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दलिचंद-सुखराजके लेखकाजवाब. ३३ (जवाब.) शांतिविजयजी सत्यकोंछिपातेनही, अपनेरैलविहारकोभी जाहिरकरते है-तो-दुसरीवातकों क्योंछिपायगे? शांतिविजयजीके व्यर्थकुतर्क कोइसाबीतकरे, कोरीबातें बनानेसे कामनहीचलता, सत्यवातका खंडन-न-होसके-तबएसाही कहनावनताहै,
४९-अखीरमें दलिचंद सुखराज लिखते है, समग्रसंवेगी जैनमुनियोकों-चाहिये, शांतिविजयजीतर्फसे-जोजो-बातेशास्त्र विरुद्धछपे, उसकाखंडन कियाजाय, अगर असानहीकियाजायगा-तो-संवेगी मुनिधर्मकी इसमेंहानिहै, में-समजताई-भविष्यसुधारनमें इसबातका समर्थन सबकोइ सुविधमुनिकरेगे,-संवेगीमुनियोंका चरणसेवक-दलिचंद सुखराज-धुलिया,___ (जवाव.) चाहेकोइ संवेगीजैनमुनिहो,-या-कोइ दुसराहो,-जिसकीमरजीहो, मेरेलेखपर टीकाकरे, में-जवाबदेनेको तयारहुं, शांतिविजयजीकीतर्फसें कोइबात जैनशास्त्र के विरुद्ध जाहिरनहीहोती, फिर कोइ-क्या खंडनकरेगा, इतनेपरभी जिसकीमरजीहो-ब-जरीयेलेखके सामनेआवे, में-जवाबदेनेकों मुस्तेजहुं, विद्वान्लोग खुदसमजलेयगें, किसका कहनासत्यहै,.. [ दलिचंद-सुखराजकेलेखका जवाब खतमहुवा,-]