Book Title: Yogshastra
Author(s): Padmavijay
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ (१० महाधावक की दिनचर्या ३३२ देववन्दन के पाठ, विधि और व्याख्या ३३३ गुरुवन्दन: पाठ और व्याख्या ३७७ प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान के पाठ और उनकी व्याख्या श्रावक की रात्रिचर्या, नारी-अग पर चिन्तन स्थूलभद्रमुनि का वेश्यासम्पर्क, विरक्ति और प्रतिबोध देव द्वारा उपसर्ग के ममय भी व्रत में दृढ़ कामदेव श्रावक ४१५ श्रावक के तीन मनोरथो पर विवेचन ४१८ श्रावक की ११ प्रतिमाएं समाधिमरण के लिए संल्लेखनाविधि एवं उसके अतिचारों पर विवेचन बाइस परिषहों और उपसर्गों पर विवेचन ४२४ आनन्दश्रावक की अन्तिम साधना ४२७ श्रावक की भावी गति का कथन ४२६ ४२१ परपीड़ाकारक सत्य सत्य नहीं है । १७० परपीडाजनक वचन से कौशिक को नरक १७० सत्यवादी का प्रभाव और माहात्म्य १७२ अस्तेय-अणुव्रत का स्वरूप मूलदेव और मण्डिक चोर का दृष्टान्त १७५ रोहिणेय चोर से संत बना १८८ अचौर्य के सम्बन्ध में उपदेश और फल १६३ स्वदारसन्तोषव्रत का स्वरूप परस्त्री सेवन के दुष्परिणाम १६६ अब्रह्मचर्य-सेवन से गवण की दुर्दशा २०२ शील मे सुदृढ़ सुदर्शन ब्रह्मचर्य का महत्व, चमत्कार और फल २२३ स्थूल परिग्रह का लक्षण और प्रकार २२५ धनलोभी सागरचक्री का पतित जीवन २३० कुचिकर्ण की गोव्रज पर आसक्ति २३२ तिलक सेठ की धान्य में आसक्ति का परिणाम २३२ धनलोलुप नन्दराजा २३३ संतोषी अभयकुमार के जीवन-प्रसंग २३५ संतोष की महिमा,तृष्णा का दुष्परिणाम २४५ ३-तृतीय प्रकाश २४७ से ४३० गुणवतों पर विवेचन २४७ दिग्वत, उपभोग-परिभोग-परिमाणवत २४८ मद्यपान एवं मांसाहार से हानि २५१ पांच विगयों के सेवन से दोप रात्रिभोजन से विविध हानियां २४ अनर्थदण्ड-विरमणव्रत और उसके प्रकार २७१ चार शिक्षाव्रत और सामायिक व्रत २७५ देशावकाशिक व्रत, पौषध और अतिथिसंविभागवत २८० सुपात्रदान का महत्व २८६ सुपात्रदान के प्रभाव में संगम से शालिभद्र बना २६२ बारहवतों के अतिचारों का वर्णन २९८ बारह व्रतधारी श्रावक सप्तक्षेत्रो में धन लगाए ; महाश्रावक का जीवन ३२४ ४-चतुर्यप्रकाश ४३१ से ५१४ २५६ आत्मा और शरीर का स्वरूप, आत्मज्ञान ४३१ कषायों और उनके भेद-प्रभेदों पर विवेचन ४३३ क्रोधादि कषायों पर विजय का उपाय ४३४ इन्द्रिय-विजय की अनिवार्यता, नरकीब और फल ४४४ मन.शुद्धि, मन के दोप, मन पर नियंत्रण के उपाय ४४ राग-द्वेष का निरोध और उसका मूल उपाय- समत्व समता : उपाय, प्रभाव और फल द्वादश अनुप्रेक्षाओं द्वारा समत्व-साधना ४५७ अनित्य आदि १२ भावनाओं पर सांगोपांग विवेचन ध्यान और मैत्री आदि ४ भावनाएँ बासनों के प्रकार एव लक्षण

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 635