Book Title: Yogasara Tika
Author(s): Yogindudev, Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 4
________________ निवेदन। *-- - - करीब १४०० वर्ष पहले दिल जैन समाजमें अध्यात्मप्रेमी महान आचार्य श्री योगीन्दुदेव होगये हैं, जिन्होंने श्री परमात्मप्रकाश, योगसार, आध्यान्मसंदोह, सुभाषिततंत्र, तत्वार्थटीका, नौकार श्रावकाचार मादि ग्रन्थ अपभ्रंश व संस्कृत भाषामें रचे थे, जिनमें परमात्मप्रकाश और योगसाद में दोनों पक्षमा पाषा में उनका दि. जैन समाजमें विशेष आदर है तथा ये दोनों ग्रन्थ संस्कृत छाया व हिंदी अनुवाद सहित प्रकट होचुके हैं। लेकिन योगसार टीका जो कलकत्तासे प्रकट हुई थी, कई वर्षीसे नहीं मिलती थी। तथा बम्बईसे अभी योगसार प्रकट हुआ है, उसमें सिर्फ संस्कृत छाया व शब्दार्थ है। है । अतः योगसार प्रश्रकी टीका प्रकट होनेकी आवश्यक्ता थी और श्री सीतलप्रसादजीको अध्यात्म ग्रन्थों पर ही विशेष प्रेम है और आप किसी न किसी अध्यात्मग्रन्थका अनुवाद व टीका करते ही रहते हैं। अत: यद्यपि आप कंपवायुसे दो वर्षसे पीड़ित होरहे हैं तौं भी आपने दाहोद, अगास व बड़ौदामें ठहरकर इस ग्रन्थके १-१ श्लोककी टीका नित्य लिखनेका नियम करके उसे पूरा किया था जो आज प्रकाशमें आरहा है। धन्य है आपकी अध्यात्म मचि ! आज दि जैन समाजमें आप जैसे कर्मण्य ब्रह्मचारी दूसरे नहीं हैं । अभी आप लखनऊमें विशेष रोगग्रसित हैं तो भी आपका अभ्यामप्रेम कम नहीं हुआ है और जैनमित्रके लिये अध्यात्मिक १-१

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