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चर्चा पत्र.
( बयान शुरुआत किताब . )
१ - इस किताब में अवल दलिचंद मुखराजकेलेखका जवाब दियागया है, बादऊसके जेसिंग - सांकलचंदके लेखका - और - अखिरमें दक्षिणनिवासीके - लेखका जवाब बतलायागया है, इसको एकदफे अवल
अखीरतक पढलिजिये और सचवातका इम्तिहान किजिये, अगर आपको जैन अखबार पढने का शौख है - तो तारिख (१३) जुलाइ सन ( १९१५ ) के जैनअखबार में - मेने - जो दलिचंद सुखराज खिवेसरासाकीन धुलिया - जिलेखानदेश के ( २३ ) सवालोके जवाबदियेथे. आपलोगोने पढेहोगे, - दलिचंदसुखराज खिवेसराने ऊनसवालोपर फिर कुछलेख लिखा है, उसका जवाब इस किताब में देता हूं. सुनिये !
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२- आगे दलिचंद सुखराज अपने लेखकी शुरुआत में लिखते है किशांतिविजयजी संवेगी मुनि कहलाकर मुनिधर्म के विरुद्ध बरतावदेखकर मेने ( २३ ) प्रश्न पुछेथे, -
( जवाब . ) पुछेथे - तो - ऊनका जवाबभी ऊसीवख्त - जैन-औरजैनशासन अखवारमें देदियाथा, - आपलोगोने पढाहोगा, शांतिविजजीके पास माकुल जवाबोंकी कभी नही, जिसमहाशयको मेरा बरताव निधर्म से विरुद्ध दिखाइदेवे, -घो - मेरेपास - न - आवे, और मुजको मुनितरीके - न - माने, में - किसीकों कहनेनही जाताकि- आपलोग मुजकों मुनितरीके मानो, जिसशख्शमें अगर श्रद्धा-ज्ञान और चारित्र मौजूद है, और ऊसकों किसीने मुनितररीके नही माने-तो- क्याहुवा ? और अगर उसमें श्रद्धाज्ञान- चारित्रगुण नहीं है, और ऊसको - किसीने मुनितरीके माने तो क्या हुवा ? शांतिविजयजी हिंदुस्थानके तमाम मुल्कोमें सफरकरचुके है. गांवगांव - और - शहरशहरमें
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