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________________ (२४) प्रमाविक श्रीकमलप्रभाचार्य ते चैत्यवासीओना टांटीया तोडवाने तैयार न हता, परन्तु ज्यां दुराचारीओनुं साम्राज्य होय त्यां सत्य वक्ता उपर पण आक्षेप करका दुराचारीओ कसर राखता नथी. ते सर्व उक्त शास्त्रथी जोई लेवु । हालमां पण आ वीर शासनमां अन्दरखाने हुन्डावसर्पिणीना जोरथी चैत्यवासी लोको पोताना स्वार्थ माटे शासन डोलाववामां काई कचास राखता नथी, तमन पूर्वाचार्यो वखतो वखत तेओना दुराचार दूर करता हता. जुवो "संघपट्टकादि ग्रन्थ, पूर्वाचार्यों चैत्यवासीओनो चैत्यवास. छोडाव्यो हतो, परन्तु तेओनी इन्द्रीयपोसक प्रवृत्ति अने सुख शीलिया पणुं तो. घणा काळ सुधी एमर्नु एम चाल्युं आव्यु । एटला माटेन महात्मा पुरुषो वखतो वखत पोकार करता ज आव्या छ, जुवो संघपट्टक, सन्देह दोहावलि, अध्यात्मकल्पद्रुम अने. हमणा थोडा काळमां थयेला महात्माओना वाक्य श्री आनन्द घननी महाराज कहे छेगच्छना भेद बहु नयण निहाळता; तत्वनी वात करता न लाजे, उदरभरणादि निज काज करता थका, मोह नडीया कळी. काळ राजे॥ मत मत भेदे रे जो जई पूछीये. सहुथापे अहमेव * महात्मा देवचन्द्रनी द्रव्य क्रिया रुची जीवडारे, भाव धर्म रुची हीण; उपदेशक पण तेहवा शुंकरे जीव नवीनोरे. ॥ चंद्रा०॥ महामहोपाध्याय श्रीमान् यशोविजयजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005581
Book TitleMajernamu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year
Total Pages144
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size8 MB
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