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. चर्चापत्र.... कहा,-जैनमुनिकों सचितजलका स्पर्शकरनानही कहा, मगर मुल्कोंकी सफरकरतेवख्त-रास्तेमें अगर नदीआजाय-तो इरादेधर्मके उसमें पांवदेकर सामने कनारे चलेजानाकहा, कहिये ! इरादेकी सडक कितनी मजबूतहै, जिसपर बातबातमें आनापडताहै, और जिसबातपर खयालकरोगे, बीचमें इरादा जरुरआयगा,
(दखयान-रैल विहार.) २१-आगे दलिचंद सुखराजने-रैल-और-मोटारके बारेमे जो कुछ मजमून पेशकियाहै, उसका जवाबदेता, सुनिये !-आजकलब-सबबरैलके कइश्रावक अपना बतनछोडकर हजारां कोशोपर जा बसे है, जहांकि-जैनधर्मका-निशानभी-नहीपाता, और-वहांकोइ गीतार्थजैनमुनि उनकोरास्ता धर्मकावतलानेवाले नहींभीलतेउसहालतमकोइ गीतार्थजैनमुनि ब-जरीये रैलके वहांजावे,-और-उतश्रावकको तालीम धर्मकी देवे,-तो-फायदाधर्मकाहै, मुकगुजरात-काठियावाडमें जहां जैनोंकी आबादी-ज्यादाहै, वहां जैनमुनिको पैदल विचरना मुश्किल नही, अहमदावादसें सुरत बडोदेतक-इधर महीकांठसे पालगपुरतक विचरनाभी कुछ मुश्किलकी-बातनही, मगर तमामहिंदुस्थानमें जहां श्रावकोकी आबादीदुरपरहै,-विनासहायताके आनाजाना दुसवारहै,अगरकहाजाय जहां श्रावकोकी आबादी-न-हो, या-कमहो, जैसी जगह द्रव्यक्षेत्रकाल भावदेखकर सहायता लेवे तोकोइहर्जनही, फिर द्रव्यक्षेत्रकालभावकी सडकपर चलिये,
जैनमुनिकों मुल्कोंकी सफरकरतेवख्त-अगररास्तेमें नदीआजाय तो-नावमें बेठनाहुकमहै, नाव पानीमेंचलती है, रैल जमीनपरचलती है, जैसे नदीमें नावकेचलनेसें पानीकेजीवोकी हिंसाहोगी, मगरइरादे धर्मके भावहिंसानही, वैसे रैलमेंभी इरादेधर्मके जैनमुनिको भावहिंसा