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"जैनना आजना अंकनो वधारो"
[किताब-चर्चापत्र-1
OK-- M (जिसको.) नश्वेतांबरधर्मोपदेष्टा-विद्यासागर-न्यायरत्न महाराज-शांतिविजयजीने मुरत्तिबकिया; मुकाम-पुना-मुल्कदखन,
- - समे दलिचंद-सुखराज,-जेसिंग-साकलचंद,और दक्षिणनिवासीके-लेखकाजवाब दर्जहै, ARTIA ब-खुबीदेखलो,
सदर बजार सिरोही
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[इसको] शेठ-दोलतरामजी-खूबचंदजी-साकीन पांचोरामुल्क-खानदेशने फायदेआम-जैनश्वेतांबर संघके छपवाकर जाहिर किया,प्रथमआवृत्ति, २५००
दोहा, समकीती जीवकोढीभलो-जाके देह-न-चाम, विनाभक्ति भगवानके-कंचनदेह निकाम,-१,
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अहमदाबाद-सिटी-मिंटिंग प्रेसमें-शाहचंदुलाल छगनलालने छापा,
dokसंवत् १९७४- (मुफ्त,-)- सन, १९१७
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[-दिबाचा,-] --
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किताब-चर्चापत्रबहुतअर्सेसे बनाइगइथी, मगर ब-सबबहै कमफुरसतके छपवानेमें देरीहुइ, अवतोछपकर आपलोगोके सा
मने रखीगइहै,-इसकोपढलिजिये, चर्चाकग्रंथपढनेसे आदमी है १ होशियारहोजाताहै, और ग्रंथकर्ताकी दिइहुइदलिले एकसाथ १ पढनेका मौकामिलताहै, इसमेदलिचंद-सुखराजके पुछेहुवेसवा
लोके जवाबदर्ज है, जेसिंग-सांकलचंदके और दक्षिणनिवासीके लेखकाभी जवाब इसमेंमौजूदहै, आपलोगदेखिये ! बयानशुरुआतकिताब-दरबयान प्रतिदिनचर्या,-बीचबयान जिनमंदिरके। दर्शन,-दरबयान बांसकादंडा,-और देसकालका सहारा,-बी चबयान पंन्यासपदवी और जातिस्मर्णज्ञान,-दरबयानरैलविहार, वयानतीर्थकुल्पाकजी, औरउसका जीर्णोद्धार,-दरबयान, रत्नकंबल,-बयानपुस्तक छपवानेके बारेमें,-बीचबयान वचनसे शासनदेना,-बयान दीपकरखनेके बारेमें,-दरबयानस्थंडिलभूमि,बीचबयान विद्यासागर न्यायरत्नपदवी,-दक्षिणनिवासीके लेखकाजवाब,-अखीरभाग चर्चापत्र,-और-निर्णयचर्चापत्र,वगेरालेख काबिलदेखनेके है,-आपलोग ब-गौरपढे, और सचबातका इम्तिहानकरे,-सच पानी डुबता नही और आतीसमें जलता नही, दुनियामें सचहमेशां सबपर शिरोताज बना रहताहै,
. (ग्रंथकर्ता,-)
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SAUGUAVAVANAGAUR
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AURBANIBANAVARANAWARANAL
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[चर्चापत्र-] (जैनश्वेतांबरधर्मोपदेष्ठा-विद्यासागर-न्यायरत्न
महाराज-शांतिविजयजी तर्फसे.)
[इसमे दलिचंद-सुखराज,-जेसिंग सांकलचंद,-और दक्षिणनिवासीके लेखका जवाबदर्ज है, बखूबीदेखलो, :-]
F( कवित्त,-) अरिहंतके जपेसे अष्टकर्मको विनाशहोत-सिद्धके जपेसेसब सिद्धपदपाइये, भाचारजकेजपेसे आतमविशुद्धहोत-उपाध्यायके जपेसेसदाउंचपदपाइये, साधुकेजपेसे सर्वकामसिद्धहोत-अष्टसिद्ध नवनिधदायककहाइये, कहतहैविनोदिलालमनवचनतिहुंकाल-परमेष्टिकेध्यानसे परमपदपाइये,१
___ (दोहा.) ग्यारह अंग बारहउपांग-चौदहपूरब सार; .. याहुमेते निकसो-महामंत्र नवकार,:- १. जिनवानी जिने रुचकरी-पाइतत्वपरतीत, जिने जिनवानी जानीनही-भटकेभवभयभीत, २ मुनकर वानी जैनकी-क्यौनधरे भनधीर, धर्म विनायह जीवकी-कौनहरे भवपीर, माला फेरत हाथमें-जीभहिलतमुखमांहि, मनुवा फिरत बजारमें-येभी समरन नाहि. ४
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कानहर भवपार,
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चर्चा पत्र.
( बयान शुरुआत किताब . )
१ - इस किताब में अवल दलिचंद मुखराजकेलेखका जवाब दियागया है, बादऊसके जेसिंग - सांकलचंदके लेखका - और - अखिरमें दक्षिणनिवासीके - लेखका जवाब बतलायागया है, इसको एकदफे अवल
अखीरतक पढलिजिये और सचवातका इम्तिहान किजिये, अगर आपको जैन अखबार पढने का शौख है - तो तारिख (१३) जुलाइ सन ( १९१५ ) के जैनअखबार में - मेने - जो दलिचंद सुखराज खिवेसरासाकीन धुलिया - जिलेखानदेश के ( २३ ) सवालोके जवाबदियेथे. आपलोगोने पढेहोगे, - दलिचंदसुखराज खिवेसराने ऊनसवालोपर फिर कुछलेख लिखा है, उसका जवाब इस किताब में देता हूं. सुनिये !
२
२- आगे दलिचंद सुखराज अपने लेखकी शुरुआत में लिखते है किशांतिविजयजी संवेगी मुनि कहलाकर मुनिधर्म के विरुद्ध बरतावदेखकर मेने ( २३ ) प्रश्न पुछेथे, -
( जवाब . ) पुछेथे - तो - ऊनका जवाबभी ऊसीवख्त - जैन-औरजैनशासन अखवारमें देदियाथा, - आपलोगोने पढाहोगा, शांतिविजजीके पास माकुल जवाबोंकी कभी नही, जिसमहाशयको मेरा बरताव निधर्म से विरुद्ध दिखाइदेवे, -घो - मेरेपास - न - आवे, और मुजको मुनितरीके - न - माने, में - किसीकों कहनेनही जाताकि- आपलोग मुजकों मुनितरीके मानो, जिसशख्शमें अगर श्रद्धा-ज्ञान और चारित्र मौजूद है, और ऊसकों किसीने मुनितररीके नही माने-तो- क्याहुवा ? और अगर उसमें श्रद्धाज्ञान- चारित्रगुण नहीं है, और ऊसको - किसीने मुनितरीके माने तो क्या हुवा ? शांतिविजयजी हिंदुस्थानके तमाम मुल्कोमें सफरकरचुके है. गांवगांव - और - शहरशहरमें
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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब.
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जहां श्रावकों की आबादी है, - ऊनको मुनितरीके माननेवाले श्रावकबहुत है.
अगर मेरा बरताव मुनिधर्मसें विरुद्ध दिखाइदेताथा, -तो- तुमखुद- शहरधुलिये जब - मेने - संवत् (१९७१) की सालका चौमासा किया - मेरी व्याख्यानसभा में धर्मशास्त्रसुननेको क्यौंआतेथे ? क्या ! ऊसख्त में रैलमें नहीवेठताथा ? जब मेराआना शहरधुलिये के टेशनपरहुवाथा, - धुलिये के श्रावक श्राविका - मयवेंड-बाजा वगेरा जुलुसके पेशवाइकों मेरे सामने आयेथे खयालकरनेकी जगह हैकि - अगर धुलिये श्रावक मुजको - मुनितरीके- नहीमानते होते - तो - असा क्यों - करते ? और बडीआर्जु - मिन्नत करके मेरेकों चौमासा क्यों ठहराते ?
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३- फिर दलिचंद सुखराज अपनेलेखमें बयानकरते है कि - उत्त रदाताने सत्य से सो कोसदुररहकर उडाउ जवाब दिये है, प्रश्न एकढंगसे किये गये है, उत्तर दुसरे ढंग से दिये है. -
( जवाव . ) कौन कह सकता है उत्तर दुसरेढंगसेदिये है. जिससे सवाल कियेथे उसी ढंग से जवाबदिये है. मेरेदियेहुवे जवाब इन्साफसे - सोकोश दुरनही, बल्कि ! बहुत नजदीक है, बजरीये जैन और जैनशासन अखरके हजारां शरूशोने बांचेहोगे, -कइमहाशयोके अभि प्रायभी मेरेपास आयेहुवे मौजूद है,
४ - आगे दलिचंद सुखराज तेहरीरकरते है, उत्तरदाताने प्रश्न : के आसयकों छिपानेका भरपेट प्रयत्न कियाहै, उसकी समालो चना करना मुजे जरुरी मालुम हुवा,
( जवाब . ) चाहे जितनी समालोचना करते रहो, -में- उसपर प्रतिसमालोचना करने लिये मुस्तेजहुँ, सवालकर्त्ताके आशयकों-बोछिपावे जिसकेपास माकुलजवाब न हो, जिसकीमरजीहो व मरी
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चर्चापत्र. लेखके सामनेआये, मेरीलेखनी जवाबदेनेकों तयारहै, सवालकाके सवाल कौनसे अवधिज्ञानीकेथे, जो जवाबदेनमें सौचनापडे,
५-फिर दलिचंद सुखराज इसमजमूनकों पेंशकरतेहै, मुताजी प्रथवीराजजी-रतनलालजीने शांतिविजयजीकी तुलना तीर्थंकरोसे करनाचाही, परंतु प्रमाणशुन्य असालिखनेसे शांतिविजयजीका बरताव संवेगीधर्मानुसार नहींहोसकता, ____ (जवाब.) जैसे दुसरेसंवेगीमुनिने पंचमहाव्रत लिये है, शांतिविजयजीनेभी लिये है, जैसे दुसरेसंवेगीमुनिकों घरहाट-हवेली-खेतीवाही नहीं, वैसे शांतिविजयजीकोंभी नही, जैसे दुसरेसंवेगीमुनिगौचरीजाते है, शांतिविजयजीभी जाते है, जैसे दुसरेसंवेगीमुनि याख्यानधर्मशास्त्रका बांचते है, शांतिविजयजीभी बांचते है, जैसेदुसरेसंवेगीमुनि-पीलेकपडे पहनते है,-शांतिविजयजीभी पहनते है, फिर किसप्रमाणसे कोइकहसकतेहै ? उनका बरताव संवेगीधर्मानुसार नही, शांतिविजयजीका बरताव संवेगीधर्मासारहै-जभी-तो-हिंदके गांवगांवमें जहां श्रावकलोग आवादहै, उनकों-मुनितरीकेमानते है, रैलमें बेठकर एकगांवसे दुसरेगांव सफरकरते है, तोभी-श्रावकलोग मयबेंड-बाजावगेराजुलुसके पेशवाइकरते है, उनका-व्याख्यान सुनते है, चौमासा ठहरानेकेलिये विज्ञप्तिकरते है, रैलकिराया वगेरा खर्चदेकर आदमी शाथ भेजते है, एकगांवसे दुसरेगांवतक पहुचानेजाते है, वंदनाकरते है, और भक्तिकरते है, इससे ज्यादा और क्या होगा ? यूँतो-तीर्थकरोकोंभी-कइलोग-तीर्थकरतरीके नही मानतेथे, औसा - पलोग जैनशास्त्रोमें सुनतेहो,-इसीतरह-शांतिविजयजीको कोइश्रावक-- जैनमुनितरीके-न-माने-तो-क्याहुवा?-धर्मश्रद्धाजोराजोरी नही होसकती, श्रीयुत-प्रथवीराजजी रतनलालजी मुताका लिखना कोइममागशून्य नहीं, बल्कि ! प्रमाणयुक्तहै,
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दलिचंद सुखराज लेखकाजवाब.
६ -- आगे दलिचंद सुखराज बयान करते है, मुताजीसाहब मथराजजी रतनलालजी आपशांतिविजयजीके भक्तहोगें, मगर हममे आपकों इसबातका कबपुछाथा, जिससे जैनपत्रका देढकोलम व्यर्थकालाकिया,
( जवाब . ) तुमने नहीपुछाथा - तो क्या हुवा ? सचबात लिखनेका सबकोहक है, जैनपत्रका देढकोलम कालानही किया है, बल्कि ! स aaraलिखकर उजला किया है, उजलेकों कालासमजना गलत हैं, श्रीयुत प्रथवीराजजी रतनलालजी मुता - बेशक! शांतिविजयजीके भक्तश्रावक है, क्योंकि वे - शांतिविजयजीकी धर्मतालीम से मूर्तिपूजापर श्रद्धावा लेबने है, जिसमहाशयने जिससे बोधपायाहो, उसकी -वे-ताफकरे, इसमें कौनताज्जुब की बात है, -
७--- फिर दलिचंद सुखराज तेहरीरकरते है, में - यहबात पहलेजानता था कि मेरे प्रश्नो के जवाब शांतिविजयजीको अपनीसहीसे देना मुश्किलहोजायगा क्योंकि उनके जवाब मे मेरे पास बहुतसा मखजन है. -
( जवाब . ) तुमारेपास जितना मखजन है, उससेज्यादामखजन शांतिविजयजीकेपास मौजूद है, मुजे किसीकेजवाबदेनेमे को मुश्किल नही, चाहे जितने सवालकरतेरहो, -और-मेरेसे माकुलजवाबपावेरहो, जैनपत्र मे कितने महाशयोके सवालोपर जवाबदिये है, देखलो ! तुमारे सवालो के जवाब दे नक्केलिये अपने हस्ताक्षरकी सही से सामने आगया, श्रीयुत - प्रथबीराजजी रतनलालजी अपने गुरुकी वकालतकरे, इसमें कौनताज्जुब की बात है ? जिनको जिसका उपकार हो, उनकीa - वकालत करेहीकरे, मेरेदियेहुवे जवाबोंमें कोइक्या ! पोल निकालेगा ? - वे इसकदर मजबूत है, जिसमें शुचिप्रवेशहोना भी मुश्किल है, और अगर मेरेदियेहुवे जवाबोंकों पढकर किसीका anaढ जायतो
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चर्चापत्र.
बढजाआ, इसमें कोइक्याकरे ? तीर्थकरदेवीकी धर्मतालीमसेभी किसीकिसीका शकबढजाताथा, बतलाओ ! इसमें क्या! तीर्थकराका दोष समजना? हर्गिज नहीं !! बल्कि ! समजनेवालोकी समजका फकथा,-में-उभेदकरताहुं मेरेजवाबोंकोंपढकर कइमहाशयोका-शकरफा होजायगा, और-जो-मेरेसेरुबरु नहींमिले है,---मेरेलेखकों पढकर वाकिफहोजायगेकि शांतिविजनीका बरताव इसतरहकाहै,
(बयान-प्रतिदिनचर्या.)
८-आगे दलिचंद मुखराज इसमजमूनकों पेशकरते है, शहरधुलियेमें शांतिविजयजीका ठहरना दशमहिनेहुवा, जिसमें सवेरेसें बारांबजेनककी शांतिविजयजीकी दिनचर्या सुनलिजिये ! साढेसात तथा आठबजे शय्यासे उठना, सुगंधीतेल लगाना, चाहदुध पीना, गपशप लगाना, तबतक भोजनकावख्त होजाताथा, इतनेमें बारांबजेतकका दाइम बीतजाताथा.
(जवाब.) खूबकहा ! इतनालिखना औरभी भूलगयेकि-शांतिविजयजी व्याख्यानभी नहीबांचतेथे, फरमानतुमारे अगर-में-आठवजे शय्यासे उठताथा,-तो-बतलाइये ! व्याख्यान कवबांचताथा ? संवत् (१९७१) का चौमासा जबमेने शहरधुलियेमें किया, उसवख्त तुमभी मेरीव्याख्यानसभामें आतेथे. साढेआठवजे-तो-मेरे व्याख्यानका टाइमथा, मेरीप्रतिदिनचर्या तुमने क्यालिखी, जिसने मेरीप्रतिदिनचर्या-न-मुनीहो सुनलेवे, चारघडी पीछलीरातसे-में-उठताहुँ,अपराजिता महाविद्या-जो-महानिशीथसूत्रके मूलपाठमे लिखी है, पढताहुं, बादउसके प्रतिक्रमणकरताई, फिर प्रतिलेखनाकरके स्थंडिलभूमि जाताहुँ, दोघडीदिनचढेपर अगर अपनाचंद्रस्वर चलताहो-तो
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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. चाहदुध पीताहं, नहीतो! वोभी पडारहताहै, क्योंकि-में-हरवख्त खानपान और विहारमें स्वरोदयज्ञानसे बरतावरखताहुँ, साढेआठब: जेसे साढेनववजेतक व्याख्यानधर्मशास्त्रका बांचताहुँ, दशवजेतक ज्ञानचर्चा-खतमहोनेपर थोडा विश्रामलेकर ग्यारहबजे गौचरीकों जाता. हुँ, और बारांवजेतकआहारपानीसे फारकहोताहं, नवीनग्रंथवनाना, आयेगयेहुवे शख्शोसे धर्मकेवारेमें बहेसकरना, प्रतिलेखना करना, और शामकों आहारकरना, बादप्रतिक्रमण-ज्ञानचर्चा-और-योगाभ्यास चितवनवगेरा कार्योंसेंनिवर्तनहोकर शयनकरताहुँ, इसतरह संक्षिप्तदिनचर्या-मेरी है,-मुजेधर्मकामसे फुरसतही नहीमिलती,-तोगपशप क्याकरूंगा, ? मेरेसहवासमें आनेवाले खुदजानतेहोगे, चाहेजितना कोइमेरेबारेमे लेखलिखे, इनवातोसें-में-कुछ परवाह नहीकरता,
(दर बयान जिनमंदिरके दर्शन,) ९.-फिरसवालकाने जिनमंदिरके दर्शनकेबारेमे पुछाहै, इसके जवाबमे-मालुमहो-रोगादिकारणहो, वारीश होतीहो,-बडेबडे शहरोमें जहां जिनमंदिर दुरहो,-तो-अपनेपास स्थापनाजीमें-जो-सिद्धचक्रजीकायंत्र-या-चौविसीजीकी तस्वीरहोती है, उसकेदर्शनकरलेवे, असाहुकमहै. जिनप्रतिमा-चाहे-छोटीहो,-या-बडी-एकसमान पूजनीक कही...
१०-आगे दलिचंद सुखराज लिखते है, जिनप्रतिमा छोटीबडी समानहै-तो-फिर शत्रुजय गिरनार आदितीर्थोकी यात्राजानेकी क्या गरज! यदि जानेकी आवश्यकताहै,-तेवतो-शहरमें-जो-प्रतिष्टितमंदिरहोते है, वेभी-एकप्रकारके तीर्थमानेगये है,
. (जवाब.) हरेकशहरके मंदिरतीर्थ नहीमानेगये है, सवालका जैनशाखोमे तलाशकरे, जैनशास्त्रोंमे तीर्थ-वे-मानेगये है, जहां तीर्थक
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चर्चापत्र... रोके कल्याणिकहुवेहो, जहां जैनमुनियोंकी मुक्तिहुइहो, या कोई अतिशययुक्तक्षेत्रहो, शांतिविजयजीकी दलिल कमजोरनही है,-जो-दुटजाय, शत्रुजयगिरनारवगेरा तीर्थ-मुताबिक जैनशास्त्रके जैनतीर्थ माने गये है, इसलिये उनतीर्थोंकी जियारतजाना जैनोकाफर्ज है, शांतिविज मजीने मजकुरतीर्थोंकी जियारतकिइहै, उनकी बनाइहुइ कितावजैनतीथगाइड देखो ! उनोने कितनेजैनतीर्थोकी-जियारत किइहै, ? .. (बीचबयान बासकादंडा-और देशकालका सहारा.-) ... ११-फिर दलिचंद सुखराज वयान करते है, जैनशास्त्रोमें-तोबांसकादंडा रखनाकहा, मगरआजकल देशकालानुसार शिशमकाया-सागुनका-दंडा रखाजाताहै, जवशास्त्रोमें बांसका दंडारखना आपमंजुरकरते है,-तो-फिरदेशकालका बहाना लेकर आपके शांतिविजयजी बांसकादंडा क्यानही रखते ? -- (जवाब.) यही-तो-शांतिविजयजीकी तर्क हैकि-जैनशास्त्रोमें जैनमुनिको-बांसकादंडा रखनाकहा, फिरआजकल जैनसंवेगीमुनि-शिशमका-या-सागुनकादंडा क्यौरखते है, ? दलिचंद सुखराज इसबातकी तलाशकरे, शांतिविजयजीकी दलिल उंचीडिग्रीकी है.
आगे दलिचंद मुखराज तेहरीरकरते है,-आप देशकालका सहारालेकर चरितानुवादपर जाते है,
(जवाव.) देशकालका सहारा कौनलेते है ? और चरितानुवादपर कौनजाते है, इसबातकी फिर तलाशकिजिये,-में-चरितानुवादपर नहीजाताहुं, बल्कि साफकहताहुँ,-विधिवादपर चलो, क्योंकिविधिवाद खास तीर्थकरोका फरमानहै, उसपर सवजैनोंकों पावंदरहनाचाहिये, विधिवाद सर्वव्यापी है, औरचरितानुवाद अल्पव्यापी है,
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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. विधिवादमें लिखाहै,-जैनमुनिको उद्यान-बनखंड-या-पहाडोकी झुफामेरहना, विधिवादमें लिखाहै, विहारमेंभी जैनमुनिकों नोकरचाकर-या-श्रावकवगेराकी सहायता नहीलेना, असाहयक होकर पवभकीतरह अप्रतिबद्धविहारीहोना, विधिवादमें लिखाहै, जैनमुनि नवकल्पीविहार करे, विद्यापढनेकेलियेभी एकशहरमें-या-गांवमें ज्यादे अर्सेतक-न-रहे, विधिवादमें लिखाहै-जैनमुनि दिवसके तीसरेप्रहरमें भौचरी जावे, विधिवादमें लिखा है जैनमुनि दिवसमें-एकही दफे साना खावे, और आहार लेने जावे जब बेतालिस तरेहके दोषरहित भिक्षा लेवे, विधिवादमें लिखा है किसीके लडकेकों विनाहुकम उसके बारीशोके दीक्षा-न-देवे, विधिवादमें लिखा है-जैनमुनि-योगवहन करते वख्त अकेले उपवास, एकासने-या-आचाम्ल कर लिये और योगवहन होगया, ऐसा-न-समजे, बल्कि ! जिस शास्त्रका योगवहन करना शुरु किया हो,-उस शास्त्रका मूल पाठ और अर्थ कंठाग्र करे. ___ अगर कहा जाये. पहले जैसी पुन्यवानी नहीं रही, पहले जैसा चलपराक्रम नहीं रहा, वीतराग संयम नहीं रहा, सातमे गुणस्थानसे उपरके मुनस्थान नहीं रहे, इस लिये देशकालका सहारा लेना पडता है, और द्रव्य क्षेत्र काल भाव देखकर बर्तना पडता है, तो-फिर सौचो ! इरादे धर्मके द्रव्य क्षेत्र काल भावकी सडकपर आना पडामानही ? पंच महाबत धारी उत्कृष्ट संयमी बनना सहेज नहीं है, जसपर अमल करना चाहिये, . १३-फिर दलिचंद सुखराज इस मजमूनकों पेंश करते है, प्रवचनसारोद्धार शास्त्रमें-जो-चमडेके सपाट पहननेके सबष बतलाये है, उनमेसे किस सबबसे-शांतिविजयजी चमडेके सपाट पहनते है ?
(जवाब) तारिख (१३) जुलाइ-सन १९१५ के-जैनपत्रमें प्रव
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चर्चा पत्र.
चनसारोद्धारका पाठ - और उसका अर्थ-छपवा दिया है, -आप लोगोने देखा होगा. अगर शक हो तो - प्रवचनसारोद्धार शास्त्र देखकर अपना शक - रफा करो, शांतिविजयजी उनही सबबोसे चमडेके सपाट पहनते है, जिस जैनमुनिके पांव के तलवो में दर्द हो, पांवके तलवे फट जाते हो, उस हालत में चमडेके सपाट पहनना हुकम है, -पांव के तलवो दर्द होना - या - फटजाना, - यहबात अटवीकेही तालुक नही, चाहे अटवीहो - या - शहरहो - उपरबतलाये हुवे - सववोसे जैनमुनि चमडेकेसपाट पहन सकते है, शांतिविजयजी की दिइहुइदलिल इसकदर मजबूत हैकि - किसीहालत में नही सकती, प्रवचनसारोद्धारशास्त्रकों सवालकर्त्ता मानते है - या नहीं ? अगरमानते है - तोइसबातकों मंजुरकरे, अगर नही मानते है - तो बदलेका पाठदेकर मजकुरदलिलको तोडे, मवचनसारोद्धारशास्त्रकों माननेमें सवालकर्त्ता - इनकार नहीकरसकते, क्योंकि - उनोने अपनेहीलेखमें जैनमुनिकों अप्रशस्तभाषा- नही बोलने के बारेमें उक्तशास्त्रका पाठदिया है, -
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१४ - आगे दलिचंद सुखराज बयानकरते है, - प्रवचनसारोद्धारकी बातों शांतिविजयजी अपने मतलबकेलिये मंजुररखते है, मगर शांतिविजयजीकोतों तीर्थकरोके वचनोशिवाय जैनाचार्यों के वचनोंपर पुरा विश्वास भी नही -
( जवाब.) बेशक! मुजेसे जैनाचार्यों के वचनों पर पुरा विस्वा - सनही - जो खिलाफहुकम तीर्थकरोंके बयानफरमागयेहो, और यह बातठी कभी है कि - जैनमें तीर्थकरदेवोसें ज्ञानमें कोइबडानही, - इसबातको कौन जैन गलत कह सकेगा ?-में- अपनेमतलबको नही लेता हूं, -तीकरोके वचनोकों लेता हूं, प्रवचनसारोद्धारकेवचनपर सवालकर्त्ताको शकहो - तो - दुसरेजैनशास्त्रकापाठ देकर उसको - रदकरे. में - उसपर जवाच दुंगा, -
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दलिचंद सुखराजक लेखकाजवाब. ११ (बयान पंन्यासपदवीऔरजातिस्मर्णज्ञान,-) . १५-फिरदलिचंद मुखराज तेहरीरकरते है,-मुनि-सौभाग्यविजयजीके जवाबमें शांतिविजयजी लिखते है, श्रीमान् रत्नशेखरसूरिजी कुछ केवलज्ञानी नहीथे, छद्मस्थथे, चारज्ञानके धारकभी भूलते चलेआये,
(जवाब.) बेशक ! मेंतो अबभी कहताहुँ, श्रीमान रनशेखरमूरिजी केवलज्ञानीनहीथे, और चारज्ञानके धारकपुरुषभी भूलतेचले आये, पंन्यासपदवीके बारेमें हकीकतमुनिये ! किसी जैनागममें पंन्यासपदवी नहीलिखी, अगरलिखीहो,-तो-कोइ-पाठबतलावे, आजतक किसीने पाठनहीवतलाया, कोइकहते है, आचार्यपदमें गिनलो, कोइ कहते है, पंडितपदमें दाखिलकरलो, भगर विनाशास्त्रसबुतके कोइजैन इसबातकों मंजुरनही करसकते,
१६-आगे दलिचंद सुखराज इसदलिलको पेंशकरते है, प्रवचनसारोद्धारकेकी-नेमिचंद्रमरिजी कौनसे तीर्थकर-गणधरथे, जिनके वचनोपर चमडेकेसपाटपहननेका सहारालियागया,
(जवाव.) अगर प्रवचनसारोद्धारके कर्ताके वचनप्रमाणीक नहीथे-तो-तुमने खुदअपनेलेवमें-जैनमुनिकों अप्रशस्तभाषा नहीबोलनेके संबंधकापाठ क्यों मंजुररखा ? परउपदेशमें कुशलबनना, इससेअपनेलेखपर खयालकरनाठीकहै, इन्साफकहता है जिसजिस जैनाचार्यके बनायेहुवे ग्रंथमें-जोजोवचन मुताबिक विधिवादकेहो,-उनको-मानना चाहिये,-जोजो खिलाफहो,-उनकों नहीमाननाचाहिये, यह सिधीसडकहै,-चाहे प्रवचनसारोद्वारके की-नेमिचंद्रमारजीहो-या-कोइ दुसरे जैनाचार्यहो,-तीर्थकरगणधरोसे ज्ञानमें कोइबडानही,
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वर्षापत्रः ... १७-फिरदलिचंद सुखराज इसमजमूलकों पेशकरते है।-पांतिविजयजीने-जातिस्मर्णज्ञानकी चर्चामे लिखाहै,-नहश्या भाविनो देवा-नचजातिस्मृति नैणां,-इसदीपमालाकल्पके आधे श्लोकसे अपनामतलब लेनाचाहाथा,-यह कौनसे तीर्थंकर गणघरोके वचन है ?
(जवाब.) दीपमालाकल्पका यहफरमान मुताबिक विधिवादा है, इसलिये प्रमाणीक मानागयाहै,-विधिवाद तीर्थकर-गणघरोका कहाहुवाहोताहै, मेनेजो जातिस्पर्णज्ञानके बारेमें दीपमालाकल्पके आ. धेश्लोकसेअपना मतलबलेनाचाहाथा,-इसमें कौन बेंमुनासिबबातथी ? तीर्थकरदेवोने एक-त्रिपदीसेही द्वादशांगवानीका मतलब लियाहै, सचीमिशाल एकभी बहुतकाम देती है. नकली मिशाले हजारां-होतोभी-क्याकामकी, ?
दीपमालाकल्पमें-जो-कलंकीराजाका होना तीर्थकरमहावीरस्वामी, के निर्वाणवाद (१९१४) वर्समें लिखाहै, यह बयान सूत्रमहानिशीथके पाठसे विरुद्धहै, और महानिशिथमूत्र खास विधिवादहै,-जो-बात खिलाफविधिवादके हो-वो-नहीमाननाचाहिये, महानिशिथसूत्र देखिये, उसमें क्यालिखाहै, उसमें साफलिखा है, कलंकीराजा-श्रीप्रभअणगारकी हयातो होगा, युगप्रधानयंत्र देखाजायतो-उसमे-श्रीप्रभअणगारको आठमें उदयके पहले युगप्रधानलिखे है, जिसको शकहो महानिशिथसूत्र औरयुगप्रधानयंत्र देखे, पांचमें आरेमें धर्मका तेइसदफे उदय-और तेइस: दफेअस्तहोगा, जमानेहालमें तीसराउदय चलताहै, कलंकीराजाका: होना जो श्रीप्रभअणगारकेवख्तमें महानिशीथसूत्रमेंलिखाहै-वो-आठभेउदयमें होगा,
१८-फिर दलिचंद सुखराज लिखते है,-जो-बात अपनेमतलबकी होती है वो मानलिइजाय,-और-जो-आपके विचारसे विरुध्धहो,---
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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. उसलेसिया पाटयह कहदेते है, यह क्वन कौनसे आगमोके हैं,
. (जवाया) में-तो-अवर्षी यही कहता हुँ,-आगमपचनसे खिला फबात न मानो जैनमजहमें तीर्थकर गणधरोसे ज्ञानमें कोईवडा नहीं, इसीलिए-में-वासपातमें फौरन ! कहदसाहु-यह-वचमा कौनसे जैनागमके है,
१९-आगे दलिचंद सुबराज वधानकरते हैं,-शांतिविजयजी चमकेसपाट पहनतेहै, मगर देशकालानुसार आज कोइभी संवेगी साधु नहीं पहनते, क्योंकि-शास्त्रविरुद्ध है, __ (जवान..) चमडेके सपाट जैनमुनिकों अमुक-अमुक कारणोसे पहनता साखविरुद्धः नहीं, बल्कि ! प्रबचनसारोधारशास्त्र साबीती देताहैकि-इनइनसबबोसें जैनमुनि चमडेके सपाट पहने, तारिख (१३) जुलाइ सन (१९१५) के-जैनअखबारमें पाठभी-भेने जाहिरकरदिया. है, दुसरे संवेजी-जैनमुनि-नही पहनते, इससे शांतिविजयजीको क्या ?
और इसलेखमें सवालकाने देशकालकानुसारका सहास क्यों लिया,? शास्त्रक्रे पाठपर खयाल क्यों नहीं किया ?
. २०-फिर दलिचंद सुखराज तेहरीरकरते है,-आप हरेकवातमें इराक्ष बीचमें लातेहो, यह आपकी कमजोरी है,
(जवाब.) जो लोग इरादेकी बातकों नहीं समजसकते, उनकी कममोरी है, जैनशास्त्रोमें तीर्थकर-गणधरोने-जोजो-बातें कही है, इरादेपरही कही है,-इरादा कहो-या-मनःपरिणाम कहो, बात एकहीं है, जैनमुनिकों चौमासेमे विहारकरना नहींकहा, और बीमारीवगेराका-कारणहो, तो-इरादेधर्मके करनाभी कहा, जैनमुनिकों हरीवन-- स्पतिका स्पर्शकरना नहीकहा, मगर किसीखाडेमें गिरपडेहो,-तोइरादेधर्मके हरीवनास्पति-लतावेलडीको पकड़कर उपरआजानाभी
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. चर्चापत्र.... कहा,-जैनमुनिकों सचितजलका स्पर्शकरनानही कहा, मगर मुल्कोंकी सफरकरतेवख्त-रास्तेमें अगर नदीआजाय-तो इरादेधर्मके उसमें पांवदेकर सामने कनारे चलेजानाकहा, कहिये ! इरादेकी सडक कितनी मजबूतहै, जिसपर बातबातमें आनापडताहै, और जिसबातपर खयालकरोगे, बीचमें इरादा जरुरआयगा,
(दखयान-रैल विहार.) २१-आगे दलिचंद सुखराजने-रैल-और-मोटारके बारेमे जो कुछ मजमून पेशकियाहै, उसका जवाबदेता, सुनिये !-आजकलब-सबबरैलके कइश्रावक अपना बतनछोडकर हजारां कोशोपर जा बसे है, जहांकि-जैनधर्मका-निशानभी-नहीपाता, और-वहांकोइ गीतार्थजैनमुनि उनकोरास्ता धर्मकावतलानेवाले नहींभीलतेउसहालतमकोइ गीतार्थजैनमुनि ब-जरीये रैलके वहांजावे,-और-उतश्रावकको तालीम धर्मकी देवे,-तो-फायदाधर्मकाहै, मुकगुजरात-काठियावाडमें जहां जैनोंकी आबादी-ज्यादाहै, वहां जैनमुनिको पैदल विचरना मुश्किल नही, अहमदावादसें सुरत बडोदेतक-इधर महीकांठसे पालगपुरतक विचरनाभी कुछ मुश्किलकी-बातनही, मगर तमामहिंदुस्थानमें जहां श्रावकोकी आबादीदुरपरहै,-विनासहायताके आनाजाना दुसवारहै,अगरकहाजाय जहां श्रावकोकी आबादी-न-हो, या-कमहो, जैसी जगह द्रव्यक्षेत्रकाल भावदेखकर सहायता लेवे तोकोइहर्जनही, फिर द्रव्यक्षेत्रकालभावकी सडकपर चलिये,
जैनमुनिकों मुल्कोंकी सफरकरतेवख्त-अगररास्तेमें नदीआजाय तो-नावमें बेठनाहुकमहै, नाव पानीमेंचलती है, रैल जमीनपरचलती है, जैसे नदीमें नावकेचलनेसें पानीकेजीवोकी हिंसाहोगी, मगरइरादे धर्मके भावहिंसानही, वैसे रैलमेंभी इरादेधर्मके जैनमुनिको भावहिंसा
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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. १५ नही, अगरकोइ जैनमुनि-शौखसे-या-अपनेआरामकेलिये रैलसवारी करे-तो-बेशक ! पापहै, औरउसकी मुमानियतभी है, क्योंकि-उसका इरादा धर्मपर नहीरहा, आवश्यकमूत्रके अवल अध्ययनमें लिखा हैकि-धर्मरुचिअणगार नावमेंबेठकर गंगानदीउतरे, जब इरादेधर्मके नावमें वेठना भावहिंसा नहीं-तो-रैलभी एकतरहकावाहनहै, और रैल किसी एकशख्शकोलिये नहीचलती, चाहे उसमेंकोइ बेठनेजावेया-न-जावे, वो-अपनेटाइमपर आयाजायाकरती है, जहां संसारका कोइमतलब-न-हो, सिर्फ ! धर्मोपदेशदेनेका सबबहो, वहांइरादा धमकाहै, इसीलिये इरादेधर्मके-में-रैलमें बेठकरमुल्कोकी सफरकरता हुं, और श्रावकोको तालीमधर्मकी देताई, मेरे उपदेशसे कइजगहजैनश्वेतांवरमंदिरोका-तीर्थोका-और धार्मिक कार्योंका सुधाराहुवाहै, होताहै, और आगेको होनेका संभवहै,
२२-फिर-मेने-जो-दलिचंदसुखराजके तेइससवालोके जवाबमे सूत्रआवश्यककापाठदेकर कहाथाकि-एकधर्मरुचिनामके जैनमुनि नावमेंबेठकर गंगानदीकेपारउतरे, वहठीककहाथा, इसपरसवालकालिखतेहै, उसपाठका अर्थकियाहै, वो-व्याकरण और धर्मशास्त्रसे विरुद्ध एवं असत्यकियाहै,___(जवाब.) कौनकहसकताहै असत्यकियाहै, देखिये वो-पाठयहां फिर दिखलाताई, और उसका अर्थभी करदिखलाताई, सुनिये ! .
लोकेन बहुना साई-नावा धर्मरुचिं मुनि,
गंगामुत्तारयामास-नंदनामकनाविकः १, इसपाठका माइना यहहुवाकि-एक धर्मरुचिनामके जैनमुनि-नावमेवेठे और नंदनामके नाविकनेउनकों गंगानदीकेपार उतारे, इसपा
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चर्चापन.
छका अर्थचाहे व्याकरणके कानुनसे करो, या भावार्थसे करो, मात नहीआय-जो-उपर लिखीगइहै, __२३-आगे दलिचंद सुखराज इसमजमूनको पेंशकरते है, धर्मरुचिमुनिस्वयं शांतिविजयजीकी तरह किरायादेकर गंगापार नहीं ऊतस्थे, - (जवाब.) मेने मेरेलेखमें औसाकही लिखाहैकि-धर्मरुचिमुनिकिराया देकर गंगापार उतरे, आर लिखाहै, तो-कोइ बतलावे, शांतिविजयजी-सकरके वख्त जबजब नावमें-या-रैलमें बेठते है, किराया शाथमे रहनेवाले आदमी देते है, और गांवगांवके श्रावकलोग अपनीभक्तिसे-खचंदेकर आदमी शाथभेजते है, (बीचबयान तीर्थकुल्पाकजी और उसका जीर्णोद्धार.)
२४-फिर दलिचंद सुखराज वयान करते है, जो तीर्थ कुल्पाकजीकेलिये लिखा गया है,-चो-विल्कुल गलतबात है, कुल्पाकनीके जीर्णोद्धारके बारेमें वहां के श्रावकोका विचार शांतिविजयजीके जाने के पहलेसेही-होरहाथा, और प्रतिष्ठाभी विकानेरनिवासी-ऊपाध्यायश्री शमलालजी गगीजीके हाथसे हुइथी, ___ (जवाब.) तीर्थ-कुल्पाकजीके मंदिरकी प्रतिष्टा दुसरीदफे हुई मही, जो पहले की है, वही कायमहै, अगर मेरेजानेसे पहलेही जीर्णोद्धारकराने का विचार श्रावकोकाया, को-ओरेजाबेसे पहले जीर्णोद्धारकाचंदाकरके कामशुरु क्यानही कियाथा? तीर्थकुल्फाजीके मंदिरका जीर्णोद्धार संवत् (१९६५) में-मेरे ऊपदेशसेहुवाहै, उससाल मेराचौमासादखनहैदराबादमेंहुवाथा, मेने दखनहैदराबादके जैनश्वेतांबर श्रावकोको व्याख्यानसभा ऊपदेशदिवाकि-आफ्लोग-मुल्कमारवाडसें यहां व्यापारकेलिए आए, दौलत पैदाकिद और नजदीककै जैनतीका
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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. जीर्णोद्धार नहीहुवातो ठीकनही, उनोनेकहा आपकुल्पाकजी तीर्थमें पधारे, हमलोग शाथचलते है, उसवख्त श्रावकोकेशाथ दखनहैदराबादसे मेराजाना तीर्थकुल्पाकजीमें हुवा, जो-जवाडा-लाइनमे आलेरटेशनसे दो-कोशदुरहै, तीर्थकुल्पाकजीमें कुल्पाकनामका एकगांव आबादहै, मगरउसमें जैनश्वेतांबरश्रावकोकी आबादी बिल्कुल नहीं, तीथकुल्पाकनीका मंदिर देखागयातो निहायतपुराना और बेंमरम्मत पाया, मेने उसवख्त उसमंदिरके बाहारके दालानमे बेठकर दखनहैदराबाद-और-सिकंदराबादके श्रावकोकों उपदेशदिया, उसीवख्त मेरे रुबरु श्रावकोने जीर्णोद्धारके खर्चेका चंदाकिया, और जीर्णोद्धारका काम शुरुहुवा,-आज उसतीर्थकी निहायतरकी हुइहै, संवत् (१९६६) में-शहरमद्रासका चौमासा पुराकरके जबदुसरीदफे मेराजाना तीर्थकुल्पाकजीमें हुवाथा, उसवख्त तीर्थकुल्पाकजीके मंदिरके शिखरपर धजादंड चहायागयाथा, प्रतिष्टा नहीकिइगइथी, उसवख्त विकानेर निवासी-उपाध्यायश्रीरामलालजी गीजीभी वहांआयेथे-और-मेरी
औरउनकी वहां मुलाकातहुइथी, दरयाफत कियाजाय उसवख्त कुल्पाकजीके मंदिस्का धजादंड चढायागयाथा-या-प्रतिष्टा हुइथी, ?देखिये ! इसतरह मुल्कदखनमें रैलविहारसे मेराजानाहुवा-तो पुराने जैनतीर्थोंका उद्धारहुवा,-या-नही ? इसीलिये-में-इरादे धर्मकेरैलविहार करताहुं..
(बयान-रत्नकंबल.) ____२५-आगे. दलिचंद-सुखराज तेहरीर करते है. पेस्तरके जैनमुनि लाखलाख रुपयोकेरनकंबल औढतेथे, यहवात जुठहै,___(जवाब.) आवश्यकसूत्रमें बयानहै,-एक-शिवभूतिनामके जैनमुनिने स्थवीरपुरनगरके राजासे रनकंबल लियाथा, पेस्तरके जैन
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चर्चापत्र.
मुनि रत्नकंबल ओढतेथे, जभी जैनशास्त्रोमे उसका बयानदर्ज है, जैन'मुनिकों वस्त्रपात्रवगेरा उपधिमें ममत्वभाव नहीरखनाकहा, ममत्व 'भावरहित योग्य और किंमतीवस्त्र ओढेतो कुछहर्जनही,
२६-फिर दलिचंद सुखराजइसदलिलकों पेंशकरते है, जैनशास्रोमें साधुको अचेलक लिखाहै, अचेलकका माइना कल्पसूत्रादिग्रंथोमें और टीकाओमें मानोपेत जीर्णप्रायवस्त्र रखनाकहा, औरआपतो पचरंगी रेशमी उनीरुमाल और दुशालेऔढते है, फिरआपमें अचेलकत्वधर्म कैसेमानाजाय ?
(जवाब.) जैनशास्त्रोमें जैनमुनिकों श्वेतमानोपेत जीर्णप्रायवस्त्र रखनाकहा, फिर पीतवस्त्ररखनेवाले जैनमुनिमें आपलोग अचेलकत्व धर्म-मानतेहो-या-नहीं? और जीर्णप्रायवस्वकी जगह नयेमलमल और जगन्नाथीके कपडेलेवे-तो उसजैनमुनिको आपलोग जीर्णप्रायव स्वधारी कहेगें-या-कैसे ? जीर्णप्रायवस्वधारी जैनमुनिको-जीर्णवस्त्रही लेनाचाहिये, अगरकहाजाय-श्वेतमानोपेतवस्त्रकी एवजमें पीतवस्त्र-जोधारणकियेगये है यह इरादे धर्मरक्षाकेकारणसे कियेगये है, तो फिर कारण और इरादेकी सडकपर चलिये, और खयाल किजिये, इरादेकी बात कितनी मजबूत ठहरी, जिसपर हरवख्त आनापडताहै,
___२७-आगे दलिचंद सुखराज इसमजमूनकों पेंशकरते है, रंगबेरंगी दुशालेरखना, और दिनमें तीनदफे पुशाकबदलना, क्या ! इसको अचेलकवधर्म कहते है ? क्या!कपडेबदलनेमें आत्माका साधनहै ? __(जवाब.) अगरकपडेबदलनेमें आत्माका साधननहीं है,-तो-बतलाइये ! जैनमुनि-शुभह-शामको प्रतिलेखना करतेवख्त-दो-दफे कपडेक्यों बदलते है, ? शांतिविजयजी दिनमे तीनदफेपुशाक नहीबद-. लते, जैसेदुसरे जैनमुनि प्रतिलेखनाकेवख्त दोदफे बदलतेहै, उसी
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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाष. १९ तरह-शांतिविजयजीभी-दोदफे बदलतेहै, रंगबेरंगीदुशाले और रेशमीरुमालरखनेका जवाबमुनिये! पीलेकपडे रखनाअह एकतरहका रंगहुवा, एकसरहनारंग मंजुरहुवा-तो-दुसरीतरहकारंग-रखनेसे चारित्रधर्म : चलानहीजाता, जैनमुनिकों जरीकाकपडा-रखनामनाहै,-सो-शांतिविजयनी-जरीकेकपडे नहीरखते, फिरऊनको कोइक्याठपका देसकतेहै,? ____२८-फिर दलिचंद सुखराज बयानकरते है, रुइकीगादी बीछा.. करसोना-मुगंधीतेललगाना, गृहस्थसे आहारमंगाना, इनमें रोगादि-: कारणबतलाया,-तो-शांतिविजयजीके शरीरमें औसाकौनसा रोगहै ? ... (जवाब.) रोगादिकारणहोना-शरीरकाधर्म है, तीर्थकर महावीरस्वामीके शरीरमें केवलज्ञानकी हालतमेंभी रोगपैदाहुवाथा-तो-दुसरे .. जैनमुनिके शरीरमें रोगपैदाहोना कौनताज्जुकीबातहै ? शांतिविजयजीके मस्तकों और नेत्ररोगहै-जभीतो-चश्मे-लगाते है, और सुगंधीतेल इस्तिमालकरतेहै,-रोगादिकारणसे जैनमुनिको-शतपाक-सहस्रपाकऔर-लक्षपाकतेललगाना हुकमहै, रोगादिकारणसे जैनमुनिकों घासबीछाकरसोनाहुकमहै, घासपरकंबल-और-कंबलपर-रुड़काकपडा बिछायाजाताहै, गृहस्थसे आहारमंगवाकरखानेका जबावसुनिये ! कभी रोगादिकारणहोजायतो जैनमुनिकों गृहस्थसे आहारमंगवाकरखानेकाभी हुकमहै, इसमेंबातक्याथी,? ....
२९-मेनेजो-सूत्रआवश्यकका पाठदेकर लिखाथाकि-एकजैनमुनिके शरीरमें रोगथा, उसहालतमें-एक-जीवानंदजीनामके वैद्यने उसनैनमुनिके शरीरपर लक्षपाकतेल मर्दनकियाथा, गोशीर्षचंदन लक: गायाथा, और रत्रकंबल ओढायाथा, इसपर दलिचंद सुखरान लि... वते है-देखिये ! महाव्याधिहोनेपरभी-उसआत्मार्थी साधुने अपना : उपाव शांतिविजयजीकी तरह बीचमें इरादा धर्मकालाकर नहीं किपा-और-न-किसीसे कहकर करवाया..
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चर्चापत्र. . ___(जवाब.) अगर बीचमें इरादाधर्मका लाकर उसआत्मार्थीसाधुने इलाजनही करवायाथातो-जिसवख्त-जीवानंदजी वैद्यने उस जैनमुनिके रोगका इलाजकरना शुरुकिया उसवख्त मना क्यों नही किइ ? और जैसा क्यों नहीकहाकि-हमारेरोगका इलाजकोइ मतकरो, हमअपने पूर्वकृतकर्मकों भोगतरहेंगे, दरअसल इरादेधर्मकेही उसजैनमुनिने इलाजकरवायाथा, और-जीवानंदजी वैद्यने इरादेधर्मकेही इलाजकियाथा, इसवातकों कोइ गलतनही कहसकता,
आगे दलिचंद सुखराज तेहरीर करते है,-गौतमगणधरने अष्टापदपर्वतपर तापसोकों भोजनकरवायाहै,-वो-गौचरीलाकर करवायाहै, गणधर गौतमस्वामीने मौललेकर नहींकरवाया,
(जवाब.) शांतिविजयजी कब कहते है, गौतमस्वामीने मौल लकर तापसोंकों आहारकरवाया ? अगर किसीजगह जैसाकहाहो,तो-साबीतकरे, या-मेरेलेखों औसा कोइलेखवतलावे, गौतमस्वामीने अशापदपर्वतकेनीचे थोडीसी-सीरसें-जो-पनरांसो तापसको आहार करवाया, अक्षीणमहागस नामकी लब्धिचलाइ-यह-इरादेधर्मके चलाइ-पा-किसलबबसे ? अगर कहाजाय इरादेधर्मके चलाइथीतो-खयालकिजिये-इरादेधर्मकी सडक कितनीमजबूतहै, जिसपर गौतमगणधर जैसे महापुरुषभी चलतेथे,
३०-फिर दलिचंद मुखराज इसमजमूनकोंपेशकरते है, कल्पसूत्रमें नवरसप्रधाना विकृतयोभी क्षणंवारंवारं आहारयितुं नकल्पते,-सापाठहै, इसकामतलब यहहैकि-बलवान् और निरोगीमुनिकों घृतदुग्धवगेरा पौष्टिकपदार्थोंका आहारनही करनाचाहिये, __(जवाब.) इसकेमाइनेमें वारंवारशब्दकों क्यौछोडदिया? सवाल कतिलाशकरे इसपाटमें देखो ! वारंवार घृतदुग्धवगेरा पौष्टिकपदार्थ
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दलिचंद मुखराजके लेखकाजवाव. २१ खानेकीमनाहै, मगरकभीकभी खानेकीमनानही, शांतिविजयजी घरके भेदी है, कल्पसूत्रकापाठ हरसाल पर्युषणोकेदिनोंमें बांचते है, उनसे क्याछिपाहै ? .. .... ........ ......
३१-आगे दलिचंद सुखराज लिखते है, देवपुरजीनके बगीचेमें खुर्शीवीछाकरवेठे-इसमें वनास्पतिकासंघटन-हुवा-या-नही ? ___(जवाब.) देवपुरजीनके बगीचे खुर्शीवनास्पतिपर नहीवीछीथी, अलगवीछीथी, इसलियेसंघटन नहींहुवाया,-यहजिक्र संवत् (१९७२) के-प्रथमवैशाखसुदी सप्तमीफेरौजकाहै, जबकि-में-शहर धुलियेसे रवानाहोकर सीरपुरकों जाताथा,-शहरधुलियेके श्रावक-श्राविका भयबेंडबाजावगेरा जुलुसके मुजकों देवपुरजीनके बगीचेतक पहुचानेकों आयेथे. वहां-मेने श्रावकोकोंधर्मोपदेश सुनायाथा,-ऊसवख्त-एकशख्शने खुर्शीलाकर मेरेपासरखीथी, और उसपरमेरा बेठनाहुवाथा, जैनमुनिकों खुर्शीपरबेठनेसें ऊनकाचारित्रधर्भ नहीचलाजाता, जैसैपाट पाटले-और व्याख्यानकातख्त वगेरालकडेके बनेहुवेहोतेहै, वैसे-खुशीभीलकडेकी बनीहुइहोतीहै,
३२-ज्योतिषशास्त्र एक दीव्यज्ञानहै, और उर्दू जबानमें उसकों नजुम कहते है,तीर्थकर-गणधरोंने-जैनागम-चंद्रप्रज्ञप्ति-सूर्यप्रज्ञप्ति-वगेरामें नजुमका बयानफरमाया, महानिशीथसूत्रमें महाविद्याओ बतलाइ, नजुम और मंत्रशास्त्रका जानना अगर पापहोता, तो तीर्थकरगणधर जैनशास्त्रोमें उसकाबयान क्यों फरमाते ? जैनाचार्य भद्रबाहुस्वामीने उपसर्गहर-तथा-ग्रहशांतिस्तोत्र बनाये, जैनाचार्य-सिद्धसेन-दिवाकरजीने कल्याणमंदिर और मानतुंगसूरिजीने भक्तामरस्तोत्र-बनाये, और उसमें बीजमंत्र दर्जकिये है, फर्जकरो ! अगर मंत्रशास्त्रका जानना मुनासिब होतातो-असा क्योंकरते ? इनके बनानेवाले जै
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चोपत्र.
नाचार्य पंचमहाव्रत. धारीथे-या-कौन ? अगरकोइ जैनमुनि. इरादे : धर्मके किसीश्रावककों जैनस्तोत्रके आराधनकी विधि बतलावे तो : कोइहर्जनही, शांतिविजयजी इसीतरह जैनस्तोत्रकी विधि योग्यश्राचककों बतलाते है, और वे योग्यश्रावक धर्मकाममें द्रव्य खर्चकरते है, शांतिविजयजीके शाथ-पंडित-या-लेखक-वगेरा-एकदो-आदमी हमेशां वनेरहते है, अगर कोइ श्रावक शांतिविजयजीके शाथ चलनेवाले नोकरकों रास्तेके खर्चकेलिये कुछद्रव्य देवे, तो उस श्रावककों पुन्यहोनेका सबबहै, इसमे शांतिविजयजीको परिग्रह क्या लगा?
ज्योतिषशास्त्र के बारेमें बयान सुनिये,-ज्योतिषशास्त्र सचाहै, मगर उसका जाननेवाला सचाहोनाचाहिये. अगर ज्योतिषशास्त्र सचा-न-होता-तो-ज्योतिषी लोग-जमीनपर बेठकर आस्मानके सितारोका-हाल और चंद्रसूर्यका ग्रहणहोना कैसे बतला सकते, ? ज्योतिषशास्त्रकी सचाइका यहीतो-नमुनाहै, कितनेक वसैसे-वजरीये नजुमके निकालाहुवा हरसालका बरतारा मेरी तर्फसे जैन अखबारमें छपताहै,-आपलोगोने पढाहोगा, तारिख-२३-जुलाइसन-१९१६के जैनअखबारमें छपाथाकि-जैनधर्मका बरतारा सत्यहुवा, जैनश्वेतांबरधर्मोपदेष्टा-विद्यासागर-न्यायरत्न-महाराज शांतिविजयजीसाहेबने जैनपत्रमेसाल (१९७३) का-हाल कैसाहोगा ? उसपर एकबरतारेका दियाहुवावयान तारिख (११) जुन-सन. (१९१६) के-अंकमें छपाहै, उसमें लिखाहै-वारीशका योग आषाढसुदी छठ-और-सातमके रौज होगा, उसरौज वारीश बहुत अछीहुइ, और एकमास हुवा वरसाद नहीथा, बीज और तरु-सुकने लगेथे, वारीशहोनेसे बहुतफायदा हुवा, आषाढसुदी पुनमऔर-हिंदी श्रावणवदी एकम-गुजराती आषाढवदी एकमके रौज .
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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. २३ वारीशहोगी, जैसा बरतारेमें लिखाथा, यहयोगभी सत्यहुवा, और वारीश बहुतहुइ,-देखिये-संवत् ( १९७३ ) के-वरतारेके बारेमेंमजकुर बयान छपाथा, आमलोगोने पढाहोगा,
३३-आगे दलिचंद सुखराज बयानकरते है, करना-कराना कुछ नही, नाहक ! जैनमजाकों तेजीमंदीका आडंबरबतलाना कारआमद नही होसक्ता,___ (जवाब.) शांतिविजयजी किसीकों कहनेनहीजातेकि-आपलोग मुजे नजुमकेबारेमें पुछनेआओ,-हरसाल-ब-जरीयेनजुमकेमेरा-बरतारा जनअखबारोमें छपताहै, कभीदेरहोजाती है-तो-कइमहाशय बजरीयेचीठीके पुछतेहैकि-आपकीतर्फसे निकालाहुवा बरतारा इससाल अबतक क्यों नहींछपा ? विनाइल्मपढे किसीका आडंबर नहीचलता, आडंबर भी जमीचलताहै, अगरऊसइल्मको पढेहो,
(बयान पुस्तक छपवाने के बारेमे.) ३४-फिर दलिचंद सुखराज तेहरीरकरते है, पुस्तक छपवानेके लिये कुछ सारे पैसे नहीदिएजाते, कुछहिस्सा दियाजाताहै, और आपतो-कुल्लरकमलेलेतेहो, फिरवसौंतक-वे-पुस्तके प्रगटहोतीनही,___ (जवाब.) कौनकहसक्तेहै, ? पुस्तकवौंतक प्रगट नहींहोती ? चाहेदेरसे प्रकटहो-या-जल्दीसेहो, मगर-जो-किताब मेरीबनाइहुइ छपनाशुरुहुइ-वो-छपतीजरुरहै,-चाहेकोइ उसकाइम्तिहानकरकेदेखे, पेस्तरके जैनमुनि-हस्तलिखितंपुस्तकसे जैनसमुदायकों फायदा पहुचातेथे, जमानेहालमें छपेहुवेपुस्तकोसे कामलियाजाताहै,-द्रव्यका खर्च-तो-दोंनोकामकेलिये होताहै,-पुस्तकबनाना-या-छपवाना-सहजबात नही, जो आजबनाइ-और-कलछपगइ, पुस्तकछपवानेकेलिये
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२४
चर्चा पत्र.
रकम - श्रावकोसे अवललेने के सबब-तीन है, - पहले तो धर्मकाममें ढीलकर नाठीकनही, दुसरसिबब यह है कि - प्रेसवालोंकों एडवान्स भेजना पडता है, तीसरासबब - एक ग्रंथवनानेकेलिये अनेकग्रंथम गवाने पडते है, और सवसाधनमिलानापडते है, इसी सबब सबरकम पेस्तरलिइजाती है, और वो रकमशाथमें रहनेवाले कार्यकर्त्ता केपास रखीजाती है, और उसका हिसाब - पुस्तक छपने के बाद देखा जाता है, - जैनोके धार्मिक काय देके लिये ग्रंथबनाकर छपवाना - या - जैनअखबारोमें धर्मकेबारेमें लेख लिखना, जैनमुनिका फर्ज है, -
३५ - आगे दलिचंद सुखराज इस दलिलकों पेंशकरते है- दखन - हैदराबाद के श्रावकोंसे - संवत् (१९६५) में - रुपये (१००) लियेथेवो - पुस्तक छपवाकर ऊनकोनही भेजी गई, वो रकम कहाँ है ?
( जवाब . ) जो - पुस्तक दखन - हैदराबादकेश्रावक संवत् (१९६५) की - सालमें छपवानाचाहते थे, और उसके लिये ऊनोने - जो - (१००) रुपये दियेथे, वो पुस्तक ऊतनेरुपयोंसें छपनहीसक्तीथी; इसलिये संवत् ( १९६६ ) में जब मेराजाना दुसरीदफे तीर्थकुलपाकजी और दखन - हैदरावादतर्फ हुवा - तब वह किश्राव कोकों कहा गया कि - उतने रुपयो में - बो- पुस्तक नहीछपसक्ती, ऊनानेकहा, हमनेज्ञान पुस्तकके - निमित्त-सो- रुपयेदिये है, दुसरेज्ञानपुस्तकेके काम में लगा देना, इसलिये वो रकमदुसरे - ज्ञानपुस्तक के काम में लगादिइगइ है, -- (दवान वचन से शासन देना.)
३६ - फिर दलिचंद सुखराज इसमजमूनको पेंशकरते है, सख्त जवान और अश्लीलजवानका जमीनआस्मानका अंतर है - और - प्रवचन सारोद्धार पृष्ट (४३६) पर - मुनिकों - छह प्रकारकी अप्रशस्तभापा बोलनेका मना-लिखा है. -
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दलिचंद-सुखराजके लेखकाजवाब. . २५. - (जवाव.) मना लिखाहै,-तो-किसअपेक्षासे लिखाहै ? इसका खुलासा लिखिये ! शास्त्रकारोने हरेकबातमें अपेक्षारखी है,-विनाअपेक्षाके कोइवचन नही, और उसीकों समजना चतराइका काम है, दरअसल ! पांचइंद्रियोकी विषयपुष्टीकेलिये जैनमुनिकों अप्रशस्त भाषा नही बोलनाचाहिये इरादेधर्मरक्षाके-या-शिष्यकों विनय सिखलानेकेलिये वचनसशासन देना मनानही, देखो आवश्यकसूत्रमें क्या ! लिखाहै ? उसपर खयालकरो,
(आवश्यकसूत्रके-अवलअध्ययनमें पाठहैकि,-)
जह जच्च वाहलाणं-अस्साणं जणवएसु जायाणं, . सयमेव खलिग गहणं-अहवावि बलाभिउगेण,
पुरिसझाएवि तहा-विणीय विणयंमि नथिअभियोगो, सेसंमि अभियोगो-जणवयजाए जहा आसे,
। (टीका,) यथा जात्यवाहिकानामश्वानां जनपदेषु मगधेषु जातानां स्वयमेव खलिनस्य-कविकस्यग्रहणं अथवापि बलाभियोगेन तथा पुरुषजातपि पुरुषविशेषेपि विनीतविनये अभ्यस्तवैनेयिके नास्ति अभियोगः-शेषेविनयरहिते बलाभियोगो वर्तते,
माइनाइसपाठका यहहैकि-जैसेजातिवान् घोडा-अपनीलगामकों खुदलेलेताहै,-तो-उसकेलिये बलाभियोग करना कोइजरुरतनही-जो घोडाखुद लगामको नहीं लेताहै, उसकोबलाभियोगकरके लगामपहनाइ जातीहै, इसीतरह विनयवानशिष्य अगरखुदसमजजाय-तो-ऊसको व वनसे शासनदेना कोइजरुरतनहीं,-जो-शिव्य विनयरहितहो-वो-वचनसे शासनदेनेके काबिल है, देखिये ! आवश्यकसूत्रकापाठ-जोकि-खास ! विधिवादकाहै, इसपर गौर किजिये ! शिष्यक विनयसिखलाना और न्यायरुपी अंकुशौरखना गुरुकाफर्ज है, इसीलिये वचनसे शासनदेना फरमाया,
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२६ .
चर्चापत्र, -- ३७-आगे दलिचंद सुखराज लिखतेहै,-रायपसेणीसूत्रों परदेशीराजाका-और-ज्ञातासूत्रने धर्मरुचि-अगगारका-उदाहरणदेतेहो, मगर-वो-चरितानुवादहै,___ (जवाब.) जो-बात-मुताबिक विधिवादक है-वो-खास ! विधिवादहै, उसको चरितानुवादकहना गलतहै, जैसे-तीर्थकर-गणधरोने जिसजिस बातकाहुकम फरमायाहो-और-मुताबिकउसके किसीने बरतावकियावो-खासविधिवादहै, चरितानुवाद नही, चरितानुवाद उसकानामहै, जिसवातमें तीर्थकर-गणधरोंका हुकम-न-हो,-औरवो-कामकोइकरे इसलिखनेका मतलब यहहुवाकि-परदेशीराजाकाऔर-धर्मरुचि-अणगारका उदाहरण-मुताबिकविधिवादके है, चरितानुवादकीतरह, त्यागनेयोग्यनहीं,-समजसको-तो-समजलो, बात क्याहुइ ? बात यहहुइकि-इरादेधर्मके वचनसेशासनदेना, खासविधिवादहै, इसमेंकोइशकनहीं, हरेकजैनमुनि-जब-व्याख्यान-सभामें धर्मशास्त्रवाचना शुरुकरते है, तो यहनिचे दिखलायाहुवा-श्लोकजरुर बोलते है-..
अज्ञानतिमिरांधानां-ज्ञानांजनशलाकया,
नेत्रमुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः-१ इसका माइना यहहुवाकि-अज्ञानरुपी-अंधकारसें अंधेवनेहुवे शख्शोके नेत्रोंमें जिनोने ज्ञानरुपी-शलाकासे-अंजनकिया-उसगुरु महाराजको नमस्कारहो, देखिये ! इसमें अझानतिमिरांधानां-औसापाठहै, इसकामलतब क्याहुवा ? सोचो !
(बयान-दीपकरखने के बारेमें,-) ३८-फिर दलिचंद सुखराज-बयानकरते है, दीपकरखनेकेबारेमें
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दलिचंद - मुखराज के लेखका जवाब.
पुछा गया था, इसके जवाब में कारणसे रखना कहते है, मगर शांतिविजयजी किसकारण से रखते है,
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( जवाब . ) शांतिविजयजी उन्हीकारणसे रखते है, जो-जो - कारण आवश्यक सूत्र प्रतिक्रमणअध्ययनमें लिखे है, सवालकर्त्ता मजकुर - सूत्र - खोलकरदेखे,—
३९ - आगे दलिचंद सुखराज तेहरीरकरते है, -कभी कारणकासहारा - कभी देशकालका सहारा - कभी रोगादिका सहारा - और कभी कुछ - मगर स्पष्टशब्दों में जवाब नहीदेना इसकी क्या ! वजह . ?
(जवाब.) इसकी यही वजह है कि - जैनशास्त्रामें जैनमुनिकेलिये कभी कारणकासहारा लेनाकहा, कभी देशकालकासहारा लेनाकहा, कभी रोगादिकासहारा लेनाकहा, शांतिविजयजी पेस्तर स्पष्टशब्दोंमें जवाब देचुके है, और अभीदेते है, शांतिविजयजी के जवाब में कोइक्या गलती निकालेंगे ? उनके जवाब में तेहरीरकरनेकी जगहनही, जैनशास्त्रों मे जैनमुनिकों रात्रीत विहारकरना नहीकहा, मगरकारण आनपडने पर रात्रीकोंभी विहारकरजाना हुकम है, - उत्तराध्ययन सूत्र ने बयान हैकि - एकचंडरुद्रनामके जैनाचार्यने रात्रिकेवरून विहार किया, देखिये ! यहकारणका सहाराहुवा - या- नही ? जैनशास्त्रोंमें जैनमुनिकों चौमासेकेदिनोमें बिहारनहीकरना, मगर रोगादिकारण आनपडनेपर चौमासेके दिनोमेंभी विहारकर नाहुकम है, कल्पसूत्रवृत्ति पाठक
अशिवे भोजनाप्राप्तौ - राज रोगपराभवे, चातुर्मासिकमध्येपि - विहर्तुं कल्पतेन्यतः
देखिये ! इसमे साफ लिखा है, - जैनमुनिकों रोगादिकारण होतो चौमासे के दिनों में भी बिहारकरजाना, बतलाइये ! यह रोगादिकारणका सहाराहुवा - या- नही ? पेस्तर के जमानेमें जैनमुनि - गांव के बहार ->
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२८ .......... चर्चापत्र. . द्यान-धनखंड-या-पहाडोकी गुफामें रहतेथे,-सवालकर्ता-बतलावे, आजकल-गावमे-और शहरोमे रहनेका रवाजदिखाइदेताहै, इसकी क्यावजहहै, ? अगर कहाजाय पहले जैसा-बलपराक्रम-रहा नहीं, इसलिये देशकालानुसार-चलनापडताहै,-तो-फिर सोचो ! देशकालका सहारालेनापडा-या-नही ?-जमाने. पेस्तरके जैनमुनिदिवसके तीसरेमहर भिक्षाकों जातेथे, आजकल दिवसके पहलेदुसरे प्रहरमें जानेकारवाज दिखाइदेताहै,-जैनशास्त्रोमें लिखाहै, जब उपवासव्रत करना-तो-पहलेरौज एकाशनाकरना, और पारनेकेरौजभी एकाशना करनाचाहिये, औसीप्रवर्ती नजर नहींआती, कहिये ! इसका क्यासबबहै, ?
४०-फिर दलिचंद सुखराज इसदलिलकों पेंशकरते है, व्याख्यानके विना बोलतेसमय मुखवत्रिकाकोंआप हाथमें नहीरखते है, इसका क्यासबुतहै, ?
(जवाब.) इसका यह सबुतहैकि,-भाषावर्गणाके पुद्गल चारस्पशी है, और वायुकायके जीवोका शरीर आठस्पर्शी होताहै, चारस्पशी पुद्गल-वायुकायकेजीवोंकी हिंसानही करसकते,
४१-आगे दलिचंद सुखराज इसमजमूनकों पेंशकरते है, जब शहरधुलियेसे शांतिविजयजी बंबइ गयेथे, जहांजैनोके हजारांघरहै, बहुतसे उपाश्रय और धर्मशाला मौजूदहै, उनकों छोडकर-न्यू-सरदार-आश्रममें ठेरनेका क्याकारण ! बंबइमे वहाँका श्रावकसंघ आपकास्वागत करनेको क्यानहीआया ?
(जवाब.) बंबइका श्रावकसंघ मेरास्वागतकरनेकों इसलिये नही आयाकि-मेने उनकों खबरनहीदिइथी, और में आंखकीबीमारीकेवारेमें डाक्तरकीराय पुछनेकों और चश्मोकी तलाशीकलिये बंबइगया
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दलिचंद-सुखराजके लेखकाजवाब. २९ था, अगर-में-बंबइके श्रावकसंघकों खबरदेतातो-मेरेस्वागतकों-वेजरुरआते, न-मेनेखबरदिइ-और-न-वे-आये, कहिये ! इसमेंदलिल क्याथी ? उपाश्रय-और-धर्मशालाछोडकर-न्यू-सरदार-आश्रममें ठहरनेका सबब यहथाकि-वहांकी हवा-आंखकीबीमारीकेलिये फायदेमंदथी, रोगादिकारणसे एकशहरसे दुसरेशहरजाना क्या ! भना है, ? हर्गिज ! नहीं, ! फिरमुजे इसबातपर कोइ. क्या ! ठपका देसकते है, ?
-संवत् (१९७०) की-सालमें शहरपुनेका चौमासा खतभकरके मृगशीरमहिनेभी मेराजाना चश्मोकी तलाशोकेलिये बंबइ हुवाथा, उसवख्तश्रावकोंको खबर नहींदिइथी-तोभी-मालुमहोजानेसेकरीब-दोसो-अहाइसो श्रावक-शिहोर-भावनगर-लींमडी-वढवाण अहमदाबाद-सुरत और मुल्कमारवाड वगेराके मेरेपास आयेथे, और ज्ञानचर्चा होतीथी. एकरौज परेल-मुकामपर जाकरशेठ-गोकलभाइ-मूलचंदजीकी जैनबोर्डिंगमें-ने-धर्मकी पुख्तगीपर भाषण दियाथा, आठरौज-बंबइमें ठहरनाहुवाया, मगर ब-सबब बहुतआदभीयोंकी मुलाकातले के फुरसत कममीलियी, और चश्मोकी तलाशीकाकामपुरा नहीवाथा. सिर्फ ! विलायतसे-जो-डबलबीचफ्रेम-सोर्ट-साइडके चश्मे आयेथे, उसके नंबरोकी तलाश करनाथावो-किइथी. देखिये ! विनाखबर दियेभी-श्रावकोको मालुमहोनेसे मुजे बंबइमें ज्यादाठहरना पडाथा, अगर-खबरदेकर जातातो-जमालुम-कितनाठहरना पडताथा ?
___ (दस्खयान-स्थंडिलभूमि.) ४२-मेनेजो पेस्तर तेइससवालोके जवावमें लिखाथाकि-बडेबडे शहरोमें-जैनमुनि शहरकेवहार स्थंडिलभूमिकों जावेतो-जानआनम
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चर्चापत्र. . तीनघंटेलगजावे, फिर धर्मशास्त्र काबाचे ? इसपर दलिचंद सुखराज लिखते है, तीनघंटेका बहाना बतलाते है, यह गप्पहै,
(जवाब.) गप्पनहीं, सचहै, बल्कि ! बंबइ-सुरत-बडोदा-अहमदाबाद-करांची-मुलतान-लाहोर-अमृतसर-देहली-आगरा-लखनऊ-बनारस-कलकत्ता-नागपुर-दखनहैदराबाद-मद्रास--गलोर
और-पुनावगेराशहरोमें आर जैनमुनि-बहारशहरके-दिशाजंगलजावे तो-तीनघंठे क्याछहघंटेलगे औरफिरभी जगह-ज-मिले, शांतिविजयजी-स्थंडिलभूमिकेये-कभी बहारभी-जाते है, और कभी शहरमें अलग बंधीहुइजगहमेंभी जाते है, शांतिविजयजी किसीबातको उडाते नहीं, उनकाबरताव जाहिरहै, देखलो ! तुमारे चर्चापत्रपर किसकदर माकुल जवाबदियेहै,(पेस्तरकेजैनमुनियोकाठहरना-उद्यान बनखंडमेंहोताथा.)
४३-भेने-जो-पेस्तर तेइससवालोके जवाबमें लिखाथा-पेस्तरके जैनमुनि-उद्यान-बनखंड-बागबगीचे-या-पहाडोकीगुफामेरहतेथे, यह बहुतठीकलिखाथा, जैनशास्त्रोंमें हरजगह पाठहैकि-अमुक जैनमुनिअमुकजगहपरपधारे, और अमुकबागमें ठहरे,.. F[ज्ञातासूत्रके पांचमें अध्ययन में लिखाहै,-] तएणं थावच्चापुत्ते णाम अणगारे सहस्सेणं अणागारेसद्धिं जेणेव सेलगपुरे जेणेव सुभूमिभागे णामं उजाणे तेणेव समोसहे,- .
देखलो ! इसपाठमें साफबयानहै, थावचापुत्र अणगार एकहजार जैनमुनियोकेशाथ सेलगपुरनगरके बहार सुभूमिभागनामके उद्यानमें आनकरठहरे, फिरइसीज्ञातासूत्रके छठेअध्ययन लिखाहै, तीर्थकरमहापीरस्वामी राजगृहीनगरीकेवहार गुणशिलनामके बागमेंआनकर सम
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दलिचंद - सुखराजके लेखकाजवाब.
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वस, आगे इसीसूत्रके पनरा हमें अध्ययनमेदेखो ! चंपानगर किंबहार पूर्णभद्रनामके उद्यानमें धर्मघोषनामके जैनाचार्यपधारे, देखिये ! एकही ज्ञातासूत्र में जैनमुनिको गांवकेवहार उद्यान - बनखंडमें ठरनेके कितने पुरावे है ? अगर तमाम जैन आगमोमे देख जायतो सेकडों पुरावे मिलेगे, - ४४ - सवालकर्त्तालिखते है, तीर्थकर महावीरस्वामीका अखीरका चौमासा - पावापुरीमें हस्तिपालराजाकी रज्जुकसभा में हुवा,
-
( जवाब . ) वो - रज्जुकसभा - पावापुरीके बहारथी - या - भीतर ? इसका खुलासा क्यौंनही लिखा ? औरयहभी बतलानाचाहिये तीर्थंकरमहावीरस्वामीका समवसरणभी क्या ! उसी रज्जुकसभा में हुवाथा ? अठारांदेश के राजे - इंद्रव गेरादेवते - जो - तीर्थंकर महावीरस्वामी के निर्वा णकेवख्तआयेथे - वे - क्या ! उसी रज्जुकसभा में बेठसकेथे ? इनबातों से सबुतहोता है, पेस्तर के जैन मुनि - गांव केवहार उद्यान - नखंडमें ठहरा करतेथे, आजकल देशकालानुसार गांव-नगर में ठहरनेका वाज चल पडा है, -
--
४५ - मेने - जो - तेइससवालोके जवाबमेलिखा था-- उत्तराध्ययनसूत्रमें जैनमुनिकों दिवसतीसरे प्रहर गौचरीजाना कहा है, वो बहुत ठीकलिखाया, इसपरसवालकर्त्तालिखते है, कल्पसूत्रकीसाधुसमाचारीमे पहले दुसरे प्रहरमें भी जैनमुनिकों गौचरीजाना लिखा है, फिर चोथेकालमें मुनि - पहले दुसरे प्रहरमें गौचरी नहीजातेथे कहते हो, यह आपकीबात ठीकनही होसक्ती, -
(जवाब.) कौन कह सकते है ठीकनही होसकती, यहबात वेलेवेले के तपकरनेवाले जैनमुनिकेलिये कही है, सब जैन मुनियोंके लिये नही कही, देखिये ! कल्पसूत्र की साधुसमाचारीका पाठ यहां देता हूं इसपर गौर किंजिये ! वासावासं पज्जोसवियस्स छठभत्तियस्स भिखुस्स क
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३२
चर्चापत्र.
यंति दो - गोयरकाला, इसका माइनायहहुवा कि - बेलेवेले तप करनेवाले जैनमुनि दोदकेगोचरीजावे, सोभी- पहले दुसरे प्रहर में जावे yarsaaraमें कहां लिखा है, ? सबजैनमुनियाके लिये -तो- दिवस के तीसरे प्रहरमें गौचरीजावे, असा उतराध्ययन सूत्रका फरमान है, शांतिविजयजी घरभेदी है, कल्पसूत्रकी साधुसमाचारीका पाठ उनसे छुपाहुवा - नहीं है, उत्सर्गमार्ग में - जैनमुनिकों दिनमें एकही दफे आहार खाना कहा, जिसको शक हो -दशवैकालिक मूत्रदेखे,
४६ - मेने - जो - तेइससवालो के जवाब में लिखाथा, एक-मैथुनभावकों छोड़कर दूसरे जितनेकार्य है, जैनमुनि उनमें फायदाधर्मका देखे - वैसाकरे, यह बहुतठीक लिखा था, इसपर सवालकर्त्ता लिखते है, जैनशास्त्रो में - तो - पांचोमहात्र तोकी रक्षा करना जैनसाधुका काम है,
( जवाब . ) अगर जैसा है, तो - जैनशास्त्रों में मैथुनव्रत केलिये एकांत निषेध क्यों कहा? इसका जवाब देसको तो दो, इसद लिलमें तेहरीर करने की जगह नहीं, फिर कोइक्या बारीकी निकाल सकेगा, ?दरअसल ! समजने की बातभी यही है, -
४७ - आगे दलिचंद सुखराज वयानकरते है, हमनेनो के अंत लिखा था, - शांतिविजयजी सवेजैनधर्म केरागी और सत्यवक्ता है, -तोहमारेपुछे प्रश्नो के उत्तर निष्कपटहोकर सत्यदेदेवेगे,
( जवाब . ) मेने पेस्तर तुमारे तेइस- सवालो के जवाब सत्यसत्यदेदिये है, और अबभी देरहा हूं. मेरेदफतर में माकुलजव (बोकी कमी नहीं सत्यकभी छिपतानही, दुनिया में कहलावत है, - साचक आंच नही,
४८ - फिर दलिचंद मुखराज तेहरीरकरते है -में- समजताथा, सत्य कहेगें, परंतु सत्यको छिपाकर व्यर्थकुतर्क किये है,—
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दलिचंद-सुखराजके लेखकाजवाब. ३३ (जवाब.) शांतिविजयजी सत्यकोंछिपातेनही, अपनेरैलविहारकोभी जाहिरकरते है-तो-दुसरीवातकों क्योंछिपायगे? शांतिविजयजीके व्यर्थकुतर्क कोइसाबीतकरे, कोरीबातें बनानेसे कामनहीचलता, सत्यवातका खंडन-न-होसके-तबएसाही कहनावनताहै,
४९-अखीरमें दलिचंद सुखराज लिखते है, समग्रसंवेगी जैनमुनियोकों-चाहिये, शांतिविजयजीतर्फसे-जोजो-बातेशास्त्र विरुद्धछपे, उसकाखंडन कियाजाय, अगर असानहीकियाजायगा-तो-संवेगी मुनिधर्मकी इसमेंहानिहै, में-समजताई-भविष्यसुधारनमें इसबातका समर्थन सबकोइ सुविधमुनिकरेगे,-संवेगीमुनियोंका चरणसेवक-दलिचंद सुखराज-धुलिया,___ (जवाव.) चाहेकोइ संवेगीजैनमुनिहो,-या-कोइ दुसराहो,-जिसकीमरजीहो, मेरेलेखपर टीकाकरे, में-जवाबदेनेको तयारहुं, शांतिविजयजीकीतर्फसें कोइबात जैनशास्त्र के विरुद्ध जाहिरनहीहोती, फिर कोइ-क्या खंडनकरेगा, इतनेपरभी जिसकीमरजीहो-ब-जरीयेलेखके सामनेआवे, में-जवाबदेनेकों मुस्तेजहुं, विद्वान्लोग खुदसमजलेयगें, किसका कहनासत्यहै,.. [ दलिचंद-सुखराजकेलेखका जवाब खतमहुवा,-]
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चर्चापत्र.
[जेसिंग - सांकलचंद के लेखकाजवाब - 1
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(जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा - विद्यासागर - न्यायरत्नमहाराज - शांतिविजयजी तर्फसे, - )
सन (१९१५) - अगटके जैनशासन अखबार में - जेसिंग-सांकलचंदने मेरे संबंधमें जोकुछलिखा है, उसका जवाब इसमें देताहुं सुनिये !
१ - अपने लेखकी शुरुआत में जेसिंग - सांकलचंद लिखते है, हुंमुजरातनों समौगामनो रहनार मुजरातना रहनार माणसने साधुनिराजना व्यवहारनो अनुभव वीजादेशो वालाकरतां वधारेहोय-एस्वाभाविक छे, थोडा महिना थयां-हुं-अत्रे धुलियेरहुंलुं.
( जवाब . ) जैनमुनिके व्यवहारका अनुभव जहांजहां जैनमुनि विचरते है, वहांके भाव कोकों होता है, - सिर्फ ! एकदेश के श्रावकोकों होवे असा नियमनही, मुल्कमारवाड - पंजाब - राजपुताना - बंगाल - मध्यप्रदेश- वराड - खानदेश- मालवा - और दखनके श्रावकलो कभी जैनमुनिके व्यवहारसें अछी तरह जानकार है, -
२ – आगे जेसिंग - सांकलचंद बयानकरते है, शांतिविजयजी संवेगी साधुकहरावी - ते माफिकवरतणुक करतानथी, ते जोइ मने आश्चर्य लाग्यं, परंतु गुजराततर्कनो-हूँ- एकलो होवाथी मने बोलतां अटकाव थवा मांडयो,
( जवाब . ) सच कहने में अटकाव क्यौंहुवा ? और किसने किया ? शहरधुलिये में तुम खुद मेरीव्याख्यानसभा में धर्मशास्त्रसुनने को - आतेथे, अगर मेरा बरताव मुनिधर्मसे विरुद्धथा तो क्यौं आतेथे ? इसका जवाबदो, क्या! उसवरून - में - इरादेधर्मके रैलमें नही - बेठताथा ?
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जेसिंग - सांकलचंदके लेखकाजवाब.
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शांतिविजयजी जब शहरधुलियेके टेशनपर आयेथे, धुलि येके जैन श्वेdiet श्राचकोने - वेंडबाजावगेरा जुलुसके पेशवाई किइथी ? अगर शांतिविजयजीका बरताव मुनिधर्म से विरुद्धहोता-तो-जैसी भक्ति क्यों करते, ? शांतिविजयजीका बरताव मुताविकमुनिधर्म के है, जभीतो- उनको हिंद गांवगांव और शहरशहरमें माननेवाले श्रावक मौजूद है, तो तीर्थंकरदेवोकोमी कइलोग तीर्थंकरतरीके नही मानते थे, इसी तरह शांतिविजयजीकोभी किसी ने साधुतरीके नहीमाने तो क्या हुवा? जिसकी मरजीहो -आने, जिसकीमरजी - न-हो-न-माने, शांतिविजयजी - जिस श्रावक श्रावकके (२१) गुग और (१२) व्रतमौजूदहो, उसको श्रावकतरीके मानते है, -
३ – फिर जेसिंग - सांकलचंद बेहरीरकरते है, शेठ दलिद खीसरा तर्फथी जेजे प्रश्नोछवामां आवेल, तेनो जवाप बीजातफैथी प्रगटकराव्योछे, ते लेख-मने सत्ययी वेगलोजणायार्थ जाहिर खुलासा करवानो विचारथयो. -
(जव(ब.) चाहे जितने कोइ जाहिरखुलासे करे, मेरेपास माकुलकी कुछकमीनही, कइमहाशयो के सवाल मेरेपास आते हैं, और- में - जवाब देता हूं. तुमारेजाहिर खुलासेका जवाब देना कौंनमुलिंबात थी ? दलिबंद - खीवेस राके (२३) सवालो के जवाब पेस्त रदिये थे और उनोने उसपर फिरभी जोकुछ लिखा था उसका जवाबभी मेरी तर्फ से दिया हुवा इस किताबको शुरुमेदर्ज है, बखूबी देखलो ! मेरालेख सत्यसे दुर है जैसाको साबीत करे, शांतिविजयजी इरादेव. के रैलमेंटते है, -तोभी हरेक शहरकेश्रावक उनको मानते है, भक्ति करते है, और चौमासका विनतिकरते है यहभीएक ताज्जुब की बात है - या नहीं ?
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.. चर्चापत्र
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- ४-आगे देवदर्शनके बारेमें-प्रतिक्रमणके बारेमें और-सुगंधी तेललगानेकेबारेमे जोकुछपुछाहै, उनकाजवाब इसकितावकी शुरुमेछपाहुवा मौजूदहै, ब-खूबी देखलो ! शांतिविजयजी व्याख्यानवगेराके वरून मुखके आगे मुहपति रखते है, स्थंडिलभूमिकेलिये शांतिविजयजी कभी बहारशहरके जाते है, कभी शहरमें अलगबंधी हुइ जगहमें जाते है, अविनयी शिष्यको-चव से शासनदेनेबारेमें आवश्यक सूत्रकापाठ देचुके है, इसकितावकी शुरुदेखलो, और अपना-शकरफा करलो, . ५-फिर जेसिंग-सांकलचंद इसमजमूनकों पेंशकरते है, गृहस्थना व्यवहारमा तथा शांतिविज जीना व्यवहारमा मात्र फर्क एटलोजछे, गृहस्थ कमाइने खायछे, शांतिविजयजी भिक्षावृत्तिकरेछ,.. ( जवाब.) शांतिविजयजीका बरताव-जिसको गृहस्थसमान दिखाइवे-वा-उनको साधुतरीके न-माने, और उनकेप स-नआवै, शांति विजयजो किसीको कहोनही जातेक-अपलोग मुनको साधुतरीके मानो, धर्म-जोर जारी नहीं होता, श्रद्ध सहोताहै, शांतिविजयजीका बरताव अगर गृहस्थोसनातहोता-तो-हंदके गांवगांवके श्रावक-उनको जैनमुनितरीके क्यों मानते, ? दुर क्योजाना, शहर धुलियेसे मेराजाना जब-सोरपुरहुवाया-जोकि कुल (१८) कोशके फासलेपरवाहै,-सीरपुरकेश्रावक-नलडाना-टेशनतक मेरेसामने आयेथे, जब सीरपुरके करीबपहुंचे,-श्रावकलोगाने मयबेंडबाजावगेरा जुलुसके पेशवाइ किइ, संवत् (१९७२) मे-प्रथ रवैशाख में मेराजाना सिर्फ ! आठरोज के लिये सीरपुरहुवाथा, मगर वहाँके श्रावकोने मुजे बडीविनतिकरके चौमासा ठहरायाथा,-बहुत भक्तिकिइथी, ज्ञानके काममें द्रव्यखर्वकरके धर्मकों तरक्की दिइथी, अगर मेरावरताव मुताविक गृहस्थकेहोता-तो-असा क्यों करते, ?
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जेसिंग-सांकलचंदके लेखकाजवाब. ३७ - ६-सीरपुर-जिलेखानदेशका चौमासाखतमकरके-तीर्थभांडककी-जियारतकिइ, और जब-ब-मुकाम आकोले आनाहुवा, चालिश गांवके श्रावकोने विज्ञप्तिपत्र भेजाकि-आप हमारे शहरमें तशरीफ लावे, और हमकों तालीम धर्मकीदेवे, मेने उनकी विनति मंजुर किइ, और आकोलेसे बसवारी रैल-संवत् (१९७२) के पोषसुदी एकमके रौज-टेशन-चालिशगांवपर उतरा, चालिशगांवके श्रावककछी-मारवाडी-और गुजराती भीलकर भयवेंडबाजा-बगेराजुलुसके पेंशवाइकों आये, और शहरमे प्रवेशकरवाया, उसवख्त श्रावकोंने अपनेघरोपर धजापताका औरसाइनबोर्ड लगायेथे, तारिख (२३) जनवरी सन (१९१६) के जैनअखबारमें देखलो, तमामहाल उसमेछपाहै, अगर शांतिविजयजीकों-मुनितरीके-नही मानतहोते-तो-औसाजलसा क्यों करते, यह जिक्र-शहरधुलियेकी इर्दगिर्दकाहै, अगर तमामहिंदुस्थानके जैनश्वेतांवरश्रावक-जो-जो-शांतिविजयजीको मुनितरीके मानतेहै,उनका बयान लिखाजाय-एककिताब बनजाय,
७-आगे जेसिंग-सांकलचंद लिखतेहै, छापाओमां पोतानी खोटीप्रशंसा छपावी जैनप्रजाने भूलमांनाखी शास्त्रना जुठासाचा आधारो वतावी मुनि कहराववा कोशिशकरेछे,___ (जवाब.) शांतिविजयजी खुद जैनमुनि है-फिर मुनिकहलानेकी कोशिश क्योंकरेगे, ? जोकोइ श्रावक शांतिविजयजीकों जैनमुनितरीके-नहीमानतेहो-वे-उनकेपास-न-आवे, वंदना--नमस्कार--नकरे, शांतिविजयनीकों जैनमुनितरीके माननेवाले श्रावकहिंदमें गांव गांव और शहरशहरमें मौजूदहै, मेने अपनी झूठीप्रशंसा किसछापेमें छपवाइहै-साबीतकरो, शास्त्र के झूठेआधार किसजगहबतलाये है, इस वातकोंभी साबीतकरो, शांतिविजयजी जैनप्रजाकों भूलमें नहीडालते, बल्कि : सचसचबातलिखकर फायदापहुचाते है, शांतिविज यजीने
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३८
Pears.
संवत् ( १९३६ ) की सालमें मुल्कपंजाब में दीक्षा इख्तियार कि वीवर्सतक पैदलविहार करते रहे, संवत् ( १९५६ ) की - साल में जब तीर्थ समेतशिखरकी जियारतको गये, शहर लखनउसे रैलमें बेठकर सफर करना शुरु किया, और किताब - जैनतीर्थगाइड बनाइ, जब पैदलविहारकरतेथे तभी जैन श्वेतांवरसंघ में उनकी वही भक्ति होतीथी, और अभी वैसीही होरही है, -कहिये ! शांतिविजयजी कों मुनिपने खानपान - पात्र - या -जकानके मिलतेमे-या-सेवाभक्तिमें किसकी कमी है. ? जोजो जैनमुनि निस्पृही - सत्यवक्ता - और अपने पूर्वसंचितकर्मपर भसा रखनेवाले है, उनकों हमेशां योग्य चीज मिलती रहती है, -
[ दरवान विद्यासागर न्यायरत्न पदवी, ]
८ – फिर जेसिंग - सांकल बंद इसदलिलकों पेंशकरते है, पोते विद्यासागर - न्यावरन लखेछे, पण एपदवी कोणेआपीछे, एजो खुलासोकरशे, मारा धारामागे तो कोईये पण आपलनथी, छतां कोई आपनार तेनो खुलासा करशे तो सारीवात थशे,
( जवाब . ) में - खुद खुलासाकरताहुं, सुनिये ! विद्यासागर न्यारत्नपदवी शहर - रतलाम के जैन श्वेतांवरसंघ संवत् (१९५४) मे fare और उसका बयान शहर - अहमदाबाद - मासिकपत्र जैनदिवाकरके पुस्तक (१४) अंक ( ५ ) तथा ( ६ ) मार्च - एप्रिल - सन (१८९९) के अंक में छपा है, मंगवाकर देखलो ! और अपना शक रफा करलो ! जब मजकुरपदवी दिली - उसवरूत एक मानपत्र भी दि याथा, वोभी उपरबतलाये हुवे जैनदिवाकर मासिकपत्र छपा है, साचको आंच नही. और दुनियामें सत्य कभी छिपतानही,
९ – आगे जेसिंग सांकलचंद इसमजमूनकों पेंशकरते है, हुं
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जेसिंग - सांकल चंदके लेखका जवाब.
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धारूं गुजरातना रहनार धर्मांजीवाने शांतिविजयजीना शाथमां एक ठेकाणे रहेवानो संयोगमले - तो - तेओ, शांतिविजयजीने साधुतरीके स्वीकारशे नही, -
( जवाब . ) मुल्क - गुजरात के कइ - धर्मीश्रावक शांतिविजयजीके सहवासमे एकशाथ रहचुके है, और ऊनाने शांतिविजयजीको साधुतरीके स्वीकारे है, उनकी चीठियें आती है, सवाल पूछते है, और धार्मिक काममें रायलेते है, जैनअखबार में गुजरातके कश्रावको के मेने जवाब दिये है, जैन - एसोशिएशन - औफ - इंडिया के पत्रमेरेपास आते है, सिद्धक्षेत्र - बालाश्रम - सिद्धक्षेत्र - यशोविजय - जैन- संस्कृत - प्राकृतपाठशाला बोर्डिंग - पालिताना - श्रीयशोविजयजी जैनग्रंथमाला ओफिस भावनगर जीवदयाज्ञानप्रसारकफंड बंबइकीचीठियां - रिपोर्ट - वगेरा-मेरेपास आते है, इतने पर भी जिस श्रावककी मरजी -मुजको साधुवरीके माननेकी-नहोवह - मुजको - साधु - न - माने, मुजकों साधुतरीके माननेवाले श्रावक हिंदके गांव गांव - और - शहर शहर में माजूद है, -
१० - फिर जेसिंग - सांकलचंद लिखते है, जैनछापावालाओ पण एवानी तपाशकरशे, तो जरूर मारूंकहेतुं केटले अंशे साचुंछे-ते पोतानीले समजशकशे, -
( जवाब . ) जैनअखबारवालोने तलाशकर लिइहोगी, जभी-तोमेरे लेखकों अपनेअखबार में स्थानदेते होगे;
११ – आगे जेसिंग - सांकलचंद बयानकरते है, डुंगरदुरथी रलियामणा लागेछे,—
( जवाब . ) जिस पहाडपर जिनमंदिरबनेहुवे - होते है - वे - नजदीक - भी अच्छे दिखाइ देते है, इसीतरह अगर शांतिविजयजीमे श्रद्धाज्ञानऔर चारित्ररुपीगुण विद्यमान होगे-तो-वे-नजदीकसेभी अछे क्योंन - दिखाइदेगे, ?
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चर्चा.
१२ – फिर जेसिंग सांकलचंद तेहरीरकरते है, शांतिविजयजी - नुं जोड़ बीजापण - बे-चार - सुनिराजो रेलवेमां बेसवालागीगयाछे, तेथी जैनसंघने - ते - बाबतमां डंडो विचारकरवो जोइये, -
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( जवाब . ) चाहे जितना उंडाविचार जैनसंघकरे, कोइमना नही करता, शांतिविजयजीकी देखादेखी-जो- दो-चार - जैनमुनि रैलमें बेठने लग गये है-तो- उनोनेभी धर्मोपदेशका कुछफायदा देखा होगा, जभी बेठने लगेहोगे, जैसा उनका इरादा होगा, वैसा उनको फलमिलेगा, जैसे इरादेधर्मके जैनमुनि नावमेवेठते है, वैसे इरादेधर्मके रैलभी एकतरहका साधन है - हां! अपने शौखसे - या - आरामकेलिये अगर कोइ जैनमुनि रैलमें सफर करे-तो- बेशक! पापहै,
१३- आगे जेसिंग - सांकलचंद इसलिलकों पेंशकरते है, महाराजश्री आत्मारामजी विजयानंदमूरिना संघाडाना --तथा-- बीजा मुनिराजो पण एबाबतनो खरोविचारकरी मुनिधर्मी विरुद्धवर्तनाओने माटे कांपण उपाय योजवाने प्रयत्नकरशे,
( जवाब . ) चाहे श्रीमान - विजयानंदमूरि महाराज के शिष्यहोया - कोई दुसरेजैनमुनिहो, जिसकी जैसी मरजीहो - वैसा प्रयत्न करे, इससे मुक्या ? में - इनवातोसे खौफ नहीलाता,
१४ - अखीर में जेसिंग सांकलचंद इसमजमूनको पेंशकरते है, में - जे - लख्युंछे, ते - माराअनुभव उपरथी लखेलछे, एबाबतमां कोइना उपरखोटो आरोपमुकवाना हेतुथी लखेल नथी,
( जवाब . ) मेने जोकुछ सवालकर्त्ताके जवाब में लिखा है, -मुताfor taara और दाखले दलिलोके लिखा है, इसकों अवलसे अखीरतक पढे, और सचवातका इम्तिहान करे,
( जेसिंग - सांकलचंद के लेखका जवाब खतमहुवा - ) Re :($):
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दक्षिणनिवासीके लेखकाजवाब. [दक्षिणनिवासीके लेखका जवाब,-] (जैनश्वेतांबरधर्मोपदेष्टा-विद्यासागर-न्यायरत्न
महाराज-शांतिविजयजी तर्फसे,) सन (१९१५) अगष्टके जैनशासन अखबारमें एक दक्षिणनिवासीके नामसेजिसने मेरेबारेमें लेखलिखाहै, उसका जवाबदेताहुँ, सुनिये!
१-दक्षिणनिवासी अपनेलेखकी शुरुआतमे लिखते है शांतिविजयजी प्रतिपादनकरेछे, रैलमां बेसवं, सुगंधीतेल लगाववं, रेशमीरुमाल राखवो ए सर्ववात शास्त्रमा लखीछे, __(जवाब.) जैसे शांतिविजयजी प्रतिपादन करते है, इरादेधर्मके जैनमुनिको रैलमेंबेठना, और मुल्क-ब-मुल्कमे जिज्ञासुलोको धर्मोपदेशदेना ठीकहै, वैसे जैनशास्त्रभी प्रतिपादन करते है, इरादेधर्मके जैनमुनिकों नावमेंबेठना, हरेकगांव-नगरमें विहारकरना और जिज्ञासुलोगोकों धर्मसुनाना,-नावकेचलनेसे पानीके जीवोकी हिंसाहोती है, मगर इरादेधर्मके भावहिंसानही, वेसे इरादेधर्मके जैनमुनिकों रैलमेंवेठनेसे भावहिंसानही, जैसेनाव एकतरहका वाहनहै, रैलभी एक तरहका वाहनहै, और-वो-एकशख्शकेलिये नहीचलती, उसके टाइमपर आतीजाती है, जैनमुनिको कचेपानीका स्पर्शकरना मनाहै, मगर इरादेधर्मके छोटीनदीमें पांवदेकर उतरना हुकमहै, कहिये ! इरादेधमंकी सडक कैसीमजबूतहै, जिसको-तीर्थकर-गणधरोने मंजुररखी है, हरीवनास्पतिका स्पर्शकरना जैनमुनिकों मनाहै, मगर विहारकरते वख्त-किसी खाडेमें गिरजाय तो इरादेदेहरक्षाके लतावेलडीकों पकडकर उपर आजानाहुकमहै,-अब सुगंधीतेल के बारेमें जवाबमुनिये ! जैनशास्त्रोमें बयानहै, रोगादिकारणसे जैनमुनि-शतपाक-सहस्रपाक-लक्षपाक वगेरा तैलइस्तिमाल करे, खयालकरो, लक्षपाकतैल
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: चर्चापत्र. कितनीखुशबू रखताहोगा ? फिर आजकलका सुगंधीतैल कौनगिनतीमे रहा ? रेशमीरुमालकेबारेमें जवाब सुनिये ! जैनमुनिकों जरीका कपडा रखनामनाहै, रेशमी-उनी-सूती कपडेरखना मनानही,-जबपश्मीनेकी चदरे-और-गर्मधुस्से रखनेका रवाज नजरआरहाहै,-तोरेशमीरुमाल किसगिनतीमे रहा, ?
२-आगे दक्षिणनिवासी बयानकरते है, क्यां जैनशास्त्रनो त्यागमय वैराग्यमय-अने-व्यवहारमयउपदेश अने क्यां ! आवी अपवादनी परुषणा-छुटथी व्यवहारमालइ संवेगीजैनोनागुरुनो फांकोराखनारा आवा धर्मगुरु ?
(जवाब.) संवेगी-जैनोके गुरुओको-तो-दिवसके तीसरेमहर गोचरी जानाचाहिये, दिवसके पहले हरमे चाहधकी गवेषणाकरनेकी क्या जरुरत ? संवेगीजैनोके गुरुओकों-तो-मुताबिक जैनशास्त्रके जीर्णप्रायवस्त्र लेनाचाहिये,-जयेभलमल और-जगन्नाथीसे क्याजरुरत ? संवेगी जैनोके गुरुओकोतो मुताबिक जैनशास्त्रके-उद्यान बनखंड-या-पहाडोकी गुफाओमे रहनाचाहिये, नवकल्पी विहारकरना चाहिये, विहारकेवरूतभी नोकरचाकर-या-श्रावककी सहायता नही लेनाचाहिये, और दिवसमें एकहीदफे आहारकरना चाहिये, जबउपवासकरनाहो-तो-पहलेरौज-और उपवासके पारनेकेरौज एकाशना करनाचाहिये, क्योंकि-जैनशास्त्रोमे लिखाहै, उपवासमें-चारटकखाना-छोडना, बेलेकी तपस्याकरनेवालोको छह-टंक-छोडना, और तेले की तपस्या करनेवालोकों आउटंक-खाना छोडनाकहा, त्यागमय
और-वैराग्यमय उपदेशपर अमल करनेवाले जैनमुनिकों बेतालीश तरहके दोषोको बचाकर आहारलेना चाहिये, बांसका दंडा र खना चाहिये.
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दक्षिणनिवासीके लेखकाजवाब. ... अगरकहाजाय-पहलेजैसा-बलपराक्रम नहीरहा, वीतरागसंयम वहीरहा, सातमेगुणस्थानके आगेके गुणस्थान नहीरहे, इसलिये द्रव्यक्षेत्रकालभाव देखकर चलनापडताहै, फिर द्रव्यक्षेत्रकालभावकी सडकपर चलिये, कोरीबातेंबनाना क्याफायदा ? पंचमहाव्रतधारीक्रियापात्र-पूर्णसंयमी जैनमुनिकों उत्सर्गमार्गमे बरतावकरनाचाहिये.. [बयान व्रतनियमकेबारेमे,-] - ३–जैनशास्त्रोमे लिखाहै, जैनमुनि-किसीशख्शकों जोराजोरी व्रतनियम-न-कराचे, जिसकी भरजीहो-वो-करे, जिसकी भरजीन-हो-वो-नकरे, तीर्थकर-गणधरोनेभी किसीकों विनामरजीके लियाहुवा-व्रतनियम-लेनेवाले अछीतरह पालतेभी-नही, धर्मका उपदेशसुनकर व्रतनियम-लेवेतो अछाहै, व्याख्यानधर्मशास्त्र सुननेके लियेभी-जिसका भावहोगा-वो-आयगा, जिसका भाव-जे-होगावो-नहीआयगा, धर्म-अपनीश्रद्धासे होताहै, धर्ममें जोराजोरी नहीं चलती, व्याख्यानधर्मशास्त्र बांचनेवाले जैनमुनि-विद्वान्-सत्यवक्ताऔर-सबकों समजमें आवे-जैसा व्याख्यान देतेहोंगे तो सुननेवाले खुद चलेआयगे, नही-तो-व्रतनियमदेनेसेंभी नहीआयगें,
४-फिर दक्षिणनिवासी तेहरीर करते है, सुकोमल-ग्लानरोगी-अथवा बालसाधु-के-एवा कोइप्रसंगे पालीशके तेम-न-हो, तो छेवटे साधुपणुं-छोडीदेवानो प्रसंगआवे-तो-जाणकार कुशलसाधु अपवाद पणसेवे, ..... (जवाब.) देखिये ! यहां दक्षिणनिवासी खुदलिखते हैकिकोइप्रसंग आनपडनेपर जानकार कुशलसाधु अपवादमार्गभी सेवे,उंचीउंचीवाते बनाना सहज है, मगर मुताबिक उसके अमलकरना
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चर्चापत्र.
जोजो साधु-साधवा सजीव-अपनेअपमासमें विहार न
सहजनही, इन्साफ कहताहै, दक्षिणनिवासीकों तो-उत्सर्गमार्गपर खयालकरना चाहिये, कारणपडनेपरभी कमजोर मार्गपरं क्योजानाचाहिये, अगरकहाजाय कारणपडनेपर तो-अपवादमार्ग सेवन करना चाहिये, तोफिर शांतिविजयजी और क्या कहते है, इसबातपर शां. तिविजयजीको कोइक्या ठपका देसकते है ?
५-धर्मकाममें दुसरोका कमजोर बरतावदेखकर अपनी धर्मश्रद्धाकमजोर नहीकरना चाहिये, जिसश्रावककी धर्मश्रद्धा दुसरोका शिथिल बरतावदेखकर कमजोर होगइ-वो-श्रावकही क्या ? मेंदुसरोका कमजोर बरतावदेखकर अपनीधर्मश्रद्धामें कचापन नही लाता, जोजो साधु-साधवी-श्रावक-श्राविका-अपनीधर्मश्रद्धामें पावंदरहते है, उनकी तारीफहै सबजीव-अपनेअपने पूर्वसंचितकर्मके अनुसार बरताव करसकते है, शांतिविजयजी चौमासमें विहार नहीं करते, अगर उसशहरमें-बीमारीचलपडे-तो-करतेभी है,-शांतिविजयजी दखनहैदराबाद-सिकंदराबाद-और-तीर्थकुल्पाकजी तर्फविचरचुके है, तीर्थ कुल्पाकजीके मंदिरका जीर्णोद्धार उनके उपदेशसे हुवाहै, कोइ औसानही कहसकताकि-उनोने जैनश्वेतांबरधर्मकी कमजोरी करवताइहो,-लेखक तलाशकरे,
[दक्षिण निवासीके लेखकी पूर्णता,-] ६-अखीरमें दक्षिणनिवासी इसमजमूनकों पेंशकरते है, छेवटे सेवककी नम्रप्रार्थना एछेके-आनेमाटे श्रीसंघ विचारकरशे, अने दि. वसे दिवसे मूर्तिपूजकोनी श्रद्धा हठावनारा आवा साध्वाभासो सामा चांपता इलाजलेशे, .. (जवाब.) चाहे जितनेइलाज श्रीसंघ-लेवे, शांतिविजयजी
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दक्षिणनिवासीके लेखकाजधाब. ४५ किसीकों मना नहीकरते, साध्वाभास-वे-होतेहो, जो दिलमें बरताव जुदा और बहारका बरताव जुदा रखे, इसका मतलब यहहुवाकि-दिलमें धर्मपर श्रद्धानही, और उपरसे साधुका बरतावरखे दक्षिणनिवासी लिखते है, आवा साध्वाभासोकेलिये श्रीसंघकुछ इलाजलेवे, जवाबमें मालुमहो, शांतिविजयजीका इसमें कोइनुकशान नही, औरइसबातका खौफ शांतिविजयजीको ख्वाबमेंभी-नही
७-स्थानांगसूत्रमें साफलिखाहै, यहजीव जगतमें अकेलाफिरताहै, इसको अगरआधारहै-तो-देवगुरुधर्मकाही है, शांतिविजयजी मुल्क दखनहैदराबाद-और-मद्रासमें सफरकरचुकेहै, कइश्रावकोकों तालीमधर्मकी देकरधर्ममें पावंदकिये है, शांतिविजयजीने जब संवत् (१९३६ ) वैशाखसुदी दशमीकेरौज मिथुनलग्नकेवख्त-शहर मले- . रकोट-मुल्कपंजाबमें दीक्षा इख्तियारकिइ, पैदलविहारसे मुल्कोकी सफरकरना शुरुकिया, विशवर्सतक पैदलविहारसे मुस्कपंजाब-मारवाड-मेवाड-गुजरात-राजपुताना-और-मालवावगेरामें सफरकिइ, संवत् (१९५६) में-जब मेराचौमासा शहर लखनउमेहुवा, और वहांसे जब-तीर्थ-समेतशिखरजीकी जियारतकों जानेकी तयारीकिइ आगे रैलमेंवेठकर सफरकरना शुरुकिया, वीशवर्सतक पैदलविहारसे और बाद रैलविहारसे--मुल्क-अंग-बंग-कलिंग-मगध-कौशल-राजपुताना-मध्यप्रदेश-वराड-खानदेश-मालवा--दखन-तैलंग-कर्णाटकमहीशूर-कोकन-मारवाड-मेवाड-सिंध-और-पंजाव--तर्फ कइदफे जानाआना हुवा और होताहै. .. .. ८-मेरीतर्फसे बनेहुवेग्रंथ-आर्यदेशदर्पण-मानवधर्म संहितारिसालामजहबढुंढिये-जैनसंस्कारविधि-त्रिस्तुतिपरामर्श-बयान पारसमायपहाइ-जैनतीर्थगाइड-सनमपरस्तिये जैन-न्यारनदर्पण-छपकर
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चर्चा पत्र.
जाहिर हो चुके है, इनमे से किताब जैनतीर्थगाइड - त्रिस्तुतिपरामर्शऔर न्यायरत्रदर्पण-ये- थोडीनकल सीलकमें रही है, शिवाय इसके सब किताबे बीकर, किताब - मानवधर्मसंहिता - जिसकी किंम्मत दोरुपयेथी, मगर पनपनरांरुपये देकर ग्राहकोंने खरीदलिड, और जितनीछपीथी तमाम बीकगड, कोइमहिना जैसा नहीजाता जिसमें इसकी मांग मेरेपास - न - आतीहो, जैनपत्र में कइवसों से मेरेलेख छपते है, जब में दुसरो के सवालोका जवाबदेताहुं-तो- मेरेपर किये हुवे सवालों का जवाब क्यों -- ढुंगा, - व - सबब कमफुरसत के चाहे कोई वख्त देरहोजाय, मगर जवाब जरुरदेताहूं, जैसा खयाल कोई-नकरेकि - जवाब-न- देयगें,
A
[ अखीरभाग - चर्चापत्र - ]
,
जमानेहालमें अगरकोइ जैन श्वेतांबरमुनि-अपनेदिलमें असाखयालकरेकी - हम - उत्कृष्ट - क्रियावान् और पूर्णसंयमी पंचमहाव्रतधारी मुनि है, तो उनकों मुनासिब है, - नवकल्पी विहारकरे, यानी - मोशिमे शर्द - या - गर्म दिनो में एकमहिने से ज्यादा-न-ठहरे, और मोशिमे वारीशके दिनो में चारमहिनेसे ज्यादा - एक गांवनगरमें-- रहे, वि द्यापढनेके लियेभी किसीगांवमें - शहरमें - या - पाठशाला - एकमहिनेसे - या - चौमासे के चारमहिनोसे ज्यादा न रहे, क्योंकि चारित्रमे शिथिलता होगी, अगर कहाजाय इरादे विद्यापढने के रहे तो क्या हर्ज है ? जवाब में मालुम हो, -विद्यापढने के लियेभी चारित्र में शिथि लता क्यौंलाना ? मुनासिब है, - विद्याभी पढते रहना, और विहारभी करतेरहना, अगरकहाजाय इरादा विद्यापढने का है, विद्यापढेगें तो आगे ज्ञानका फायदा होगा, तो जवाब में मालुम हो, -रैलविहारमें भी इरादा धर्मोपदेशका है, धर्मका उपदेश देयगे, तो आगे धर्मका फायदा
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दक्षिणनिवासी लेखका जवाब.
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होगा, जैसा कहना कौन इन्साफहै, -? उत्कृष्ट क्रियावान् - पूर्णसंयमी जैनमुनि विहारकेवख्त - श्रावक - या - नोकरचाकरकी सहायता-नलेवे, असहाय होकर विहारकरे, दिवसके तीसरे प्रहर भिक्षाकों जावे, क्योंकि - जैनशास्त्र उत्तराध्ययन सूत्र में - जैनमुनिको दिवसके तीसरे प्रहर गौचरीजाना कहा, जैनमुनिदिनमें एकहीदफे आहारकरे, क्यौंकि- दशवैकालिकसूत्रमें जैनमुनिको दिनमे एकदफे आहारखाना कहा, विहारके वख्तभी कंतान के मौजे न पहने, सबबकि - उत्तराध्ययन सूत्रमें धूपठंडवगेरा परिसह सहन करना कहा, दिनमे जैनमुनि - नींदन - लेवे, सोने-चांदीफ्रेम के चश्मे - न-पहने, चाहदूधकी गवेषणान-करे, उत्कृष्टक्रियावान पूर्ण - संयमीको स्वादकी जरुरत नही. - किसी- गांव - शहर - या - मकानपर कोइ जैनमुनिममता-न-करे, श्रावकोको मुनासिब है, - जो-जो - जैनमुनि पंचमहाव्रतधारी देखे उनको धर्मaara माने, और सेवा करे, औसा खयाल-न-लावे कि - ये - जैनमुनि हमारेगछ के - या - हमारे उपाश्रयके नहीं है, - सबजैनमुनिको मुनासिव है, - सवभावककों अपना श्रमणोपासक - समजे, असाखयाल - न-लावेकि - यहश्रावक हमारेगछका-या-समुदायका नही है, जैनमुनिकों मुनासिब है - व्याख्यान धर्मशास्त्रकादेते वख्त - सबश्रावकपर एकसमान बरताव रखे, दौलतमंदश्रावककों आगे-न- बुलावे, और गरीब श्रावककों पीछे-न-हठावे, व्याख्यानसभा में - जो- पहले आवे-आगेवेढे, और पीछेआवे पीछेवेठे, -
हरेक जैनमुनिको लाजिम है, जिस मुल्क में - धर्मोपदेशका फायदा ज्यादा देखेउवर विहारकरे, मुल्कगुजरातमें जैनमुनिके बिहारकी उ तनीजरूरत नही है, जितनी हिंदमें- मुल्कमारवाड - मेवाड - सिंध- पंजाब- राजपुताना - अवध - बंगाल - मध्यप्रदेश - बराड - खानदेश - महाराष्ट्र कर्णाकट - और - दखनतर्फ विहार करने की जरूरत है, तीर्थंकरदेव त्या
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... चर्चापत्र
गीथे, तोभी-मुल्क-व-मुल्कफिरकर लोगोकों धर्मोपदेश देतेथे,मुल्कगुजरात-काठियावाडतर्फ जहां श्रावकोंकी आबादी ज्यादाहै, उधर अहमदाबाद-पालिताना-पाटन-मेहसाणा-या-पालणपुरतकजैनमुनिकों विहारकरना ज्यादामुश्किल नहीं, मगरतमाम हिंदुस्थानमें विहारकरना, और परिसहसहनकरना मुश्किलहै,-मुल्कोमें फिरकरजिज्ञासुलोगोकों धर्मोपदेशदेना इसके बराबरकोइ धार्मिकफायदानही, अगरकोइ इससवालकों पेंशकरेकि-मुल्कगुजरात-काठियावाडमें विचरनेसे चारित्रधर्मका आराधन-ठीकहोताहै, जवाबमें मालुमहो,जैसाकोइ नियमनही, जहां अपनेआत्माकों धर्ममें पावंदरखनाचाहेवहां-रखशकते है, हां ! परिसह सहनकरना जरुरपडेगा, योग-वहते वख्त-एकेलातपकरलिया-और योगवहनहोगया, औसासमजना गलतहै,-शाथमें-उसशास्त्रका पाठऔर अर्थभी सीखनाचाहिये,-व्याकरण-काव्य-कोश-न्याय-अलंकार-और धर्मशास्त्रपढकर-संस्कृतप्राकृतजबानमें व्याख्यानदेना बडेकायदेकी बातहै,-अपनेधर्मानुयायीकों समजानासहजहै, मगरदुसरे धर्मवालोके शाथधर्मके-बारेमें वहेसकरना सहजनहीं, अब श्रावकधर्मकेवारमें बयानमुनिये, ! श्रावकको मुनासिवहै,-सदाचारसेचले, व्यापारमेभी जुठ-न-बोले, विश्वासघात-न-करे, श्रद्धारहित सिर्फ ! केशरका तिलकलगानेसे आवक नहीबनसकते, श्रावकके (२१) गुणहासिल करनाचाहिये, और बारहवत इख्तियारकरनाचाहिये,-अपनीधर्मश्रद्धा पावंदरहना, जीवहिंसासे बचावकरना, परस्त्रीगमन-नहीकरना,-अपनी दौलतका प्रमाणकरना, और नियमकरनाकि-इतनीदौलतसे ज्यादा होजायतो धर्ममेंखचढुंगा,-अपनी सालियाना पैदाशमेसेआधा-चतुर्थास या-दशांश-षोडशांश-धर्म खर्चना, रात्रीभोजन नहीकरना, चौदह नियम हरहमेशधारण-करना, दरसाल. एकजैनतीर्थकी जियारतकों
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दक्षिणनिवासीके लेखकाजवाब. ४९ माना, अपनी जींदगीतकमें नवलाखदफे नमस्कारमंत्रका पाठकरना, पनरांहकर्मादान नहींसेवना, जन्मसेलेकर गृहस्थधर्मके सोलहसंस्कार जैनविधिसे करना,-बाइसअभक्ष्य-और-बत्तीस-अनंतकायचीज नहीं खाना, अगरअपने गांवमें जिनमंदिरहो-तो-जिनप्रतिमाके दर्शनकों जाना,-सामायिक-अतिक्रमण करना, नवतत्व-दंडक-कर्मग्रंथ-क्षेत्रसमास-और नयचक्र-वगेराधर्मशास्त्रपढना,-थोडासा धर्मशास्त्रपढकर भाषाके ग्रंथवांचलिये-या-भाषणदेना सीखे, इससे सबजैनशास्त्रका ज्ञानहोगया जैसा समजना ठीकनही, धर्मखातेमे बोलेहुवे रुपयेपैसे तुर्त धर्मकाममें खर्चदेना चाहिये,-अपनी वहीखातेमें जमा कररखना अछानही,-न-मालुम कल-अपनीस्थिति कैसीहोजाय,-अपनेधर्मके देवमंदिरके-या-तीर्थकेदेवद्रव्यका हिसाब-अपनेहस्तगतहो-वो-देवद्रव्य अपनेघरमे नहीरखना, जिनमंदिरके-या-उसतीर्थके भंडारमें रखना, और उसकीकुंचीयां-तीन-चार-या-पांचश्रावकोकेपास रखना, अपनेशहरमें स्वधर्मीश्रावक-कोइगुजरातीहो,-मारवाडीहो,-कच्छीहो,-या-काठियावाडी वगेराहो,-देवद्रव्यरक्षण करनेमे सबका एकसमानहकहै,-मुनिम-गुमास्ते रखकर देवद्रव्यका कामचलानाऔर दरसालका हिसाब-छपवाकरजाहिर करनाचाहिये,-जोजोश्रावक औसानहीकरते है, मुताबिकफरमान जैनशास्त्र के-उनकी-भूलहै,जोजो धर्मकाकामहै,-और-चो-जैनसंघसंबंधी है,-वो-चतुर्विधसंघकी सलाहसे करनाचाहिये,-इतना श्रावकका कर्तव्यलिखागयाहै,- :
इतनालिखकर इसलेखकों खतम करताई, और उमेदकरताहुँ,यह-चर्चापत्र-बांचनेवालोकों फायदेमंदहोगा, आपलोग इसकोंपड़े, दुसरोकों पहनेकी हिदायतकरे, और सत्यका इम्तियान करे,- :: ब-कल्म-जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा-विद्यासागर
न्यायरत्न-महाराज-शांतिविजयजी,
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निर्णय - चर्चापत्र,
ED [ निर्णय - चर्चापत्र. - ] (जैनश्वेतांबरधर्मोपदेष्टा - विद्यासागर - न्यायरत्नमहाराज - शांतिविजयजी तर्फसे, )
१ - कलमपहेली, - जैनशास्त्रोंमें जैनमुनि - जैनसाधवी - श्रावकऔर-श्राविकाको जोजो धर्मक्रिया करना तीर्थकरगणधरोने फरमाया, उसकावयान यहां दिया जाता है, - चोथेआरके मनुष्य बडेताकात वाले और आला दर्जे की तकदीरवालेथे, इसलिये वे - उत्सर्गमार्गपर ज्यादहचलतेथे, - पांचवे आरके मनुष्य कमताकातवाले रहगये, इसलिये अपवादमार्ग - यानी - शिथिलमार्गपर ज्यादहचलते है, उत्सर्गमार्गका नाम कठिनमार्ग - कहदो, और अपवादमार्गका नाम शिथिलमार्ग कहदो, दोनोके पर्याय नाम है, - जैनके पंचमहाव्रतधारी उत्कृष्टक्रियाबान - जैन साधु - या -- साध्वीकों - विहारमें - यानी - रास्तेमें किसीकी सहायता नही लेना चाहिये, असहायक होकर विहारकरना कहा, और जोकुछ तकलीफ आनपडे सहन करना, - मगर - नाराजनही होना, -
अगर कोइ जैन मुनि - समेतशिखरजी वगेरा - जैनतीर्थो की जियारत जाते वख्त - या - बनारस जैन पाठशालामें विद्यापढने के लिये- जातेसमयया - मुल्कमारवाड - मेवाड - सिंध - पंजाब - राजपुताना -- बंगाल -- मध्यप्रदेश- वराड-खानदेश- या - दखन हैदराबाद तर्फ - विहारकरतेवरूनश्रावक श्राविका - या - नोकरचाकर शाथचले, उनश्रावकश्राविकाऔर- नोकरचाकरोकेलिये बैलगाडीभी शाथरहे, जैनमुनि - जानते हो - बेकि-ये- सबलोग हमारेविहारकेसवव शाथचले है, और सहायता लेवे, - तो यहबात मुताबिक जैनशास्त्र के ठीकसमजना - या - कैसे, ? इसपर अगर कोइ कहे कि - जमाना पहले जैसा नहीरहा, शरीरकी ताकात कमहोगई, इसलिये जमानेहालमें - जैनमुनिकों इरादेधर्मके-या-तीर्थ
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annannnnnnnnnnnnnnn
निर्णय-चर्चापत्र. यात्राके असीसहायता लेनीपडती है, और जैसीसहायतालेना-कोइ हर्जनही, तो-इसीतरह इरादेधर्मोपदेशके-कोइजैनमुनि-रैलमेबेठनेकी सहायतालेवे-तो-क्याहर्ज है- किसीने एकतरहकी सहायतालिइकिसीनेदुसरीतरहकी सहायतालिइ,-मगर सहायतालेना जरुरपडता है,-धर्मशास्त्रमें जैसा कोइकानुन नहीकि-जिसकीपावंदी हरहालतमेंलाजमीहो,-यानी-कारणपडनेपरभी छुट-न-दिइहो, अगरकहाजाय पैदलविहारमें जैनमुनिकेलिये-जो-सहायता--श्रावकवगेराकी लिइ जाती है,-वो-इरादेधर्भके लिइजाती है, इसलिये भावहिंसा नही,औरविना भावहिंसाके पापनही,-तो-यहवात दुसरीतरहकी सहायतामेंभी-समजलो, अगर उत्सर्गमार्गपर चलेतो-जैनमुनिकों किसीकी मददलेना, नहीचाहिये, अपवादमार्गमें लेसकते है
२-कलमदुसरी,-जैनमुनिकों उत्सर्गमार्गमें नवकल्पीविहारकरनाकहा, अगरकोइ जैनमुनि-या-जैनसाधवी-विद्यापढनेकेलियेकिसीगांव-नगरमे-या-बनारसजैनपाठशालावगेरामें दोदो-चारचार वर्षतक ठहरे-तो-बतलाइये ! यहबात मुताबिकजैनशास्त्रके ठीकसमजना-या-कैसे ? इसपर कोइ-जवाबदेवेकि-इरादे विद्यापढनके जैसा कियाजायतोकोइ हर्जनही, तो सोचो ! विद्यापढनेकेलिये विहारमें अपवादमार्गका यानी शिथिलमार्गका सहारालेना पंडा-या-नही ? फरमानतीर्थकर-गणधरोकादेखो-तो-विद्याभीपढतेरहना और नवकल्पी-विहारभी करते रहनाचाहिये,-जो-जो-जैनमुनि-या-जैनसाधवी-औसाबरतावकरतेहे,-वे-उत्सर्गमार्गपरचलनेवाले कहेजायगे, जो-साबरताव नहीकरसकते, उनकों मंजुरकरनाचाहिये, इरादे विद्यापढनेके विहारमें शिथिलमार्गका सहारालेनापडताहै,-अगरकहा जाय विद्यापढेगेतो-आगे धर्मोपदेशका फायदा होगा; सो-इसीतरह रैलविहारसेभी-आगे धर्मोपदेशका फायदाहोगा
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निर्णय-चर्चापत्र. - ३-कलम-तीसरी,-जैनशास्त्रोमेंलिखाहै,-जैनमुनिको-उत्सर्ग'मार्गमें-उद्यान-बनखंड-बागवगिचे-या-पहाडोकी गुफामें रहना चाहिये, इसपरकोइ-साकहेकि-आजकलके मनुष्योकी औसीताकात नहीरही, इसलिये इरादे संयम और देहरक्षाके गांवनगर रहनेका शिथिलमार्ग इख्तियारकरनापडा,-तो-फिर सबुतहुवा,-इरादेसंयम
और देहरक्षाके अपवादमार्गका सहारा लेनापडा,__४-कलम-चौथी, जैनशास्त्र उत्तराध्ययनमें लिखाहै, जैनमुनिकों
और जैनसाधवीको दिवसके तीसरेमहरमें गौचरीजानाचाहिये,-पहले प्रहरमें ध्यानकरे, दुसरेपहरमें स्वाध्याय-और-तीसरेपहरमें भिक्षाकों जावे, अगरकोइ इसदलिलकों पेंशकरेकि-आजकल तीसरेप्रहरगौचरीकों जायगें-तो-भिक्षामिलना दुसवारहोगा, इसलिये इरादेदहरक्षाके दिवसके पहले हरमें चाह-दुधकी गवेषणा करनापडती है, और दिवसकेदश-ग्यारहबजे गौचरीकों जानापडताहै,-सबुतहुवा,-इरादेदेहरक्षाके असावरतावकरना पडताहै,--जो-जो-जैनमुनि--उत्कृष्ट क्रियावान् बननाचाहै-दिवसके तिसरेपहरगौचरी-जावे, और-जोकुछ निरस-आहारमिले, उसपर संतोषकरे,- ५-कलम-पांचमी,-जैनशास्त्र-उत्तराध्ययनमें लिखाहै-जैनमुनि और-जैनसाधवी-क्षुधा-तृषावगेरा बाइसपरिसहकों सहनकरे, खानपानकीचीज-न-मिलेतो-उसपरिसहकों सहन करे, और अपनेअंतरायकर्मका उदयसमजे,रास्तचलतेवख्त धूपठंड और कंकरपथरकी तकलीफपडेतो सहनकरे, अगरकोइ इसदलिलकों पेंशकरेकि विहारके वख्त कंकर-पथर-या-धूपठंडकी तकलीफ सहन-न-होसके-तो-इरादे देहरक्षाके-कतानके सफेद-मौजे पहनेतो क्याहर्ज है-? पांचमेआरके 'मनुष्य-चतुर्थआरकके मनुष्योकी बराबरी नहीकरसकते, इसलिये
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निर्णय-चर्चापत्र, इसकालमें शरीररक्षाकरना पडती है-तो-सबुतहुवा, इरादे देहरक्षाके असाबरताव करनापडा,
६-कलम-छठी,-जैनशाखोमें जैनमुनिको दिनमें एकहीदफे आहारखानाकहा, ओर दिनमे नींदलेना नहीकहा, इसपर अगरकहा जायकि-शरीरकीस्थिति पहलेजैसी नहीरही, इसलिये दिनमें दोदफे आहारखाना पडताहै, औरदिनमें नींदभी लेनापडती है,-जो-फिर सबुतहुवा इरादे शरीरस्थितिके जैसाकियाजाताहै, असलमें पंचमहाप्रतधारी-उत्कृष्टक्रियापालनेकी चाहानावाले जैनमुनिकों दिनमें एकही दफे-आहारखाना चाहिये, औरदिनमें नींदलेना नहीचाहिये,-.
७-कलम-सातमी,-जैनशास्त्रोमें लिखाहै, चाहे-कोइ-जैनसाधुहो-साधवीहो-श्रावकहो-या-श्राविकाहो, जबजब-उपवासवतकरे तो-पहलेरौज-एकासनाकरे, और पारनेकेरौजभी एकाशनाकरे, इसी तरह-बेलेका तपकियाहो-छह-टंकखानाछोडे, औरतेलेका तपाकयाहो तोआठ-रंक-आहारखानाछोडे, आजकल इसतरहका बरताव-बहुत थोडे शख्शकरतेहोगे,-जोकोइ औसातप करे-वे-उत्कृष्टक्रियावान्
और उत्सर्गमार्गपर चलनेवाले कहेजायगे, जैसाकरे नही और अपने आपको उत्कृष्टक्रियावान् बोले-तो-इसबातकों जैनशास्त्र मंजुर नहीकरते,
८-कलम-आठमी-जैनशास्त्रोमे लिखाहै-जैनमुनिको लकडेके पात्ररखनाचाहिये, धातुके रखनामनाहै, इसीतरह चश्मेभी काष्टक मवाले रखनाचाहिये, अगरकहाजाय लकडेके फ्रेमबनतेनहीं, जवाचमे मालुमहो-कचकडे के फ्रेमवनेहुवे मीलते है, अगरकोइ इसदलिल. को पेंशकरेकि-इरादे पुस्तकपढ़नेके सोनेचांदीके फेमवाले चश्मे पहननापडताहै, क्योंकि पुस्तक पढ़नेमे चश्मेसे मदद मिलेगी, फिरइरादे
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निर्णय-चर्चापत्र.. पुस्तकपढनेके सोनेचांदीके फ्रेमवाले चश्मेपहेननाभी फायदेमंदहुवा, और बातबातमें इरादा लानापडा,
९-कलम-नवमी, जैनमुनिकों मुनासिबहै-आहार-विहारमें जोचीनमीले गृहस्थकों विनातकलीफपहुचायेलेवे, अगरकोइ जैनमुनि-श्रावकको औसालि वेकि-हम-यहांसे तुमारेगांवतर्फ आनाचाहते है, तुमारागांव यहांसे (१००) या-(५०) कोश दुरहै-हमारे आनेका प्रबंधकरदो, औसालिखनेसे श्रावकलोग उनके सामने आदमी-यानोकरचाकर भेजे-उननोकरचाकरोकेलिये बेलगाडीवगेरा शाथचले मुताबिकजैनशास्त्र के जैनमुनिको सालिखना योग्यनहीं, इससे-श्रावकों तकलीफ होगी,
१०-कलमदशमी-अगरकोइ जैनमुनि-श्रावकोकों औसाकहेकि हमको पचास-या-सो-रुपये-महावारीका--कोइपंडित बुलवादोश्रावकोकी इतनीताकात खर्वकरनेकी-न-हो-जैनशास्त्र फरमातेहै उनपरजैसी फर्जडालना ठीकनहीं, अगरकोइकहे-यह-ज्ञानका कामहै श्रावकोकों-न-कहेगेतोकाम कैसेचलेगा ? जवाबमें मालुमहो-श्रावकोकों तकलीफ पहुचाकर कोइकाम-करनामुनासिवनहीं,-दशवैकालिक सूत्र लिखाहै-जैसे फुलकों विनातकलीफ पहुचाये भ्रमरअपनी रसलेताहै-इसतरह जैनमुनि गृहस्थसे आहारलेवे, हां ! अगरकोइ श्रावक अर्जकरेकि-में-आपको ज्ञानकासाधन मिलादेनाचाहताई-तो जैनमुनि-उसकी योग्यता देखकर खर्चका-काम-बतलावे, ज्यादह न-बतलावे,
११-कलमग्यारहमी-कोइजैनमुनि-अवलतो श्रावकको किसी धार्मिककामकी सूचनादेवे, श्रावक उसमूवनापर अमलकरे, और फिर
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निर्णय-चर्चापत्र, जैनमुनि-उसश्रावकको-कहे-यह-चीजहमकों कल्पेनही, इन्साफपुछताहै फिर उसकामकी सूचनादेनाकैसे कल्पता-था,
१२-कलमबारहमी-अगरकोइ जैनमुनि-आचार्य--उपाध्याय गणी-प्रवर्तक वगेरापदवीके धारकबने-तो-पहले उनको यह सौच लेनाचहियेकि-मेने-उसपदवीके गुणहासिलकिये है-या-नही ? अकेलीतपस्याकरके योगवहन करलिया-और-ज्ञानहासिल कियानही. तो-जैसीपदवीसे क्याफायदा? ज्ञान-सर्वआराधककहा,-और-क्रिया देशआराधककही. भगर-चोभी-श्रद्धासहितहो-तो,
१३-कलम-तेरहमी-अगरकोइ--जैनयतिनीहो--तो--उनकोभी-पाणातिपात-मृषावाद-अदत्तादान-मैथुन--और-परिग्रह--येपांचमहाव्रतपालन-करनाचाहिये, और दशविधयतिधर्म--आराधन करनाचाहिये,-जैनशास्त्रोमे पाठहै-जो-शख्श-यांचइंद्रियोको जीते उसकानाम-यतिहै,-जैनके-यतिनामधरानेवालोकों तीर्थकरगणधराके दरखारसे छुट नहीमिली हैकि-तुम-खिलाफजैनशास्त्र के बरतावकरो, यतिजनोमेभी-जो-जैनाचार्यकी पदवीकेवारकहो-उनकों आचार्यपदके (३६) गुण हासिलकरना चाहिये, कचापानी नहीपीना-हरीवनास्पति नहीखाना, नवकल्पी विहारकरना, शुभह-शाम-दोनोवख्त प्रतिक्रमणकरना, और रजोहरण-मुखवत्रिका हमेशां पासरखनातवनैनाचार्य-होसकते है,
१४-कलम-चौदहमी--जैनशास्त्रोमे लिखा है--हरेकश्रावकश्राविकाको श्रावकधर्मके (२१) गुण-और (१२) व्रत-हासिलकरना चाहिये, विनाश्रद्धाके-केशरका तिलक लगायाजाय-या-सामायिकप्रतिक्रमण-कियाजाय-तो-इससे भावश्रावक नहीकहेजासकते,
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निर्णय-चर्चापत्र.
(दोहा.) चौदहचुके-बारां भुले-छकायाके-ज-जानेनाम, नगर डंढरा फेरिया-श्रावक महारा नाम. १, श्रावकको कुलपायके-लियो-न-प्रभुको नाम,
जैसे कुवा-जलविना-हुवातो-कौनहीं काम. २, श्रद्धापूर्वक व्रतनियम जिसमेंहो-उनकों श्रावक कहना चाहिये,
दोहा,-] जीवदया गुणवेलडी-रोपी रिषभ जिनंद, श्रावककुल मंडपचढी-सींची भरत नरीद, सहस्र डुबकी में लही-मोती न आयो हाथ, सागरको क्या दोषहै-हीन हमारे भाग, पाप छिपाये ना छिप-छिपेतो मोटे भाग्य, दाबीदुबी ना रहे-रुइ लपेटी आग, जातमात्र जल वाहिया-कर्णकंस निज माय, फुन-ते-शुभकर्मोदये-हुवा बडेरा राय,ब-कल्म-जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा-विद्यासागरन्यायरत्न-महाराज-शांतिविजयजी,
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[दोहा,- ]
पानी वाढ्यो नाव- घरमे वाढ्यो दाम, दोनों हाथ उलेचिये - यही सयानो काम, जो जामे निशदिनवसे- सो तामे परवीन, गज सरितामे वहेचले- उलट चलतहैमीन, समकीतवंता प्राणिया करेकुटुंब परिपाल, अंतर्घट न्यारा रहे धाव खिलावे वाल. जिनवानीके ज्ञानसे- सुजत लोकालोक, या वानी मस्तक धरो सदा देतेहै ढौक. मखी वेठी सहतपें पंख लिये लिपटाय, • हाथ मले और सीरधुने - लालचबुरी बलाय, नशा न नरको चाहिये -द्रव्य बुद्धि हरलेत, एक नशेके कारणे - सब जन ताली देत, सीर मुंडाये तीन गुण-सीरकी मिटगइखाज, खानेको रोटी मीले- लोक कहे महाराज.
को-मुख-को- दुखदेत है - देतकर्म झकझोर, उरझत-मुरझत आपही - धजा पवनके जोर. १०.
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1
अरे ! बिनोले बाबरे - मनके बडे जोधीर, आपउघाडे होरहे - परको ढकत शरीर.
२.१
४.
७.
८.
११.
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________________ S obhosmopoonagat-DDADOS290005. GOdia जैनश्वेतांबरधर्मोपदेष्टा-विद्यासागर-न्यायरत्न-महा राज-शांतिविजयजीके बनायेहुवे ग्रंथोकीयादी, poyeoopropranoonserapyappyorocaronavrapraswamonymooperama ॐ अहम् नमः / विजानीजात पत्तिा १-किताब-मानवधर्मसंहिता.... सिलक २-किताब-जैनसंस्कार विधि, सिलक ३-किताव-रिसाला मजहब ढुढिये, .........सिलक ४-किताब-त्रिस्तुतिपरामश,.... ......... मिलकर ५-किताव-बयान पारसनाथपहाड ........S ६-किताब-जैनतीर्थगाइड-शेठ हवसीलालजी-पानाचंद साकीन बालापुर-जिला-आकोला-मुल्क वराडने छ। इहै, किंमत तीनरुपये, जिनको चाहिये उनसे मंगवाले ७-किताव सनमपरस्तिये जैन,-इसमें मूर्तिपूजाको व था,-चर्चाका ग्रंथहोनेसे मुफ्त बांटदिया, अब लकमे नहीं.८-न्यायरत्नदर्पण-यहभी चर्चाकाग्रंथथा-मुफ्त बॉटदि थोडी नकल सिलकमें है, जिसकों चाहिये मंगवालेवे / ९-हिदायत बुत्परस्तिये जैन,-इसमें मूर्तिपूजाका बया सिलकमें मौजूद है, जिनको चाहिये मंगवालेवे,-सुफ्त दियाजाताहै,१-खरतरगछ भीमांसा-२-प्राचीवेतांवर ३-पंचमकालपता का, और, ४-जहुरेआलम, येग्रंथ अवतक छपेनहींअगरकोई जैनश्वेतांबर-श्रावक अपनेखर्चसें इनग्रंथोंकों छपवानेचाहे ग्रंथकत्तासेपुछे, ROSPERODOKOOLADDOOT y an STAGE मल्ललweocomore