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श्रावकोने मुहपति चरवलो, जुदा जुदा गच्छोनी जोगविधि-उपधान विधि तथा प्रतिष्टा विधि, अंजनशलाका, देवद्रव्य-सातक्षेत्र द्रव्य, सुपना पारणा, गोठी, पूजारी, देवकी दुकानो, तीर्थोनी पेढी, मुहुपति बांधवी तथा वखाण वखते काने चडाववी इत्यादि अनेक प्रवृत्तिओ दाखल थई छे के जे मव्य जीवोने खास विचारवा जेवी छे. मोक्षनी लुटालुट, अने दुकानदारी वधती जाय छे. साधुओ एक बीजाने जुठा मानवा लाग्या. एक बीजाना बापदादाने गालो भांडवा लाग्या "शंकिए निस्संकति निस्संकिए संकेति" ज्यां शंका जेवू देखाय त्यां निःशंकपणे करवा लाग्या. ज्यां निःशंक छे त्यां अनेक शंकाओ काढवा लाग्या. परिणामे आ बाबतोनो छेवटनो सरवाळो गुंचाई गएला सूतरना कोकडा पेठे, काढवो उंदरने खोदवो डुगरव्यर्थ पाणी वलोवा जेवं निष्फळ देखाय छे. श्रीमान् उपाध्यायनी यशोविजयजी महाराज तथा पं. सत्यविजयनी गणीए घणो प्रयत्न कर्यो छे, अने तेथी परिणाम घणुं सारं आन्यु छतां पण पाछळथी मेळसेळ पेसती गई. आ प्रसंगे एक सूचना करवानी छे के-एक क्रियाउद्धारक मुनि मंडल स्थपाय, जैन महा सभा स्थपाय, जैन विश्वविद्यालय स्थपाय, जैन सुलेह कमीटी सभा स्थपाय, जैन जाति मदद फंड कायम थाय तो केवू सारं.
शासनदेवता सद्बुद्धि आपो. आ तमाम प्रकरणो आदिथी अंत सूधी वांची विचारी मनन करो. कई पण विरुद्ध विवेचन थयु होय तो मिच्छामि दुक्कडं आपी . क्षमा चाहुं छु:
लेखक.
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