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.. चर्चापत्र
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- ४-आगे देवदर्शनके बारेमें-प्रतिक्रमणके बारेमें और-सुगंधी तेललगानेकेबारेमे जोकुछपुछाहै, उनकाजवाब इसकितावकी शुरुमेछपाहुवा मौजूदहै, ब-खूबी देखलो ! शांतिविजयजी व्याख्यानवगेराके वरून मुखके आगे मुहपति रखते है, स्थंडिलभूमिकेलिये शांतिविजयजी कभी बहारशहरके जाते है, कभी शहरमें अलगबंधी हुइ जगहमें जाते है, अविनयी शिष्यको-चव से शासनदेनेबारेमें आवश्यक सूत्रकापाठ देचुके है, इसकितावकी शुरुदेखलो, और अपना-शकरफा करलो, . ५-फिर जेसिंग-सांकलचंद इसमजमूनकों पेंशकरते है, गृहस्थना व्यवहारमा तथा शांतिविज जीना व्यवहारमा मात्र फर्क एटलोजछे, गृहस्थ कमाइने खायछे, शांतिविजयजी भिक्षावृत्तिकरेछ,.. ( जवाब.) शांतिविजयजीका बरताव-जिसको गृहस्थसमान दिखाइवे-वा-उनको साधुतरीके न-माने, और उनकेप स-नआवै, शांति विजयजो किसीको कहोनही जातेक-अपलोग मुनको साधुतरीके मानो, धर्म-जोर जारी नहीं होता, श्रद्ध सहोताहै, शांतिविजयजीका बरताव अगर गृहस्थोसनातहोता-तो-हंदके गांवगांवके श्रावक-उनको जैनमुनितरीके क्यों मानते, ? दुर क्योजाना, शहर धुलियेसे मेराजाना जब-सोरपुरहुवाया-जोकि कुल (१८) कोशके फासलेपरवाहै,-सीरपुरकेश्रावक-नलडाना-टेशनतक मेरेसामने आयेथे, जब सीरपुरके करीबपहुंचे,-श्रावकलोगाने मयबेंडबाजावगेरा जुलुसके पेशवाइ किइ, संवत् (१९७२) मे-प्रथ रवैशाख में मेराजाना सिर्फ ! आठरोज के लिये सीरपुरहुवाथा, मगर वहाँके श्रावकोने मुजे बडीविनतिकरके चौमासा ठहरायाथा,-बहुत भक्तिकिइथी, ज्ञानके काममें द्रव्यखर्वकरके धर्मकों तरक्की दिइथी, अगर मेरावरताव मुताविक गृहस्थकेहोता-तो-असा क्यों करते, ?