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निर्णय-चर्चापत्र. यात्राके असीसहायता लेनीपडती है, और जैसीसहायतालेना-कोइ हर्जनही, तो-इसीतरह इरादेधर्मोपदेशके-कोइजैनमुनि-रैलमेबेठनेकी सहायतालेवे-तो-क्याहर्ज है- किसीने एकतरहकी सहायतालिइकिसीनेदुसरीतरहकी सहायतालिइ,-मगर सहायतालेना जरुरपडता है,-धर्मशास्त्रमें जैसा कोइकानुन नहीकि-जिसकीपावंदी हरहालतमेंलाजमीहो,-यानी-कारणपडनेपरभी छुट-न-दिइहो, अगरकहाजाय पैदलविहारमें जैनमुनिकेलिये-जो-सहायता--श्रावकवगेराकी लिइ जाती है,-वो-इरादेधर्भके लिइजाती है, इसलिये भावहिंसा नही,औरविना भावहिंसाके पापनही,-तो-यहवात दुसरीतरहकी सहायतामेंभी-समजलो, अगर उत्सर्गमार्गपर चलेतो-जैनमुनिकों किसीकी मददलेना, नहीचाहिये, अपवादमार्गमें लेसकते है
२-कलमदुसरी,-जैनमुनिकों उत्सर्गमार्गमें नवकल्पीविहारकरनाकहा, अगरकोइ जैनमुनि-या-जैनसाधवी-विद्यापढनेकेलियेकिसीगांव-नगरमे-या-बनारसजैनपाठशालावगेरामें दोदो-चारचार वर्षतक ठहरे-तो-बतलाइये ! यहबात मुताबिकजैनशास्त्रके ठीकसमजना-या-कैसे ? इसपर कोइ-जवाबदेवेकि-इरादे विद्यापढनके जैसा कियाजायतोकोइ हर्जनही, तो सोचो ! विद्यापढनेकेलिये विहारमें अपवादमार्गका यानी शिथिलमार्गका सहारालेना पंडा-या-नही ? फरमानतीर्थकर-गणधरोकादेखो-तो-विद्याभीपढतेरहना और नवकल्पी-विहारभी करते रहनाचाहिये,-जो-जो-जैनमुनि-या-जैनसाधवी-औसाबरतावकरतेहे,-वे-उत्सर्गमार्गपरचलनेवाले कहेजायगे, जो-साबरताव नहीकरसकते, उनकों मंजुरकरनाचाहिये, इरादे विद्यापढनेके विहारमें शिथिलमार्गका सहारालेनापडताहै,-अगरकहा जाय विद्यापढेगेतो-आगे धर्मोपदेशका फायदा होगा; सो-इसीतरह रैलविहारसेभी-आगे धर्मोपदेशका फायदाहोगा