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दक्षिणनिवासीके लेखकाजवाब. ४९ माना, अपनी जींदगीतकमें नवलाखदफे नमस्कारमंत्रका पाठकरना, पनरांहकर्मादान नहींसेवना, जन्मसेलेकर गृहस्थधर्मके सोलहसंस्कार जैनविधिसे करना,-बाइसअभक्ष्य-और-बत्तीस-अनंतकायचीज नहीं खाना, अगरअपने गांवमें जिनमंदिरहो-तो-जिनप्रतिमाके दर्शनकों जाना,-सामायिक-अतिक्रमण करना, नवतत्व-दंडक-कर्मग्रंथ-क्षेत्रसमास-और नयचक्र-वगेराधर्मशास्त्रपढना,-थोडासा धर्मशास्त्रपढकर भाषाके ग्रंथवांचलिये-या-भाषणदेना सीखे, इससे सबजैनशास्त्रका ज्ञानहोगया जैसा समजना ठीकनही, धर्मखातेमे बोलेहुवे रुपयेपैसे तुर्त धर्मकाममें खर्चदेना चाहिये,-अपनी वहीखातेमें जमा कररखना अछानही,-न-मालुम कल-अपनीस्थिति कैसीहोजाय,-अपनेधर्मके देवमंदिरके-या-तीर्थकेदेवद्रव्यका हिसाब-अपनेहस्तगतहो-वो-देवद्रव्य अपनेघरमे नहीरखना, जिनमंदिरके-या-उसतीर्थके भंडारमें रखना, और उसकीकुंचीयां-तीन-चार-या-पांचश्रावकोकेपास रखना, अपनेशहरमें स्वधर्मीश्रावक-कोइगुजरातीहो,-मारवाडीहो,-कच्छीहो,-या-काठियावाडी वगेराहो,-देवद्रव्यरक्षण करनेमे सबका एकसमानहकहै,-मुनिम-गुमास्ते रखकर देवद्रव्यका कामचलानाऔर दरसालका हिसाब-छपवाकरजाहिर करनाचाहिये,-जोजोश्रावक औसानहीकरते है, मुताबिकफरमान जैनशास्त्र के-उनकी-भूलहै,जोजो धर्मकाकामहै,-और-चो-जैनसंघसंबंधी है,-वो-चतुर्विधसंघकी सलाहसे करनाचाहिये,-इतना श्रावकका कर्तव्यलिखागयाहै,- :
इतनालिखकर इसलेखकों खतम करताई, और उमेदकरताहुँ,यह-चर्चापत्र-बांचनेवालोकों फायदेमंदहोगा, आपलोग इसकोंपड़े, दुसरोकों पहनेकी हिदायतकरे, और सत्यका इम्तियान करे,- :: ब-कल्म-जैनश्वेतांबर धर्मोपदेष्टा-विद्यासागर
न्यायरत्न-महाराज-शांतिविजयजी,