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(२३) एको साहू एक्कावी साहुणी, सन्वय सट्टीय । आणा जुत्तो संघो, सेसो पुण अहि संघाओ ॥
याद राखशो के आजना सुधरेला लोको आवी खोटी धमकीयो थी कदी पण डरवाना नथी, माटे दश बोलनी साथे एने पण उंडा
ओरडामां मुको. ___ म्हारे निर्भय थईने कहे जोइये के " बाबा वाक्यं प्रमाणम् " नो जमानो हवे अस्ता चले चल्यो गयो छे. आपणी नजर आगळ देशभक्तो देशनी उन्नति माटे केदके काला पाणी थी लगार पण डरता नथी अने देशनी उन्नति माटे कमर कसी तैयार थया छे, त्यारे आ वीर पुत्रो अने पच्चीसमां तीर्थकर नेवो संघ आ समाननी अधोगति केम जोई रह्यो छे ?
हालमा केटलाक शासन प्रेमीओए. समानने माटे केटलाक प्रश्नो जाहेरमा मुक्या छे, परन्तु झघडाचारीओना साम्राज्यमा माते महत्वना प्रश्नाने स्थान मल तो दूर रह्यं परन्तु केवा भयंकर रूपमा ते प्रश्नोने उतारी संघमां क्लेशना कांटा पाथरी दीधा छ, आवी स्थिती जोई कटिबद्ध थयेला शासन हितेषियो मुंझाई जाय तेमां नवाई जेवं शं ? कारण के आ दुराचारीओनी प्रवृत्ति आनथी ज नथी परन्तु अनादि कालथी चाली आवे छे, जुवो महानिशीथ सूत्र अ० ५ मामां श्री धर्मश्री नामना तीर्थकर ना वारे हुन्डाव सर्पिणीना प्रभावं थी चैत्यवासी शिथिलाचारी या दुराचारीओनुं खूब जोर चालतुं हतुं अने तेन वखते सुविहित शासन
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