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दलिचंद सुखराजके लेखकाजवाब. जीर्णोद्धार नहीहुवातो ठीकनही, उनोनेकहा आपकुल्पाकजी तीर्थमें पधारे, हमलोग शाथचलते है, उसवख्त श्रावकोकेशाथ दखनहैदराबादसे मेराजाना तीर्थकुल्पाकजीमें हुवा, जो-जवाडा-लाइनमे आलेरटेशनसे दो-कोशदुरहै, तीर्थकुल्पाकजीमें कुल्पाकनामका एकगांव आबादहै, मगरउसमें जैनश्वेतांबरश्रावकोकी आबादी बिल्कुल नहीं, तीथकुल्पाकनीका मंदिर देखागयातो निहायतपुराना और बेंमरम्मत पाया, मेने उसवख्त उसमंदिरके बाहारके दालानमे बेठकर दखनहैदराबाद-और-सिकंदराबादके श्रावकोकों उपदेशदिया, उसीवख्त मेरे रुबरु श्रावकोने जीर्णोद्धारके खर्चेका चंदाकिया, और जीर्णोद्धारका काम शुरुहुवा,-आज उसतीर्थकी निहायतरकी हुइहै, संवत् (१९६६) में-शहरमद्रासका चौमासा पुराकरके जबदुसरीदफे मेराजाना तीर्थकुल्पाकजीमें हुवाथा, उसवख्त तीर्थकुल्पाकजीके मंदिरके शिखरपर धजादंड चहायागयाथा, प्रतिष्टा नहीकिइगइथी, उसवख्त विकानेर निवासी-उपाध्यायश्रीरामलालजी गीजीभी वहांआयेथे-और-मेरी
औरउनकी वहां मुलाकातहुइथी, दरयाफत कियाजाय उसवख्त कुल्पाकजीके मंदिस्का धजादंड चढायागयाथा-या-प्रतिष्टा हुइथी, ?देखिये ! इसतरह मुल्कदखनमें रैलविहारसे मेराजानाहुवा-तो पुराने जैनतीर्थोंका उद्धारहुवा,-या-नही ? इसीलिये-में-इरादे धर्मकेरैलविहार करताहुं..
(बयान-रत्नकंबल.) ____२५-आगे. दलिचंद-सुखराज तेहरीर करते है. पेस्तरके जैनमुनि लाखलाख रुपयोकेरनकंबल औढतेथे, यहवात जुठहै,___(जवाब.) आवश्यकसूत्रमें बयानहै,-एक-शिवभूतिनामके जैनमुनिने स्थवीरपुरनगरके राजासे रनकंबल लियाथा, पेस्तरके जैन