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वर्षापत्रः ... १७-फिरदलिचंद सुखराज इसमजमूलकों पेशकरते है।-पांतिविजयजीने-जातिस्मर्णज्ञानकी चर्चामे लिखाहै,-नहश्या भाविनो देवा-नचजातिस्मृति नैणां,-इसदीपमालाकल्पके आधे श्लोकसे अपनामतलब लेनाचाहाथा,-यह कौनसे तीर्थंकर गणघरोके वचन है ?
(जवाब.) दीपमालाकल्पका यहफरमान मुताबिक विधिवादा है, इसलिये प्रमाणीक मानागयाहै,-विधिवाद तीर्थकर-गणघरोका कहाहुवाहोताहै, मेनेजो जातिस्पर्णज्ञानके बारेमें दीपमालाकल्पके आ. धेश्लोकसेअपना मतलबलेनाचाहाथा,-इसमें कौन बेंमुनासिबबातथी ? तीर्थकरदेवोने एक-त्रिपदीसेही द्वादशांगवानीका मतलब लियाहै, सचीमिशाल एकभी बहुतकाम देती है. नकली मिशाले हजारां-होतोभी-क्याकामकी, ?
दीपमालाकल्पमें-जो-कलंकीराजाका होना तीर्थकरमहावीरस्वामी, के निर्वाणवाद (१९१४) वर्समें लिखाहै, यह बयान सूत्रमहानिशीथके पाठसे विरुद्धहै, और महानिशिथमूत्र खास विधिवादहै,-जो-बात खिलाफविधिवादके हो-वो-नहीमाननाचाहिये, महानिशिथसूत्र देखिये, उसमें क्यालिखाहै, उसमें साफलिखा है, कलंकीराजा-श्रीप्रभअणगारकी हयातो होगा, युगप्रधानयंत्र देखाजायतो-उसमे-श्रीप्रभअणगारको आठमें उदयके पहले युगप्रधानलिखे है, जिसको शकहो महानिशिथसूत्र औरयुगप्रधानयंत्र देखे, पांचमें आरेमें धर्मका तेइसदफे उदय-और तेइस: दफेअस्तहोगा, जमानेहालमें तीसराउदय चलताहै, कलंकीराजाका: होना जो श्रीप्रभअणगारकेवख्तमें महानिशीथसूत्रमेंलिखाहै-वो-आठभेउदयमें होगा,
१८-फिर दलिचंद सुखराज लिखते है,-जो-बात अपनेमतलबकी होती है वो मानलिइजाय,-और-जो-आपके विचारसे विरुध्धहो,---