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________________ (७०) तीर्थ यात्रा अधिकार. दोहरा. तीर्थ तीर्थपति तणुं, तीर्थ उतारे पार तीर्थ सेवा जे करे, धन्य तेनो अवतार. तीर्थ यात्रा करवी कही, आचारांगनो लेख; . सम्यक्त्व शुद्ध निर्मळ हुए, बहुलां आगम पेख. . . ढाळ २३ देशी पूर्वनी आगम जलनिधि भयो, मुनि हंसा हो ! करे नित्य कलोल; तप संयमनी यात्रा, जुओ हो! भगवती खोल. सु. १ माम गाम जई विचरे, कांई करे हो ! स्वपरनो उद्धार विहार करतां तीर्थो नमे, करै हो ! ते भवनो पार न्याय उपार्जित द्रव्यथी, पोते हो! शुभ राखे भाव; पुद्गलनी इच्छा नहीं, श्रावक हो ! जाणे चोकनो दाव. सु. ३ छरी पाळी करे जातरा; देवे हो ! बीजाने सहान; चैत्य उद्धार करावतां, सार्या हो ! केई आतम काज. जीव तणी जतना करे, नहीं बोले हो ! कदी मृषावाद, पर धनने वांछे नहीं, नहीं सेवे हो ! विषय आस्वाद. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005581
Book TitleMajernamu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year
Total Pages144
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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