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दलिचंद - मुखराज के लेखका जवाब.
पुछा गया था, इसके जवाब में कारणसे रखना कहते है, मगर शांतिविजयजी किसकारण से रखते है,
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( जवाब . ) शांतिविजयजी उन्हीकारणसे रखते है, जो-जो - कारण आवश्यक सूत्र प्रतिक्रमणअध्ययनमें लिखे है, सवालकर्त्ता मजकुर - सूत्र - खोलकरदेखे,—
३९ - आगे दलिचंद सुखराज तेहरीरकरते है, -कभी कारणकासहारा - कभी देशकालका सहारा - कभी रोगादिका सहारा - और कभी कुछ - मगर स्पष्टशब्दों में जवाब नहीदेना इसकी क्या ! वजह . ?
(जवाब.) इसकी यही वजह है कि - जैनशास्त्रामें जैनमुनिकेलिये कभी कारणकासहारा लेनाकहा, कभी देशकालकासहारा लेनाकहा, कभी रोगादिकासहारा लेनाकहा, शांतिविजयजी पेस्तर स्पष्टशब्दोंमें जवाब देचुके है, और अभीदेते है, शांतिविजयजी के जवाब में कोइक्या गलती निकालेंगे ? उनके जवाब में तेहरीरकरनेकी जगहनही, जैनशास्त्रों मे जैनमुनिकों रात्रीत विहारकरना नहीकहा, मगरकारण आनपडने पर रात्रीकोंभी विहारकरजाना हुकम है, - उत्तराध्ययन सूत्र ने बयान हैकि - एकचंडरुद्रनामके जैनाचार्यने रात्रिकेवरून विहार किया, देखिये ! यहकारणका सहाराहुवा - या- नही ? जैनशास्त्रोंमें जैनमुनिकों चौमासेकेदिनोमें बिहारनहीकरना, मगर रोगादिकारण आनपडनेपर चौमासेके दिनोमेंभी विहारकर नाहुकम है, कल्पसूत्रवृत्ति पाठक
अशिवे भोजनाप्राप्तौ - राज रोगपराभवे, चातुर्मासिकमध्येपि - विहर्तुं कल्पतेन्यतः
देखिये ! इसमे साफ लिखा है, - जैनमुनिकों रोगादिकारण होतो चौमासे के दिनों में भी बिहारकरजाना, बतलाइये ! यह रोगादिकारणका सहाराहुवा - या- नही ? पेस्तर के जमानेमें जैनमुनि - गांव के बहार ->