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चालती घमालथी थतुं शासनने नुकशान ने तेना कारण दर्शाव्याछे, तेनी साथेज अमे पण वारंवार ख्याल राखता आव्या छीए के अमारा लेखथी पासत्थाओने पुष्टि न मले, तेमज छती क्रियानुं निषेध पण न थाय, एटलुंज नहीं पण उत्सर्ग, अपवाद, अने समयानुसारना दाखला पण साथेना साथेज आपता आव्या छोये आटलं, छतां आ मेजरनामुं पासत्थाओने वज्रपात जेवुं शा माटे थई पडयुं हशे ते अमे समझी शक्ता नथी.
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मेझरनामाना प्रतिपक्षमां पडदा पाछल रही त्रण निर्नामा लेख बाहर पड्या छे ( १ ) जैनपत्रना अंकमा "मेझरनामा नामंजूर" ( २ ) श्री श्रेयस्कर मंडल तरफथी हेन्डबील (३) एक ३२ पृष्टनी चोपडी तेना योजक केशवलाल डी. शाह अमदाबाद थी निकल्युं छे आ त्रणे लेखना लेखक गृहस्थ होय के कोई भेषधारी होय ते तपासवानी अमारे जरुरत नथी, परन्तु ते लेखना अन्दर जे गीत गाया छे तेज जोवाना छे. आत्र लेखोमां वधारे महत्ववालो बीषय तो आ छे के तमे मेझरनामुं लखवा बाहर पड्या छो परन्तु तमे ढूंढीयामां केना शिष्य हता ! संवेगी मां क्यारे आव्या ? दीक्षा कोनी पासे लीधी : तमारु नाम ज्ञान सुन्दर कोणे आप्युं ? इत्यादि.
लेखक लखेछे के आ प्रश्नो नो पहेला उत्तर आपो अने पछीज बीजाना उपर लेख लखनो, अर्थात् पछी मेझरनामुं लखजो.
अहो ! आ केवुं आश्चर्य ? विद्वानो विचार करी शके छे के
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