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दलिचंद-सुखराजके लेखकाजवाब. २९ था, अगर-में-बंबइके श्रावकसंघकों खबरदेतातो-मेरेस्वागतकों-वेजरुरआते, न-मेनेखबरदिइ-और-न-वे-आये, कहिये ! इसमेंदलिल क्याथी ? उपाश्रय-और-धर्मशालाछोडकर-न्यू-सरदार-आश्रममें ठहरनेका सबब यहथाकि-वहांकी हवा-आंखकीबीमारीकेलिये फायदेमंदथी, रोगादिकारणसे एकशहरसे दुसरेशहरजाना क्या ! भना है, ? हर्गिज ! नहीं, ! फिरमुजे इसबातपर कोइ. क्या ! ठपका देसकते है, ?
-संवत् (१९७०) की-सालमें शहरपुनेका चौमासा खतभकरके मृगशीरमहिनेभी मेराजाना चश्मोकी तलाशोकेलिये बंबइ हुवाथा, उसवख्तश्रावकोंको खबर नहींदिइथी-तोभी-मालुमहोजानेसेकरीब-दोसो-अहाइसो श्रावक-शिहोर-भावनगर-लींमडी-वढवाण अहमदाबाद-सुरत और मुल्कमारवाड वगेराके मेरेपास आयेथे, और ज्ञानचर्चा होतीथी. एकरौज परेल-मुकामपर जाकरशेठ-गोकलभाइ-मूलचंदजीकी जैनबोर्डिंगमें-ने-धर्मकी पुख्तगीपर भाषण दियाथा, आठरौज-बंबइमें ठहरनाहुवाया, मगर ब-सबब बहुतआदभीयोंकी मुलाकातले के फुरसत कममीलियी, और चश्मोकी तलाशीकाकामपुरा नहीवाथा. सिर्फ ! विलायतसे-जो-डबलबीचफ्रेम-सोर्ट-साइडके चश्मे आयेथे, उसके नंबरोकी तलाश करनाथावो-किइथी. देखिये ! विनाखबर दियेभी-श्रावकोको मालुमहोनेसे मुजे बंबइमें ज्यादाठहरना पडाथा, अगर-खबरदेकर जातातो-जमालुम-कितनाठहरना पडताथा ?
___ (दस्खयान-स्थंडिलभूमि.) ४२-मेनेजो पेस्तर तेइससवालोके जवावमें लिखाथाकि-बडेबडे शहरोमें-जैनमुनि शहरकेवहार स्थंडिलभूमिकों जावेतो-जानआनम