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महा विदेह क्षेत्र अति भारी छे, पुष्कळावती विजया सारी छे पुंडरीगिणी नगरी थारी छे, धणी अमारो केवल धारी छे. सुणो० १ भरतनी वंदना लेजोजी, कागळ पर चित्त देजोजी; सुर भक्तिमा मत रीझोनी, उपकार गरीब पर कीजोजी. सुणो• २ चउ संघ गुणनी खाणो छे, पण भरतनी वातो जाणो छे; शं लखं नहीं परिमाणो छे, थोडामां घणुं ए पीछाणो छो. सुणो० ३ दुकान आपनी चाले छे, चोरे चारे दिशि महाले छे; दिन दिन घाटो घाले छे, पण हजु काम कांइ थाळे छे, सुणो० ४ पोलीस माल उठावे छे, वळी चोर चोर करी धावे छे वार्ड क्षेत्रने खावे छे, ए न्याय भरतमां पावे छे. सुणो० ५ मुनिमें गुमास्ता तेवा छे, ते पण चोरो जेवा छ छोडी दुकाननी सेवा छे, ते खाय माल नित्य मेवा छे. सुणो० ६ घरमा पुरो तोटो छे, माणे खरचो अति मोटो छे पुरुषार्थतणी पण खोटो छे, तेथी पुण्य अहींथी छेटो छे. सुणो० ७ श्वेतांवर दिगंबरना, झघडा गच्छ मतांतरना; स्थानकवासी ढुंढकना, वळी भीखम तेरा पंथीना. सुणो० ८
१ शासन. २ कुदर्शनी, कुलिंगी, पासत्था, मायाचारी. ३ आचायादि उपदेशक अनेक क्लेश झघडा फेलाववाना उपदेश करे छे. . ४ क्षेत्र ते शासन अने वाड ते समाजना आगेवानो पदवीधर पुरुषो
आचार्य उपाध्याय पन्यास विगेरे. ५ साधुसमाज, श्रावक वर्ग. ६ रोज रोज जैनोनी संख्या घटे छे.
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