; . प्रश्न व्याकरण वांचे नहीं, छेद सूत्रनो हो ! न लेवे नाम. सु. १२ कदी कोई वांचतो, जाणे हो! साधुनो आचार; उत्सर्ग अपवाद लगावीने, वधारे हो ! अनंत संसार. सु. १३ । गुरु जेवा चेला मळ्या, कोण काढे हो ! आ वातनो तोल; साधु आचार बतावतां, खली जावे हो ! पोतानी पोल. सु. १४ महिला परिचय अति घणो, सधवा विधवा हो ! मळे मस्तान; सेवा करो स्वामी तणी, स्वामी बेठा हो ! जाणे गोपीमां कान - (कृष्ण ) सु. १५ साधुना स्थाने साधवी, वरजी हो ! बृहत् कल्पमां नाथ ! व्याख्यान अथवा वांचना, आवे हो ! संघ चउविध साथ. सु. १६ अगीतार्थ पासत्था होवे, केम वांचे हो ! साधुनो आचार; आण रही नहीं कोइनी, अंधोअंध हो ! मचीयो अंधकार. सु० १७ साधु जाणे श्रावक जाणशे, तो करशे हो ! वही खेंचाताण; श्रावक पण ढीला थया, अंधा उंदर हो ! थोथां धान. सु. १८ हानि होवे छे ज्ञाननी, श्रावक हो ! नहीं पूछे सार; आचारः For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५२ ) कान तणा रसीया थया, अं करवा हो ! सुणे साधु आचार सु० १९ मोटा मोटां भाषण करे, कोरा हो ! पोते रहेवे आप पोथीनां वेंगण थयां, केम पडे हो ! बीजापर छाप. पाटे बेसी साघवी, पुरुष आगळ हो ! वांचे व्याख्यान; दुराचार वध्यो घणो, कलियुगना हो ! ए छे अनाण. शृंगार हास्यादि घणा, व्याख्यान हो ! आवे नवनव रंग; स्वपर मति बहु जन मले, काम पडयां हो ! होवे शीलनो भंग... सु० २१ सु० २.२ जुओ आज्ञा वीतरागनी, दीर्घ दृष्टि हो ! देइने ध्यान; नाक अणी एडी पग तणी, नहीं दीसे हो ! गुणवा व्याख्यान सु० २० सु० २३ सु० २५ आचारांगमां साध्वी, व्याख्यान सुणवा हो ! जावे त्रण संग; चार हाथ पना तणी, चादर थी हो ! ढांके अंग उपांग, सु० २४ दशांश्रुत स्कंधमां ओपमा, नारीनो हो ! जोवो अधिकार; घनी झुपडी बाळीने, बीजानो हो ! केम ठंड निवार. निरयावलीका ज्ञातासूत्रमां, बाईओने हों ! दीधो उपदेश; एव विधिए दे साधवी, जाणी हो ! सिद्धांतनुं रहस्य. श्रावक पण समजे नहीं, जोई हो ! प्रत्यक्ष दृष्टांत; फूटी नाव अंधो नाविक, केम पामे हो ! भवजलनो अंत. सु० २७ उपदेश देवे द्रव्यनो, फंड करे हो ! टीप गामोगाम; संस्था स्थापे नवी नवी, जेमां हो ! पोतानुं नाम. सु० २६. For Personal & Private Use Only सु० २८ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) एक संस्था सींचे नहीं, तोडे हो ! करे आपणु काम; ऋषम कुट चक्री देखीने, भुंसाडी हो ! करे आपनुं नाम. सु. २९ कशव प्रतिकेशवा, कलियुगी हो ! जागीआ सेतान; एक बीजानुं खंडन करे, नोटीसो हो ! देवे मस्तान. सु. ३० एकने शिष्यनी लालसा, बीजाने हो ! हृदयमां मान; स्वार्थथी शुद्ध रहे नहीं, किम मळे हो ! समानने ज्ञान. सु० ३१. समय नहीं झघडा तणो, आपसमां हो ! रखो धर्म स्नेहा । एक बीजाने मदद करो, मार्ग हो ! सुधारानो एह. सु० ३२ शासन उपदेशकों उपरे, लाभ हानिना हो ! थाशे जोखमदार; उठो संभाळो समाजने, रात गई हो ! उग्यो दिनकार. सु ०३३ __ढाळ १५ मी—मुनि गुरुकुलवासो सेवन करी स्वसमय परसमयना सारी पेठे जाणकार थाय, तर्क वितर्क अने समाधान करवाने सारो अभ्यास करे अने पोते अन्तःकरणथी वैराग्य दृष्टि, शुद्धाचरण राखे एवा मुनिए व्याख्यान आपी भव्यात्माओर्नु अवश्य कल्याण करवू जोइए परन्तु नेणे जैनसिद्धान्तो न वांच्यां होय अने गुरुगमथी ज्ञान न मेळव्युं होय अने अंदरमा स्वार्थनी लालसा बनी होय तो पछी तेवा व्याख्यान वांची दुनीयानो रॉ उद्धार करनार ? तेओने तो मौन धारण करी गुरुसेवामां-गुरु आज्ञामांज पोतानुं संयम पाळवू जोइए. For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) तप अधिकार. + .. दोहा. आठमुं लक्षण साधुनु, तप करी शोषे तन; पूजा सत्कार वांछे नहीं, निर्मळ राखे मन. बागवाडी वनमां रहे, करे समाधि ध्यान; लब्धि अनेके उपने, निर्मळ केवळ ज्ञान. (ढाल १६ मी.) देशी पूर्ववत्. जेम जेम तप मुनि आचरे, तेम तेम हो ! वधे अधिकुं तेज; क्षात्यादिक गुण गण वधे, निकाचित हो ! कर्म तोडे सहेन. सु. १ रंगी अभ्यंतर आतमा, जाणो हो ! नेने मुक्ति मोझार; बाल क्रीडा आ भरतनी, एक पक्षी हो ! लखुं समाचार. सु० २ मास खमण मुनिवर करे, त्रीश गामे हो ! मेले समाचार; . अमुक दिने होसे पारगुं, छपावे हो ! पत्रोंमें जाहेर. सु० । टेक्ष पडे गृहस्थी उपरे, मेळा थाए हो ! घणां गामना लोका . महोत्सव वरघोडा काढता, करे हो ! आडंबर फोक (व्यर्थ) सु०४ घर घरमां तैयारी थती, भात पाणीनो ! हो स्वामी देनो लाभ; भूखे मरी भेगी करी, कमाई हो ! उड जाये आम (आकाश.)सु०५ कदाचित गृहस्थ नहीं करे, कोप करी हो ! तपसी बोले एम; For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) मुं अमने जाणो नहीं, भव वधे हो ! तप खोवे तेम. सु०६ तपसी नाम धरावीने, पीए हो ! अध वलोइ छास; सुंठादिक केई वापरे, दूध तणो हो! मीठं धोवण खास. सु. ७ लांबा लांबा कागळ लखे, ढुंढकनी हो ! कीधा मास चार; गुप्त वात खोले नहीं, अभिमानी हो ! सेवे माया चार. सु. ८ धर्मीन नाम धरावीने, लेवे हो ! तपस्यानुं नाम; . काम करे अधर्मना, शं लखं हो ! जाणो आतमराम. सु. ९ कोड वर्ष सुधी तप करे, करे हो! कोई क्रोध लगार; मान मायाने लोमथी, वधारे हो ! उलटो संसार. समवायांग बत्रीशमां, वांची हो ! करे आतम खप; अज्ञात कुलनी गोचरी, अनाण्यो हो.! मुनि करे तप. सु० ११ ढाळ १६ मी-रागद्वेषनुं शान्तपणुं अने मात्र कर्मक्षय निमित्ते घणुं करी गुप्तपणेन तप करवं जोईए, किन्तु मानपूजासत्कार माटे न करे तेम तप करी क्रोध पण न करवो जोईए. स्त्री परिचय निषेध अधिकार. . . दोहरा. नारी होय चित्रामनी, नहीं रहे मुनिराय; दशकालिक आठमें, उंदर बीलाडी न्याय. For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) ढाल १७ मी. देशी पूर्ववत् । सर्व व्रतमां दुष्कर कां, उत्तराध्ययना हो! कही नव वाड; दशमो कोट गणो जापतो, मुनि रहे हो ! वनवाडी के पहाड, सु०१. श्राविका तो दूर रही, साध्वीनो हो ! केटलो बंदोबस्त साधु स्थाने साधवी, नहीं आवे हो ! निशीथनो मत. सु. अठाई ओछव उपाशरे, ज्यां रहे हो ! श्रीवीरना साध; मृदंग ताल वीणा तणा, हारमोनीयम वाजा हो! नवा नवा साद.सु०३ गायन मंडळी बोलावीने, नचावे हो ! करी नारीनां रुप; करे विषय उदीरणा, तुं जाणे हो ! मारा त्रिभुवन भूप. सु० ४ गरबो गावे रातमां, ताली देवे हो ! नारी मळी साय; भाक्त नामे लोक भोळवा, इंद्रिय पोषे हो ! तुं जाणे नाथ. सु० ५ राते दीवो कल्पे नहीं; जिन मंदिरे हो ! कह्यो वीतराग; धर्म नाम अधर्म करे, शासने हो ! लगान्यो दाग. गौतम स्वामी आगळे, नाटक कर्यो हो ! सूर्याभदेव; वणिक समजावे कुहेतुथी, पासत्थाए हो ! पाडी खोटी टेव. सु. ७ स्थुलिभद्र वेश्या घरे, चित्र शाले हो ! कीg चोमास; तो केम उतरो उपाशरे, वीरे वरज्यो हो ! वेश्यानो वास. सु० ८ क्यां गौतम क्यां गीदडा(शियाळ), बाळ हृदय हो! शं जाणे अज्ञान, क्यां नवगजो सिंह केसरी, क्या खर हो ! कोण करे पीछाण, सु. ९ For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) क्रिया करावे केई मुनि, आलोचन हो । देवे केई साध; प्रतिक्रमण करावतां, नारी साथे हो ! मेली मर्याद. सु. १० नारीने साधु कागळ लखे, वधे परिचय हो ! तुं जाणे नाथ; . अशुद्ध व्यवहार लोकमां, विहारमा हो ! रहे बाईओ साथ. सु० ११ बांधी दृष्टिरागमां, करे हो ! चोमासां साथ; माल पाणी मुनिने मळे, आधाकर्मी हो ! तुं जाणे नाथ. सु. १२ साधु गौतम सारखा, नारी हो ! चंदनबाळा जो होय; तो पण परिचय खोटो हुवे, प्रत्यक्ष दशा हो ! यतिओनी जोय.सु०१३ अग्नि पासे घृत मुकतां, लींबु नामे हो ! व्यापे मुखे नीर; सूयगडांग चोथे कयो, नारी नागण हो ! मुके कामना तीर.सु० १४ नारी संग निवारसे, आतम हो ! इंद्रिय करे दम; नारदनी पेरे पामशे, रस हो ! आतम उपशम. सु. १५ ढाळ १७ मी-साध्वी के श्राविका गमे ते होय परन्तु ब्रह्मचारी पुरुषोने नारी साथे बिलकुल परिचय नहिन करवो. एकलविहार अधिकार. दोहा. कळिकाळमां एकलो, नहीं विचरे अणगार; गुरुकुळ वासो सेवतां, तुरत तरे संसार. १ For Personal & Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) (ढाल १८ मी.) देशी पूर्व प्रमाणे. निशीथ आचारांग मण्या नहीं, नहीं भण्या हो ! ते जैन सिद्धात; गुरु कुळवास छोडीने, अभिमानी हो ! विचरे एकांत. सु० १ ढाळ चोपाइ कथा कहाणीयो, रीझावे हो ! अज्ञानी लोक; मन मानी मोझो करे, अनाचारी हो ! सेवे केइ दोष. सु० २ स्वच्छंदे अंकुश विना, कोण रोके हो ! कहो केनी काण; रेल विहारी मुनि केइ, मला मुंडा हो ! कोण करे पीछाण. सु. ३ श्रावक पण भोळा घणा, नेठे मळ्या हो ! माने गुरुराज; बंने आज्ञा बारणे, जाणे दीधो हो ! चोरोने सहान, सु० ४ पासत्था कुशीलीया, प्रशंसता हो ! चोमासी दंड; स्वच्छंदाना गुण कहे, निशीथे हो। कह्या गुरु ( भारी ) दंड.सु०५ अगीतार्थने एकलो, नहीं कल्पे हो ! बृहत्कल्पनो पाठ; कहेवं किशु एकनु, नहीं कल्पे हो ! जो भेला रहे साठ. सु०६ केइ.ध्यानी मुनि भणे, केइ हो ! तपस्या करे पूर; कंठ कळा गायन करे, आज्ञा विना हो ! शासन रहे दूर. सु० ७ ठाणांगठाणे आठमे, आठ गुण हो ! होवे जेने साथ; सिंह जेम विचरे एकलो, आज्ञा दीधी हो ! जेने जगनाथ. सु० ८ उत्तराध्ययने ओगणतीसमें, गच्छ छोडे हो ! जो होवे वीर; तीजे ठाणे भावे भावना, क्यारे विचरूं हो! एकाकी घरी धीर.सु०९ For Personal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५९ ) आप थकी अधिका गुण होवे, अथवा हो ! होवे समतुल; उत्तराध्ययन पांत्रीशमें, शिष्य करे हो ! जोवे जातिकुल, सु०१० कदाचित एवो नहीं मळे, पाप टाळी हो ! विचरे मुनि एक; गीतार्थने आज्ञा दीघी, नहीं छोडे हो ! मुनि धर्मनी टेक. सु० ११ ढाळ १८ मी - आ काळमां एकलो विहार न करवो, तेमां पण अगीतार्थने तो बिलकुल नज करवो गुरुकुलवासमां के पछी गुरुनी आज्ञा होय त्यांज रहेवुं जोइए. गच्छ अधिकार. दोहरा. गच्छ नायक गणधर हुए, संघ वहे तस आण; चाहे एक चाहे घणा, सहुनुं करे प्रमाण. १ भगवती शतक प्रथममां, तीजा उद्देश मोझार; तेरा अंतर देख लो, वचनापेक्षा विचार. २ ( ढाल १९ मी ). देशी उपरनी सुविहित आचारज हुआ, विचर्या हो ! केइ देशोदेश; झंडा फरकान्या जैनना, शासन कार्य हो ! कीधा विशेष, सु० १ For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) मोटा मोटा आचारन हुआ, नहीं मेट्या हो ! कोईने गच्छ खेद; वीर वचन कोण ठेलशे, चालणी हो ! हो से धर्मना भेद. · सु० २ नायक नहीं हमणां भरतमां, स्वच्छंदे हो ! नहीं चाले काम; शासन मर्यादा उंची धरी, आप आपनो हो ! वधारे नाम. सु. ३ क्रिया तणा झघडा करे, चेलंजे हो ! देवे नोटीस मारो सरखो पंडित नहीं, मनमां हो ! घणी रागने रीस. सु० ४. पांच छ कल्याणक तणा, ईरियावही हो ! पर्युषण काळ; श्रद्धा संयम शोधे नहीं, हस्ती नीकळे हो ! अटके पूंछ बाल. सु० ५ ओघामां वळी गांठो तणा, पातरा हो ! काळांने लाल व्याख्यान मांहे मुहुपत्ति तणा, फोगट झघडा हो ! नहीं . तेमां माल. सु. ६ एक बीजाने जठो कहे, मांहो माहे हो ! करे लंटम लूट; हठ कदाग्रही ए जीवडा, उत्तराध्ययने हो ! कही पोली मूठ. सु०७ आतम कल्याण भूली गया, शासन सेवा हो ! गया संयम भूल; माथाफूट खाली करे, शासन- हो ! उखेडे मूल. सु० ८ एक गच्छनो श्रावक होवे, रहे हो ! बीजा गच्छमां जाय; छापा छोपे झघडा करे, लाखो श्रावक हो ! अन्यमति थाय. सु. ९ तेनी परवा कोईने नथी, ढोली छोकरा हो ! जेम जाणो न्याय; साचा पंडित त्यारे होवे, नवा हो ! केई नैन बनाय. सु. १० आप अहमींद्र थै रह्या, बीजाने हो ! गणे तृण समान; मम लजीया कह्या नाथजी, मदे छक्या हो! पड्या अज्ञान. सु०११ For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गच्छना झघडा छे घणा, केटला लख हो ! तु जाणे ताँत बुद्धि सुधारो नाथजी, सो वातोनी हो ! एक मोटी वात. सु० १२ ढाळ १९ मी - आ वखतमां केवली के कोई अतिशय ज्ञानी नथी के प्रत्यक्ष सत्यासत्यनो निर्णय थई शके आधार तो आगमोनो छे ते बघा गच्छवाळा आगमो माने छे पछी पोतपोतानी अनुकूळताना पाठ आगळ करी झगडां करे ते ठीक नथी. मूळ तत्त्रबधानो एकज छे माटे पोताने गमे ते गुरुनी पासे धर्मकार्य साधन करे परन्तु नजीवी बाबतमां धर्मने नाम कर्मबन्ध करी अमूल्य मनुष्य जन्म हारी जावानुं नथी माटे शान्त चित्तथी धर्मकार्य साधन करो. जे झगडानी बाबत छे ते पछी आगला भवमां सीमंधर स्वामीने पुछी निर्णय करो. ज्योतिष निमित्त अधिकार. दोहरा. आगम आणा सिर वहे, माखे नहीं निमित; तप संयममां नित्य रमे, सरल स्वभावी शांत, भाषा समिति राखवा, राखवा संयम शोभ ( शोभा ) निमित्त न भाखे मुनिवरा, जिन शासनना थोभ. For Personal & Private Use Only २ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६२ ) ( ढाळ २० मी. ) देशी पूर्वनी. -मानपूजाने कारणे, वांछे हो ! आदर सत्कार; पुद्गलानंदी जीवडा, खाली खोवे हो ! नरनो अवतार. सु० १ यंत्र मंत्र तंत्र करे, भाखे निमित्त हो ! करे भूति कर्म; कामण टुमण दोरा करे, नहीं जाण्यो हो ! ते धर्मनो मर्म, सु० २ झाडा झपटा करे घणा, मादलीयां हो ! भरे मजर; अंक लीलाम बतावता, तेजी मंदी हो ! केई साधे सुर. सु० ३ वासक्षेप केइ करे, घरे हो ! केइ माथे हाथ; केइ मूहुर्त्त बतावता, तुं जाणे हो ! मारा कृपानाथ. सु० ४ पुण्य विना सिद्धि नहीं, फोकट हो ! खोवे प्रतीत; उत्तम तो झळके नहीं, जाणो हो ! ए नीचनी रीत. सु० ५ भ्रष्ट का आचारथी, दंड कह्यो हो ! निशीथ मोझार; विरोधी आज्ञा तणा, भगवतीमां हो ! जुओ अधिकार. सु० ६ सो वारसाचं पडे, एक वार हो ! कदी पडे जूठ; प्रतीति रहे नहीं जैननी, लोभी वणिक हो ! संयम लेवे लूट. सु० ७ आगम विहारी कारणे, सेवे हो ! कोइ अपवाद; ओ लेवे तेहनुं, नहीं शक्ति हो ! जुठो हठवाद, सु० ८ कष्ट के रोग आवे थकां धन कारण हो ! वांछे कोई मान; शांति स्नात्र भणावतां, ओळी आंबिल हो ! सिद्धचक्र ध्यान सु०९ · For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) भलु होवे साधु सिद्ध थयो, नहींतर हो ! उठे प्रतीतः । तेथी श्रद्धा शिथील थई, हांसी हो ! करे लोकनी रीत. सु० १० पूर्व पाप वाणिये कीं, उदय आवे हो ! पहोंचे मुनि पास; माला मंत्र बतावी दो, जेम मळे हो ! धननी मोटी रास. सु० ११ झघडो जीतुं राज्यमां; पुत्र हो ! होवे एक बेजः पदवी देवरावं आपने, जगमां हो ! जस मोटो छेन. सु. १२ गृहस्थी धनना लोभीया, साधुने हो ! पदवीनू जाण; बने आणा उंची धरी, ए छे हो ! कलियुगना ए घाण. सु. १३ ___ ढाळ २० मी-छदमस्थ मुनियोने माटे आमममां का छे के भूत भविष्य के वर्तमान काळना निमित्त न बोलवा, तेथी घणी जातना नुकशान थाय छे माटे जिनाज्ञा पालक मुनिने कदी पण निमित्तादि संसार विधिना कार्यो नन करवा जोइये.. तार टपाल अधिकार. .. . दोहरा. . घर छोडीने नीसर्या, छोड्यो जगत स्नेहा . ___ तार टपाल चीठी तणा, समाचार सुण एह. १ For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) ( ढाल २१ मी ) देशी उपरनी. गच्छ नायक गीरुवा होवे, मोटुं कारण हो ! शासननुं जाण; समाचार लखावता, अपवादे हो ! रही जिन आण. सु० १ छोटा होवे साधु साध्वी, पत्र लखे हो ! पोताने नाम; आवे पोताना नामथी, कोण जाणे हो ! शुं करे काम. सु० २ दुकानदार गृहस्थी होवे, चिठी आवे हो ! नित्य बेज चार; एक घर छोडी नीकळ्या, थया हो ! केइ घर हजार, सु० ३ मोटी फीसमां सो पचास, नानीमां हो ! आवे दश वीस; तार सुणी तुटी पडे, प्रतिक्रमणे हो ! पाडे बेठां चीस. सु० ४. कवर कार्ड टीकीट घणा, नोटो हो ! राखे मस्तान; पारसल वी. पीः तणा, गणतां हो ! कोण राखे ज्ञान. सु० ९ मोटा मोटा मुनिराजना, मांड़े हो ! दफतरमा नाम; मन मानी मोजो करे, सोगणं हो ! गृहस्थथी काम. सु० ६ पारसलमा कपडा कांबळी, दवा हो ! साबुने तेल; हुकम करे रुपिया तणो, शुं लखं हो ! आ भरतना खेल. सु० ७ गांडा गृहस्थी पूछे नहीं, देवे हो ! ते रोकड दाम; मनीओरडर मोकलावता, वळी आवे हो ! श्रावकने नाम. सु० ८ साधु स्त्रीओने कागळ लखे, साध्वी लखे हो ! पुरुषने नाम; अशुद्ध व्यवहार लोकमां, कोण जाणे हो ! अंतरनां काम. सु० ९ For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पन्यासन, शुक (६५) . धर्म लामना नामथी, लखे हो ! कर्मनी वात: क्यां सुधी लखं बापजी, पाखंड माड्यु हो ! धोळे दिने रात.सु. १० गरज नहीं ग्रहस्थ तणी, स्वतंत्र हो ! मल्युं जाणे राज; शंका रही नहीं कोइनी, एम बगडयु हो ! भरतनुं काज. सु० ११ पर्युषणनी क्षमापना, नहीं मळे हो ! भोजननो टाइम; .. नहीं जोये नहीं देखता, क्षमापने हो ! लखे कुशळ क्षेम. सु. १२ मोटा मुनि चोमासु करे, सो पचास हो ! जोइए टपाल; आचारज पन्यासन, शं कहेवू हो ! ए तो मोतीनी माळ. सु० १३ टपालना पैसा तणुं, थातो हो हो ! केवो उपयोग; विचार करे कोण तेहनो, सरखा सरखो हो ! मळ्यो संयोग. सु०१४ कमती नहीं कोइ ढुंढका, तेरा पंथीनी हो ! वळी अधिकी वात; गुप्त गोटाळा छे घणा, नहीं छाना हो ! तुं जाणे तात. सु० १५ .. पार नहीं केटलुं लखं, जाणो हो! तमे जगदाधार; करुणानिधि कृपा करो, भरतनो हो ! करो जलदी उद्धार. सु० १६ ढाळ २१ मी--संजोगा विपमुक्कस्स, आ व्याख्याने हमेशा स्मरणमा राखवू अने कागळ पत्र ना लिखवाथी गृहस्थ साथे घणा प्रकारनो परिचय वधी पडे छे ते. पण रागद्वेष- मूळ छे आर्तध्याननु वृक्ष छे तेथी बने तेटेखें दूर रहेQ जोइये. ! केवो उपयायोग. सु०१४ For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) प्रतिक्रमण अधिकार. दोहरा. । निरतिचार घेत पाळतां, कदाच लागे दोष; शुद्ध उपयोग आलोचना, करतां होय निर्दोष. १ . (ढाल २२ मी) . देशी उपरनी. . छ आवश्यक उपयोगथी, करता हो ! जीव थाय विशुद्ध जेम जेम अधिकी क्रिया भंरी, तेम तेम हो! उपयोय अशुद्ध. सु०१ छ. आवश्यक सहुना 'एक छे, अधिकी क्रिया हो ! थर्ता छेद भेद .. तीन चार थुइ. तणा, चैत्यवंदन हो ! काउसगना भेद. सु. २..... भावार्थ जाणे नहीं, क्रिया करे हो ! ते काळोकाळ; कर हा ! त काळीकाळ; . . . . . . . द्रव्य आवश्यक अण उपयोगमां, ज्ञानी हो ! कहे तेहने बाल. सु०३ प्रतिक्रमणना अंतमां, मोठे शब्द हो ! बोलावे शांत; गाडरी प्रवाह जीवडा, कोण जाणे हो ! कहे तेहनो तंत. सु. ४ मोटी शांत मुनिवर कहे, पक्खी चोमासी हो! कों प्रतिबंध संतिकरं शरु थयु, भविष्यमा हो ! थाशे निबंध. सु. ५ मोटा उपसर्ग कारणे, बनावी हो ! जाणी ते काळ; हमेशां उससर्ग नहीं, देवी कोपे हो ! समने नहीं बाळ सु०६ For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (६७) निवृत्ति निर्वाण पाठमा, देवी पासे हो ! मागे निर्वाण; भरत क्षेत्रना लोकनी, दशा बगडी हो ! नहीं रह्यो ज्ञान. सु. ७ देव वीतराग जैनना, नहीं पूजे हो ! सरागी देव; ते मार्ग लप्त करे, सरागी हो ! पूजे नित्य मेव. सु. ८ . कयबली कम्मा पाठनो, कुलदेवी पूजी हो! कहे ढुंढक..एम, .. श्रावक सरागी पूजे नहीं, उत्तर आपे हो ! गीतार्थ तेम. सु० ९ सम्यग् दृष्टि जो सुर होवे, गुण कर्ता हो ! सुलभ बोधि जाण; अवगुण बोले उलटुं थतां, पूजनीय हो ! वीतराग पीछाण. सु० १. मोटो उपद्रव संघमां थतां, स्मरण करे हो ! सम्यग् दृष्टि देव; - प्रतिक्रमण करतां थकां, उपद्रव हो! नहीं होवे सदैव. सु० ११ । कामदेव चुलणी पिता, अरण कहो ! श्रावक पीछाण; उपसर्ग सह्या मोटका; सरागी हो ! पूज्या नहीं जाण. सु. १२, असाहिज्जा, श्रावक थया, तुंगीया तणो हो ! जुओं अधिकार; मोक्ष कारण माथु मुंडीयुं, नहीं वांछे हो! कोइ सहाय लगार.सु. १६ नहीं कहे तो उपद्रव करे, यतिओ हो ! एम घाले मर्मः .... नहीं कहेवा वाळा संघमां घमा, भ्रमे पड्या हो! समजो तमे , .: .: .:: . मर्म. सु. १४. अजितशांतिना अंतमां, गाथा हो ! मिलावी साथ;:. : उदेपुरमा लघुशांतिने, शरु करी हो ! नहीं छानुं नाथ. सु. १६ नानु प्रतिक्रमणुं गुपचुप करे, मोटुं हो ! करे परखदा वीच; : - अग्नि रुमां छूपे नहीं, मायाचारी हो । ज्ञानी कहे नीच, सु०१६ For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) वदित्तु सूत्र सिद्ध दंडके, जयवीयराय हो ! गाथा दीधी भेला . न्यूनाधिक मिथ्यात्व छे, शुं लखं हो ! आ भरतना खेल: सु० १७ मोटा मोटा आचार्य तणां, नाम लेई हो ! मांडी बैठा दुकान; ते कारण जाणे नहीं, आगमर्नु हो ! उत्थापे ज्ञान. सु. १८ तीर्थकर गणधर होवे, होवे हो! चउद पूर्वधार; - अभिन्न दश पूर्व हुए, सम्यक् सूत्र हो! सूत्र नंदी मोझार. सु० १९ दश पूर्व उणा होवे, तेनां वचन हो ! नहीं आगम तुल्य; सत्य कदा असत्य होवे, समवायांग हो ! सूत्र अमूल्य. सु० २० नियुक्ति टीका चूरणी, भाष्य वृत्ति हो ! अवचरी जाण; पाठ काढे अपवादना, नहीं पाम्या हो ! ते सम्यग् ज्ञान. सु. २१ उत्सर्ग पाठ आगम तणा, लोपे हो! करे आपणु थाप;कारण विण अपवादने, थापे तो हो! लागे मोटुं पाप. सु. २९ कमळ प्रभा सूरि तणो, उत्सर्गे हो ! थाप्यो अपवाद अनंत संसारी आतमा, महानिशीथे हो ! जुओ सत्यवाद. सु० २३ चैत्यवासी थी चालु थयु, सरल भावे हो ! कीधुं अनुकरण; . ते प्रवाहः ग्रंथे लख्यो, काम पडे हो ! तेनो लेवे सरण. सु० २४ मन कल्पित आचरण करी, लखी हो ! पोताने हाथ; ते आगम तुल्य केम होवे, कोने कहेर्नु हो ! मारा कृपानाथ.सु०२५ प्रत्यक्ष पाठ सिद्धांतमां, ते लोपी हो ! माने कल्पित; जंग मचावे जैनमां, छोडी हो ! जैन शासननी रीत. सु० २६ For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निषेध नहीं आगम विषे, नहीं हो ! करे अंगीकार; अशठ आचरण आचरे, देशकाळ हो ! जोवे शुद्धाचार. सु० २७ एक आचार्य आदर्यो, बीजो हो ! करे निषेध; सर्व मान्य होवे नहीं, तेथी हो ! पड्या गच्छना भेद. सु. २८ जिन वचनथी डरे नहीं, थापे हो ! आप आपनी वात; न्यूनाधिक प्ररुपतां, लागे हो ! मोटें मिथ्यात. सु. २९ तेथी बचावो बापजी, थरथर हो ! ध्रुने लखतां हाथ; हवे तो हद आवीं गई, सामुं जुओ हो ! मारा शासन नाथ.सु०३० ढाळ २२ मी-धर्म छे ते वीतरागनी आज्ञामा छे अमे आज्ञायी न्युनाधिक करवू ते तो अधर्मन. छे माटे कालोकाल प्रतिक्रमण (षडावश्यक ) उपयोगथी करवं अने बीना टाईममा स्वाध्याय ध्यान मौनके तत्व विचार कर. "तीनाणं तारियाणं" एक वीतराग देवन होय छे अने अनन्ता जीव मोक्षमां गया जाय के अने जाशे ते सर्व वीतरागने वन्दी पूजीनेनं सिद्ध थाशे ( नहीं के सरागी देवथी ) ते खास विचारवान छे. एटलुन नहीं परन्तु आस्थाने पच्चीश २५ प्रकारना मिथ्यात्वने पण ओळखवानी घणी जरूर छे. For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) तीर्थ यात्रा अधिकार. दोहरा. तीर्थ तीर्थपति तणुं, तीर्थ उतारे पार तीर्थ सेवा जे करे, धन्य तेनो अवतार. तीर्थ यात्रा करवी कही, आचारांगनो लेख; . सम्यक्त्व शुद्ध निर्मळ हुए, बहुलां आगम पेख. . . ढाळ २३ देशी पूर्वनी आगम जलनिधि भयो, मुनि हंसा हो ! करे नित्य कलोल; तप संयमनी यात्रा, जुओ हो! भगवती खोल. सु. १ माम गाम जई विचरे, कांई करे हो ! स्वपरनो उद्धार विहार करतां तीर्थो नमे, करै हो ! ते भवनो पार न्याय उपार्जित द्रव्यथी, पोते हो! शुभ राखे भाव; पुद्गलनी इच्छा नहीं, श्रावक हो ! जाणे चोकनो दाव. सु. ३ छरी पाळी करे जातरा; देवे हो ! बीजाने सहान; चैत्य उद्धार करावतां, सार्या हो ! केई आतम काज. जीव तणी जतना करे, नहीं बोले हो ! कदी मृषावाद, पर धनने वांछे नहीं, नहीं सेवे हो ! विषय आस्वाद. For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रात्री प्रयाण करे नहीं, नहीं जाये हो । चोमासे. बहार; .. खाण रत्ननी संघ होवे, हालना हो ! सुणीए समाचार. सु.। भूल उठावे ढुंढीया, पासत्था हो ! करे अधिकुं थाप; ओछु अधिकुं बोलतां, लागे हो ! मिथ्यात्वनो पाप. सु०७ नहीं करतां गुरु का, अविधि हो ! लघु प्रायश्चित जाण; विधि करतां भवनल तरे, एवी हो ! श्रीजिनवरनी आण. सु. मर्यादा मुनिवर तनी, संघ तणी हो ! करे कोशीश; . उंचो धर्यो आचारने, शुं लखु हो ! जाणो जगदीश.' नाम लेवे यात्रा तणो, साथे राखे हो ! गाडीने माल; दाल बाटीने चूरमां, अहींथी हो ! लाग्यो मझानो ताल. सु० १० साधवीओ साथे रहे, विधवा हो ! रहे दश वीस; माग्ये भाई मळे कोई, शं लखु हो ! जाणो जगर्द श... सु० ११ स्त्रीओ साथे साधुने, वरने हो! आचारांगे एम उत्तराध्ययने सोळमें, वाड भांगे हो ! शीयळनी तेम.. सु० १२ साधु कारण तंबु रहे, तंबु कारण हो ! गाडीने उंट; .. जीव हणाय छ कायना, पूछेथी हो ! वळी बोले जूठ... सु० १३ भाज्ञा-चोरी वीतरागनी, महिला साथे हो.! मांगे शीलनी वाड; ... ममता तो खुल्ली दीसे, पांच, व्रत हो ! एम दीधुं ताड .... ... ( नाश ) सुं० १४ उठे पाछली रातना, संघ चाले हो! फरे गामो गाम; . साधु साध्वी राते चालतां, निंदा हो ! होवे ठामो ठाम. सु. १६ २,२९.दश वास; For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७९) उनु पाणी करे रातना, घडा भरी हो ! बाईयो रहे लार; तेहन पाणी वापरे, यात्रा नामे हो ! संयम जावे हार.. - सु. १६ नीलण फूलण कोण गणे, कोण करे हो ! जीवोनी सार; निरनुकंपा अनुयोगमां, भक्ति नामे हो ! करे अत्याचार. सु० १७ सो जणा संघमां होवे, उनो पाणी हो ! पीवे दश वीसः आधाकर्मी ए-आरोगतां, साधु साध्वी हो! भेगां पचवीस. सु. १८ सो पचास के बसो रहे, माल मळे हो ! सुणो तीर्थ नाथ; मार्गमां मुक्ति नहीं, हाथ पकडी हो ! लै आवे साथ. सु० १९ देवसूरिजीने तेडीआ, कुमारपाळे हो ! कढाव्यो संघ; स्त्रीओ साथे कल्पे नहीं, उत्तर दीधो हो ! आगमनो रंग. सु० २० गुरु गौतम करी जातरा, अष्टापद हो ! एकला आप; ते वखते संघ नहीं करो, पासस्थाए हो ! पाछळ दीg स्थाप.सु०२१ यात्रा कीधी पांडवे, जाली आदि हो ! घणा मुनिराज; । पांचमां आठमा अंगमां, मुक्ति गया हो! साधी आतम कान. सु. २२ चोमासे गामांतरे, श्रावक हो ! जावे नहीं बीने गाम; संघ कढावे, जावे वंदवा, करे हो ! पोतानुं काम. सु० २६ केई तो धनना लोभीया, केई हो ! जुओ पुत्रने कान; केई रोगादिक काढवा, यात्रा करवा हो ! मळे समान. सु. २४ वणिक ठगे बधा जगतने, नहीं मूके हो ! वीतराग देवा तेने पण ठगवा भणी, नहीं छोडे हो ! अनादिनी टेव. सु. २५ For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) भाग घाले दुकानमां, मीलोमां हो ! राखे कोइ माग; भाग राखी सट्टा करे, उजवलने हे। ! लगावे दाघ. लोकोत्तर पक्ष क्रिया करे, वांछे हो ! लौकिकनां सुख; विष क्रिया मिथ्यात्वनी, एम माख्यो हो ! आपे श्री मुख. सु० २७ धर्मशाळामां उतरे, पत्ते चोवट हो ! रमे कहवा संघ; राजा राणीने मारता, जुओ हो ! जातरानो रंग. अनार्य भाषा बोलता, गाली गुप्ता हो ! करे कलेश, केइ धर्मादु चोरता, गीदड हो ! पहेरे वाघनेो वेष, केइ तीर्थ पण एव थयां, मांडी बेटा हो ! दुकानोना काम; -मुनीम रोकडीया मळ्या, भेला करे हे! ! फरीने दाम. सु० २९ सु० ३० सु० २१ पछी एकटुं नाणं थतां, शेर लेवे हो ! मीलोनुं पाप; केजमा राखे बैंकमां, वणिक लीलानुं हो ! केम थाये माप. सु० ३१ जीर्णोद्धार करावे नहीं, नहीं देवे हो ! बीजे तीर्थे दाम ; ट्रस्टी जाणे मारा बाप, मोटा मळ्या हो ! थोडुं करें काम. सु० ३२ सु० २८ "जैन संघ कढावता, ढुंढक हो ! जावे वंदन काज; तेरापंथी जावे पूजकने, आडंबरथी हो ! एम बगडी समाज सु० ३३ धमाधमीमां धर्म नहीं, धर्म रह्यो ! निज आत्म मांह; ते तो वीरला ओळखे, देखादेखी हो ! वाजांबधे वजाह. सु० ३४ यात्रा कारण जन मळें, नहीं हो ! जैन धर्मनो रंग; जो यात्रा तारक कही, दूरे मुकयो हो ! संवेगनो संग सु० २५ For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) रामायण तो छे धणी, लीला हो! जेनी अपरंपार; मेझरना, वांचीने, भरतनो हो ! करो जलदी उद्धार. सु. ३६ ढाळ २३.मी-तीर्थयात्रा मोक्ष- कारण छे. परन्तु धामधुम मोक्षनो कारण नथी माटे पौद्गलीक इच्छा छोडी यत्नपूर्वक जिनाज्ञा, सहित यात्रा करवी जोइये. मंदिर उपाश्रय अधिकार. दोहरा. मंदिर श्री वीतरागनां, करे जो तेहनी सार; जीर्णोद्धार करावतां, पामे भवनो पार. १ कलिकाळमां मोटको, भविजनने आधार; जिन प्रतिमा जिन सारिखी, कही ते सूत्र मोझार. ३ श्रावक मळी पोसह करे, पौषध शाळा नाम; चाहे कहो उपासरो, उपासकनो काम. ३ ( ढाल २४ मी). ........ देशी पूर्ववी. अष्टापदनी उपरे, आदीश्वर हो ! पहोंच्या निर्वाण;.. चैत्य बनाव्या.तेहना, शकेंद्र हो ! रत्नोना जाण. सु. १...... For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) ए अधिकार आगम तणो, जंबुद्वीप हो ! पनति जाण; : ते परंपरा आज छे, शुद्ध श्रद्धा हो ! राखे चतुर सुजाण. सु० २ राजा राणी शेठीया, भक्ति भावे हो ! पणो धर्मनो राग; चैत्य बनावे नवा नवा, बिंब थाप्या हो ! लीधो स्वर्गनो मार्ग:सु० ३ देहरानो खरयो नहीं, पोते हो! करता जीर्णोद्धार; ताला कुंची रहेता नहीं, नहीं हो ! गोठी मजुर प्रचार. सु. ४ श्रावक पोते पूजता, करता हो ! ते सार संभाळ; पडतो काल आरो पांचमो, पञ्या हो ! केइ काळ दुकाळ. सु. ५ चैत्यवास साधुए कर्यो, श्रावके हो ! छोडी संभाळ; . जरुर पडी मोटा द्रव्यनी, श्रावके मळी हो कर्यो एकठो माळ. सु०६ तेनुं नामन पाडीयू, देव द्रव्य हो ! ग्रंथे कर्या लेख . . . . भंडार बनाव्या जुजुआ, करे हो ! एक बीजाने देखः सं ७ . जेम जेम द्रव्य वधतो गयो, तेम तेम हो ! वधे अधिक क्लेश घरेणां दागीना प्रभुने वध्या, तृष्णा हो ! वाधे हमेश. सु० ८ पडतो काळ थाये चोरीओ, लडे झगडे हो ! माया मस्तान;. . . ताळा कुंची वीतरागने, चलावी हो ! वणिके दुकान... सु. ९ मंदीरने उपाशरा, मोक्ष कारण हो ! भाख्या वीतराग; ते कारण कर्यो अन्यथा, शासनने हो ! लगाव्यो दाग. सु. १. एक मंदिरनी आशातना, बीजे मंदिरे हो ! द्रव्य रहे अनेक एक बीजाने आपे नहीं, कोई देवे हो ! उपर लखावी लेख.सु. ११ ध्यानः लेवे आकरूं, पाछा हो ! आप आटले काळ • For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (७६) मुदत उपर नहीं मळे, तेना हो ! प्रभु मुणो हेवाल. सु. १२ त्रष्टीओ कोरट चटे, देव नामे हो ! मांडे फरीयाद; . दिगंबर श्वेतांबरा, मांहो माहे हो ! मुकी मर्याद. झघडातो घरना होवे, नाखे हो ! मंदिरमा आप; देव द्रव्यने वापरे, कोरटे चडे हो ! करे मोटु पाप. . सु. १४ ममत्वनां मंदिर बन्या, अवंदनीक हो ! कहे आगम आप; अवंदनीकने वांदतां, आज्ञा भांगे हो.! लागे मोटुं पाप. सु. १५ देव द्रव्यनी वार्ता, सुणो हो ! प्रभु वणिकनां काम; शेर लेवे मीलो तणा, व्याने धरे हो ! बैंकोंमां दाम. सु. १६ मोटा आरंभ मीलो तणा, श्रावकने हो ! कयो कर्मादान; भाग घाले वीतरागनो, ए छे हो ! कलियुगना नाण. सु. १७ दुकान मकान बंधावीने, माडे देवे हो! करे वेपार; शुं भगवान भुखे मरे, के पाळवो हो ! तेने परिवार; सु. १८ जीर्णोद्धारनी टीपणी, मंडावे हो ! फरे गामो गाम, खरच आवक केटली थई, हीसाब हो ! जाणे आतम राम. सु० १९ टेक्स पडे गृहस्थ उपरे, धर्म छोडी हो ! अन्य धर्मे जाया निर्धनता अज्ञानता, विना खर्च हो ! धर्मे पेसी आय. सु. २० पेढी चलावे देवनी, व्याज वटो हो ! राख्या मुनिम, केई बेंको वाणीया, खाई गया हो ! जेनी नही सीम. सु. २१ जीर्णोद्धार करे नहीं, नवा मंदिर हो ! करे पोताने नाम, मोटा आरंभ अन्याय, नहीं खपे हो.! देवद्रव्यमा दाम. सु. २२ For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) ज्ञान द्रव्य वधारवा, ज्ञानोपकरण हो! स्वपरनां सुणों स्वाम; गुरु गौतमथी नहीं टळे, करी देवे हो ! बधा लीलाम. सु० २३ माळा पहेरावे पैसा लुटवा, अधिक हो ! एक एकनुं मान; जीव बापडा शुं करे, नेवा गुरु हो ! तेवा जमान, सु० २४ पहेलां पर्व आराधता, हमणां हो ! करे वेपार; ते द्रन्यन | होवे, सुणनो हो ! तेना समाचार, सु० २५. झघडा तो आखा वर्षना, काढे हो ! पर्युषण काल; पर्व व्याख्या क्यां रही, मांहो मांहे हो ! आवे गालमगाल. सु० २६ नाम कीर्ति अभिमानथी, बोली बोले हो ! बीजो लेवे तोड; वाजां वागे रण तुरना, ईनत राखे हो ! नहीं शके छोड. सु० २७. ज्यारे पैसा देवा पडे, वांधा काढे हो ! वळी अमुका एम; कोरट चडे धरणा देवे, फजेती हो ! वळी करे तेम. सु० २८ देव ज्ञान द्रव्य तणा, पोतुं राख हो ! केई गृहस्थी पास; पोते पैसा वापरे, काम काचो हो ! होवे देवद्रव्य नाश. सु० २९ प्रवृत्ति चैत्यवासी तणी, सत्यविजये हो ! बधी दीधी छोडा . . यतिये मळी सरु करी, हनी सुधी हो ! नहीं सके तोड. सु. ३० निषेध नहीं विधि तणो, अविधिए हो ! लागे मोटुं पाप; केटलुं लखुं मारा बापनी, नहीं छार्नु हो ! बधू जाणो आप. सु०३१ ढाळ २४ मी-मगवानना देरासर खरेखर मोक्षना दातार छे अने तीर्थ के देरासरनो रक्षण करे छे ते शासनना रक्षण करवा जेवू For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (७८) छे, कळीकाळमां देरासरो कल्पवृक्ष तुल्य इच्छित सुखना देषावाळा छे परन्तु जे मन्दिरोने नामे लडवु, जगडवु, के ममत्व भावथीं अपणायत कर, ए दुःखदाई थई पडे छे, माटे तेने त्याग कर. ढुंढक अधिकार. दोहा, १ हवे ढुंढकनी वारता, लखतां न चाले हाथ; मुलन कापे वृक्षनुं, तुं जाणे जगनाथ. जिन आगम जिन प्रतिमा, कलियुगमां आधार; जे उत्थापी लुपके, सुण तेना समाचार. ढाल २५ मी उपरनी. अमदावाद गुजरातमां, लैपक लहियो हो ! लखे जैन सिद्धांत; पापाचारी जांणी करी, काढी मुकयो हो ! संघ मळी एकांत सु० १ विरुद्ध उपदेश सुणावतां, हिंसा हिंसा हो ! पूजा जातरा स्थान; उदय कर्मना योगथी, बे त्रण हो ! मळीया अज्ञान. बकरीने गया काढवा, घरमा पेठो हो ! मोटो सिंह; खंडन तो हिंसा तणुं, आगम हो ! लोप्या अविध, लिंग तो राख्युं जैननुं, श्रद्धा हो ! थइ विपरीत; लजीथी ढूंढक थया, तोडी हो ! लंपकनी रीत. 1 For Personal & Private Use Only ० २ सु० सु० ३ सु.० Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ...... (७९) अंधश्रद्धालु अज्ञानथी, गडबड हो! चाले लोटमलोट;:....: जिन प्रतिमा जिन सारिखी, उत्थापे हो ! सिद्धश्रीमां खोट सु. १ वंध्या पुत्र जेम बापडा, बाह्यक्रिया हो ! करे बक जेम बाळ; सूत्र सुयगडांगमां कडं, आज्ञा बहार हो ! बधू आळ पंपाळ.सु०६ आहार वस्त्र पात्र तणा, स्थानक तणा हो ! सेवे दोष अपार; कमती नहीं काई वातनी, उपर लख्या हो! बधा समाचार. सु. ७. प्रतिमा पुजा कारण मोक्षद्, भारव्यु हो ! बीने उपांग; प्रत्यक्ष पाठ मरोडता, लाग्यो हो! कुगुरुनो रंग.. मु० ८ अनेक श्रावक श्रावीका, द्रव्य भावे हो ! पूज्या जिनराज खुल्ला पाठ आगम विषे, उत्थापे हो ! नहीं आवे लाज. सु. ९ सर्व आगम उत्थापीने, वत्रीस हो ! राख्या प्रमाण ते पण माने मूळने, काम पडे हो । तेमां खेंचाताण... मुं० १० नंदी सूत्र बत्रीशमा, आगम हो ! तोतेर (७३) नाम चौद हजार प्रकरण कह्या, मूळ पाठे हो! नहीं माने श्याम. सु०११ पंचांगी कही.मानवीं, समवायांगे हो ! भगवती मोझार) .... ... मोळा पड्या ते. भर्ममा, तेथी वधे हो ! अनंत संसार. सु० १२.. दिन भर मोढुं बांधवु, कुलिंग हो ! लागे मिथ्यात्व; ' . . . . .. भक्षा भक्ष टाळे नहीं, नहीं टाळे हो ! कोइ. कुळने जात. सु० १३ वासी पाणी सचित होवे, लावे हो ! भरीमरी: लोट; .. उपाधि राखे घणी, देवे हो ! गृहस्थ शीर पोट. सु. १४ साधु नामे स्थानक बंधावतां, ताळां कुंची हो ! करे सार संभाळ.. For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८०) आहार पाणी साधवी तणा, भोगवे हो ! अज्ञानी बाळ. सु. १५ पडिकु ठकुल वरजीओ, दशं वैकालिक हो ! पांचमे अध्ययन; . . दंड को निशीथमा, सर्व भक्षी हो ! नहीं लेन अलेन. सु० १६ सुवो सुतक गणे नहीं, नहीं गणे हो ! नारी रुतु धर्म; लोक विरुद्ध आचरण करे, केइक करे हो ! छाना कुकर्म. सु० १७ चेला लेवे मूल्यना, नानी उमरे हो ! पोते करे संभाळ; टोळे टोळे निंदा करे, लडे झघडे हो ! केइ विकराळ. सु० १८ जीव अजीव पंथीतणा, आठ छ कोटी हो ! केइ पंथापंथ; केइ कपडां काळां करे, बुगला हो ! केइ वाने संत. सु० १९ क्रिया कल्प पुस्तक बांधीने, घाँ हो ! भंडार मोझार; शील धर्यं छे पेटीमां, ज्यां त्यां हो ! करे भ्रष्टाचार. सु. २० देशीमांथी नीकळ्या, उत्कृष्ट हो ! परदेशी नामा माया अधिकी केळवे, हुं नाणुं हो ! सौ तेहनां काम. सु० २१ स्थानक छोडी नीकळ्या, भाडे हो ! लेवडावे मकान के ग्रहस्थी रहेवासनु, खाली करे हो ! फोकट तोफान. सु० २२ अथवा गृहस्थी भेगा उतरे, महिला परिचय हो ! रहे हरदम; पुत्र तो लेवाने गइ, खोइ बेठी हो ! पोतानो खसम (पति) सु०२३ तपसी नाम धरावीने, पीवे हो ! अडधी वलोई छाश; मोटा मोटा कागळ लखे, स्वामीए हो! कीधा. छे मास छमास.सु०२४ घोवण पीए दूध, घणी धोई हो ! साकर रहे साथ; खाटु मीठु अथवा राखनु, शुं लखु हो ! जाणे जगनाथ. सु० २५ For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८१ ) बेले बेले एकांतरे, पारणे हो ! नहीं संतोष; विगय माटे ममता फरे, लावुं खावुं हो ! असमाधि दोष. सु० २६ खटपट घणी छानी करे, गृहस्थी हो ! रहे आधिन; पुस्तक चेला लेवे मूल्यना, सिद्ध साधक हो ! भल्या प्रवीण, सु० २७ मोटा दोष साधु सेवतां, गुपचुप हो ! घरमां दे ढांक; लेण देण समाचारनी, गृहस्थ नामे हो ! चलावे डाक. पूंज पुंजने पग धरे, गाममांहे हो ! नीची राखे दृष्टि; विहार करे दश कोशनो, मायाचारी हो ! ज्ञानी को भ्रष्ट सु० २९ व्याकरण व्याधिकरण मानता, संस्कृतनो हो ! उल्टो करे अर्थ: सूत्र उत्सूत्र जाणे नहीं, लोप हो ! केई ग्रंथाग्रंथ. टोले टोले श्रद्धा जुदी, जुदा जुदा हो ! सहुना ए घाण; एक बीजाने उत्थापता, निंदा करे हो ! मांडी खेंचाताण. सु० ३१ म्लेच्छपणुं राखे घणुं, मलमूत्रनी हो ! नहीं राखे शुद्ध; शासनने निंदावता, विपरीत हो ! आचरण बुद्ध. केट लखं बापजी, लीला हो ! तेनी अपरंपार; केटलेक अंशे मुझने, एना हो ! मोटो उपकार. ते कारण लखवुं पडयुं, ढुंढकनो हो ! प्रभु करो उद्धार; जिनागम जिन प्रतिमा, वांदी पूजीने हो ! तरे संसार. सु० ३० सु० ३३. सु० २८ सु० ३४: ढाळ २५ मी - केस (बाल) ने बदले माथे ( शीर) काटवुं ए केवल मूर्खाई जेवुं छे. अथवा अविधिथी हिंसा थाती जोईनेज तेओ पोकार करता होय तो तेओने विधि पूर्वक प्रभुनी भक्ति करे For Personal & Private Use Only सु० ३२ Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८२) तो कोण रोके छे परंतु आ समे राग द्वेष करवा के जिनागमोंने लोपवा एतो मोटुं पाप बंधनन कारण छे माटें तेओने दीर्घ दृष्टि थी विचारवं नोइए. तेरापंथी अधिकार. दोहरा. प्रतिमा उत्थापी ढुंढके, माने दया और दान; अढारे पंदरोतरे, भीखम उदय अज्ञान, प्रतिमाने पत्थर कहे, वीर प्रभु गया चुका पाप कहे दया दानमां, अज्ञानी बेवकुफ. . (ढाल २६ मी.) देशी उपरनी. तेरापंथीनी वारता, लखता हो ! दुःख आवे अथाग; शासन चंद्र जेम उनळ, पंथीडे हो ! लगाव्यो दाग. सु० १ दया दान जड जैननी, जेमा हो ! बतावे पाप; श्रावक बटको (टुकडो ) झेहरनो, आज्ञा बहार हो ! धर्म दीधो . थाप. सु. २ कळतो नीव बचावतां, वध्यो केवे हो ! अनंत संसार; जीवमार्या पाप एक छे, बचावतां हो! कहे लागे अहार. सु० ३ For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८३ ) सु० ५ धर्मरुत्री करुणा करी, बचायो हो ! पारेवो शांतिनाथ; नेमजी जीव बचावीया, नाग बचाव्यो हो ! श्रीपार्श्वनाथ सु० ४ पंथी साधु ने फांसी देवे, पंथणीयोंथी हो ! सेवे अत्याचार; - वळती गायो ए त्रणने, बचावता हो ! कहे पाप अगर. सर्व जीवोनी रक्षा कर बीजे अंगे हो ! भाख्युं भगवान; - पहले शतक शतक आठमे, भगवती हो ! देखीलो प्रमाण. सु० ६ पंथी साधु छोडीने, कोई देवे हो ! बीजाने दान; सुब्यो कहे संसारमां, जुओ हो ! दुष्टोनुं अज्ञान. - वरषीदान जिनवर देवे, ते वखते हो ! नहीं पंथी साधु; पकडयुं पूंछ गद्धा तणुं, लातो खावे हो ! करे हठवाद. अभंग द्वार गृहस्थी तणा श्रावक हो ! होवे चित्त उदर; विमुख कोई जाये नहीं स्थानांगे हो ! बाधे पुण्य अपार सु०९ -बजा दशमां अंगमां, निषेध हो ! कोई सावध दान सु०८ चोरी लागे वीतरागनी, निन्हव हो ! नहीं छोडेमान सु० १० भगवती पाठ बतावता, उपासकनुं हो ! लेवे जुठं नाम; अन्य तीर्थ गुरु जाणीने, देतां हो ! लागे पापनुं ठाम. सु० ११ अंबड श्रवक सो घरे, पार हो ! करे वीरनां वेण, - दान दइ श्रावक तरे, नहीं देखे हो ! जेनां फुटचा नेण. सु० १२ प्रदेशी राजा थयो, केशी श्रमणे हो ! दीघो प्रतिबोध: दानशाळा चोथा भागनी, धर्म धारी हो ! करे घणी शोध सु० १३ सतियो लावे गोचरी, जमाडे हो ! गृहस्थी पेरे साधु; क्षा भक्ष गणे नहीं, पुदगलानंदी हो ! पड्या जीभने स्वाद, सु० १४ (८) For Personal & Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पडदे बेठा पूजनी, साध्वीओ हो ! रहे पड़दा बीच; भोजन नव नवी जातना; अंधारे हो करे आंखो मीच. सु. १५ शुं लखु कर्म विडंबना, शुं लखं हो ! पंथणीओना कामः दुराचार वध्यो घणो; नहीं छानु हो ! जाणे आतमराम सु० १६ पूछे साधुने शुं खाशो, दूध दहीं हो ! घी मीठाइ माल, ग्रहस्थी आगळ कहे पूजनी, मारा साधु हो ! त्यागी उनमाल सु० १.७ आधा कर्मीनी भावना, भरी लावे हो ! जेम पातरां पूर; : काचं पाणी राखोडी तणुं, माल खाइ हो भ्रष्ट होवे कूर सु. १८ खोटी करे प्ररुपणा, निन्हव कह्या हो ! आगमवाद, लिंग पण जुदो जैनथी, नहीं ग्रहस्थी हो ! नहीं होवे साधु सु० १९ तेरापंथी नाटक वांचनो, जेमां हो ! नहीं होय बाकी कोय; भोला पड्या छे भ्रममां, पंथी उपर हो ! अनुकुंपा जोय. सु० २०. शीक्षा देदे पुत्रने, नहीं करे हो ! प्रकाशीत पाप; लोकयुक्ति न्यायथी, एटलुं लखु हो ! आगळ जाणो आप. सु० २१ ढाळ २६ मी-बंधुओ! तमारा माटे मने घणीन अनुकंपा आवे छे कारण तमे जैन नाम धरावो छो अने जिनाज्ञाथी विरुद्धाचरण करो एटलुन नथी परंतु अन्य लोकोमां जैननी दया अने उदारतानी मोटी छाप पडे छे छतां तमे दया दाननो निषेध करो छो ए केटली भुल भरेली छे परंतु ज्यारे निर्णय बुद्धिथी विचार करशो ते तमने सत्य मार्गनी प्राप्ती थासे माटे पक्ष छोडी न्यायनो रस्तो लेवो जोइए. For Personal & Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८५) उत्सर्ग अपवाद अधिकार. दोहरा. उत्सर्ग मार्ग ओळखे; जाणे द्रव्यादि काळ; एकांत खेचे तेहने, ज्ञानी कहे छे बाळ १ त्रणे फीरका एम कहे, हमणां पांचमो काळ; अपवाद मार्ग चाल ुशुं, उत्सर्ग शके न पाळ. २ ( ढाल २७ मी ). देशी उपरनी उत्सर्ग मार्ग राखवा, कारण पामी हो सेवे अपवाद; ते कारण मट्या पछी, नहीं सेवे हो ! श्री वीरना साधु सु० १. नाम लेवे अपवादनो, मंद संघयण हो ! पंचम आरो तेम; ते कारण पळे नहीं, लेख्युं हो ! आगममां जेम सु० २ इंद्रिय पोषण कारणे, लेवे हो ! अपवादनुं नाम; छती शक्ति खप करे नहि, सुख शीलीया हो ! करे एशआराम सु० ३ जैन कहे आरो पांचमो, अन्य लोकोने हो ! केम चोथो कहाय; शीतोष्ण वनवासमां, नहीं वस्त्र हो मळे तो रहेवाय. सु० ४ रेहवुं तो रंग महेलमां, खावाने मीले हो चंगा ( पृष्ट ) माल; गप्पां सुणवा ग्रहस्थी मळे, वस्त्र हो ! मळे सुकुमाळ. सु० ५. For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) जंगलमा लेता आतापना, तपस्या हो करता छ मास; पडिमां अभिग्रह धारता, अपवादे हो ! करे उपवास. सु० ॥ घर घणां गोचरी तणां, नित्य पिंड हो दोषिलो खाय; नव कल्प विहार करे नहीं, उपाधि हो ! मोटी पोठ बंधाय, सु० ७ विहार करे वेला उठीने, पोटळीया हों! राखे मजुर; पगचंपी करावता, मर्यादा हो ! ने मुकी दूर. सु. ८ शतक आठ उदेशो छठो, कारण विना हो ! सेवे अपवाद; सहाय देवे कोई तेहने, बने चोर हो ! मोटी पडे खाद. सु० ९ ग्रहस्थ करतां तो भला एमे, बोले हो ! पास त्या एम; नाम साहुकार करे चोरीओ, अधिक हो चोरोथी तेम. सु. १० पगे पहेरे मोजा मोजडी, शक्त असक्त हो ! नहीं विचार; घडा उपाडे ग्रहस्थीओ, दश वैकालिके हो ! लागे अनाचार. सु० ११ ब्रहत्कल्पे दिक्षा समे, प्रश्न व्याकरण हो दसमे अध्ययन; चौद उपकरण साधुने, वंधता जावे हो ! दिनने रेन (रात ) सु०१२ जबरजस्ती दिक्षा नहीं, कोण देवे हो ! जबरीथी आप; जो पळे ते आदरो, नहीं तो पालो हो श्रावक व्रत जाण. सु० १३ आराधक श्रावक होवे, पनर ( देशविरति लो) भवे हो पामे निर्वाण; विराधक साधु होवे, केटला भव हो नहीं परिमाण. सु. १४ । नाम लइ अपवादनुं, वेष मांहे ! सेवे अनाचार; शासन कलंक लगावतां, दुर्लभ बोधि हो ! अनंत संसार. सु. १५ उत्सर्गमां अपवादनी, कमल प्रभ हो ! सूरिए कीधी थाप; . महानिशीय पांचमे, अनंत संसारी हो भाख्नो श्री आप.सु. १६ For Personal & Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयम पूरो न पळे, नहीं पळे हो श्रावक वृत बार; शासननी सेवा करो, पामे हो ते भवनो पार. सु० १७ ढाळ २७ मी मात्र पांचमो आरो मंद संहनन अने देशकालनु नाम लइ छुटवानो नथी पण यथा शक्ति खप करी अमूल्य मनुष्य जन्मने सफळ, करवान छे. पासत्था अधिकार. दोहरो. पास त्था कुदर्शनी, कुलिगी भ्रष्टाचार, गुरु जाणी वंदन करे, रुले अनंत संसार. १ (ढाल २८ मी) देशी उपरनी. पासत्थाने वांदता, कर्म बांधे हो ! कह्यो आगमसार; आहार पाणी साधु देवे, दंड कह्यो हो ! निशीथ मोझार. सु. १ पासत्थानी प्रशंसा करे, परिचय करी हो ! देवे आदरभान; वस्त्र पात्र देवे वांचना, दंड कह्यो हो ! श्री वीरनुं ज्ञान. सु० २ पासत्थाने कुशीलीया, उसन्ना हो ! नित्य पिंडिया होय; गामनगर पंडोलीया, संसकता हो ! व्रत खंडीया जोय. सु० ३ For Personal & Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८८ ) पासणीयाने कथा ग्गा, ममईया हो ! निन्हव जोय; आभोगीया किलवेषीया, बहु रूपीआ हो ! निमीतिया होय, सु० ४ . कुतुहला काम कीडीया, चारण जेम हो ! जस बोले कोय; के दास ग्रहस्थी तणा, एटला हो ! अवंदनीक होय. सु० ९ सर्प अग्नि विष, सेवतां, शस्त्रथी हो ! मरे एकजवार; कुगुरु तेथी अधिको कह्या, भमाडे हो ! अनंती वार. सु० ६ पांच छ सात आठ नव, नवनवो हो ! दुर्गति जावे अंक; आचारजने चौ संघनां, महानिशीय हो ! तुमे वांचो निःशंक. सु०७ संजम पुरोनवी पळे, रुडेा कह्यो हो ! प्रभुए ग्रहस्थावास; उभय भ्रष्ट महापापीआ, करे हो दुर्गतिमें वास. सु० ८ यतिपरिग्रह धारी हुआ, तो पण हो ! रही करामात; जोतिष वैदिक निमीतथी, शासन कार्य हो ! केइ कीधां हाथ, सु०९ 'साचा रह्या लंगोटना, काम पडे हो ! बताव्या हाथ; सु० ११ सूत्र सिद्धांत लख्या घणा, हुआ हो राजा राणीना नाथ ( पूजय ) सु० १० पासत्थानी प्रशंसा नहीं, गुण लीधा हो जे जाणी संबंध; हमणांना साधुनी वारता, तेहनो हो ! प्रभु सुगो प्रबंध. पेट दुःखे पोता तणुं, डाक्टर हो ! आवे हकीम, रुपिया देवे फी भरे, विद्वानोनी हो ! आवी छे सीम दीक्षा देवी शिष्यने, ब्राह्मण हो ! बोलावे मुहुर्तकाज; लघुता लागे लोकमां एवा गुरुथी हो ! केम सुधारे समाज, सु० १३ आगम लखवुं जाणे नहीं, जे जाणे हो ! ते करे प्रमाद; रूपिया देवे वाणीया, कोण करे हो ! पुरुषार्थ साधु. सु० १२ For Personal & Private Use Only सु० ० १४ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (63) यतिने पासत्या जाणीने नहि करी हो ! संधे सार संभाळ; 'एवी रीते हवे पासत्था तणी, करतां हो केवाथासे हाल. सु० १५ पुरुषार्थ रह्यो नहीं, नहीं रही हो ! कोई करामात; सु० १८ रोटी मळवी मुश्केल थशे, नहीं छानुं हो ! तुं जाणे तात. सु० १६ थोडुं लख्युं घणुं जाणजो, मारा साहेब हो ! तमे चतुर सुजाण; कोप करशे मेझर वांचतां, पासत्था हो ! ते लेजो पीछान. सु० १७ पक्ष करी पात्था तणो, सुमतिनागीलनो हो ! जुओ अधिकार, महानिशीथ चोथे को, रुल्या हो ! अनंत संसार. पक्ष छोडी पासत्था तणो, पुरी हो ! करशे पीछान; चरणे आवशे, देजो हो ! तुज केवळ ज्ञान. प्रभु सु० १९ ढाल २८ मी - पासत्थाओनी प्रशंसा के अलाप सलाप करवानी प्रभुए ना पाडी छे तेनुं कारण-जेमके सुशील बेहन जो कदी वैश्यादिना गुणगान करे के तेने साथै परिचय राखे तो लोकोमां ते सुशीला पण निंदानो पात्र थई पडे तेम मलाचार वाळा मुनिके श्रावक वर्ग पासत्थाओनां परिचयथी पोते निंदाना पात्र थाय छे अने पासस्थाने बहुमान मलवाथी उचरिने माटे पासथा थावाज न देवा जोईए कदाच कर्म योगे थाय तो पोषण थाय छे एटला पछी संघ तेने आदर न करे ताज शासनने हितकारी थाय. For Personal & Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९०) श्रावक अधिकार. दोहरा. जिन शासन भूषण समा, दीपावे जैन धर्म; जीवादिक नव तत्वना, साचो समजे मर्म. दयादान उदारता, हृदय स्फाटिक समान; जिनवर पूजे भावथी, श्रावक गुणनी खाण.. रसीया जैन सिद्धांतना, नवी नवी धारे वात; एक तरफ साधु उपासका, एक तरफ जनकने मात. आलंभिक तुंगीया तणा, शंख पोख्खली सार; आनंदादिक मोटका, एक लख गुण सठ हजार. श्रीमुख वीरे वखाणीया, मंडुकने कामदेव, दृढ श्रद्धा वीतरागनी, सदा करे गुरु सेव. मात पीता सरखा कह्या, ठाणांगे उजमाल, भगवती शतक सोळमे, कह्या रत्नोनो माल. जेवा साधु तेम श्रावको, शासन तुज जयवंत वर्तमान वीतक लखं, सांभळ महिमावंत. For Personal & Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९१) (ढाळ २९ मी.) देशी उपरनी. श्रद्धालु श्रावक घणा, राखे हो ! शासनथी प्रेम, जाणी अभ्यंतर आतमा, रुडां पाळे हो ! लीधां व्रतने नेम. सु० १: बहु रत्ना वसुंधरा, नहीं करे हो ! खाली डंफाण; हमणां श्रावकनी वारता, सुणीये हो ! प्रभु दै ध्यान. सु० २. जेवी दशा साधु तणी, तेवी हो ! श्रावकनी जाण, मेला हृदय मायाघणी, संघमां हो ! मांडी खेचा ताण, श्रद्धा छोडी देवनी, सरागी हो ! पूने देवी देव; मिच्छामि दुककडं कुंभारनु, पाखी चोमासी हो ! देवे नित्य । नित्य मेव. सु. ४ देव द्रव्य गणे सुखडी, ज्ञान द्रव्य हो ! गांठे करी जाय, हिसाब किताब जाणे रामनी लामी हो ! जळमाहे लाय. सु० ५. भक्षाभक्ष आरोगतां, होटलमां हो ! पीवे चाहने दूधः । आचार डुब्यो जैननो, मोह छाक्या हो ! नहीं रहे शुद्ध सु० ६ स्वगच्छनो पासत्यो हुवे, वंदे पूजे हो ! करे बहुमान, परगच्छनो गीतार्थ होवे, क्रिया पात्रनो हो ! करे अपमान सु० ७. ध्वजा पताका सम बनी, पवन जेम हो ! फरी जाये आप, मोढुं देखी टीलं करे, जुठी साची हो ! करे आपणी स्थाप. सु. ८ पक्ष करे पासत्या तणो, देवे. हो! शीथिळने सहाज, अवगुण गुण जाणे नहीं, एम बगडी हो ! आ जैनसमाज. सु०९ For Personal & Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९२) धर्मी नाम धरावता, केइ हो ! करे अत्याचार; जैन निंदावाने जनमीया, मळ्यो हो ! बहुलो परिवार. सु. १० स्वामी वात्सल्य नामथी, माल पाणी हो ! उडावे खुबः . स्नान करे भांगो पीवे, चो| व्रत हो ! भांगे बेवकुफ. सु० ११. .. स्वामी वात्सल्य को पोखली, पोषध शाळाए हो ! करे धर्मने पुष्ट; माल खाई धर्म नहीं करे, कृतघ्नी हो ! वळी कह्या दुष्ट. सु. १२ • लट्ठा कह्या, गुरुगमथी हो ! जाणे आगम रहस्य प्रश्न पूछी निर्णय करे, जाण पणुं हो ! करे विशेष. सु. १३ : पोते पंडित बनी रह्या, स्वच्छंदे हो ! वांचे ग्रंथाग्रंथ, आज्ञा नहीं वीतरागनी, अर्थ तणो हो! करे अनर्थ. सु० १४ पोते पड्या प्रमादमां, गोठी पासे हो ! पूनावे देव भक्ति आशातना कोण गणे, पैसा खातर हो ! करे नित्य सेव.सु. १५ प्रभु पूजा करे नहीं, करे तो हो ! न जाणे विधिः । उपदेश सुणे नहीं कानमां, पोते हो ! बनी बेठा सिद्ध. सु. १६ स्नान करे मंदिर मांहे, वापरे हो ! अणगळ्यो नीर; नीलण फूलण कोण गणे, कोण गणे हो ! त्रास जीवोनी पीड.सु०१७ पोते तन पोषण करे, लगावे हो ! साबु भेठ ने तेल; कपडां धोवे मोझो करे, शुं लखु हो ! भरतना खेल. सु. १८ दाढी मुंछ जमावता, तिलक करतां हो ! लागे घडी एक; प्रभु पूजा करतां थकां; पांच मिनिट हो ! लागे विशेष. सु० १९ दशत्रिक कोण सानवे, अभिगमनी हो ! क्यां रही वात; For Personal & Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९३) चोराशी आशातना कोण गणे, काम पडे हो ! आवे बाथम बाथ. .. . सु२० फेंटा टोपी सुंथण पेहरीने, जुतां छतरी हो ! लकडी लेइ जाय; क्रोध करे गाली देवे, पूजा करता हो ! रागद्वेष करायः सु० २१ रोशनी करे रातना, मंदिरमा हो ! लेवे भक्तिनुं नाम; अणगणता त्रस जीवना, प्राण जाये हो ! जुओ वणिकनां काम.सु०२२ आणा नहीं आगम तणी, चैत्यवासी हो ! नचाव्या नाच; इंद्रिय पोषण कारणे, नहीं करे हो ! गाडरीयां जाच ( शोध ); सु० २३. गाममां गुरु वंदे नहीं, दृष्टिरागी हो ! जाये सो कोश: . चोमासामा फरता फरे, आज्ञा भांगे हो ! नहीं गणे दोष. सु० २४. मोटा मोटा आरंभ करे, करे हो ! विश्वासनो घात; अधर्मना द्रव्य खर्चीने, निकाले हो ! मोटा संघनो साथ. सु. २५, अन्याय द्रव्य भोजन करे, पीवे खावे हो ! चउविध संघ हृदय न्याय रहे नहीं, श्रावक साधुनो हो ! जाणो एक ढंग.सु०२६ दयावंत श्रावक रहेवे, चोमासे हो रहे एकन ठाम; जस कीर्तिना बानेथी, संघ काढी हो फरे गामोगाम. सु० २७ वहेलां उठे रातना, होवे हो त्रस जीवोनो नाश; ... वीर आज्ञा उंची धरी, दील माहे हो नहि दयानी वास. सु० २८. साधु मरे करे टीपणी, नवकारशीए हो करे नवा नवा माल; . । जाणे आव्या मसाणीआ, चेला चेली हो जमे बाळगोपाळ. सु. २९ For Personal & Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९४ ) अठाई महोत्सव मंडावी, पादुका हो ! स्थपावे बिंब; रीत करे कल्याणनी, क्यां अमृत हो ! क्यां रह्यो लींब ( लींबडो ). सु० ३० सु० ३१ मंदिरमां भगवाननी, मूर्तिओ हो ! मळे पांच साथ; साधुतणी स्थापना, केटली मळे हो शुं लखुं नाथ, मार्गानुसारपणं किहां, किहां हो सम्यकत्व आचार; क्या शासन प्रेमी पणुं, दीर्घ दृष्टि हो क्या रह्यो विचार. सु० ३२ रात्रि भोजन वरजीयुं, आगममां हो ! कहुँ मोटुं पाप; सो मांहे एंसी टका, मळे तो हो ! रात्रे खाय धाप (धापीने) सु० ३१ • मीलो जीन चरचा तणा, मोटा आरंभे हो ! करे अत्याचार; विश्वासघात कुडी साखमां, लांचो लेवे हो ! नहीं शरम लगार. सु०३४ · कन्या वेचे आपकी, दमडालोभी हो ! देवे परणाय,. साठ वरसनो डोसलो, लाडी लावतां हो ! नहीं शरमाय सु० ३५ वाडा बांध्या गच्छ तणा, तडा हो ! गामे गाम देखाय; एक बीजाने जुठो कहे, काम पडे हो ! कोरटमां जाय. वेश्या बोलावे लग्नमां, वरघोडा हो ! काढे वादावाद; हारमोनीयम वाजातणा, सुणे हो ! विषयना नाद. पैसा जाये निजतणा, घणा जीवो हो ! बांधे कर्म; जाण्यो नहीं जिन धर्मने, भोळा हो ! जीव पड्या भर्म. सु० ३८ सु० ३६ एक दिनना नाममां, खर्चे हो दशवीस हजार; स्वधर्मी भूखे जो मरे, कोण राखे हो ! तेनी दरकार. For Personal & Private Use Only सु० ३७ सु० ३९ Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९५) जान जमाडे आवे पाहुणा, राते रांधे हो ! पडे जीव असंख्य भु केर्बु संसारनु, स्वामीवात्सल्य हो ! जमे निःशंक. सु. ४० बाल नाना परणावतां, जाणे हो ! ढींगलानो खेल; बालविधवा संख्या घणी, वध्यो हो ! अनाचारनुं मेल. सु. ४१ वासी आहार राखे रातना, बीने दिन हो ! उनो करी ग्वाय; . शुद्ध बुद्धि रहे केणी रीते, ढुंढकने हो ! केम आवे दाय. सु. ४२ अकबार अरडाटा करे, भाषणे हो ! केई को पोकार, जैन कोम कमती तणा, मोटा मोटा हो ! लखे समाचार. सु० ४३. पाठशाळा गाम गाममां, स्कुलो हो ! स्थापे अनेक; केळवणी कुकवा करे, नहीं कम हो ! को देखादेख. सु. ४४ व्यवहारिक विद्याभणी, भणे हो ! इंग्लीशनुं ज्ञान भूगोळ खगोळ मणावतां, फेल्यु हो ! बहुलं अज्ञान. सु. ४५ पांच कलाक अंग्रेनीमां, धर्ममां हो ! मळे अ| कलाक; धर्म असर ते केम पडे, श्रद्धा हो ! छेवट जावे थाक. स० ४६ मंदिरने उपाशरा, आगम हो ! गणे गप्पां समान; गुरुने गणे रमतीओ, हम तुम हो ! देव गुरु धर्म. सु. ४७ मात पिताने नहीं गणे, नहीं गणे हो ! केर तोफान. प्रत्यक्ष प्रमाणन मानता, नास्तिक हो ! केई पड्या भ्रम. सु. ४८ पास थयाने पूछतां, सोमां हो ! नीकळे दशवीश; एंसी टका अलगा पड्या, नहीं छाना हो ! जाणे जगदीश. सु०४९ स्थिर सूर्य पृथ्वी चले, जीवाजीव हो ! पुण्य पापमां फेम पहेलो असर खोटी जमे, बन्ने उद्धत हो नहीं लागे देर. सु०.५० For Personal & Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९६ ) सु० ५२ अन्य कोम वघती रहे, जैन कोम हो ! घटती रहे नाथ; तेना कारण छे घणां, उपर लख्या हो ! आ मेझर साथ. सु० ५१ ज्ञान सिवाय उन्नति नहीं, होवं जोईए हो ! ते क्रमसर ज्ञान; क्रमसर मणावतां, शासनमां हो ! पामे बहुमान. पहेला अक्षर भणाववा, पछी हो ! संख्यानुमान; पछी धर्म भणावतां, पामे हो ! ते सम्यग् ज्ञान. धर्म तणी क्रिया करे, जाणो हो ! ते पुण्यने पाप; देव गुरुने ओळखे, काम वड़े हो ! मंडन करे आप. द्रढ अक्षर जम्मा पछी, भले भणे हो ! इंग्रेजी ज्ञान; राजभाषा पण शीखवी, जेथी हो ! मळे धर्मने मान. पहेलां श्रद्धा पाकी होवे, भले सीखे हो ! मिथ्यात्वी ज्ञान; नंदी सूत्रमां एम कये, सम्यग्दृष्टि हो ! होवे सम्यगज्ञान. सु० १६ एक उपाय उन्नति तणो, बीजो लखु हो ! आ मझर साथ; साधु वर्ग सुधारवो, आ काम छे हो ! श्रावकने हाथ. मुनि वर्गनी उपरे, रह्यो हो ! शासननो भार; सु० ० ५७ ज्यां सुधी ते सुधरे नहीं, त्यां सुधी हो ! नहीं थाय उद्धार. सु०५८ ममता छोडे गच्छनी, छोडे हो ! स्थानक धर्मशाळ; शिष्य तणी छोडे लोभता, चाहा दूध हो ! छोडे भातदाळ. सु० १९ अधिक उपाधि पोटला, छोड़े हो ! पुस्तक भंडार; विचरे देशो देशमां, क्रिया हो ! करे शास्त्रानुसार गृहस्थनो परिचय तजे, नहीं हो ! कोई राखे पक्षापक्ष; सत्य मार्ग निःशंकथी, वैराग्ये हो ! पोते आत्म लक्ष. सु० ६१ For Personal & Private Use Only सु० ५३ सु ० ५४ ० ५५ सु० सु० ६० Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९७) संघनेता मळी एकला सुविहित हो मळे साधु समाज; समयानुकुळ चालवू नहीं देवो पासत्थाने साज. मुनि उपदेश श्रावकने करे, श्रावक हो लावे मुनिने ठाम; बगड्याने सुधारतां बांधे हो तीर्थकर नाम. . सु० ६३ छती शक्ति खप करो, कांई करो हो शासन उद्धार, मनुष्य जन्म सफल करो, कारंवार ो नहीं अवतार. सु०६४ सात क्षेत्र आगममां कहा, ज्ञान हो का सर्वन मूल उत्तेजन दई तेहने मोक्ष आये हो काढी कर्मशूल. सु. ६५ धैर्य गुण धारण करो, मेझर वांची हो मनमां करी विचार ठीक लागे तो आचरो, दुःखथी हो में कर्यो पोकार सु० ६६ ढाळ २९ मी..-शासननी अंदरं श्रावक पण उच्च कोटीमां गणाय छे. कारण के छ क्षेत्रने पोषण करवा ते श्रावकथीन बनी शके छे माटे श्रावक वर्गने पोतानो शील, ( आचार ) न्यायपणु, सत्यता परोपकारता, सर्वजन मैत्रीक भावना अने आत्मदशामां प्रयत्न करी शासन सेवा बनाववा तत्पर थर्बु जोइए. जे अज्ञानवश कोइ स्थले कोइ व्यक्तिमां दुर्गुण जोवामां आवे तो मधुर वचनथी हित शिक्षा आपी गुण वधारवा जोइए परंतु अंध श्रद्धाथी एक तारे बीजाने डुबी मरवू के कलेश कदाग्रह करवो ते वीर पुत्रोने छानतो नथी, माटे यथा नाम तथा गुण प्राप्त करवो. For Personal & Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९८) आराधिक विराधिक अधिकार. दोहरा. जिन आणा विराधतां रुले अनंत संसार; आणा आराधी जे हुआ, शिवरमणी भरतार. काळ अनंतो हुं भन्यो, मवमंडलना बीच ( वच्चे ) मुन सरखो पापी नही, नीच नीचथी नीच. (ढाल ३० मी) देशी उपरनी. सूक्ष्म निगोदमां हुं वस्यो, वादरमा हो वळी काळ अनंत; काळ असंख्य सत्व घरे, वनस्पति हो नहीं भवनो अंत. सु० -१ विकलेंद्रीने भमतां थकां, असंज्ञी हो पंचेंद्री मोझार; संज्ञी पंचेंद्रीने घरे, भव कीधा हो गणतरी बहार. नर्क तणां दुःख में सह्यां, आगमथी हो जाणीये वात; . तीर्यच पांच प्रकारना, योग नियोग हो जुदी जुदी जात. सु. ३ आर्य अनार्य मनुष्यमां बाल तपथी हो सुरनो अवतार; व्यंतर आसुरी कायमां, चउगति हो ! भम्यो वारंवार सु. ४ संबंधी मुझ तणा, गया हो ! प्रभु मोक्ष मोझार; हु अधन्य अभागीओ, तुं जाणे हो ! भव्यामन्य विचार. सु० ५ For Personal & Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९९ ) सु० ६ सु० ९ मनुष्य पणं हवे पामीओ, आर्यक्षेत्र हो ! उत्तम कुल जात; चाल अनादिनी मुझ तणी, लखं हो ! संक्षेपे वात. बाळपणं खोयुं खेलीने, तरुणवये हो ! घणा विषय कषाय; शुंलखं कर्म विटंबना, जुठी हो ! कोइ जाळ रचाय जीवहिंसा जुठं बोलवुं, चोरीथी हो ! लीधो परमाल; रमणीरूपे मोहीयो, परिग्रहे हो ! लेवा उजमाल. क्रोधादिक मिथ्यात्वना, सेव्या हो ! अढारे पाप; कर्मादान न छोडीयां बनी बैठो हुं पापनो बाप. दुःख गर्भित वैराग्यथी, घर छोडयुं हो ! नहीं छोड्यो काम; स्थानकवासी में दीक्षा लीधी, पूज्य हो ! श्रीलालजी नाम. सु० १० दीक्षा लेई पूज्यथी, केइ वांच्या हो ! अंगोपांग; विरूद्ध रस्तो जाणीने, छोड्यो हो ! ढुंढक संग. कारण निमीत्त भलुं थयुं, मार्नु हो ! पूज्यनो उपकार; कदाचित बुरो होवे, उपादान हो कारण विचार.. नगर ओशी भेटीया, वीर प्रभु हो ! गुरुरत्नना पाय; समाचारी जुदी जुदी, वांचीने हो जीव अकळाय. कांइक लीला सांभळी कांइक हो ! नजरे लोधी देख; उत्पत्ति जोड़ आपणी, वांच्या हो ! प्राचीन लेख. पार्श्वनाथ तेवीसमा, शुभदत्त हो थया तेनी पाट; हरिदत्त आर्यसमुद्रजी, केशी श्रमण हो ! थया चोथे पाट. सु० १५ स्वयं प्रभ पाट पांचमे, श्रीमाल कीया हो ! पोरवाळ जैन; सु० १२ सु० १३ सु० १४ छठे पाठ रत्नप्रभरि उएस पटण हो ! आव्या पंचसे लेन सु०१६ - For Personal & Private Use Only सु० सु०८ सु० ११ Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) उपलदे राज आदि करी, तीन लाख हो ! चोरासी हजार; पंवार राजाना वंशमां, हूं पण जन्म्यो हो ! आ वार. सु.० १७. ते उपकार जाणी करी, ते गच्छमां हो कर्यो क्रियाउद्धार; जाणो छो मुज साहेबा आगळ हो ! आराधक विचार सु. १८ चोथे आरो वीर विराजता, तोपण हो ! नहीं पाम्यो धर्मः । भलो आरे मारे पांचमो, संक्षेपे हो ! जाण्यो धर्मनो मर्म. सु. १९ मुळ उत्तर गुण तणो, देस सर्व ! विराधक होय; दश प्रकारे आलोचना, लेता हो ! आराधक जोय. सु० २० व्यवहारसूत्र एम कह्यो, साधुने हो ! केइ लागे दोष; गीतार्थ अथवा चैत्यमां सिद्ध साखे हो ! होवे निर्दोष. सु० २१ दर्शन आराधे चरणविराधना, चरण आराधे हो दर्शन विराधक होय; त्रीलो बन्ने आराधतो, चोथे मांगो हो बन्ने बिराधीक जोय सु० २२ शुद्ध प्ररूपक जे होये, शुद्ध चारित्र हो शके नहीं पाळ;. काढे दूषण निज तणा, पहेलो भांगो हो नहीं मायाजाळ. सु० २३ चारित्र पाळे उनळो, न्यूनाधिक हो प्ररूपे जेह; जमालि जेम जाणवो, बीजो मांगो हो थाये जाणो एह. सु. २४ शुद्ध प्ररूपे शुद्ध आचरे, मुरू गौतम हो मांगे त्रीजो जाण; हमणां मारा जेवा बाळमां, भांमो हो ! चोथो पीछाण. सु० २५ न्यूनाधिक कोई पद कहे, कहे हो कोई अक्षर एक; चारित्रथी शीथिल होवे, चोथे भांगे हो भव करे अनेक सु० २६ एक बीजाने जठो कहे उत्सूत्र हो ! बोले करतां वाद; आगम उत्थापे अभिमानथी सत्यने हो ! कहे मिथ्यावाद. सु० २७ For Personal & Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FGaries मेरू जेटला ओघा पातरां, लीव दीपावनां विणः आराधकपणुं आव्युं नहीं, जेथी हो नहीं भवनी चैन. सु. २८ चोर करे जो चोरीयो, राजा पासे हो जो बोले साच; .. साफ ने माफ भळे सदा, कसोटी हो ! लेवे सोनुं जाच. सु० २९ एक मारी नहीं विनती, विनती हो, करे भरतनो संघ, आराधक पद दे नाथजी. लगावो हो ! प्रभु आपनो रंग. सु० ३० रागद्वेष त्हारे नहीं, तेथी लखु हो ! प्रभु वारंवार,. ... अनंतवार आगळ लखी, नहीं सरी हो ! प्रभु गरन लगार. सु० ३१ संकीर्णता न करो साहेबा, कांइ करो हो ! प्रभु चित्त उदार, खरच लागे नहीं आपने, मत मुको हो ! मुजने निराधार. सु०.३२ हवे तो पुरो धापी गयो, कंटाळ्यु हो ! संसारथी मन, मत तरसावो बापनी, नहीं मागु हो ! कोइ राज के धन. सु...३३ निर्गुणी तो पण आपनो, क्या जाउं हो ! नहीं ीजो नाथ, अनेक भक्तोने तारीया, हमणां हो ! वारो आन्यो मुन सात. सु० ३४ मेह आवो मेह आवो करे मोरीयां, वर्षq हो । ते तो ईंद्रने हाथ, मारे तो जोर लखवा तणुं देवं लेवं हो ! जाणो जगनाथ. सु०३५ . ___ ढाळ ३० मी-मारो जीव अनंत काळथी संसारमें भ्रमण करतो पण कोइ काले. आराधीकपद नथी मिल्यो, आ वखते पण सीमंधर स्वामीथी प्रार्थना करी छ जे मीले ते खरूं. For Personal & Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ ) पूर्णता दोहरा. साधु नहीं सौ सारीखा, श्रावक नहीं सब तुल्य, सामान्य विशेष क्रिया करे, पामी धर्म अमूल्य जे कलम जेमां चले तेनुं थाय व्याख्यान, राग द्वेष करशो नहि, पामी निर्मळ ज्ञान (ढाल २४ मी). देशी उपरनी. मुख्यतामां ए कह्या, गौणतामां हो ! घणा गुणवान, तप संयम क्रिया करे, वंदना होजो हो ! उगते ( भाण ) सूर्य सु. १ तीर्थोद्धार केइ मुनि करे, केइ करे हो ! आगम उद्धार, शासन प्रेमी केइ मुनि, केइ हो ! करे क्रिया उद्धार. श्रद्धालु श्रावक घणा, शासन पर हो ! झाझो प्रेम, देव गुरू भक्ति करे, रुडां पाळे हो ! लीधां. व्रतने नेम.. सु० ३. जेनामां समकीत वसे, स्वलिंगी हो ! अन्य लिंगी होय, ते तो जाशे मोक्षमा, ढोंगी हो ! रोलशे जगमांय. सु. ४ आणा पाळी शके नहीं, तो पण हो ! काढे निजना दोष, ते दिन रुडो उगशे, पाळु हो ! संयम निर्दोष. समकीत शुद्ध कडं तेहनु, आयु बांधे हो ! उंची गति जाय, For Personal & Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०३ ) ते तुज चरणमां आवशे, मोक्ष देजो हो ! प्रभु महेर कराय सु०६ पोते पूरु पाळे नहीं, बीजानी हो ! करे निंदा पूर भवाभिनंदी जीवडा जिन मार्ग हो ! तेथी रहेशे दूर. जो तेने रुचशे नहीं, ते तो हो ! कुडां करशे तोफान, ते मुजने परवा नहीं, मारे माथे हो ! मोटा भगवान सु० ८ सु० ९ सु. ११ तो जाये शोधवा, नीकळ जावे हो ! मोटा उंटना उंट, काने सुणी जुठी होवे, नजरें देखी हो ! नहीं होवे जुठ. कदाचित पासत्या मळी, साचाने हो ! करी देवे जूठ, पण परभवे छुटे नहीं, परमाधामी हो ! करशे नही छुट. सु० १ मेझर वांचो बापजी, मत देजो हो ! गादी नीचे मेल, अंधारुं फेल्युं भरतमां, नहीं हो ! दीवामां तेल. तारो हुकम माने घणा, ईद्रादिक हो ! रहे कोडेो देव, - राजा राणा नित्य पूजता, करता हो ! तारा चरणनी सेव. कांतो मोकलो देवने, नहीं तो हो ! मोकलो समाचार, मारूं जोर लखवा तणुं तुं जाणे हो ! प्रभुतारो आचार बेपारी लोकोने पूछीयुं, मेझर आगे हो ! नहीं लोकमां रीत; उत्तर लखजो कृपा करी, बनी रहे हो ! तारे मारे प्रीत. सु० : १४. सिद्ध क्षेत्रनी यात्रा, कारणे हो आव्यो गुजरात, सु० ० १२ सु० १३ सुणवाथी अधिकुं देखी, आपथी हो ! नहीं छानी वात. मारो हेतु खोटो नहीं, नहीं हो परनिंदार्थी काम, द्वेष बुद्धि मारी नहीं, जाणो हो ! श्री आतमराम. जेवो रस्तो कल्पनो, लख्या हो ! मेझरमां जोय, For Personal & Private Use Only सु सु० ११ सु० १६ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (104) न्यूनाधिक मति दोषथी, मुझने हो ! मिच्छामिदुक्कडं होय. सु. 17 संघ रज मुज शीर चडो, हुं छोटो हो ! संघ चरणोनी रज, अवगुण भर्यो मुन आतमा, मत जाणो हो! मुजमां कशु धन सु० 18 मारी मने खबर नहीं, भव्या भव्य हो ! जाणो जगनाथ, तो पण घन जिम गानशू, मारे माथे हो ! प्रभु तारो हाथ, सु० 22 हजार दुर्जन नबला होवे, सबळो हो ! होवे एकन नाथ, . . कुण गंजे तारा दासने, तारे हो ! हजार छे हाथ. सु० 23 ज्ञानसुंदर गरीबडो, एकलडो हो ! पड्यो तुज पाय, बीजं शरणु कंइ नहीं, मारे तो हो ! तुं बापने माय ओगणीसे पंचोतरमे, सुखे हो सुरत चोमास, मेझरनामुं शरु कर्यु, पूर्ण कीg हो ! सिद्धाचल खास. सु० 25 -...--- कळश. . सीमंधर स्वामी अंतर जामी, मोक्ष कामी जग जयो, आगम संगे, मने चंगे, मेझर रंगे में लख्यो, नित्य वांचो हृदय जाचो, श्रद्धो साचो सुखमयो, रत्नपायो, ज्ञान गायो, सुख सवायो, शिवगयो. __ ढाळ 31 मी-पूर्णतामे बधा साधु के सरखा नथी थाता तो पण जे अमूल्य रत्नोनी अंदर काचना कटकाने तुरत जुदा पाडवानी जरुरत छे. पछे रत्न आप एथी प्रकाश करशे. मारी भावना दर्शावी छे भुलनी क्षमा याचना प्रदान करशे. इति. 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