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(२७) क्शे नहि, ते शिवाय विचारी भोली बेनो उपधानादि क्रिया कोनी पासे करशे ! एटले भाई चुपचाप बेसी रहो !
महानुभावो ! आवा दुराचारी गुरुओथी नथी रहेतुं शासन के नथी रहेतो धर्म, अने आवा झघडाचारीओ के पोते रागद्वेषना कीचडमां खुचेलाना उपदेशथी समाजनो सुधारो थवानो नथी अगर खुल्ला दिलथी कहो तो जैन समाजने क्लेश, कदाग्रह, धर्मभेद, अने पुरुषार्थहीन बनाववामां अग्रेसर कारण होय तो आ दुषित गुरुओज छे. बन्धुओ ! आजे पोप, पादरी, मठधारी, महान्त के भट्टारकोने दूर मुकवाथीज लोको उन्नति एवो शब्द काने सांभलवा सीख्या छे. ___ कदाच आपणे आपणा गुरुओना छतां दोषोने रत्ननी पेठे तीजोरीमां मुकीये, पण ज्यारे अन्य समाजना लोको प्रसिद्ध पेपरोमां " एक जैनाचार्यनो अत्याचार" एवा लेखो लखे तेने हजारो नहि पण लाखो विद्वानो वांचे त्यारे शुं जैनोने सरमावा जेवू नथी ? एक नहीं पण एवा गामो गाम हजारो दाखला तैयार छे, ज्यारे जैन पत्र अने जैन धर्म प्रकासक जेवा महत्ववाला पेपरो वखतो वखत पोकार कर्या करे छे के-आज काल साधुओने परिग्रहना पोटला वधी पड्या छ, भने ग्रहस्थीओने त्यां मुकवानो प्रचार 'घणो वधी पड्यो छे इत्यादि, त्यार पछी एवा सडेला थांभलाओने • मकानना आधारभूत कहेवा ? नहिन कहेवा, माटे एवा थांभला
ओने अज्ञान के दृष्टि रागथी निर्ग्रन्थ कहेवा ते महा मोहन कारण
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