________________
दलिचंद सुखराज लेखकाजवाब.
६ -- आगे दलिचंद सुखराज बयान करते है, मुताजीसाहब मथराजजी रतनलालजी आपशांतिविजयजीके भक्तहोगें, मगर हममे आपकों इसबातका कबपुछाथा, जिससे जैनपत्रका देढकोलम व्यर्थकालाकिया,
( जवाब . ) तुमने नहीपुछाथा - तो क्या हुवा ? सचबात लिखनेका सबकोहक है, जैनपत्रका देढकोलम कालानही किया है, बल्कि ! स aaraलिखकर उजला किया है, उजलेकों कालासमजना गलत हैं, श्रीयुत प्रथवीराजजी रतनलालजी मुता - बेशक! शांतिविजयजीके भक्तश्रावक है, क्योंकि वे - शांतिविजयजीकी धर्मतालीम से मूर्तिपूजापर श्रद्धावा लेबने है, जिसमहाशयने जिससे बोधपायाहो, उसकी -वे-ताफकरे, इसमें कौनताज्जुब की बात है, -
७--- फिर दलिचंद सुखराज तेहरीरकरते है, में - यहबात पहलेजानता था कि मेरे प्रश्नो के जवाब शांतिविजयजीको अपनीसहीसे देना मुश्किलहोजायगा क्योंकि उनके जवाब मे मेरे पास बहुतसा मखजन है. -
( जवाब . ) तुमारेपास जितना मखजन है, उससेज्यादामखजन शांतिविजयजीकेपास मौजूद है, मुजे किसीकेजवाबदेनेमे को मुश्किल नही, चाहे जितने सवालकरतेरहो, -और-मेरेसे माकुलजवाबपावेरहो, जैनपत्र मे कितने महाशयोके सवालोपर जवाबदिये है, देखलो ! तुमारे सवालो के जवाब दे नक्केलिये अपने हस्ताक्षरकी सही से सामने आगया, श्रीयुत - प्रथबीराजजी रतनलालजी अपने गुरुकी वकालतकरे, इसमें कौनताज्जुब की बात है ? जिनको जिसका उपकार हो, उनकीa - वकालत करेहीकरे, मेरेदियेहुवे जवाबोंमें कोइक्या ! पोल निकालेगा ? - वे इसकदर मजबूत है, जिसमें शुचिप्रवेशहोना भी मुश्किल है, और अगर मेरेदियेहुवे जवाबोंकों पढकर किसीका anaढ जायतो