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________________ (४९.) जैन शैली जाणे नहीं, नहीं जाणे हो! द्रव्यक्षेत्र काळ; बीजाने केम तारशे, पोते हो ! बनी बेठा बाल. सु० १३ क्रिया करे योगनी, पदवी हो ! मळी जाये राजा .. पछी आगम कोण भणे, अज्ञाने हो ! एम रही समाज.. सु० १४. मोटा मोटा पन्यासजी, वह्या हो ! भगवती योग; अर्थ नहीं जाणे आवश्यके, थावे हो ! केम. पदवी योग्य. सु० १५ पाना लीधा हाथमा, करावे हो ! मोटा उपधान आगे सुणजो नाथनी, लखु हो ! साधुनां व्याख्यान. सु० १६ ढाळ. १४ मी-मुनिए आपणा शिष्यने विनय भक्तिमा प्रवृत्ति कराववी जैनागमनो सारी पेठे ज्ञानाभ्यास कराववो परन्तु पोते प्रमादी थई अन्यतीर्थी पासे भणावी स्वच्छंदी नहि बनाववो. व्याख्यान अधिकार. . दुहा. गीतार्थ जे मुनिवरा, आगममा प्रवीण स्वाध्यायमां नित्य रमे, जिम जळ मांहे मीन. परषदा आवे पासमां, देवे मधुर उपदेशः घर घरमां फरवू नहीं, जैन सिद्धांतनु रहस्य. .. २ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005581
Book TitleMajernamu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year
Total Pages144
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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