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चर्चापत्र... रोके कल्याणिकहुवेहो, जहां जैनमुनियोंकी मुक्तिहुइहो, या कोई अतिशययुक्तक्षेत्रहो, शांतिविजयजीकी दलिल कमजोरनही है,-जो-दुटजाय, शत्रुजयगिरनारवगेरा तीर्थ-मुताबिक जैनशास्त्रके जैनतीर्थ माने गये है, इसलिये उनतीर्थोंकी जियारतजाना जैनोकाफर्ज है, शांतिविज मजीने मजकुरतीर्थोंकी जियारतकिइहै, उनकी बनाइहुइ कितावजैनतीथगाइड देखो ! उनोने कितनेजैनतीर्थोकी-जियारत किइहै, ? .. (बीचबयान बासकादंडा-और देशकालका सहारा.-) ... ११-फिर दलिचंद सुखराज वयान करते है, जैनशास्त्रोमें-तोबांसकादंडा रखनाकहा, मगरआजकल देशकालानुसार शिशमकाया-सागुनका-दंडा रखाजाताहै, जवशास्त्रोमें बांसका दंडारखना आपमंजुरकरते है,-तो-फिरदेशकालका बहाना लेकर आपके शांतिविजयजी बांसकादंडा क्यानही रखते ? -- (जवाब.) यही-तो-शांतिविजयजीकी तर्क हैकि-जैनशास्त्रोमें जैनमुनिको-बांसकादंडा रखनाकहा, फिरआजकल जैनसंवेगीमुनि-शिशमका-या-सागुनकादंडा क्यौरखते है, ? दलिचंद सुखराज इसबातकी तलाशकरे, शांतिविजयजीकी दलिल उंचीडिग्रीकी है.
आगे दलिचंद मुखराज तेहरीरकरते है,-आप देशकालका सहारालेकर चरितानुवादपर जाते है,
(जवाव.) देशकालका सहारा कौनलेते है ? और चरितानुवादपर कौनजाते है, इसबातकी फिर तलाशकिजिये,-में-चरितानुवादपर नहीजाताहुं, बल्कि साफकहताहुँ,-विधिवादपर चलो, क्योंकिविधिवाद खास तीर्थकरोका फरमानहै, उसपर सवजैनोंकों पावंदरहनाचाहिये, विधिवाद सर्वव्यापी है, औरचरितानुवाद अल्पव्यापी है,