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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. विधिवादमें लिखाहै,-जैनमुनिको उद्यान-बनखंड-या-पहाडोकी झुफामेरहना, विधिवादमें लिखाहै, विहारमेंभी जैनमुनिकों नोकरचाकर-या-श्रावकवगेराकी सहायता नहीलेना, असाहयक होकर पवभकीतरह अप्रतिबद्धविहारीहोना, विधिवादमें लिखाहै, जैनमुनि नवकल्पीविहार करे, विद्यापढनेकेलियेभी एकशहरमें-या-गांवमें ज्यादे अर्सेतक-न-रहे, विधिवादमें लिखाहै-जैनमुनि दिवसके तीसरेप्रहरमें भौचरी जावे, विधिवादमें लिखा है जैनमुनि दिवसमें-एकही दफे साना खावे, और आहार लेने जावे जब बेतालिस तरेहके दोषरहित भिक्षा लेवे, विधिवादमें लिखा है किसीके लडकेकों विनाहुकम उसके बारीशोके दीक्षा-न-देवे, विधिवादमें लिखा है-जैनमुनि-योगवहन करते वख्त अकेले उपवास, एकासने-या-आचाम्ल कर लिये और योगवहन होगया, ऐसा-न-समजे, बल्कि ! जिस शास्त्रका योगवहन करना शुरु किया हो,-उस शास्त्रका मूल पाठ और अर्थ कंठाग्र करे. ___ अगर कहा जाये. पहले जैसी पुन्यवानी नहीं रही, पहले जैसा चलपराक्रम नहीं रहा, वीतराग संयम नहीं रहा, सातमे गुणस्थानसे उपरके मुनस्थान नहीं रहे, इस लिये देशकालका सहारा लेना पडता है, और द्रव्य क्षेत्र काल भाव देखकर बर्तना पडता है, तो-फिर सौचो ! इरादे धर्मके द्रव्य क्षेत्र काल भावकी सडकपर आना पडामानही ? पंच महाबत धारी उत्कृष्ट संयमी बनना सहेज नहीं है, जसपर अमल करना चाहिये, . १३-फिर दलिचंद सुखराज इस मजमूनकों पेंश करते है, प्रवचनसारोद्धार शास्त्रमें-जो-चमडेके सपाट पहननेके सबष बतलाये है, उनमेसे किस सबबसे-शांतिविजयजी चमडेके सपाट पहनते है ?
(जवाब) तारिख (१३) जुलाइ-सन १९१५ के-जैनपत्रमें प्रव