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चर्चापत्र.
बढजाआ, इसमें कोइक्याकरे ? तीर्थकरदेवीकी धर्मतालीमसेभी किसीकिसीका शकबढजाताथा, बतलाओ ! इसमें क्या! तीर्थकराका दोष समजना? हर्गिज नहीं !! बल्कि ! समजनेवालोकी समजका फकथा,-में-उभेदकरताहुं मेरेजवाबोंकोंपढकर कइमहाशयोका-शकरफा होजायगा, और-जो-मेरेसेरुबरु नहींमिले है,---मेरेलेखकों पढकर वाकिफहोजायगेकि शांतिविजनीका बरताव इसतरहकाहै,
(बयान-प्रतिदिनचर्या.)
८-आगे दलिचंद मुखराज इसमजमूनकों पेशकरते है, शहरधुलियेमें शांतिविजयजीका ठहरना दशमहिनेहुवा, जिसमें सवेरेसें बारांबजेनककी शांतिविजयजीकी दिनचर्या सुनलिजिये ! साढेसात तथा आठबजे शय्यासे उठना, सुगंधीतेल लगाना, चाहदुध पीना, गपशप लगाना, तबतक भोजनकावख्त होजाताथा, इतनेमें बारांबजेतकका दाइम बीतजाताथा.
(जवाब.) खूबकहा ! इतनालिखना औरभी भूलगयेकि-शांतिविजयजी व्याख्यानभी नहीबांचतेथे, फरमानतुमारे अगर-में-आठवजे शय्यासे उठताथा,-तो-बतलाइये ! व्याख्यान कवबांचताथा ? संवत् (१९७१) का चौमासा जबमेने शहरधुलियेमें किया, उसवख्त तुमभी मेरीव्याख्यानसभामें आतेथे. साढेआठवजे-तो-मेरे व्याख्यानका टाइमथा, मेरीप्रतिदिनचर्या तुमने क्यालिखी, जिसने मेरीप्रतिदिनचर्या-न-मुनीहो सुनलेवे, चारघडी पीछलीरातसे-में-उठताहुँ,अपराजिता महाविद्या-जो-महानिशीथसूत्रके मूलपाठमे लिखी है, पढताहुं, बादउसके प्रतिक्रमणकरताई, फिर प्रतिलेखनाकरके स्थंडिलभूमि जाताहुँ, दोघडीदिनचढेपर अगर अपनाचंद्रस्वर चलताहो-तो