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________________ ( ५२ ) कान तणा रसीया थया, अं करवा हो ! सुणे साधु आचार सु० १९ मोटा मोटां भाषण करे, कोरा हो ! पोते रहेवे आप पोथीनां वेंगण थयां, केम पडे हो ! बीजापर छाप. पाटे बेसी साघवी, पुरुष आगळ हो ! वांचे व्याख्यान; दुराचार वध्यो घणो, कलियुगना हो ! ए छे अनाण. शृंगार हास्यादि घणा, व्याख्यान हो ! आवे नवनव रंग; स्वपर मति बहु जन मले, काम पडयां हो ! होवे शीलनो भंग... सु० २१ सु० २.२ जुओ आज्ञा वीतरागनी, दीर्घ दृष्टि हो ! देइने ध्यान; नाक अणी एडी पग तणी, नहीं दीसे हो ! गुणवा व्याख्यान सु० २० सु० २३ सु० २५ आचारांगमां साध्वी, व्याख्यान सुणवा हो ! जावे त्रण संग; चार हाथ पना तणी, चादर थी हो ! ढांके अंग उपांग, सु० २४ दशांश्रुत स्कंधमां ओपमा, नारीनो हो ! जोवो अधिकार; घनी झुपडी बाळीने, बीजानो हो ! केम ठंड निवार. निरयावलीका ज्ञातासूत्रमां, बाईओने हों ! दीधो उपदेश; एव विधिए दे साधवी, जाणी हो ! सिद्धांतनुं रहस्य. श्रावक पण समजे नहीं, जोई हो ! प्रत्यक्ष दृष्टांत; फूटी नाव अंधो नाविक, केम पामे हो ! भवजलनो अंत. सु० २७ उपदेश देवे द्रव्यनो, फंड करे हो ! टीप गामोगाम; संस्था स्थापे नवी नवी, जेमां हो ! पोतानुं नाम. सु० २६. Jain Education International For Personal & Private Use Only सु० २८ www.jainelibrary.org
SR No.005581
Book TitleMajernamu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year
Total Pages144
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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