Book Title: Yogasara Tika Author(s): Yogindudev, Shitalprasad Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 2
________________ 9 भूमिका। ___ यह योगसार ग्रंथ आत्मा मननको परम उपकारी है । इसमें निश्चयनयकी प्रधानतामे अपने ही आत्माको परमात्मा समान 'श्रद्धान करके, उसीके ध्यानका उपदेश है | आत्माका अनुभव ही मोक्षका मार्ग है । पद पदापर यही भाव झलकाया है । परमश्रुतप्रभावकमण्डल बम्बई द्वारा प्रकाशित परमात्म प्रकाशमें योगसारकी मामान्य शब्दार्थ टीका है, अल्पज्ञोंके लिये भाव प्रगट करने में बहुत संकुचित है । दुसरी कोई बड़ी भाषादीका न देखकर हमने विस्तारसे भाव खोलनेका उद्यम किया है। अल्पबुद्धि होने पर भी महान साहस करके अध्यात्म मननके हेतुसे इस कार्यका सम्पादन किया हैं । बुद्धिर्वक प्राचीन जिन आगमके अनुकूल ही विवेचन किया है। प्रमादसे व अज्ञानसे कहीं पर त्रुटि हो तो विद्वान क्षमावान होकर शुद्ध कर लेंगे ऐसी आशा है। इस ग्रंथके मूलकर्ता श्री योगेन्द्र आचार्य है, जैसा अन्तिम दोहा गाधाले प्रगट है | यह बड़े योगिराज थे। इनका रचित बृहत् ग्रंथ परमात्म प्रकाश है, जिसकी संस्कृत टीका बहादेवकृत व भाषाटीका पं. दौलतरामजी कृत बहुत ही बढ़िया है | योगसार पर कोई संस्कृत टीका उपलब्ध नहीं है।Page Navigation
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