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दक्षिणनिवासीके लेखकाजधाब. ४५ किसीकों मना नहीकरते, साध्वाभास-वे-होतेहो, जो दिलमें बरताव जुदा और बहारका बरताव जुदा रखे, इसका मतलब यहहुवाकि-दिलमें धर्मपर श्रद्धानही, और उपरसे साधुका बरतावरखे दक्षिणनिवासी लिखते है, आवा साध्वाभासोकेलिये श्रीसंघकुछ इलाजलेवे, जवाबमें मालुमहो, शांतिविजयजीका इसमें कोइनुकशान नही, औरइसबातका खौफ शांतिविजयजीको ख्वाबमेंभी-नही
७-स्थानांगसूत्रमें साफलिखाहै, यहजीव जगतमें अकेलाफिरताहै, इसको अगरआधारहै-तो-देवगुरुधर्मकाही है, शांतिविजयजी मुल्क दखनहैदराबाद-और-मद्रासमें सफरकरचुकेहै, कइश्रावकोकों तालीमधर्मकी देकरधर्ममें पावंदकिये है, शांतिविजयजीने जब संवत् (१९३६ ) वैशाखसुदी दशमीकेरौज मिथुनलग्नकेवख्त-शहर मले- . रकोट-मुल्कपंजाबमें दीक्षा इख्तियारकिइ, पैदलविहारसे मुल्कोकी सफरकरना शुरुकिया, विशवर्सतक पैदलविहारसे मुस्कपंजाब-मारवाड-मेवाड-गुजरात-राजपुताना-और-मालवावगेरामें सफरकिइ, संवत् (१९५६) में-जब मेराचौमासा शहर लखनउमेहुवा, और वहांसे जब-तीर्थ-समेतशिखरजीकी जियारतकों जानेकी तयारीकिइ आगे रैलमेंवेठकर सफरकरना शुरुकिया, वीशवर्सतक पैदलविहारसे और बाद रैलविहारसे--मुल्क-अंग-बंग-कलिंग-मगध-कौशल-राजपुताना-मध्यप्रदेश-वराड-खानदेश-मालवा--दखन-तैलंग-कर्णाटकमहीशूर-कोकन-मारवाड-मेवाड-सिंध-और-पंजाव--तर्फ कइदफे जानाआना हुवा और होताहै. .. .. ८-मेरीतर्फसे बनेहुवेग्रंथ-आर्यदेशदर्पण-मानवधर्म संहितारिसालामजहबढुंढिये-जैनसंस्कारविधि-त्रिस्तुतिपरामर्श-बयान पारसमायपहाइ-जैनतीर्थगाइड-सनमपरस्तिये जैन-न्यारनदर्पण-छपकर