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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. चाहदुध पीताहं, नहीतो! वोभी पडारहताहै, क्योंकि-में-हरवख्त खानपान और विहारमें स्वरोदयज्ञानसे बरतावरखताहुँ, साढेआठब: जेसे साढेनववजेतक व्याख्यानधर्मशास्त्रका बांचताहुँ, दशवजेतक ज्ञानचर्चा-खतमहोनेपर थोडा विश्रामलेकर ग्यारहबजे गौचरीकों जाता. हुँ, और बारांवजेतकआहारपानीसे फारकहोताहं, नवीनग्रंथवनाना, आयेगयेहुवे शख्शोसे धर्मकेवारेमें बहेसकरना, प्रतिलेखना करना, और शामकों आहारकरना, बादप्रतिक्रमण-ज्ञानचर्चा-और-योगाभ्यास चितवनवगेरा कार्योंसेंनिवर्तनहोकर शयनकरताहुँ, इसतरह संक्षिप्तदिनचर्या-मेरी है,-मुजेधर्मकामसे फुरसतही नहीमिलती,-तोगपशप क्याकरूंगा, ? मेरेसहवासमें आनेवाले खुदजानतेहोगे, चाहेजितना कोइमेरेबारेमे लेखलिखे, इनवातोसें-में-कुछ परवाह नहीकरता,
(दर बयान जिनमंदिरके दर्शन,) ९.-फिरसवालकाने जिनमंदिरके दर्शनकेबारेमे पुछाहै, इसके जवाबमे-मालुमहो-रोगादिकारणहो, वारीश होतीहो,-बडेबडे शहरोमें जहां जिनमंदिर दुरहो,-तो-अपनेपास स्थापनाजीमें-जो-सिद्धचक्रजीकायंत्र-या-चौविसीजीकी तस्वीरहोती है, उसकेदर्शनकरलेवे, असाहुकमहै. जिनप्रतिमा-चाहे-छोटीहो,-या-बडी-एकसमान पूजनीक कही...
१०-आगे दलिचंद सुखराज लिखते है, जिनप्रतिमा छोटीबडी समानहै-तो-फिर शत्रुजय गिरनार आदितीर्थोकी यात्राजानेकी क्या गरज! यदि जानेकी आवश्यकताहै,-तेवतो-शहरमें-जो-प्रतिष्टितमंदिरहोते है, वेभी-एकप्रकारके तीर्थमानेगये है,
. (जवाब.) हरेकशहरके मंदिरतीर्थ नहीमानेगये है, सवालका जैनशाखोमे तलाशकरे, जैनशास्त्रोंमे तीर्थ-वे-मानेगये है, जहां तीर्थक