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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. १५ नही, अगरकोइ जैनमुनि-शौखसे-या-अपनेआरामकेलिये रैलसवारी करे-तो-बेशक ! पापहै, औरउसकी मुमानियतभी है, क्योंकि-उसका इरादा धर्मपर नहीरहा, आवश्यकमूत्रके अवल अध्ययनमें लिखा हैकि-धर्मरुचिअणगार नावमेंबेठकर गंगानदीउतरे, जब इरादेधर्मके नावमें वेठना भावहिंसा नहीं-तो-रैलभी एकतरहकावाहनहै, और रैल किसी एकशख्शकोलिये नहीचलती, चाहे उसमेंकोइ बेठनेजावेया-न-जावे, वो-अपनेटाइमपर आयाजायाकरती है, जहां संसारका कोइमतलब-न-हो, सिर्फ ! धर्मोपदेशदेनेका सबबहो, वहांइरादा धमकाहै, इसीलिये इरादेधर्मके-में-रैलमें बेठकरमुल्कोकी सफरकरता हुं, और श्रावकोको तालीमधर्मकी देताई, मेरे उपदेशसे कइजगहजैनश्वेतांवरमंदिरोका-तीर्थोका-और धार्मिक कार्योंका सुधाराहुवाहै, होताहै, और आगेको होनेका संभवहै,
२२-फिर-मेने-जो-दलिचंदसुखराजके तेइससवालोके जवाबमे सूत्रआवश्यककापाठदेकर कहाथाकि-एकधर्मरुचिनामके जैनमुनि नावमेंबेठकर गंगानदीकेपारउतरे, वहठीककहाथा, इसपरसवालकालिखतेहै, उसपाठका अर्थकियाहै, वो-व्याकरण और धर्मशास्त्रसे विरुद्ध एवं असत्यकियाहै,___(जवाब.) कौनकहसकताहै असत्यकियाहै, देखिये वो-पाठयहां फिर दिखलाताई, और उसका अर्थभी करदिखलाताई, सुनिये ! .
लोकेन बहुना साई-नावा धर्मरुचिं मुनि,
गंगामुत्तारयामास-नंदनामकनाविकः १, इसपाठका माइना यहहुवाकि-एक धर्मरुचिनामके जैनमुनि-नावमेवेठे और नंदनामके नाविकनेउनकों गंगानदीकेपार उतारे, इसपा