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दलिचंद सुखराजक लेखकाजवाब. ११ (बयान पंन्यासपदवीऔरजातिस्मर्णज्ञान,-) . १५-फिरदलिचंद मुखराज तेहरीरकरते है,-मुनि-सौभाग्यविजयजीके जवाबमें शांतिविजयजी लिखते है, श्रीमान् रत्नशेखरसूरिजी कुछ केवलज्ञानी नहीथे, छद्मस्थथे, चारज्ञानके धारकभी भूलते चलेआये,
(जवाब.) बेशक ! मेंतो अबभी कहताहुँ, श्रीमान रनशेखरमूरिजी केवलज्ञानीनहीथे, और चारज्ञानके धारकपुरुषभी भूलतेचले आये, पंन्यासपदवीके बारेमें हकीकतमुनिये ! किसी जैनागममें पंन्यासपदवी नहीलिखी, अगरलिखीहो,-तो-कोइ-पाठबतलावे, आजतक किसीने पाठनहीवतलाया, कोइकहते है, आचार्यपदमें गिनलो, कोइ कहते है, पंडितपदमें दाखिलकरलो, भगर विनाशास्त्रसबुतके कोइजैन इसबातकों मंजुरनही करसकते,
१६-आगे दलिचंद सुखराज इसदलिलको पेंशकरते है, प्रवचनसारोद्धारकेकी-नेमिचंद्रमरिजी कौनसे तीर्थकर-गणधरथे, जिनके वचनोपर चमडेकेसपाटपहननेका सहारालियागया,
(जवाव.) अगर प्रवचनसारोद्धारके कर्ताके वचनप्रमाणीक नहीथे-तो-तुमने खुदअपनेलेवमें-जैनमुनिकों अप्रशस्तभाषा नहीबोलनेके संबंधकापाठ क्यों मंजुररखा ? परउपदेशमें कुशलबनना, इससेअपनेलेखपर खयालकरनाठीकहै, इन्साफकहता है जिसजिस जैनाचार्यके बनायेहुवे ग्रंथमें-जोजोवचन मुताबिक विधिवादकेहो,-उनको-मानना चाहिये,-जोजो खिलाफहो,-उनकों नहीमाननाचाहिये, यह सिधीसडकहै,-चाहे प्रवचनसारोद्वारके की-नेमिचंद्रमारजीहो-या-कोइ दुसरे जैनाचार्यहो,-तीर्थकरगणधरोसे ज्ञानमें कोइबडानही,