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जेसिंग - सांकल चंदके लेखका जवाब.
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धारूं गुजरातना रहनार धर्मांजीवाने शांतिविजयजीना शाथमां एक ठेकाणे रहेवानो संयोगमले - तो - तेओ, शांतिविजयजीने साधुतरीके स्वीकारशे नही, -
( जवाब . ) मुल्क - गुजरात के कइ - धर्मीश्रावक शांतिविजयजीके सहवासमे एकशाथ रहचुके है, और ऊनाने शांतिविजयजीको साधुतरीके स्वीकारे है, उनकी चीठियें आती है, सवाल पूछते है, और धार्मिक काममें रायलेते है, जैनअखबार में गुजरातके कश्रावको के मेने जवाब दिये है, जैन - एसोशिएशन - औफ - इंडिया के पत्रमेरेपास आते है, सिद्धक्षेत्र - बालाश्रम - सिद्धक्षेत्र - यशोविजय - जैन- संस्कृत - प्राकृतपाठशाला बोर्डिंग - पालिताना - श्रीयशोविजयजी जैनग्रंथमाला ओफिस भावनगर जीवदयाज्ञानप्रसारकफंड बंबइकीचीठियां - रिपोर्ट - वगेरा-मेरेपास आते है, इतने पर भी जिस श्रावककी मरजी -मुजको साधुवरीके माननेकी-नहोवह - मुजको - साधु - न - माने, मुजकों साधुतरीके माननेवाले श्रावक हिंदके गांव गांव - और - शहर शहर में माजूद है, -
१० - फिर जेसिंग - सांकलचंद लिखते है, जैनछापावालाओ पण एवानी तपाशकरशे, तो जरूर मारूंकहेतुं केटले अंशे साचुंछे-ते पोतानीले समजशकशे, -
( जवाब . ) जैनअखबारवालोने तलाशकर लिइहोगी, जभी-तोमेरे लेखकों अपनेअखबार में स्थानदेते होगे;
११ – आगे जेसिंग - सांकलचंद बयानकरते है, डुंगरदुरथी रलियामणा लागेछे,—
( जवाब . ) जिस पहाडपर जिनमंदिरबनेहुवे - होते है - वे - नजदीक - भी अच्छे दिखाइ देते है, इसीतरह अगर शांतिविजयजीमे श्रद्धाज्ञानऔर चारित्ररुपीगुण विद्यमान होगे-तो-वे-नजदीकसेभी अछे क्योंन - दिखाइदेगे, ?