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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. उसलेसिया पाटयह कहदेते है, यह क्वन कौनसे आगमोके हैं,
. (जवाया) में-तो-अवर्षी यही कहता हुँ,-आगमपचनसे खिला फबात न मानो जैनमजहमें तीर्थकर गणधरोसे ज्ञानमें कोईवडा नहीं, इसीलिए-में-वासपातमें फौरन ! कहदसाहु-यह-वचमा कौनसे जैनागमके है,
१९-आगे दलिचंद सुबराज वधानकरते हैं,-शांतिविजयजी चमकेसपाट पहनतेहै, मगर देशकालानुसार आज कोइभी संवेगी साधु नहीं पहनते, क्योंकि-शास्त्रविरुद्ध है, __ (जवान..) चमडेके सपाट जैनमुनिकों अमुक-अमुक कारणोसे पहनता साखविरुद्धः नहीं, बल्कि ! प्रबचनसारोधारशास्त्र साबीती देताहैकि-इनइनसबबोसें जैनमुनि चमडेके सपाट पहने, तारिख (१३) जुलाइ सन (१९१५) के-जैनअखबारमें पाठभी-भेने जाहिरकरदिया. है, दुसरे संवेजी-जैनमुनि-नही पहनते, इससे शांतिविजयजीको क्या ?
और इसलेखमें सवालकाने देशकालकानुसारका सहास क्यों लिया,? शास्त्रक्रे पाठपर खयाल क्यों नहीं किया ?
. २०-फिर दलिचंद सुखराज तेहरीरकरते है,-आप हरेकवातमें इराक्ष बीचमें लातेहो, यह आपकी कमजोरी है,
(जवाब.) जो लोग इरादेकी बातकों नहीं समजसकते, उनकी कममोरी है, जैनशास्त्रोमें तीर्थकर-गणधरोने-जोजो-बातें कही है, इरादेपरही कही है,-इरादा कहो-या-मनःपरिणाम कहो, बात एकहीं है, जैनमुनिकों चौमासेमे विहारकरना नहींकहा, और बीमारीवगेराका-कारणहो, तो-इरादेधर्मके करनाभी कहा, जैनमुनिकों हरीवन-- स्पतिका स्पर्शकरना नहीकहा, मगर किसीखाडेमें गिरपडेहो,-तोइरादेधर्मके हरीवनास्पति-लतावेलडीको पकड़कर उपरआजानाभी