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चर्चापत्र.
मुनि रत्नकंबल ओढतेथे, जभी जैनशास्त्रोमे उसका बयानदर्ज है, जैन'मुनिकों वस्त्रपात्रवगेरा उपधिमें ममत्वभाव नहीरखनाकहा, ममत्व 'भावरहित योग्य और किंमतीवस्त्र ओढेतो कुछहर्जनही,
२६-फिर दलिचंद सुखराजइसदलिलकों पेंशकरते है, जैनशास्रोमें साधुको अचेलक लिखाहै, अचेलकका माइना कल्पसूत्रादिग्रंथोमें और टीकाओमें मानोपेत जीर्णप्रायवस्त्र रखनाकहा, औरआपतो पचरंगी रेशमी उनीरुमाल और दुशालेऔढते है, फिरआपमें अचेलकत्वधर्म कैसेमानाजाय ?
(जवाब.) जैनशास्त्रोमें जैनमुनिकों श्वेतमानोपेत जीर्णप्रायवस्त्र रखनाकहा, फिर पीतवस्त्ररखनेवाले जैनमुनिमें आपलोग अचेलकत्व धर्म-मानतेहो-या-नहीं? और जीर्णप्रायवस्वकी जगह नयेमलमल और जगन्नाथीके कपडेलेवे-तो उसजैनमुनिको आपलोग जीर्णप्रायव स्वधारी कहेगें-या-कैसे ? जीर्णप्रायवस्वधारी जैनमुनिको-जीर्णवस्त्रही लेनाचाहिये, अगरकहाजाय-श्वेतमानोपेतवस्त्रकी एवजमें पीतवस्त्र-जोधारणकियेगये है यह इरादे धर्मरक्षाकेकारणसे कियेगये है, तो फिर कारण और इरादेकी सडकपर चलिये, और खयाल किजिये, इरादेकी बात कितनी मजबूत ठहरी, जिसपर हरवख्त आनापडताहै,
___२७-आगे दलिचंद सुखराज इसमजमूनकों पेंशकरते है, रंगबेरंगी दुशालेरखना, और दिनमें तीनदफे पुशाकबदलना, क्या ! इसको अचेलकवधर्म कहते है ? क्या!कपडेबदलनेमें आत्माका साधनहै ? __(जवाब.) अगरकपडेबदलनेमें आत्माका साधननहीं है,-तो-बतलाइये ! जैनमुनि-शुभह-शामको प्रतिलेखना करतेवख्त-दो-दफे कपडेक्यों बदलते है, ? शांतिविजयजी दिनमे तीनदफेपुशाक नहीबद-. लते, जैसेदुसरे जैनमुनि प्रतिलेखनाकेवख्त दोदफे बदलतेहै, उसी