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चर्चापत्र. लेखके सामनेआये, मेरीलेखनी जवाबदेनेकों तयारहै, सवालकाके सवाल कौनसे अवधिज्ञानीकेथे, जो जवाबदेनमें सौचनापडे,
५-फिर दलिचंद सुखराज इसमजमूनकों पेंशकरतेहै, मुताजी प्रथवीराजजी-रतनलालजीने शांतिविजयजीकी तुलना तीर्थंकरोसे करनाचाही, परंतु प्रमाणशुन्य असालिखनेसे शांतिविजयजीका बरताव संवेगीधर्मानुसार नहींहोसकता, ____ (जवाब.) जैसे दुसरेसंवेगीमुनिने पंचमहाव्रत लिये है, शांतिविजयजीनेभी लिये है, जैसे दुसरेसंवेगीमुनिकों घरहाट-हवेली-खेतीवाही नहीं, वैसे शांतिविजयजीकोंभी नही, जैसे दुसरेसंवेगीमुनिगौचरीजाते है, शांतिविजयजीभी जाते है, जैसे दुसरेसंवेगीमुनि याख्यानधर्मशास्त्रका बांचते है, शांतिविजयजीभी बांचते है, जैसेदुसरेसंवेगीमुनि-पीलेकपडे पहनते है,-शांतिविजयजीभी पहनते है, फिर किसप्रमाणसे कोइकहसकतेहै ? उनका बरताव संवेगीधर्मानुसार नही, शांतिविजयजीका बरताव संवेगीधर्मासारहै-जभी-तो-हिंदके गांवगांवमें जहां श्रावकलोग आवादहै, उनकों-मुनितरीकेमानते है, रैलमें बेठकर एकगांवसे दुसरेगांव सफरकरते है, तोभी-श्रावकलोग मयबेंड-बाजावगेराजुलुसके पेशवाइकरते है, उनका-व्याख्यान सुनते है, चौमासा ठहरानेकेलिये विज्ञप्तिकरते है, रैलकिराया वगेरा खर्चदेकर आदमी शाथ भेजते है, एकगांवसे दुसरेगांवतक पहुचानेजाते है, वंदनाकरते है, और भक्तिकरते है, इससे ज्यादा और क्या होगा ? यूँतो-तीर्थकरोकोंभी-कइलोग-तीर्थकरतरीके नही मानतेथे, औसा - पलोग जैनशास्त्रोमें सुनतेहो,-इसीतरह-शांतिविजयजीको कोइश्रावक-- जैनमुनितरीके-न-माने-तो-क्याहुवा?-धर्मश्रद्धाजोराजोरी नही होसकती, श्रीयुत-प्रथवीराजजी रतनलालजी मुताका लिखना कोइममागशून्य नहीं, बल्कि ! प्रमाणयुक्तहै,