Book Title: Yantrarajo
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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मलयेन्दुमूरिकतटीकासहितः / . व्याख्या भुजभागानां या विपरीतमौर्वी उक्तमज्या सा मेषप्रमाणेन 18 / 38 गुणयित्वा भुजक्रमज्यया भाज्या तत. स्तस्मालब्धं फलं तद्दिनस्य खण्डं भवति / अत्रोदाहरणम् / यथा प्रथमांशस्य भुजलवा: 100 एषामुक्तमज्या 033 इयं मेषप्रमाणेन 18 / 38 एकरूपेण गुण्यते जाता 0627 / 1254 अधःस्थाङ्गस्य षट्या भागे लब्धा: 20 शेषं 54 लब्धाङ्काः 20 उपरितनाङ्क 627 एवं रूपे याजिताः 647 एषामपि षध्या भाग लब्धं 10 उपरितनशून्यस्थाने स्थाप्यन्ते जाताः क्रमेण कलादयः 1 0147 / 54 ततोऽस्या भुजक्रमज्यया 625. भजनार्थ दशषष्ट्या 6 * गुण्यन्ते तन्मध्ये 47 क्षिप्यन्ते 6 47.54 एवं भुजक्रमज्याङ्केऽपि 62 षष्ट्या गुणिते पञ्चाशनिमन्ति ते जाता 3710 एभिः पूर्वाङ्गस्य भागे लब्ध भागाद्यं 01. एवमेतत् प्रथमां यस्य युज्या फलं शकलमुच्यते एवं नवत्यंशान् यषिद् ाज्याखण्डान्युत्पाद्यानि / ज्याउव च्याउव 4 अधात्र यदि उव = 8.0 तदा केप्र = त्रि, प्रतः विज्यामानसमं मेषादिमानं तन्मानमिष्टं चेल्कल्प्यते तदानुपाती यदि त्रिज्यया पूर्वसाधितं के प्रमानं तदा मेषप्रमाणे नाभीष्टेन किं जातं के प्र= ममा उज्यालव अत उपपन्न मू ज्याउव लोक्तम् / नवत्यधिकानामुकमयां ज्यामित्या प्रसाध्याग्रिमशोकोपपत्तिया। For Private And Personal Use Only

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