Book Title: Yogasara Tika Author(s): Yogindudev, Shitalprasad Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 5
________________ [६] लेख दूसरेसे लिखवाकर भी प्रकट करवाते रहते हैं। तथा कुछ दिनः हुए " जैन धर्ममें दैव व पुरुषार्थ " ग्रन्थ भी रात्रिको उठ२ कर लिख कर व लिखवाकर तैयार किया है यह जानकर किसे प्रसन्नता न होगी? लेकिन साथमें दुम्स भी होगा कि आपका कंपवायु रोग अच्छा नहीं होता । अतः आपको अधिकाधिक शारीरिक कष्ट होरहा है। आप शीघ्र ही आरोग्यलाभ करके चिरायु हों यही हमारी श्री जिन्द्रदेवसे प्रार्थना है। इस ग्रन्थराजके रचयिता श्री योगीन्दुदवको संक्षिप्त परिचय भी अन्यके प्रारम्भमें दिया है जो श्री पं० पामेष्ठिदासजी न्यायतीर्थनः "परमात्मप्रकाश' की प्रस्तावनासे संकलित किया है। इस ग्रन्थको प्रकट करके “जैनमित्र " के ४१३ वर्षके ग्राहकों को भेट देनेकी जो व्यवस्था का निवासी नृसिंहपुरा जातिके अध्यात्मप्रेमी सेठ सोभागचंदजीने अपने स्व० पूज्य पिताश्री सेठ कालीदास अमथाभाईक स्मारककंडगेसे की है उसके लिये वे अतीच धन्यवादके पात्र हैं। तथा ऐसे ही शायदानकी जैनसमाजमें आवश्यक्ता है। आशा है आपके शास्त्रदानका अनुकरण अन्य श्रीमान भी करेंगे। ओ जैमित्र के ग्राहक नहीं हैं उनके लिये इस ग्रंथकी कुछ प्रतियां विक्रयार्थ भी निकाली गई हैं। आशा है कि उनका भी शीघ्र प्रचार होकर इसकी दूसरी आवृत्ति प्रकट करनेका मौका प्राप्त होगा। निवेदकसूरत-वीर सं० २५६ । मूलचन्द किसनदास कापड़िया, कार्तिक मुदी ..१५ गुरुवार 'ता.-१४-११-४० ) -प्रकाशक ।Page Navigation
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