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दक्षिणनिवासीके लेखकाजवाब. ... अगरकहाजाय-पहलेजैसा-बलपराक्रम नहीरहा, वीतरागसंयम वहीरहा, सातमेगुणस्थानके आगेके गुणस्थान नहीरहे, इसलिये द्रव्यक्षेत्रकालभाव देखकर चलनापडताहै, फिर द्रव्यक्षेत्रकालभावकी सडकपर चलिये, कोरीबातेंबनाना क्याफायदा ? पंचमहाव्रतधारीक्रियापात्र-पूर्णसंयमी जैनमुनिकों उत्सर्गमार्गमे बरतावकरनाचाहिये.. [बयान व्रतनियमकेबारेमे,-] - ३–जैनशास्त्रोमे लिखाहै, जैनमुनि-किसीशख्शकों जोराजोरी व्रतनियम-न-कराचे, जिसकी भरजीहो-वो-करे, जिसकी भरजीन-हो-वो-नकरे, तीर्थकर-गणधरोनेभी किसीकों विनामरजीके लियाहुवा-व्रतनियम-लेनेवाले अछीतरह पालतेभी-नही, धर्मका उपदेशसुनकर व्रतनियम-लेवेतो अछाहै, व्याख्यानधर्मशास्त्र सुननेके लियेभी-जिसका भावहोगा-वो-आयगा, जिसका भाव-जे-होगावो-नहीआयगा, धर्म-अपनीश्रद्धासे होताहै, धर्ममें जोराजोरी नहीं चलती, व्याख्यानधर्मशास्त्र बांचनेवाले जैनमुनि-विद्वान्-सत्यवक्ताऔर-सबकों समजमें आवे-जैसा व्याख्यान देतेहोंगे तो सुननेवाले खुद चलेआयगे, नही-तो-व्रतनियमदेनेसेंभी नहीआयगें,
४-फिर दक्षिणनिवासी तेहरीर करते है, सुकोमल-ग्लानरोगी-अथवा बालसाधु-के-एवा कोइप्रसंगे पालीशके तेम-न-हो, तो छेवटे साधुपणुं-छोडीदेवानो प्रसंगआवे-तो-जाणकार कुशलसाधु अपवाद पणसेवे, ..... (जवाब.) देखिये ! यहां दक्षिणनिवासी खुदलिखते हैकिकोइप्रसंग आनपडनेपर जानकार कुशलसाधु अपवादमार्गभी सेवे,उंचीउंचीवाते बनाना सहज है, मगर मुताबिक उसके अमलकरना