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( २९) ल्लमां चाली रह्या छे अने जे दुराचारीयो दुनीयामां शासननी हीलना करावे छे, तेन आ मेझर नामामां दुनीयाने दर्शन कराव्युं छे. तेमज घणां दाखला तो शासननी हीलना न थाय एटला माटे पडदा पाछल राखी तेनी सूचना मात्रन लखी छे, मेझरनामामां साधुओना जे कल्प क्रिया आचार अने व्यवहार माटे जे कांई लत्यु छे ते म्हारा मोंढानी वातो नथी, परन्तु (२०३) आगमोना सबल प्रमाण आप्या छे, मुख्य वीर वाणी (आगम) नेन आगल राखी छे.
अत्रे अमे ए मेजरनामा माटे विशेष विवेचन न करतां अमारा वाचक वर्गनी विचार श्रेणीपर मुकवानु उचित धार्यु छे, माटे वाचको आ मेजरनामाने अपक्षपात दृष्टिथी वांचसो तो आपना हृदय कमलमां सत्य सर्य उदय थया बिना रहशे नहीं.
केटलाक मुनि महाराजाओ पण चालती धमालने पन्थे प्रयाण करता आ मेजरना, वांची एटलुं तो जाणीं गया छे के अमे घर शा माटे छोडयुं छे, अने हालमां अमे कई कर्तव्यनी कोरणीमां कोतराई गया छीए. अरेरे! क्षण भंगुर सुखोने माटे आ चिंतामणि रुप चारित्र हारी जाय छे. तेओना मेजरनामा माटे केवा अभीप्रायो आव्या छे तेना माटे तो एक स्वतंत्र चोपडीज थई जाय.
केटलाक विद्वान ग्रहस्थो पण मेजरनामुं वांचीने समजी गया छे के भगवान वीर प्रभुनो मार्ग जुदो छे, अने आजनी धमालना धक्का वाळी प्रवृत्ति जुदान रूपमां छे, तेमां केटलाक धर्मधूर्त धर्मना नामे जगतने धूती खावानी दुकानदारीओ मांडी बेठा छे, हवे दुनिया बराबर चेती
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