Book Title: Yantrarajo
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिभावोधकम् / स। (18. - अशा) + स्म / अछा-यासः आचार्यण पापा स्पर्शरेखारूपमेव युज्यावर्ष पूर्व साधितं तेन व्यासदनं दिनु) गोलगर्भात प्रतिभायाः केन्द्रान्तरं - थासद - घिद्यु - 3 ( प्रद्यु-हिछु ) एतेन पलैबिहीना मगनाष्टरूपा इत्याशुपपत्र' भवति (द्रष्टयं विचल्लारिं यत्पृष्ठे दादत्तम् ) नागचापमाने बीजप्रक्रियया धनवार्योगं विधायोपपत्तियोध्या। भयात्र यदि पिकोहमित्या स्पर्शरसे विधाय योगः कार्यतदाश्म (.-पक्षां) + स पक्षां / नि.कोज्याम - कोस्य प + स्म - 2+ वि. ज्याम कोण्यास _ वि. वा प्यासद ज्या कोज्या ज्याप / -कोशेष एवं गोलचन्द्रात् प्रतिभाकेन्द्रातरं - विर चिच्या प -कार- स मान ... For Private And Personal Use Only

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