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कोई मठधारी बनी रह्या, कोइ लोभी लालचिया थया; कोई मान पुजामां फसी गया, कोई शासनने निंदावी रह्या सुणो०९ हवे मेहर नजर अमपर कीने, भरतनी कांइ खबर लीजे; देवा योग्य शिखामण दीजे, तो ज्ञान कहे कारज सीझे. सुणो० १.
(हे नाथ कागळनो उत्तर केम नथी आप्यो)
हवे हुंडी लखु छु ते तुर्त सिकारो.
भक्ति हृदयमा धारजोरे-ए देशी. कागळ कां न वांचीयो रे, माचीओ घोर अंधार; हुंडी सिकारो नाथनी रे, न करो देर लगार हो जिननी. कागळ ० १ स्वस्तिश्री पुष्कलावतीरे, महाविदेह क्षेत्र मोझार; पुंडरीगिणी नगरी भलीरे, जहां वस्या मुज भरतार (रक्षक) हो का०२ वंदना वांचजो साहेबारे, हुंडी लखं हजुर; नाथ नहीं हमणां मरतमा रे, मचीयो कलियुग क्रूर. हो० ३ सीलकमांहे नाणुं नथी रे, लक्ष कोडाधिप नाम: वादी आवे बारणे रे, नहीं चाले वातोथी काम. हो० ४ . संयमथी शिथिल हुआ रे, नहीं रह्यं आतम लक्ष; सम्यग् ज्ञान दूरे धर्यु रे, लै बेठा पोतानो पक्ष. हो० ५
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मातम लक्ष;
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